18 संबंधों: चित्तर, तंजावुर, थंगक, पातचित्र, पिथोरा चित्रकला, पिछवई, फड़, बाटिक, भारत, मधुबनी, यमुनाघाट, लोक नृत्य, लोकगीत, जादोपटिया चित्रकला, वरली, गोंड, कलमकारी, काँगड़ा।
चित्तर
यह भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। .
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तंजावुर
तमिलनाडु के पूर्वी तट पर स्थित तंजावुर या तंजौर ऐतिहासिक शहर है। कावेरी के उपजाऊ डेल्टा क्षेत्र में होने के कारण इसे दक्षिण में चावल का कटोरा के नाम से भी जाना जाता हैं। 850 ई. में चोल वंश ने मुथरयार प्रमुखों को पराजित करके तंजावर पर अधिकार किया और इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया। चोल वंश ने 400 वर्ष से भी अधिक समय तक तमिलनाडु पर राज किया। इस दौरान तंजावुर ने बहुत उन्नति की। इसके बाद नायक और मराठों ने यहां शासन किया। वे कला और संस्कृति के प्रशंसक थे। कला के प्रति उनका लगाव को उनके द्वारा बनवाई गई उत्कृष्ट इमारतों से साफ झलकता है। .
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थंगक
यह भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। .
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पातचित्र
यह भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। .
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पिथोरा चित्रकला
पिथोरा चित्रकला पिथोरा चित्रकला एक प्रकार की चित्रकला है। मध्य प्रदेश के पिथोरा क्षेत्र मे इस कला का उद्गम स्थल माना जाता है। इस कला के विकास में भील जनजाति के लोगों का योगदान उल्लेखनीय है। इस कला में पारम्परिक रंगों का प्रयोग किया जाता था। प्रायः घरों की दीवारों पर यह चित्रकारी की जाती थी परन्तु अद्यतन समय में यह कागजों, केन्वस, कपड़ों आदि पर की जाने लगी है। यह चित्रकला बड़ोदा से ९० किलोमीटर पर स्थित तेजगढ़ ग्राम (मध्य गुजरात) में रहने वाली राठवा, भील व नायक जनजाति के लोगों द्वारा दीवारों पर बनाई जाती है। इसके अतिरिक्त बड़ोदा जिले के तेजगढ़ व छोटा नागपुर ताल्लुक के आसपास भी पिथोरा चित्रकला घरों की तीन भीतरी दीवारों में काफी संख्या में वहां रहने वाले जनजातीय लोगों के घरों में देखी जा सकती हैं। पिथोरा चित्रकला का इन जनजातीय लोगों के जीवन में विशेष महत्व है तथा उनका यह मानना है कि इस चित्रकला को घरों की दीवारों पर चित्रित करने से घर में शान्ति, खुशहाली व सौहार्द का विकास होता है। पिथोरा चित्रकला का चित्रण राठवा जाति के लोग ही सबसे अधिक करते हैं तथा अत्यन्त ही साधारण स्तर के किन्तु धार्मिक लोग होते हैं। इनके लिए पिथोरा बाबा अति विशिष्ठ व पूजनीय होते हैं। इस चित्रकला के चित्रण में ये लोग बहुत धन लगाते हैं तथा जो अपने घर में अधिकाधिक पिथोरा चित्र रखते हैं वे समाज में अति सम्माननीय होते हैं। पिथोरा चित्रकार को लखाड़ा कहा जाता है तथा जो इन चित्रकलाओं का खाता रखते हैं उन्हें झोखरा कहा जाता है। सर्वोच्च पद पर आसीन जो पुजारी धार्मिक अनुष्ठान करवाता है उसे बडवा या अध्यक्ष पुजारी कहते हैं। सामान्यत: लखाड़ा किसान होते हैं। इस् चित्रकला का चित्रण केवल पुरुष ही कर सकते हैं। खातों की देखरेख के अतिरिक्त लखाड़ा सामान्य चित्रण जैसे रंग भरने का कार्य ही पिथोरा चित्रकारों में शामिल होकर कर सकते हैं। वरिष्ठ कलाकारों के मार्गदर्शन में लखाड़ा अच्छे चित्रकार बन जाते हैं। महिलाओं के लिए पिथोरा चित्रण निषेध है। .
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पिछवई
यह भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। .
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फड़
फड़ चित्रकला भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। .
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बाटिक
बाटिक कला अपाई एक कपड़े पर बाटिक भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। यह वस्त्रों की छपाई की अत्यंत प्राचीन कला है और आज भी यह सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि श्रीलंका, बांग्लादेश, चीन, ईरान, द फिलीपींस, मलेशिया एवं थाइलैंड सहित पूरी दुनिया में बेहद लोकप्रिय है। .
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भारत
भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .
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मधुबनी
मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन १९७२ में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। .
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यमुनाघाट
यह भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। .
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लोक नृत्य
लोकनृत्य (Folk dance) उन नृत्यों को कहते हैं जिनमें प्राय: निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-.
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लोकगीत
लोकनृत्य के साथ लोकगीत लोकगीत लोक के गीत हैं। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है। सामान्यतः लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है। लोकगीतों का रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक समर्पित कर देता है। शास्त्रीय नियमों की विशेष परवाह न करके सामान्य लोकव्यवहार के उपयोग में लाने के लिए मानव अपने आनन्द की तरंग में जो छन्दोबद्ध वाणी सहज उद्भूत करता हॅ, वही लोकगीत है। इस प्रकार लोकगीत शब्द का अर्थ हॅ- १- लोक में प्रचलित गीत २- लोक-रचित गीत ३- लोक-विषयक गीत कजरी, सोहर, चैती, लंगुरिया आदि लोकगीतों की प्रसिद्ध शैलियाँ हैं। .
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जादोपटिया चित्रकला
जादोपटिया झारखंड-बिहार की सीमा के निवासी संताल जनजाति की लोक चित्रकला है जो इस समाज के इतिहास और दर्शन को पूर्णतः अभिव्यक्त करने की क्षमता रखती है। यह संताली समाज से जुडी प्राचीन लोककला है, जो इस समाज के उद्भव विकास, रहन-सहन, धार्मिक विश्वास एवं नैतिकता को व्यक्त करती है। इस शैली के कलाकार वंश परम्परा के आधार पर इस कला को अपनाते आए हैं। इनके नाम के साथ जादोपटिया शब्द जुडा रहता है। जादो संतालों में पुरोहितों को कहा जाता था। वे इस चित्रकला के सहारे अपनी जीविका चलाते थे। वे इस चित्रकला को लेकर गांव -गांव में घूमते थे और इसे दिखाते समय लयबद्ध स्वर में चित्रित विषय और कथा को गीत के रूप में लोगों के सामने रखते थे। जिससे संताली अपनी सस्कृति के बारे जान सके। अपनी इस संगीतमय प्रस्तुति के बाद वे लोगों से दक्षिणा लेते थे। चित्रकला की इस शैली को कपडे या कागज पर बनाया जाता है। कपडे पर सूई-धागे से सी कर ५ से २० फीट लंबा और डेढ या दो फीट चौडा पट तैयार किया जाता है। इसम ज्यादातर वैसे चित्रों का चयन किया जाता है जो इस समाज के सांस्कृतिक, नैतिक दृश्यो को दिखा सकें। .
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वरली
यह भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। .
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गोंड
गोंड का मतलब हो सकता है -.
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कलमकारी
कलमकारी भारत की प्रमुख लोककलाओं में से एक है। क़लमकारी एक हस्तकला का प्रकार है जिस में हाथ से सूती कपड़े पर रंगीन ब्लॉक से छाप बनाई जाती है। क़लमकारी शब्द का प्रयोग कला एवं निर्मित कपड़े दोनो के लिए किया जाता है। मुख्य रूप से यह कला भारत एवं ईरान में प्रचलित है। सर्वप्रथम वस्त्र को रात भर गाय के गोबर के घोल में डुबोकर रखा जाता है। अगले दिन इसे धूप में सुखाकर दूध, माँड के घोल में डुबोया जाता है। बाद में अच्छी तरह से सुखाकर इसे नरम करने के लिए लकड़ी के दस्ते से कूटा जाता है। इस पर चित्रकारी करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक पौधों, पत्तियों, पेड़ों की छाल, तनों आदि का उपयोग किया जाता है। .
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काँगड़ा
काँगड़ा हिमाचल प्रदेश का ऐतिहासिक नगर तथा जिला है; इसका अधिकतर भाग पहाड़ी है। इसके उत्तर और पूर्व में क्रमानुसार लघु हिमालय तथा बृहत् हिमालय की हिमाच्छादित श्रेणियाँ स्थित हैं। पश्चिम में सिवालिक (शिवालिक) तथा दक्षिण में व्यास और सतलज के मध्य की पहाड़ियाँ हैं। बीच में काँगड़ा तथा कुल्लू की सुन्दर उपजाऊ घाटियाँ हैं। काँगड़ा चाय और चावल तथा कुल्लू फलों के लिए प्रसिद्ध है। व्यास (विपासा) नदी उत्तर-पूर्व में रोहतांग से निकलकर पश्चिम में मीर्थल नामक स्थान पर मैदानी भाग में उतरती है। काँगड़ा जिले में कड़ी सर्दी पड़ती है परंतु गर्मी में ऋतु सुहावनी रहती है, इस ऋतु में बहुत से लोग शैलावास के लिए यहाँ आते हैं; जगह-जगह देवस्थान हैं अत: काँगड़ा को देवभूमि के नाम से भी अभिहित किया गया है। हाल ही में लाहुल तथा स्पीत्ती प्रदेश का अलग सीमांत जिला बना दिया गया है और अब काँगड़ा का क्षेत्रफल 4,280 वर्ग मील रह गया है। काँगड़ा नगर लगभग 2,350 फुट की ऊँचाई पर, पठानकोट से 52 मील पूर्व स्थित है। हिमकिरीट धौलाधर पर्वत तथा काँगड़ा की हरी-भरी घाटी का रमणीक दृश्य यहाँ दृष्टिगोचर होता है। यह नगर बाणगंगा तथा माँझी नदियों के बीच बसा हुआ है। दक्षिण में पुराना किला तथा उत्तर में बृजेश्वरी देवी के मंदिर का सुनहला कलश इस नगर के प्रधान चिह्न हैं। एक ओर पुराना काँकड़ा तथा दूसरी ओर भवन (नया काँगड़ा) की नयी बस्तियाँ हैं। काँगड़ा घाटी रेलवे तथा पठानकोट-कुल्लू और धर्मशाला-होशियारपुर सड़कों द्वारा यातायात की सुविधा प्राप्त है। काँगड़ा पहले 'नगरकोट' के नाम से प्रसिद्ध था और ऐसा कहा जाता है कि इसे राजा सुसर्माचंद ने महाभारत के युद्ध के बाद बसाया था। छठी शताब्दी में नगरकोट जालंधर अथवा त्रिगर्त राज्य की राजधानी था। राजा संसारचंद (18वीं शताब्दी के चतुर्थ भाग में) के राज्यकाल में यहाँ पर कलाकौशल का बोलबाला था। 'काँगड़ा कलम' विश्वविख्यात है और चित्रशैली में अनुपम स्थान रखती है। काँगड़ा किले, मंदिर, बासमती चावल तथा कटी नाक की पुन: व्यवस्था और नेत्रचिकित्सा के लिए दूर-दूर तक विख्यात था। 1905 के भूकम्प में नगर बिल्कुल उजड़ गया था, तत्पश्चात् नयी आबादी बसायी गयी। यहाँ पर देवीमंदिर के दर्शन के लिए हजारों यात्री प्रति वर्ष आते हैं तथा नवरात्र में बड़ी चहल-पहल रहती है। प्राचीन काल में त्रिगर्त नाम से विख्यात काँगड़ा हिमाचल की सबसे खूबसूरत घाटियों में एक है। धौलाधर पर्वत श्रृंखला से आच्छादित यह घाटी इतिहास और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। एक जमाने में यह शहर चंद्र वंश की राजधानी थी। काँगड़ा का उल्लेख 3500 साल पहले वैदिक युग में मिलता है। पुराण, महाभारत तथा राजतरंगिणी में इस स्थान का जिक्र किया गया है। .
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