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लोधी वंश और शेर शाह सूरी

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

लोधी वंश और शेर शाह सूरी के बीच अंतर

लोधी वंश vs. शेर शाह सूरी

लोदी वंश (पश्तो / उर्दु) खिलजी अफ़्गान लोगों की पश्तून जाति से बना था। इस वंश ने दिल्ली के सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया। इन्होंने 1451 से 1526 तक शासन किया। दिल्ली का प्रथम अफ़गान शासक परिवार लोदियों का था। वे एक अफ़गान कबीले के थे, जो सुलेमान पर्वत के पहाड़ी क्षेत्र में रहता था और अपने पड़ोसी सूर, नियाजी और नूहानी कबीलों की ही तरह गिल्ज़ाई कबीले से जुड़ा हुआ था। गिल्ज़ाइयों में ताजिक या तुर्क रक्त का सम्मिश्रण था। पूर्व में मुल्तान और पेशावर के बीच और पश्चिम में गजनी तक सुलेमान पर्वत क्षेत्र में जो पहाड़ी निवासी फैले हुए थे लगभग १४वीं शताब्दी तक उनकी बिल्कुल अज्ञात और निर्धनता की स्थिति थी। वे पशुपालन से अपनी जीविका चलाते थे और यदा कदा अपने संपन्न पड़ोसी क्षेत्र पर चढ़ाई करके लूटपाट करते रहते थे। उनके उच्छृंखल तथा लड़ाकू स्वभाव ने महमूद गजनवी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया और अल-उत्बी के अनुसार उसने उन्हें अपना अनुगामी बना लिया। गोरवंशीय प्रभुता के समय अफ़गान लोग दु:साहसी और पहाड़ी विद्रोही मात्र रहे। भारत के इलबरी शासकों ने अफ़गान सैनिकों का उपयोग अपनी चौकियों को मज़बूत करने और अपने विरोधी पहाड़ी क्षेत्रों पर कब्जा जमाने के लिए किया। यह स्थिति मुहम्मद तुगलक के शासन में आई। एक अफ़गान को सूबेदार बनाया गया और दौलताबाद में कुछ दिनों के लिए वह सुल्तान भी बना। फीरोज तुगलक के शासनकाल में अफ़गानों का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ और १३७९ ई. में मलिक वीर नामक एक अफ़गान बिहार का सूबेदार नियुक्त किया गया। दौलत खां शायद पहला अफ़गान था जिसने दिल्ली की सर्वोच्च सत्ता (१४१२-१४१४) प्राप्त की, यद्यपि उसने अपने को सुल्तान नहीं कहा। सैयदों के शासनकाल में कई प्रमुख प्रांत अफ़गानों के अधीन थे। बहलोल लोदी के समय दिल्ली की सुल्तानशाही में अफ़गानो का बोलबाला था। बहलोल लोदी मलिक काला का पुत्र और मलिक बहराम का पौत्र था। उसने सरकारी सेवा सरहिंद के शासक के रूप में शुरू की और पंजाब का सूबेदार बन गया। १४५१ ई. तक वह मुल्तान, लाहौर, दीपालपुर, समाना, सरहिंद, सुंनाम, हिसार फिरोज़ा और कतिपय अन्य परगनों का स्वामी बन चुका था। प्रथम अफ़गान शाह के रूप में वह सोमवार १९ अप्रैल १४५१ को अबू मुज़फ्फर बहलोल शाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठने के बाद बहलोल लोदी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी थे जौनपुर के शर्की सुल्तान किंतु वह विजित प्रदेशों में अपनी स्थिति दृढ़ करने और अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल हुआ। बहलोल लोदी की मृत्यु १४८९ ई. में हुई। उसकी मृत्यु के समय तक लोदी साम्राज्य आज के पूर्वी और पश्चिमी पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के एक भाग तक फैल चुका था। सुल्तान के रूप में बहलाल लोदी ने जो काम किए वे सिद्ध करते हैं कि वह बहुत बुद्धिमान तथा व्यवहारकुशल शासक था। अब वह लड़ाकू प्रवृत्ति का या युद्धप्रिय नहीं रह गया था। वह सहृदय था और शांति तथा व्यवस्था स्थापित करके, न्याय की प्रतिष्ठा द्वारा तथा अपनी प्रजा पर कर का भारी बोझ लादने से विरत रहकर जनकल्याण का संवर्धन करना चाहता था। वहलोल लोदी का पुत्र निजाम खाँ, जो उसकी हिंदू पत्नी तथा स्वर्णकार पुत्री हेमा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था, १७ जुलाई १४८९ को सुल्तान सिकंदर शाह की उपाधि धारण करके दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। अपने पिता से प्राप्त राज्य में सिकंदर लोदी ने वियाना, बिहार, तिरहुत, धोलपुर, मंदरैल, अर्वतगढ़, शिवपुर, नारवार, चंदेरी और नागर के क्षेत्र भी मिलाए। शर्की शासकों की शक्ति उसने एकदम नष्ट कर दी, ग्वालियर राज्य को बहुत कमजोर बना दिया और मालवा का राज्य तोड़ दिया। किंतु नीतिकुशल, रणकुशल कूटनीतिज्ञ और जननायक के रूप में सिकंदर लोदी अपने पिता बहलोल लोदी की तुलना में नहीं टिक पाया। सिकंदर लोदी २१ नवम्बर १५१७ को मरा। गद्दी के लिए उसके दोनों पुत्रों, इब्राहीम और जलाल में झगड़ा हुआ। अत: साम्राज्य दो भागों में बँट गया। किंतु इब्राहीम ने बँटा हुआ दूसरा भाग भी छीन लिया और लोदी साम्राज्य का एकाधिकारी बन गया। जलाल १५१८ में मौत के घाट उतार दिया गया। लोदी वंश का आखिरी शासक इब्राहीम लोदी उत्तर भारत के एकीकरण का काम और भी आगे बढ़ाने के लिए व्यग्र था। ग्वालियर को अपने अधीन करने में वह सफल हो गया और कुछ काल के लिए उसने राणा साँगा का आगे बढ़ना रोक दिया। किंतु अफगान सरकार की अंतर्निहित निर्बलताओं ने सुल्तान की निपुणताहीन कठोरता का संयोग पाकर, आंतरिक विद्रोह तथा बाहरी आक्रमण के लिए दरवाजा खोल दिया। जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने २० अप्रैल १५२६ ई. को पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हरा और मौत के घाट उतारकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। तीनों लोदी राजाओं ने चौथाई शताब्दी तक शासन किया। इस प्रकार मुगलों के पूर्व के शाही वंशों में तुगलकों को छोड़कर उनका शासन सबसे लंबा था। दिल्ली के लोदी सुल्तानों ने एक नए वंश की स्थापना ही नहीं की; उन्होंने सुल्तानशारी की परंपराओं में कुछ परिवर्तन भी किए; हालाँकि उनकी सरकार का आम ढाँचा भी मुख्यत: वैसा ही था जैसा भारत में पिछले ढाई सौ वर्षों के तुर्क शासन में निर्मित हुआ था। हिंदुओं के साथ व्यवहार में वे अपने पूर्ववर्तियों से कहीं अधिक उदार थे और उन्होंने अपने आचरण का आधार धर्म के बजाय राजनीति को बनाया। फलस्वरूप उनके शासन का मूल बहुत गहराई तक जा चुका था। लोदियों ने हिंदू-मुस्लिम-सद्भाव का जो बीजारोपण किया वह मुगलशासन में खूब फलदायी हुआ। . शेरशाह सूरी (1472-22 मई 1545) (फारसी/पश्तो: فريد خان شير شاہ سوري, जन्म का नाम फ़रीद खाँ) भारत में जन्मे पठान थे, जिन्होनें हुमायूँ को 1540 में हराकर उत्तर भारत में सूरी साम्राज्य स्थापित किया था। शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिये एक सैनिक के रूप में काम किया था जिन्होनें उन्हे पदोन्नति कर सेनापति बनाया और फिर बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया। 1537 में, जब हुमायूँ कहीं सुदूर अभियान पर थे तब शेरशाह ने बंगाल पर कब्ज़ा कर सूरी वंश स्थापित किया था। सन् 1539 में, शेरशाह को चौसा की लड़ाई में हुमायूँ का सामना करना पड़ा जिसे शेरशाह ने जीत लिया। 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को पुनः हराकर भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया और शेर खान की उपाधि लेकर सम्पूर्ण उत्तर भारत पर अपना साम्रज्य स्थापित कर दिया। एक शानदार रणनीतिकार, शेर शाह ने खुद को सक्षम सेनापति के साथ ही एक प्रतिभाशाली प्रशासक भी साबित किया। 1540-1545 के अपने पांच साल के शासन के दौरान उन्होंने नयी नगरीय और सैन्य प्रशासन की स्थापना की, पहला रुपया जारी किया है, भारत की डाक व्यवस्था को पुनः संगठित किया और अफ़गानिस्तान में काबुल से लेकर बांग्लादेश के चटगांव तक ग्रांड ट्रंक रोड को बढ़ाया। साम्राज्य के उसके पुनर्गठन ने बाद में मुगल सम्राटों के लिए एक मजबूत नीव रखी विशेषकर हुमायूँ के बेटे अकबर के लिये। .

लोधी वंश और शेर शाह सूरी के बीच समानता

लोधी वंश और शेर शाह सूरी आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): दिल्ली, पश्तो भाषा, बिहार, मुग़ल साम्राज्य

दिल्ली

दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ी: National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैं: हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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पश्तो भाषा

कोई विवरण नहीं।

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बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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लोधी वंश और शेर शाह सूरी के बीच तुलना

लोधी वंश 21 संबंध है और शेर शाह सूरी 53 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 5.41% है = 4 / (21 + 53)।

संदर्भ

यह लेख लोधी वंश और शेर शाह सूरी के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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