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याज्ञवल्क्य स्मृति और विधिकार

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

याज्ञवल्क्य स्मृति और विधिकार के बीच अंतर

याज्ञवल्क्य स्मृति vs. विधिकार

याज्ञवल्क्य स्मृति धर्मशास्त्र परम्परा का एक हिन्दू धर्मशास्त्र का ग्रंथ (स्मृति) है। याज्ञवल्क्य स्मृति को अपने तरह की सबसे अच्छी एवं व्यवस्थित रचना माना जाता है। इसकी विषय-निरूपण-पद्धति अत्यंत सुग्रथित है। इसपर विरचित मिताक्षरा टीका हिंदू धर्मशास्त्र के विषय में भारतीय न्यायालयों में प्रमाण मानी जाती रही है। इसके श्लोक अनुष्टुप छंद में हैं - इसी छंद में गीता, वाल्मीकि रामायण और मनुस्मृति लिखी गई है। इसी विषय (यानि धर्मशास्त्र) पर मनुस्मृति को आधुनिक भारत में अधिक मान्यता मिली है। इसमें आचरण, व्यवहार और प्रायश्चित के तीन अलग अलग भाग हैं। . सामान्य भाषा में विधिकार और विधायक शब्दों का प्रयोग भिन्न अर्थों में किया जाता है। विधिकार (law Givers) के प्रयोग से ऐसे व्यक्ति का अभिप्राय है जो स्वयं विधि का निर्माण करे और विधायक किसी एक अथवा कुछ विधियों का निर्माण कर सकता है लेकिन विधायक विधि संस्थानों - संसद, विधानमंडल आदि - में बैठकर अन्य विधायकों के साथ मिलकर विधि का निर्माता होता है अत: व्यक्तिगत रूप से वह विधि का निर्माण नहीं करता। विधिकार की परिभाषा देने के पूर्व विधि संबंधी दृष्ष्टिकोण स्पष्ट होना आवश्यक है। विधि के सिलसिले में कानून, सत्य, धर्म, न्याय, राइट, रेस्ट, ड्रायट आदि भिन्न शब्दों का प्रयोग किया जाता है। लैटिन भाषा में लेजिस्लेटर (विधायक) अथवा जूरिसडेटर (न्यायनिर्माता) शब्दों का प्रयोग नहीं मिलता, लेकिन "लेजेनडेरे" और "लेक्स डेट" में (विधि देने और प्रयुक्त विधि) का उल्लेख मिलता है। जस्टीनियन ऐसे विधिकार को विधायक की संज्ञा दी गई है। यूनानी भाषा में भी विधिकार के संबंध में इसी भांति अस्पष्टता है। "थेसमोस" (Thesmos) का अर्थ एक वाक्य, सूत्र अथवा विधि किया जाता है। विधिसंहिता की नोमोस (Nomos) की संज्ञा दी जाती है। सोलोन (Solon) ने थेसमोइ (थेसमोस का बहुवचन) की रचना की जिसे 250 वर्ष बाद अरस्तू (Aristotle) ने विधिकार नाम से संबोधित किया। विधि संबंधी विभिन्न व्याख्याओं के कारण इस संबंध में भी मतभेद है कि किस व्यक्ति को विधिकार माना जाए और किसको नहीं। ईश्वरप्रदत्त विधि मानने पर भी उनको संसार में लानेवाले माध्यम का महत्व कम नहीं होता अत: हजरत मूसा, ईसा, मुहम्मद, कन्फ्यूशियस, मनु आदि को इस श्रेणी में रखना पड़ेगा। यदि विधि समाज के विवेक और शील का प्रतीक है तो भी विधिरचना में व्यस्त चाहे वह विधानमंडल हो अथवा न्यायाधीश, जो परंपराओं को नवीन स्थितियों में लागू करने के लिए नई व्यवस्थाएँ देते हैं अथवा ऐसे दार्शनिक विचारक जो समाज के विश्लेषणात्मक अध्ययन के उपरांत उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप विधि बनाने पर जोर देते हैं अथवा ऐतिहासिक विकासशृंखला के ऐसे नरेश, सत्तासंपन्न व्यक्ति जिन्होंने अपनी शक्ति और निदेश से नए नियमों की रचना की, उन सभी को विधिकार कहा जा सकता है। .

याज्ञवल्क्य स्मृति और विधिकार के बीच समानता

याज्ञवल्क्य स्मृति और विधिकार आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): मनुस्मृति, मिताक्षरा, याज्ञवल्क्य, विज्ञानेश्वर

मनुस्मृति

मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्मशास्त्र (स्मृति) है। इसे मानव-धर्म-शास्त्र, मनुसंहिता आदि नामों से भी जाना जाता है। यह उपदेश के रूप में है जो मनु द्वारा ऋषियों को दिया गया। इसके बाद के धर्मग्रन्थकारों ने मनुस्मृति को एक सन्दर्भ के रूप में स्वीकारते हुए इसका अनुसरण किया है। धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाणरूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है, वैवस्वत मनु या प्राचनेस मनु द्वारा नहीं। मनुस्मृति से यह भी पता चलता है कि स्वायंभुव मनु के मूलशास्त्र का आश्रय कर भृगु ने उस स्मृति का उपवृहण किया था, जो प्रचलित मनुस्मृति के नाम से प्रसिद्ध है। इस 'भार्गवीया मनुस्मृति' की तरह 'नारदीया मनुस्मृति' भी प्रचलित है। मनुस्मृति वह धर्मशास्त्र है जिसकी मान्यता जगविख्यात है। न केवल भारत में अपितु विदेश में भी इसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय होते रहे हैं और आज भी होते हैं। अतः धर्मशास्त्र के रूप में मनुस्मृति को विश्व की अमूल्य निधि माना जाता है। भारत में वेदों के उपरान्त सर्वाधिक मान्यता और प्रचलन ‘मनुस्मृति’ का ही है। इसमें चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबन्ध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने सम्भव है। यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है। मनु महाराज के जीवन और उनके रचनाकाल के विषय में इतिहास-पुराण स्पष्ट नहीं हैं। तथापि सभी एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि मनु आदिपुरुष थे और उनका यह शास्त्र आदिःशास्त्र है। मनुस्मृति में चार वर्णों का व्याख्यान मिलता है वहीं पर शूद्रों को अति नीच का दर्जा दिया गया और शूद्रों का जीवन नर्क से भी बदतर कर दिया गया मनुस्मृति के आधार पर ही शूद्रों को तरह तरह की यातनाएं मनुवादियों द्वारा दी जाने लगी जो कि इसकी थोड़ी सी झलक फिल्म तीसरी आजादी में भी दिखाई गई है आगे चलकर बाबासाहेब आंबेडकर ने सर्वजन हिताय संविधान का निर्माण किया और मनु स्मृति में आग लगा दी गई जो कि समाज के लिए कल्याणकारी साबित हुई और छुआछूत ऊंच-नीच का आडंबर समाप्त हो गया। .

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मिताक्षरा

मिताक्षरा याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर की टीका है जिसकी रचना 11वीं शताब्दी में हुई। यह ग्रन्थ 'जन्मना उत्तराधिकार' (inheritance by birth) के सिद्धान्त के लिए प्रसिद्ध है। हिंदू उत्तराधिकार संबंधी भारतीय कानून को लागू करने के लिए मुख्य रूप से दो मान्यताओं को माना जाता है- पहला है दायभाग स्कूल, जो बंगाल और असम में लागू है। दूसरा है मिताक्षरा, जो शेष भारत में मान्य है। मिताक्षरा के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से ही अपने पिता की संयुक्त परिवार सम्पत्ति में हिस्सेदारी हासिल हो जाती है। इसमें 2005 में कानून में हुए संशोधन के बाद लड़कियों को भी शामिल किया गया। .

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याज्ञवल्क्य

भगवती सरस्वती याज्ञवल्क्य के सम्मुख प्रकट हुईं याज्ञवल्क्य (ईसापूर्व ७वीं शताब्दी), भारत के वैदिक काल के एक ऋषि तथा दार्शनिक थे। वे वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी शाखा के द्रष्टा हैं। इनको अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना जाता है। याज्ञवल्क्य का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य शतपथ ब्राह्मण की रचना है - बृहदारण्यक उपनिषद जो बहुत महत्वपूर्ण उपनिषद है, इसी का भाग है। इनका काल लगभग १८००-७०० ई पू के बीच माना जाता है। इन ग्रंथों में इनको राजा जनक के दरबार में हुए शास्त्रार्थ के लिए जाना जाता है। शास्त्रार्थ और दर्शन की परंपरा में भी इनसे पहले किसी ऋषि का नाम नहीं लिया जा सकता। इनको नेति नेति (यह नहीं, यह भी नहीं) के व्यवहार का प्रवर्तक भी कहा जाता है। .

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विज्ञानेश्वर

विज्ञानेश्वर १२वीं शताब्दी में भारत के महत्वपूर्ण धर्मशास्त्री (jurist) थे। उनके द्वारा रचित मिताक्षरा टीका हिन्दू विधि का सर्वप्रमुख ग्रन्थ है। विज्ञानेश्वर का जन्म वर्तमान समय के कर्नाटक में गुलबर्ग के निकट मर्तूर ग्राम में हुआ था। वे वे विक्रमादित्य चतुर्थ (1076-1126) के राजसभासद थे। .

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याज्ञवल्क्य स्मृति और विधिकार के बीच तुलना

याज्ञवल्क्य स्मृति 11 संबंध है और विधिकार 48 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 6.78% है = 4 / (11 + 48)।

संदर्भ

यह लेख याज्ञवल्क्य स्मृति और विधिकार के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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