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माल्टा ज्वर और मोतीझरा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

माल्टा ज्वर और मोतीझरा के बीच अंतर

माल्टा ज्वर vs. मोतीझरा

माल्टा ज्वर (Malta Fever) एक अत्यन्त संक्रामक रोग है, जो ब्रूसेला (Brucella) जाति के जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है। इसे मेडिटरेनियन ज्वर, ब्रूसिलोलिस (Brucellosis), या अंडुलेंट (undulent) ज्वर भी कहते हैं। यह एक पशुजन्यरोग है। मनुष्यों में पालतू जानवरों, जैसे मवेशी कुत्ते या सूअर आदि, द्वारा इसका संचारण होता है। इन संक्रमित पशुओं का दूध पीने, मांस खाने या इनके स्रावों (secretions) के सम्पर्क में आने से इसका संक्रमण हो सकता है। रोग की तीव्रावस्था में ज्वर, पसीना, सुस्ती तथा शरीर में दर्द रहता है और कभी-कभी यह महीनों तक जीर्ण रूप में चलता रहता है। रोग द्वारा मृत्यु की संख्या अधिक नहीं है, किंतु रोग शीघ्र दूर नहीं होता। राइट (Wright) ने सन् १८९७ में ब्रूसलोसिस रोग के समूहन (agglntination) परीक्षण का वर्णन किया। ब्रूसेला की तीन किस्में ज्ञात हैं, जो जानवरों की तीन जातियों में पाई जाती है: बकरी में ब्रूसेला मेलिटेन्सिस (Br.Melitensis), सूअर में ब्रूसेला सूई (Br. Suis) तथा मवेशी में ब्रू० ऐबारटस (Br. Abortus)। संक्रमण जानवरों के दूध पीने से मनुष्य में रोग का संचार होता है। उद्भवन काल ५ से २१ दिन है। कभी कभी रोग के लक्षण प्रत्यक्ष होने में ६ से ९ माह तक लग जाते है। उग्र रूप में ज्वर, ठंड़ के साथ कँपकँपी तथा पसीना होता है। जीर्ण रूप में धीरे-धीरे लक्षण प्रकट होते हैं। इस रोग के तथा इंफ्लुएंजा, मलेरिया, तपेदिक, मोतीझरा आदि रोगों के लक्षण आपस में मिलने के कारण विशेष समूहन परीक्षा तथा त्वचा में टीका परीक्षण से रोग निदान होता है। चिकित्सा में उचित परिचर्या तथा सल्फोनेमाइड, स्ट्रेप्टोमाइसिन आदि का प्रयोग होता है। रोग प्रतिषेध के लिये पास्चूरीकृत दूध को काम में लाना चाहिए। . मोतीझरा (Enteric fever) तीव्र ज्वर है, जो कुछ सप्ताह तक बना रहता है तथा सालमोनिला टाइफोसा (Salmonella Typhosa) नामक जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है। रोग के प्रमुख लक्षणों में ज्वर, सिर पीड़ा, दुर्बलता, प्लहा की (Spleen megaly) तथा त्वचा पर दोनों का उड़ना है। मोती के झरने से साद्दश्य के कारण यह मोतझरा ज्वर कहलाया है। टाइफस ज्वर से चिकित्सकों ने मोतीझरा की पृथक पहचान और वर्गीकरण किया, क्योंकि दोनों रोगों में लक्षण तथा रोगहेतु पृथक हैं। अब इस वर्ग का सामूहिक नाम मोतझरा हैं, क्योंकि इस समूह में पृथक पृथक जवाणु होते है। सालमोनिला टाइफोसा मनुष्य के शरीर में परीजीव है तथा रेग के मूत्र तथा मल में बाहर आता है। कभी कभी रोगमुक्त होने पर भी उस व्यक्ति में जीवाणु रहता है तथा उसके मूत्र तथा मुख्यत: मल द्वारा बराबर बाहर निकलता रहता है, जिससे ऐसे व्यक्ति रोग संचारण में बहुत खतरनाक होते हैं तथा ऐसे व्यक्ति रोगवाहक कहे जाते हैं। महामारी (epidemic) के निरोध में इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि भोजन तथा पेय पदार्थ में जीवाणु संक्रमण न हो। रोगी के मल, मूत्र, जूठे बरतन, ग्वालों के बरतन तथा रसोई में रोगवाहक न होने का परीक्षा, श् तथा नदी, तालाब, कूप और जल सभरन प्रणाली, जल भंडार में संचयन आदि पर नियंत्रण तथा संगदूषण से बचाव, शौचालय में मलमूत्र की समुचित निपटान तथा मलवाहन व्यवस्था, रोगनाशी औषधियों का प्रयोग, मक्खियों का नाश करना, तथा टी.ए.बी.

माल्टा ज्वर और मोतीझरा के बीच समानता

माल्टा ज्वर और मोतीझरा आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): ज्वर, जीवाणु

ज्वर

जब शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाये तो उस दशा को ज्वर या बुख़ार (फीवर) कहते है। यह रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो बताता है कि शरीर का ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है। मनुष्य के शरीर का सामान्‍य तापमान ३७°सेल्सियस या ९८.६° फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्‍य स्‍तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्‍वर या बुखार कहलाती है। ज्‍वर कोई रोग नहीं है। यह केवल रोग का एक लक्षण है। किसी भी प्रकार के संक्रमण की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। बढ़ता हुआ ज्‍वर रोग की गंभीरता के स्‍तर की ओर संकेत करता है। .

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जीवाणु

जीवाणु जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है। इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है। इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छड़, आदि आकार की हो सकती है। ये अकेन्द्रिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते हैं। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में, जल में, भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं। साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में ४ करोड़ जीवाणु कोष तथा १ मिलीलीटर जल में १० लाख जीवाणु पाए जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग ५X१०३० जीवाणु पाए जाते हैं। जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है। ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधी प्रजातियों को किसी न किसी प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है। जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्म जैविकी की ही एक शाखा है। मानव शरीर में जितनी भी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग १० गुणा संख्या तो जीवाणु कोष की ही है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहार-नाल में पाए जाते हैं। हानिकारक जीवाणु इम्यून तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमोनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि.

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माल्टा ज्वर और मोतीझरा के बीच तुलना

माल्टा ज्वर 14 संबंध है और मोतीझरा 4 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 11.11% है = 2 / (14 + 4)।

संदर्भ

यह लेख माल्टा ज्वर और मोतीझरा के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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