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वक्र

सूची वक्र

बन्द वक्र का एक उदाहरण बोलचाल की भाषा में कोई भी टेढ़ी-मेढ़ी रेखा वक्र (Curve) कहलाती है। किन्तु गणित में, सामान्यतः, वक्र ऐसी रेखा है जिसके प्रत्येक बिंदु पर उसकी दिशा में किसी विशेष नियम से ही परिवर्तन होता हो। यह ऐसे बिंदु का पथ है जो किसी विशेष नियम से ही विचरण करता हो। उदाहरण के लिए, यदि किसी बिंदु की दूरी एक नियत बिंदु से सदा समान रहती हो, तो बिंदुपथ एक वक्र होता है जिसे वृत्त कहते हैं। नियत बिंदु इस वृत्त का केंद्र होता है। यदि वक्र के समस्त बिंदु एक समतल में हो तो उसे समतल वक्र (Plane curve) कहते हैं, अन्यथा उसे विषमतलीय (Skew) या आकाशीय (Space) वक्र कहा जाता है। .

18 संबंधों: दीर्घवृत्त, परवलय, प्रतिचित्रण, प्राचल, बिंदुपथ, बीजीय फलन, बीजीय वक्र, भाषा, रेखा, सतत फलन, समीकरण, स्पर्शरेखा, वास्तविक संख्या, वक्रों की सूची, वृत्त, गणित, अति परवलय, उपसमुच्चय

दीर्घवृत्त

कार्तीय निर्देशांक पद्धति में '''दीर्घवृत्त''' गणित में दीर्घवृत्त एक ऐसा शांकव होता है जिसकी उत्केन्द्रता इकाई से कम होती है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार, दीर्घवृत्त ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिनकी दो निश्चित बिन्दुओं से दूरी का योग सदैव अचर रहता है। इन निश्चित बिन्दुओं को दीर्घवृत्त की नाभियाँ (Focus) कहते हैं। माना जाता है कि पृथ्वी सहित कई ग्रह सूर्य के चारों ओर एक दीर्घवृत्तीय कक्षा में घूमते हैं और इस दीर्घवृत्त की एक नाभि पर सूर्य अवस्थित होता है। दीर्घवृत्त इस प्रकार, यह एक वृत्त का सामान्यीकृत रूप होता है। वृत्त एक विशेष प्रकार का दीर्घवृत्त होता है जिसमें दोनों नाभियाँ एक ही स्थान पर होती हैं। एक दीर्घवृत्त का आकार इसकी उत्केन्द्रता से दर्शाया जाता है, जिसका मान दीर्घवृत्त के लिए 0 से लेकर 1 के मध्य होता है। यदि किसी दीर्घवृत्त की उत्केन्द्रता 0 हो तो वह दीर्घवृत्त, एक वृत्त होता है। .

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परवलय

परवलय और उससे संबंधित पारिभाषिक शब्द गणित में, परवलय एक द्विविमीय समतलीय वक्र है जो दर्पण-सममित होता है और यह अंग्रेज़ी अक्षर U के आकार का होता है। परवलय (पैराबोला) एक द्विमीय वक्र है जिसे कई तरह से परिभाषित किया जाता है। एक परिभाषा परवलय को शांकव के एक विशेष रूप में परिभाषित करती है। इसके अनुसार, परवलय वह शांकव है जिनकी उत्केन्द्रता १ के बराबर होती है। परवलय को बिन्दुपथ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। परवलय ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिसकी किसी निश्चित रेखा से दूरी, किसी निश्चित बिन्दु से दूरी के बराबर होती है। यहाँ उस रेखा को नियता (डायरेक्ट्रिक्स) एवं उस बिन्दु को नाभि (फोकस) कहते हैं। उदाहरण के लिए, समीकरण x2 .

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प्रतिचित्रण

गणित एवं इससे संबंधित क्षेत्रों में प्रतिचित्रण (मैपिंग) शब्द का प्रयोग फलन के समानार्थी शब्द जैसा होता है। .

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प्राचल

गणित, सांख्यिकी एवं गणितीय विज्ञानों में उस राशि को प्राचल (parameter) कहते हैं जो फलनों एवं चरों को एक उभयनिष्ट (कॉमन) चर की सहायता से परस्पर जोड़ती है। प्राय: t को प्राचल के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्राचल के प्रयोग से चरों के सम्बन्ध सरल तरीके से अभिव्यक्त् करने की सुविधा प्राप्त हो जाती है। दूसरे शब्दों में, प्राचल के प्रयोग के बिना राशियों का आपसी सम्बन्ध एक समीकरण की सहायता से बताना बहुत कठिन, असम्भव या जटिल होता है। ध्यातव्य है कि प्राचल शब्द का प्रयोग अलग-अलग संदर्भों में भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है। .

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बिंदुपथ

किसी रेखा l से किसी नियत बिंदुP की तरफ २ सेमी, ४ सेमी, ६ सेमी एवं ८ सेमी की दूरी पर स्थित बिंदुओं के बिंदुपथ प्रदर्शित हैं। ये वक्र '''निकोमीडीज के कॉन्क्वायड''' (Conchoid of Nichomedes) कहलाते हैं। गणित में बिंदुपथ (locus) उन समस्त बिंदुओं का समुच्चय है जो कोई समान गुण रखते हों। सामान्यतः बिंदुपथ का सम्बन्ध एक शर्त से होता है। इस शर्त का पालन करने वाले समस्त बिंदुओं को मिलाने से कोई सतत आकृति (figure) या आकृतियाँ या वक्र (curve) बनता है। '''एपिट्रोक्वाएड''' (epitrochoid), किसी वृत के उपर घूमने वाले वृत्तीय डिस्क के उपर स्थित एक बिंदु का बिंदुपथ है। .

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बीजीय फलन

गणित में बीजीय फलन (algebraic function) ऐसे फलनों को कहते हैं जो बहुपद गुणांक वाले बहुपदीय समीकरणों को संतुष्ट करें। उदाहरण के लिये, एक ही चर वाला बीजीय व्यंजक x निम्नलिखित बहुपदीय समीकरण का हल है- यहाँ गुणांक ai(x), x के बहुपदी फलन हैं। इसके विपरीत ऐसे फलन जो बीजीय न हों, अबीजीय फलन (transcendental function) कहलाते हैं। इसी प्रकार n चरों वाला बीजीय फलन वह फलन y है जो n + 1 चरों वाले बहुपदीय समीकरण का हल हो। .

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बीजीय वक्र

किसी एकबिमीय बीजीय आकृति (algebraic variety) को बीजीय वक्र (algebraic curve) कहते हैं। इन वक्रों से सम्बन्धित सिद्धान्त अधिकांशत: उन्नीसवीं शती में ही सुविकसित हो गये थे। वृत्त एवं अन्य शांकवोंसे आरम्भ करके अनेक तरह के विशेष स्थितियों वाले वक्रों पर काफी गहराई से विचार किया गया था। दूसरे शब्दों में, यदि किस वक्र के कार्तीय (Cartesian), या प्रक्षेपीय निर्देशांकों का केवल एक स्वतंत्र चर, या प्राचल (parameter), के बीजीय फलनों के रूप में लिखा जा सके, तो वक्र को बीजीय वक्र कहते हैं। इस वक्र के समीकरण में केवल बीजीय फलन ही आते हैं। (यदि समीकरण में अबीजीय (transcendental) फलन आते हैं, तो वक्र अबीजीय वक्र कहलाता है।) विभिन्न शांकव बीजीय वक्रों के और चक्रज (cycloid), कैटिनरी (catenary) आदि, अबीजीय वक्रों के उदाहरण हैं। वक्र प्रथम, द्वितीय, तृतीय, कोटि के कहे जाते हैं, यदि उनके समीकरणों में x, या y के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, घात आते हों। वृत्त, दीर्घवृत्त (ellipse), परवलय (parabola), अतिपरवलय (hyperbola) द्वितीय कोटि के वक्रों के उदाहरण हैं। वक्र किसी बिंदु पर असंतत भी हो सकता है। संतत वक्रों पर विचार करते समय उन्हें बिंदुओं की एक एकल अनंती के रूप में भी लिया जा सकता है। कोई बीजीय वक्र कहीं पर टूट नहीं सकता, या असंतत नहीं हो सकता। उसकी स्पर्श रेखाओं (tangents) की दिशाओं में अचानक ही परिवर्तन नहीं हो सकता। उसका कोई भी भाग एक सीधी रेखा नहीं हो सकता। इस प्रकार किसी बीजीय वक्र का यह एक सामान्य लक्षण है कि उसको बनानेवाले बिंदु की विभिन्न स्थितियाँ क्रमिक और संतत होती हैं और इन बिंदुओं पर खींची गई स्पर्श रेखाओं की दिशा में परिवर्तन भी क्रमिक और संतत होता है। .

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भाषा

भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते है और इसके लिये हम वाचिक ध्वनियों का उपयोग करते हैं। भाषा मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। किसी भाषा की सभी ध्वनियों के प्रतिनिधि स्वन एक व्यवस्था में मिलकर एक सम्पूर्ण भाषा की अवधारणा बनाते हैं। व्यक्त नाद की वह समष्टि जिसकी सहायता से किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार एक दूसरे पर प्रकट करते हैं। मुख से उच्चारित होनेवाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। बोली। जबान। वाणी। विशेष— इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाकों के भी अनेक वर्ग उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हमारी हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कुत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं वह हमारे आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परम्परा से विच्छिन्न है। इस समय सारे संसार में प्रायः हजारों प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जो साधारणतः अपने भाषियों को छोड़ और लोगों की समझ में नहीं आतीं। अपने समाज या देश की भाषा तो लोग बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं, पर दूसरे देशों या समाजों की भाषा बिना अच्छी़ तरह सीखे नहीं आती। भाषाविज्ञान के ज्ञाताओं ने भाषाओं के आर्य, सेमेटिक, हेमेटिक आदि कई वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग अलग शाखाएँ स्थापित की हैं और उन शाखाओं के भी अनेक वर्ग-उपवर्ग बनाकर उनमें बड़ी बड़ी भाषाओं और उनके प्रांतीय भेदों, उपभाषाओं अथाव बोलियों को रखा है। जैसे हिंदी भाषा भाषाविज्ञान की दृष्टि से भाषाओं के आर्य वर्ग की भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है; और ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उपभाषाएँ या बोलियाँ हैं। पास पास बोली जानेवाली अनेक उपभाषाओं या बोलियों में बहुत कुछ साम्य होता है; और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं। यही बात बड़ी बड़ी भाषाओं में भी है जिनका पारस्परिक साम्य उतना अधिक तो नहीं, पर फिर भी बहुत कुछ होता है। संसार की सभी बातों की भाँति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद से अब तक बराबर विकास होता आया है; और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिये लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है। भाषा और लिपि, भाव व्यक्तीकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। उदाहरणार्थ पंजाबी, गुरूमुखी तथा शाहमुखी दोनो में लिखी जाती है जबकि हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली इत्यादि सभी देवनागरी में लिखी जाती है। .

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रेखा

भानुरेखा गणेशन उर्फ़ रेखा (जन्म: 10 अक्टूबर, 1954) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री हैं। प्रतिभाशाली रेखा को हिन्दी फ़िल्मों की सबसे अच्छी अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है। वैसे तो रेखा ने अपने फ़िल्मी जीवन की शुरुआत बतौर एक बाल कलाकार तेलुगु फ़िल्म रंगुला रत्नम से कर दी थी, लेकिन हिन्दी सिनेमा में उनकी प्रविष्टि १९७० की फ़िल्म सावन भादों से हुई। 2010 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। .

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सतत फलन

गणित में किसी चर राशी x पर परिभाषित फलन f(x) सतत फलन (Continuous function) कहलाता है यदि x में अल्प परिवर्तन करने पर f(x) के मान में भी केवल अल्प परिवर्तन हो अन्यथा यह असतत फलन कहलाता है। एक सतत फलन के प्रतिलोम फलन का सतत होना आवश्यक नहीं। .

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समीकरण

---- समीकरण (equation) प्रतीकों की सहायता से व्यक्त किया गया एक गणितीय कथन है जो दो वस्तुओं को समान अथवा तुल्य बताता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आधुनिक गणित में समीकरण सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी में विभिन्न घटनाओं (फेनामेना) एवं प्रक्रियाओं का गणितीय मॉडल बनाने में समीकरण ही आधारका काम करने हैं। समीकरण लिखने में समता चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। यथा- समीकरण प्राय: दो या दो से अधिक व्यंजकों (expressions) की समानता को दर्शाने के लिये प्रयुक्त होते हैं। किसी समीकरण में एक या एक से अधिक चर राशि (यां) (variables) होती हैं। चर राशि के जिस मान के लिये समीकरण के दोनो पक्ष बराबर हो जाते हैं, वह/वे मान समीकरण का हल या समीकरण का मूल (roots of the equation) कहलाता/कहलाते है। ऐसा समीकरण जो चर राशि के सभी मानों के लिये संतुष्ट होता है, उसे सर्वसमिका (identity) कहते हैं। जैसे - एक सर्वसमिका है। जबकि एक समीकरण है जिसका मूल हैं x.

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स्पर्शरेखा

रेखा '''s''' बिन्दु '''P''' पर वक्र की स्पर्शरेखा है। S1, S2, S3, S4 आदि अन्य रेखाएँ स्पर्शी नहीं हैं क्योंकि वे दो बिन्दुओं पर वक्र को काटती हैं। रेखा '''n''' बिन्दु '''P''' पर स्पर्शी के लम्बवत है और बिन्दु '''P''' पर वक्र की अभिलम्ब (नॉर्मल) कहलाती है। ज्यामिति में किसी समतल में स्थित किसी वक्र की किसी बिन्दु पर स्पर्शरेखा या स्पर्शी (tangent line या केवल tangent) उस सरल रेखा को कहते हैं जो उस वक्र को उस बिन्दु पर 'बस स्पर्श करती' है, अर्थात् उस वक्र को केवल उसी बिन्दु पर छूती है और अन्य किसी बिन्दु पर नहीं। वक्र y .

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वास्तविक संख्या

गणित में, वास्तविक संख्या सरल रेखा के अनुदिश किसी राशी को प्रस्तुत करने वाला मान है। वास्तविक संख्याओं में सभी परिमेय संख्यायें जैसे -5 एवं भिन्नात्मक संख्यायें जैसे 4/3 और सभी अपरिमेय संख्यायें जैसे √2 (1.41421356…, 2 का वर्गमूल, एक अप्रिमेय बीजीय संख्या) शामिल हैं। वास्तविक संख्याओं में अप्रिमेय संख्याओं को शामिल करने से इन्हें वास्तविक संख्या रेखा के रूप में एक रेखा पर निरुपित किये जा सकने वाले अनन्त बिन्दुओं से प्रस्तुत किया जा सकता है। श्रेणी:गणित *.

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वक्रों की सूची

Conics and cubic.svg वक्रो की सूची यहाँ पर विभिन्न वक्रों की सूची दी गयी है। .

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वृत्त

किसी एक निश्चित बिंदु से समान दूरी पर स्थित बिंदुओं का बिन्दुपथ वृत्त कहलाता है। यह निश्चित बिंदु, वृत्त का केंद्र कहलाता है, केंद्र और वृत्त की परिधि के किसी भी बिन्दु के बीच की दूरी वृत्त की त्रिज्या कहलाती है। वृत्त एक प्रकार का शांकव होता है जिसकी उत्केंद्रता (Eccentricity) शून्य होती है अर्थात नियता समतल में अनंत पर स्थित होती है। एक वृत्त को एक विशेष प्रकार के दीर्घवृत्त के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है जिसमें दोनों नाभियाँ संपाती होती हैं और उत्केन्द्रता 0 होती है। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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अति परवलय

एक अति परवलय का ग्राफ. गणित में अतिपरवलय एक ऐसा शांकव होता है जिसकी उत्केन्द्रता इकाई से अधिक होती है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार अतिपरवलय ऐसे बिन्दुओं का बिन्दुपथ है जिनकी दो निश्चित बिन्दुओं से दूरियों का अंतर सदैव अचर रहता है। इन निश्चित बिन्दुओं को अतिपरवलय की नाभियाँ(focus) कहते हैं। एक अतिपरवलय, एक द्विविमीय समतलीय वक्र है, जो इसके ज्यामितीय गुणों या समीकरणों द्वारा परिभाषित किया जाता है। एक अतिपरवलय में दो भाग होते हैं, जिन्हें संयुग्मी घटक कहा जाता है, जो एक-दूसरे की दर्पण छवियां होती हैं और दोनों अनंत लंबे धनुष की तरह होती हैं। अतिपरवलय, शंकु परिच्छेद के तीन प्रकारों में से एक है, जो एक समतल और एक द्विशंकु द्वारा प्रतिच्छेदन पर निर्मित होता है। (अन्य शंकु परिच्छेद परवलय और दीर्घवृत्त हैं। एक वृत्त एक दीर्घवृत्त का एक विशेष रूप है।) यदि एक समतल, एक द्विशंकु के दोनों हिस्सों को प्रतिच्छेद करता है लेकिन वह समतल शंकुओं के शीर्ष से नहीं गुजरता है, तो शांकव एक अतिपरवलय होता है ।एक अतिपरवलय दो भागों वाला एक खुला वक्र होता है, जो एक समतल द्वारा किसी द्विशंकु के दोनों भागों को प्रतिच्छेदित करने पर बनता है (बशर्ते यह समतल शंकुओं की अक्ष के समांतर न हो)। प्रत्येक स्थिति में, अतिपरवलय सममित होता है। .

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उपसमुच्चय

यदि कोई दो समुच्चय ऐसे हों कि एक का प्रत्येक अवयव दूसरे का भी अवयव हो तो प्रथम समुच्चय को द्वितीय का उपसमुच्चय (subset) कहते हैं। इसे ⊂ और ⊃ से निरुपित किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि समुच्चय A का प्रत्येक अवयव B का भी अवयव है तो इसे A ⊂ B से निरुपित करते हैं और 'A उपसमुच्चय है B का' पढ़ते हैं एवं B को A का अधिसमुच्चय कहते हैं। .

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निवर्तमानआने वाली
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