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मोहन अवस्थी और १९२९

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

मोहन अवस्थी और १९२९ के बीच अंतर

मोहन अवस्थी vs. १९२९

डॉ॰ मोहन अवस्थी (जन्म २० जनवरी १९२९) को पिपरगाँव फ़र्रूख़ाबाद में हुआ। डॉ॰ अवस्थी की काव्य कृतियाँ ‘अग्निगंध’ और ‘अभिशप्त महारथी’ उल्लेखनीय हैं। अभिशप्त महारथी उच्चकोटि का काव्य ग्रंथ है, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति का चित्र प्रस्तुत किया है और यह आशा प्रकट की है कि यह ग्रंथ ‘देश की आधुनिक समस्याओं का समाधान खोज निकालने में सहायक होगा।’ सम्प्रति इलाहाबाद विश्व विद्यालय हिन्दी विभाग में प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त होकर साहित्य सृजन में रत हैं। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। आपने १९४२ में वर्नाक्युलर फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण की। अवस्थी जी बतलाते हैं कि ‘मेरी प्रारम्भिक शिक्षा और व्यक्तित्व निर्माण में पं० त्रियुगी दयाल दीक्षित जी व अबोध मिश्र जैसे कवियों का अत्यधिक योगदान है, जिनका सानिध्य प्राप्त होने से मेरे कवि-रूप को प्रौढ़ता प्राप्त हुई।’ हाई स्कूल करने के बाद आपने एक अमरीकी कम्पनी में ‘असिस्टेंट मैनेजर’ के रूप में तथा डिस्ट्रिक बोर्ड के एकाउन्ट विभाग में ‘असिस्टेंट एकाउंटेंट’ के रूप में कार्य किया। तदनन्तर इण्टरमीडिएट व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में बी०एन०एस०डी० कालेज कानपुर से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। 1951 में आगरा विश्व विद्यालय से सम्बद्ध एस0डी0 कालेज कानपुर से स्नातक परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की। 1951 से जून 1953 तक कन्हैयालाल रामशरण रस्तोगी इण्टरमीडिएट कालेज, फर्रुखाबाद में अध्यापन कार्य किया। रस्तोगी इण्टर कालेज में अवस्थी जी को श्री सुरेश चन्द्र शुक्ल से बड़े भाई का स्नेह मिला। शुक्ल जी के अतिरिक्त अन्य सहयोगियों में श्री आत्मानन्द श्रीवास्तव एवं श्री मनोहर सिंह चॉहान प्रमुख थे। विकासमान व्यक्तित्व में स्थिरता कहाँ? अतः अवस्थी जी ने अध्यापन कार्य छोड़कर 1954 में इलाहाबाद विश्व विद्यालय से पहले अंग्रेजी से एम0ए0 प्रथम वर्ष किया’ किन्तु हिन्दी प्रेम के कारण अंग्रेजी छोड़कर 1956 में हिन्दी से प्रथम श्रेणी और विश्व विद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने गन्तव्य की प्रथम मंजिल प्राप्त की। 1958 में डी0फिल्0 की उपाधि प्राप्त कर इलाहाबाद विश्व विद्यालय में ही प्राध्यापक नियुक्त हुए। अध्यापन कार्य करते हुए 1974 में डी0लिट्0 की उपाधि हासिल की। प्रवक्ता, रीडर एवं प्रोफेसर के पदों पर कार्य करते हुए 1989 में अवकाश प्राप्त किया। डॉ अवस्थी के व्यक्तित्व का यदि विश्लेषण किया जाय, तो कहा जा सकता है कि उनके पास न तो चन्द्रोन्नत ललाट है न केशरी वक्षस्थल और न ही वे आजानुबाहु हैं। उन्होंने सौन्दर्य की प्रतिस्पद्र्धा में कामदेव को विजित भी नहीं किया है। वे एक साधारण और सामान्य से दिखने वाले इंसान हैं। उनका शरीर लम्बा, छरहरा और क्षीण है। उनकी आँखों में ताकने (लीन होने) और निहारने (संधान अनुसंधान) की वृत्ति, हाथ में कर्म की कलम, मस्तिष्क में लोकहित का चिंतन, मन में ईश्वर का ध्यान एवं असाधारण संतोषवृत्ति तथा हृदय में असीम सहृदयता, भावुकता, संवेदना और परदुःख कातरता का भाव है। वे एक तीव्र प्रज्ञा, नीर-क्षीर-विवेकी, गम्भीर प्रकृति और अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के ध्ाारक हैं। . 1929 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

मोहन अवस्थी और १९२९ के बीच समानता

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मोहन अवस्थी और १९२९ के बीच तुलना

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संदर्भ

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