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मुड़मा जतरा और सरना धर्म

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

मुड़मा जतरा और सरना धर्म के बीच अंतर

मुड़मा जतरा vs. सरना धर्म

मुड़मा जतरा, मुड़मा नामक एक गाँव में प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। मुड़मा गाँव झारखंड की राजधानी राँची से लगभग 28 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-75 पर जिसे राँची-डलटेनगंज मार्ग के नाम से भी जाना जाता है, स्थित है। यहाँ दशहरा के दसवें दिन ‘मुड़मा जतरा’ का आयोजन झारखंड के आदिवासी समुदायों के द्वारा मेला किया जाता है। यह मेला कब और कैसे प्रारम्भ हुआ इसकी कोई लिखित प्रामाणिक जानकारी उपल्ब्द्ध नहीं है लेकिन लोकगितों एवं किवदंतियों के अनुसार जनजातीय समुदाय के उराँव आदिवासी जनजाति जो की रोहतसगढ, बिहार के थे, के पलायन से जोड़कर देखा जाता है। छोटनागपुर के इतिहास के अनुसार जब मुग़लों ने रोहतसगढ़ पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया तो वहाँ रह रहे उराँव समुदाय के लोगों को गढ़ छोड़कर भागना पड़ा था और इसी क्रम में वे सोन नदी पार कर वर्तमान पलामू होते हुए वे राँची ज़िला में प्रवेश किए जहाँ मुड़मा में इनका सामना मुंडा जनजाति के मुँड़ाओं से हुआ और जब उराँव लोगों ने अपनी व्यथा कथा मुँड़ाओं को सुनाई तब मुँड़ाओं ने इनको पश्चिम वन क्षेत्र की सफ़ाई करके वहाँ रहने की अनुमति प्रदान की थी और यह समझौता मुड़मा गाँव में हुआ था। इसलिए उराँव समुदाय के 40 पाड़हा के लोग उस ऐतिहासिक समझौते के स्मृति में ‘मुड़मा जतरा’ को आयोजित करते हैं। इस दिन सरना धर्मगुरु के अगुवाई में अधिष्ठात्री शक्ति के प्रतीक जतरा खूंटे की परिक्रमा व जतरा खूंटा की पूजा-अर्चना भी की जाती है। पाड़हा झंडे के साथ मेला स्थल पहुंचे पाहन (पुजारी) ढोल, नगाड़ा, माँदर के थाप अन्य ग्रामीणों के साथ नाचते-गाते आते हैं और मेला स्थल पर पाहन पारम्परिक रूप से सरगुजा के फूल सहित अन्य पूजन सामग्रियों के साथ देवताओं का आहवाहन करते हुए ‘जतरा खूँटा’ का पूजन करता है एवं प्रतीक स्वरूप दीप भी जलाया जाता है और इस प्रकार मेला का आरम्भ किया जाता है। इस पूजन में सफ़ेद एवं काला मुर्ग़ा की बलि भी चढ़ाई जाती है। सरना धर्मगुरु के अनुसार यह आदिवासियों का शक्ति पीठ है। आदिवासी व  मुंडा समाज का मिलन स्थल भी है। यहां सभी  समाज के लोग आते हैं। सुख-समृद्धि व शांति के लिए प्रार्थना करते  हैं।. सरना धर्म झारखण्ड के आदिवासियों का आदि धर्म है। परन्तु प्रत्येक राज्य आदिवासी ये धर्म को अलग-अलग नाम से जानते है और मानते है अर्थात जब आदिवासी आदिकाल में जंगलों में होते थे। उस समय से आदिवासी प्रकृति के सारे गुण और सारे नियम को समझते थे और सब प्रकृति के नियम पर चलते थे। उस समय से आदिवासी में जो पुजा पद्धति व परम्परा विद्यमान थी वही आज भी क़ायम रखे है। चुंकि आदिवासी प्रकृति पूजक है,प्रकृति पूजक सरना धर्म को 'आदि धर्म' भी कहा जाता रहा है। हिन्दू धर्म और सरना धर्म में अधिकांश बातों में समानता होते हुए भी सरना धर्म बिलकुल ही अलग है। सरना पुजा पद्धति भी हिन्दू से नही मिलती है। सरना धर्म एक आदिवासी समुदाय से है जो की आदिकाल से इस धर्म को अपनाया जा रहा है। सरना धर्म एक आदिवासियों में "हो" लोग खास तौर पर इसको मानते हैं। सरना धर्म को छोड़ कर बहुत से आदिवासी "हो" लोग ईसाई धर्म और सनातन धर्म को अपना रहे हैं। जिससे जो कि आदिकाल से जिस परम्परा को मानते आ रहा है, उसे छोड़ने पर विवश हैं। सरना धर्म में पेड़, पौधे, पहाड़ इत्यादि प्राकृतिक सम्पदा की पूजा की जाती है। .

मुड़मा जतरा और सरना धर्म के बीच समानता

मुड़मा जतरा और सरना धर्म आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): झारखण्ड

झारखण्ड

झारखण्ड यानी 'झार' या 'झाड़' जो स्थानीय रूप में वन का पर्याय है और 'खण्ड' यानी टुकड़े से मिलकर बना है। अपने नाम के अनुरुप यह मूलतः एक वन प्रदेश है जो झारखंड आंदोलन के फलस्वरूप सृजित हुआ। प्रचुर मात्रा में खनिज की उपलबध्ता के कारण इसे भारत का 'रूर' भी कहा जाता है जो जर्मनी में खनिज-प्रदेश के नाम से विख्यात है। 1930 के आसपास गठित आदिवासी महासभा ने जयपाल सिंह मुंडा की अगुआई में अलग ‘झारखंड’ का सपना देखा.

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मुड़मा जतरा और सरना धर्म के बीच तुलना

मुड़मा जतरा 14 संबंध है और सरना धर्म 3 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 5.88% है = 1 / (14 + 3)।

संदर्भ

यह लेख मुड़मा जतरा और सरना धर्म के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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