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माघ मेला

सूची माघ मेला

माघ मेला हिन्दुओं का सर्वाधिक प्रिय धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला है। हिन्दू पंचांग के अनुसार १४ या १५ जनवरी को मकर संक्रांति के दिन माघ महीने में यह मेला आयोजित होता है। यह भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है। नदी या सागर स्नान इसका मुख्य उद्देश्य होता है। धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा पारंपरिक हस्त शिल्प, भोजन और दैनिक उपयोग की पारंपरिक वस्तुओं की बिक्री भी की जाती है। धार्मिक महत्त्व के अलावा यह मेला एक विकास मेला भी है तथा इसमें राज्य सरकार विभिन्न विभागों के विकास योजनाओं को प्रदर्शित करती है। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों का माघ मेला प्रसिद्ध है। कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वहीं भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी। पद्म पुराण के महात्म्य के अनुसार-माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं। इस प्रकार माघमेले का धार्मिक महत्त्व भी है। .

26 संबंधों: पद्म पुराण, पुरुरवा, ब्रह्मा, भारत, भृगु, महर्षि गौतम, महाशिवरात्रि, माघ, मकर संक्रान्ति, मुग़ल शासकों की सूची, यमुना नदी, सरस्वती, हरिद्वार, हिन्दू, हिन्दू धर्म, हिन्दू पंचांग, गंगा नदी, इन्द्र, इलाहाबाद, अकबर, उत्तरकाशी, उत्तरकाशी जिला, १० मार्च, १५ जनवरी, २००८, २१ दिसम्बर

पद्म पुराण

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए अठारह पुराणों में से एक पुराण ग्रंथ है। सभी अठारह पुराणों की गणना के क्रम में ‘पद्म पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। श्लोक संख्या की दृष्टि से भी यह द्वितीय स्थान पर है। पहला स्थान स्कन्द पुराण को प्राप्त है। पद्म का अर्थ है-‘कमल का पुष्प’। चूँकि सृष्टि-रचयिता ब्रह्माजी ने भगवान् नारायण के नाभि-कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पद्म पुराण की संज्ञा दी गयी है। इस पुराण में भगवान् विष्णु की विस्तृत महिमा के साथ भगवान् श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के चरित्र, विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य शालग्राम का स्वरूप, तुलसी-महिमा तथा विभिन्न व्रतों का सुन्दर वर्णन है। .

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पुरुरवा

पुरुरवा वैदिक काल का राजा और विक्रमोर्वशीयम् का प्रमुख पात्र।.

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ब्रह्मा

ब्रह्मा  सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देव हैं। हिन्दू दर्शनशास्त्रों में ३ प्रमुख देव बताये गये है जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं। व्यासलिखित पुराणों में ब्रह्मा का वर्णन किया गया है कि उनके चार मुख हैं, जो चार दिशाओं में देखते हैं।Bruce Sullivan (1999), Seer of the Fifth Veda: Kr̥ṣṇa Dvaipāyana Vyāsa in the Mahābhārata, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120816763, pages 85-86 ब्रह्मा को स्वयंभू (स्वयं जन्म लेने वाला) और चार वेदों का निर्माता भी कहा जाता है।Barbara Holdrege (2012), Veda and Torah: Transcending the Textuality of Scripture, State University of New York Press, ISBN 978-1438406954, pages 88-89 हिन्दू विश्वास के अनुसार हर वेद ब्रह्मा के एक मुँह से निकला था। ज्ञान, विद्या, कला और संगीत की देवी सरस्वती ब्रह्मा की पत्नी हैं। बहुत से पुराणों में ब्रह्मा की रचनात्मक गतिविधि उनसे बड़े किसी देव की मौजूदगी और शक्ति पर निर्भर करती है। ये हिन्दू दर्शनशास्त्र की परम सत्य की आध्यात्मिक संकल्पना ब्रह्मन् से अलग हैं।James Lochtefeld, Brahman, The Illustrated Encyclopedia of Hinduism, Vol.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भृगु

महर्षि भृगु महर्षि भृगु का जन्म 5000 ईसा पूर्व ब्रह्मलोक-सुषा नगर (वर्तमान ईरान) में हुआ था। इनके परदादा का नाम मरीचि ऋषि था। दादाजी का नाम कश्यप ऋषि, दादी का नाम अदिति था। इनके पिता प्रचेता-विधाता जो ब्रह्मलोक के राजा बनने के बाद प्रजापिता ब्रह्मा कहलाये। अपने माता-पिता अदिति-कश्यप के ज्येष्ठ पुत्र थे। महर्षि भृगुजी की माता का नाम वीरणी देवी था। ये अपने माता-पिता से सहोदर दो भाई थे। आपके बड़े भाई का नाम अंगिरा ऋषि था। जिनके पुत्र बृहस्पतिजी हुए जो देवगणों के पुरोहित-देवगुरू के रूप में जाने जाते हैं। महर्षि भृगु द्वारा रचित ज्योतिष ग्रंथ ‘भृगु संहिता’  के लोकार्पण एवं गंगा सरयू नदियों के संगम के अवसर पर जीवनदायिनी गंगा नदी के संरक्षण और याज्ञिक परम्परा से महर्षि भृगु ने अपने शिष्य दर्दर के सम्मान में  ददरी मेला प्रारम्भ किया। महर्षि भृगु की दो पत्नियों का उल्लेख आर्ष ग्रन्थों में मिलता है। इनकी पहली पत्नी दैत्यों के अधिपति हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या थी। जिनसे आपके दो पुत्रों क्रमशः काव्य-शुक्र और त्वष्टा-विश्वकर्मा का जन्म हुआ। सुषानगर (ब्रह्मलोक) में पैदा हुए महर्षि भृगु के दोनों पुत्र विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। बड़े पुत्र काव्य-शुक्र खगोल ज्योतिष, यज्ञ कर्मकाण्डों के निष्णात विद्वान हुए। मातृकुल में आपको आचार्य की उपाधि मिली। ये जगत में शुक्राचार्य के नाम से विख्यात हुए। दूसरे पुत्र त्वष्टा-विश्वकर्मा वास्तु के निपुण शिल्पकार हुए। मातृकुल दैत्यवंश में आपको ‘मय’ के नाम से जाना गया। अपनी पारंगत शिल्प दक्षता से ये भी जगद्ख्यात हुए। महर्षि भृगु की दूसरी पत्नी दानवों के अधिपति पुलोम ऋषि की पुत्री पौलमी थी। इनसे भी दो पुत्रों च्यवन और ऋचीक पैदा हुए। बड़े पुत्र च्यवन का विवाह मुनिवर ने गुजरात भड़ौंच (खम्भात की खाड़ी) के राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या से किया। भार्गव च्यवन और सुकन्या के विवाह के साथ ही भार्गवों का हिमालय के दक्षिण पदार्पण हुआ। च्यवन ऋषि खम्भात की खाड़ी के राजा बने और इस क्षेत्र को भृगुकच्छ-भृगु क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। आज भी भड़ौच में नर्मदा के तट पर भृगु मन्दिर बना है। महर्षि भृगु मंदिर बलिया महर्षि भृगु ने अपने दूसरे पुत्र ऋचीक का विवाह कान्यकुब्जपति कौशिक राजा गाधि की पुत्री सत्यवती के साथ एक हजार श्यामकर्ण (ईरानी) घोड़े दहेज में देकर किया। अब भार्गव ऋचीक भी हिमालय के दक्षिण गाधिपुरी (वर्तमान गाजीपुर जिले का भू-भाग) आ गये। महर्षि भृगु के इस विमुक्त क्षेत्र में आने के कई कथानक आर्ष ग्रन्थों में मिलते हैं। पौराणिक, ऐतिहासिक आख्यानों के अनुसार ब्रह्मा-प्रचेता पुत्र भृगु द्वारा हिमालय के दक्षिण दैत्य, दानव और मानव जातियों के राजाओं के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर मेलजोल बढ़ाने से हिमालय के उत्तर की देव, गन्धर्व, यक्ष जातियों के नृवंशों  में आक्रोश पनप रहा था। जिससे सभी लोग देवों के संरक्षक, ब्रह्माजी के सबसे छोटे भाई विष्णु को दोष दे रहे थे। दूसरे बारहों आदित्यों में भार्गवों का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। इसी बीच महर्षि भृगु के श्वसुर दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने हिमालय के उत्तर के राज्यों पर चढ़ाई कर दिया। जिससे महर्षि भृगु के परिवार में विवाद होने लगा। महर्षि भृगु यह कह कर कि राज्य सीमा का विस्तार करना राजा का धर्म है, अपने श्वसुर का पक्ष ले रहे थे। इस विवाद में  विष्णु जी ने उनकी पहली पत्नी, हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या देवी को मार डाला। जिससे क्रोधित होकर महर्षि भृगु ने श्री विष्णु जी को  एक लात मार दिया। इस विवाद का निपटारा महर्षि भृगु के परदादा और विष्णु जी के दादा मरीचि मुनि ने इस निर्णय के साथ किया कि भृगु हिमालय के दक्षिण जाकर रहे। उनके दिव्या देवी से उत्पन्न पुत्रों को सम्मान सहित पालन-पोषण की जिम्मेदारी देवगण उठायेंगे। परिवार की प्रतिष्ठा-मर्यादा की रक्षा के लिए भृगु जी को यह भी आदेश मिला कि वह  श्री हरि विष्णु की आलोचना नहीं करेंगे। इस प्रकार महर्षि भृगु सुषानगर से अपनी दूसरी पत्नी पौलमी को साथ लेकर अपने छोटे पुत्र ऋचीक के पास गाधिपुरी (वर्तमान गाजीपुर)आ गये। महर्षि भृगु के इस क्षेत्र में आने दूसरा आख्यान कुछ धार्मिक ग्रन्थों, पुराणों में मिलता है। देवी भागवत के चतुर्थ स्कंध विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद्भागवत में खण्डों में बिखरे वर्णनों के अनुसार महर्षि भृगु प्रचेता-ब्रह्मा के पुत्र हैं, इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री ख्याति से हुआ था। जिनसे इनके दो पुत्र काव्य-शुक्र और त्वष्टा तथा एक पुत्री ‘श्री’ लक्ष्मी का जन्म हुआ। इनकी पुत्री ‘श्री’ का विवाह श्री हरि विष्णु से हुआ। दैत्यों के साथ हो रहे देवासुर संग्राम में महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति जो योगशक्ति सम्पन्न तेजस्वी महिला थी। दैत्यों की सेना के मृतक सैनिकों को वह अपने योगबल से जीवित कर देती थी। जिससे नाराज होकर श्रीहरि विष्णु ने शुक्राचार्य की माता, भृगुजी की पत्नी ख्याति का सिर अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया। अपनी पत्नी की हत्या होने की जानकारी होने पर महर्षि भृगु भगवान विष्णु को शाप देते हैं कि तुम्हें स्त्री के पेट से बार-बार जन्म लेना पड़ेगा। उसके बाद महर्षि अपनी पत्नी ख्याति को अपने योगबल से जीवित कर गंगा तट पर आ जाते हैं, तमसा नदी की सृष्टि करते हैं। पद्म पुराण के उपसंहार खण्ड की कथा के अनुसार मन्दराचल पर्वत हो रहे यज्ञ में ऋषि-मुनियों में इस बात पर विवाद छिड़ गया कि त्रिदेवों (ब्रह्मा-विष्णु-शंकर) में श्रेष्ठ देव कौन है?देवों की परीक्षा के लिए ऋषि-मुनियों ने महर्षि भृगु को परीक्षक नियुक्त किया। त्रिदेवों की परीक्षा लेने के क्रम में महर्षि भृगु सबसे पहले भगवान शंकर के कैलाश (हिन्दूकुश पर्वत श्रृंखला के पश्चिम कोह सुलेमान जिसे अब ‘कुराकुरम’ कहते हैं) पहुॅचे उस समय भगवान शंकर अपनी पत्नी सती के साथ विहार कर रहे थे। नन्दी आदि रूद्रगणों ने महर्षि को प्रवेश द्वार पर ही रोक दिया। इनके द्वारा भगवान शंकर से मिलने की हठ करने पर रूद्रगणों ने महर्षि को अपमानित भी कर दिया। कुपित महर्षि भृगु ने भगवान शंकर को तमोगुणी घोषित करते हुए लिंग (शिश्न स्वरूप) में पूजित होने का शाप दिया। यहाँ से महर्षि भृगु ब्रह्मलोक (सुषानगर, पर्शिया ईरान) ब्रह्माजी के पास पहुँचे। ब्रह्माजी अपने दरबार में विराज रहे थे। सभी देवगण उनके समक्ष बैठे हुए थे। भृगु जी को ब्रह्माजी ने बैठने तक को नहीं कहे। तब महर्षि भृगु ने ब्रह्माजी को रजोगुणी घोषित करते हुए अपूज्य (जिसकी पूजा ही नहीं होगी) होने का शाप दिया। कैलाश और ब्रह्मलोक में मिले अपमान-तिरस्कार से क्षुभित महर्षि विष्णुलोक चल दिये। भगवान श्रीहरि विष्णु क्षीर सागर (श्रीनार फारस की खाड़ी) में सर्पाकार सुन्दर नौका (शेषनाग) पर अपनी पत्नी लक्ष्मी-श्री के साथ विहार कर रहे थे। उस समय श्री विष्णु जी शयन कर रहे थे। महर्षि भृगुजी को लगा कि हमें आता देख विष्णु सोने का नाटक कर रहे हैं। उन्होंने अपने दाहिने पैर का आघात श्री विष्णु जी की छाती पर कर दिया। महर्षि के इस अशिष्ट आचरण पर विष्णुप्रिया लक्ष्मी जो श्रीहरि के चरण दबा रही थी, कुपित हो उठी। लेकिन श्रीविष्णु जी ने महर्षि का पैर पकड़ लिया और कहा भगवन् ! मेरे कठोर वक्ष से आपके कोमल चरण में चोट तो नहीं लगी। महर्षि भृगु लज्जित भी हुए और प्रसन्न भी, उन्होंने श्रीहरि विष्णु को त्रिदेवों में श्रेष्ठ सतोगुणी घोषित कर दिया।  त्रिदेवों की इस परीक्षा में जहाँ एक बहुत बड़ी सीख छिपी है। वहीं एक बहुत बड़ी कूटनीति भी छिपी थी। इस घटना से एक लोकोक्ति बनी। क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। का हरि को घट्यो गए, ज्यों भृगु मारि लात।। इस घटना में कूटनीति यह थी कि हिमालय के उत्तर के नृवंशों का संगठन बनाकर रहने से श्री हरि विष्णु के नेतृत्व में सभी जातियां सभ्य, सुसंस्कृत बन उन्नति कर रही थी। वही हिमालय के दक्षिण का नृवंश समुदाय जिन्हें दैत्य-दानव, मरूत-रूद्र आदि नामों से जाना जाता था। परिश्रमी होने के बाद भी असंगठित, असभ्य जीवन जी रही थी। ये जातियां रूद्र शंकर को ही अपना नायक-देवता मानती थी। उनकी ही पूजा करती थी। हिमालय के दक्षिण में देवकुल नायक श्रीविष्णु को प्रतिष्ठापित करने के लिए महर्षि भृगु ही सबसे उपयुक्त माध्यम थे। उनकी एक पत्नी दैत्यकुल से थी, तो दूसरी दानव कुल से थी और उनके पुत्रों शुक्राचार्यों, त्वष्टा-मय-विश्वकर्मा तथा भृगुकच्छ (गुजरात) में च्यवन तथा गाधिपुरी (उ0प्र0) में ऋचीक का बहुत मान-सम्मान था। इस त्रिदेव परीक्षा के बाद हिमालय के दक्षिण में श्रीहरि विष्णु की प्रतिष्ठा स्थापित होने लगी। विशेष रूप से राजाओं के अभिषेक में श्री विष्णु का नाम लेना हिमालय पारस्य देवों की कृपा प्राप्ति और मान्यता मिलना माना जाने लगा।  पुराणों में वर्णित आख्यान के अनुसार त्रिदेवों की परीक्षा में विष्णु वक्ष पर पद प्रहार करने वाले महर्षि भृगु को दण्डाचार्य मरीचि ऋषि ने दण्ड दिया। जिसके लिए भृगुजी को एक सूखे बाँस की छड़ी में कोंपले फूट पड़े और आपके कमर से मृगछाल पृथ्वी पर गिर पड़े। वही आप विष्णु सहस्त्र नाम का जप करेंगे तब आपके इस पाप का मोचन होगा। मन्दराचल से चलते हुए जब महर्षि भृगु विमुक्त क्षेत्र (वर्तमान बलिया जिला उ0प्र0) के गंगा तट पर पहुँचे तो उनकी मृगछाल गिर पड़ी और छड़ी में कोंपले फूट पड़ी। जहाँ उन्होंने तपस्या करना प्रारम्भ कर दिया। कालान्तर में यह भू-भाग महर्षि के नाम से भृगुक्षेत्र कहा जाने लगा। महर्षि भृगु जीवन से जुड़े ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक सभी पक्षों पर प्रकाश डालने के पीछे मेरा सीधा मन्तव्य है कि पाठक स्वविवेक का प्रयोग कर सकें। हमारे धार्मिक ग्रन्थों में हमारे मनीषियों के वर्णन तो प्रचुर है, परन्तु उसी प्रचुरता से उसमें कल्पित घटनाओं को भी जोड़ा गया है। उनके जीवन को महिमामण्डित करने के लिए हमारे पटुविद्वान उनकी ऐतिहासिकता से खिलवाड़ किए हैं, जिसके कारण वैश्विक स्तर पर अनेक बार अपमानजनक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। महर्षि भृगु ने इस भू-भाग पर आने के बाद यहाँ के जंगलों को साफ कराया। यहाँ मात्र पशुओं के आखेट पर जीवन यापन कर रहे जनसामान्य को खेती करना सिखाया। यहाँ गुरूकुल की स्थापना करके लोगों को पढ़ना-लिखना सिखाया। उस कालखण्ड में इस भू-भाग को नरभक्षी मानवों का निवास माना जाता था। उन्हें सभ्य, सुसंस्कृत मानव बनानें का कार्य महर्षि द्वारा किया गया। .

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महर्षि गौतम

महर्षि गौतम सप्तर्षियों में से एक हैं। वे वैदिक काल के एक महर्षि एवं मन्त्रद्रष्टा थे। ऋग्वेद में उनके नाम से अनेक सूक्त हैं। श्रेणी:महर्षि.

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महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि (बोलचाल में शिवरात्रि) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। अधिक तर लोग यह मान्यता रखते है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवि पार्वति के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी जाता है। .

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माघ

माघ से निम्नांकित का बोध होता है-.

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मकर संक्रान्ति

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। एक दिन का अंतर लौंद वर्ष के ३६६ दिन का होने ही वजह से होता है | मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, यह भ्रान्ति गलत है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है । उत्तरायण का प्रारंभ २१ या २२ दिसम्बर को होता है | लगभग १८०० वर्ष पूर्व यह स्थिति उत्तरायण की स्थिति के साथ ही होती थी, संभव है की इसी वजह से इसको व उत्तरायण को कुछ स्थानों पर एक ही समझा जाता है | तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। .

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मुग़ल शासकों की सूची

मुग़ल सम्राटों की सूची कुछ इस प्रकार है।.

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यमुना नदी

आगरा में यमुना नदी यमुना त्रिवेणी संगम प्रयाग में वृंदावन के पवित्र केशीघाट पर यमुना सुबह के धुँधलके में यमुनातट पर ताज यमुना भारत की एक नदी है। यह गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है जो यमुनोत्री (उत्तरकाशी से ३० किमी उत्तर, गढ़वाल में) नामक जगह से निकलती है और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बतवा और केन उल्लेखनीय हैं। यमुना के तटवर्ती नगरों में दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है। प्रयाग में यमुना एक विशाल नदी के रूप में प्रस्तुत होती है और वहाँ के प्रसिद्ध ऐतिहासिक किले के नीचे गंगा में मिल जाती है। ब्रज की संस्कृति में यमुना का महत्वपूर्ण स्थान है। .

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सरस्वती

कोई विवरण नहीं।

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हरिद्वार

हरिद्वार, उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले का एक पवित्र नगर तथा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ है। यह नगर निगम बोर्ड से नियंत्रित है। यह बहुत प्राचीन नगरी है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। ३१३९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गोमुख (गंगोत्री हिमनद) से २५३ किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को 'गंगाद्वार' के नाम से भी जाना जाता है; जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार का अर्थ "हरि (ईश्वर) का द्वार" होता है। पश्चात्कालीन हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब God Dhanwantari उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। ध्यातव्य है कि कुम्भ या महाकुम्भ से सम्बद्ध कथा का उल्लेख किसी पुराण में नहीं है। प्रक्षिप्त रूप में ही इसका उल्लेख होता रहा है। अतः कथा का रूप भी भिन्न-भिन्न रहा है। मान्यता है कि चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। वे स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग। इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से हर १२वें वर्ष महाकुम्भ का आयोजन होता है। एक स्थान के महाकुम्भ से तीन वर्षों के बाद दूसरे स्थान पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। इस प्रकार बारहवें वर्ष में एक चक्र पूरा होकर फिर पहले स्थान पर महाकुम्भ का समय आ जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं। एक मान्यता के अनुसार वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थीं उसे हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुण्ड माना जाता है। 'हर की पौड़ी' हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है। हरिद्वार जिला, सहारनपुर डिवीजनल कमिशनरी के भाग के रूप में २८ दिसम्बर १९८८ को अस्तित्व में आया। २४ सितंबर १९९८ के दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 'उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक, १९९८' पारित किया, अंततः भारतीय संसद ने भी 'भारतीय संघीय विधान - उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम २०००' पारित किया और इस प्रकार ९ नवम्बर २०००, के दिन हरिद्वार भारतीय गणराज्य के २७वें नवगठित राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल), का भाग बन गया। आज, यह अपने धार्मिक महत्त्व के अतिरिक्त भी, राज्य के एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र के रूप में, तेज़ी से विकसित हो रहा है। तेज़ी से विकसित होता औद्योगिक एस्टेट, राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम, SIDCUL (सिडकुल), भेल (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) और इसके सम्बंधित सहायक इस नगर के विकास के साक्ष्य हैं। .

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हिन्दू

शब्द हिन्दू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार या नृवंशतया (एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग), या धार्मिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ मानते हैं।Jeffery D. Long (2007), A Vision for Hinduism, IB Tauris,, pages 35-37 यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक, और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिंधु की भूमि के लिए फारसी और ग्रीक संदर्भों के साथ, मध्ययुगीन युग के ग्रंथों के माध्यम से, हिंदू शब्द सिंधु (इंडस) नदी के चारों ओर या उसके पार भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक रूप में, मानव-जाति के अनुसार (नृवंशतया), या सांस्कृतिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त होने लगा था।John Stratton Hawley and Vasudha Narayanan (2006), The Life of Hinduism, University of California Press,, pages 10-11 16 वीं शताब्दी तक, इस शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि तुर्किक या मुस्लिम नहीं थे। .

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हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। .

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हिन्दू पंचांग

हिन्दू पञ्चाङ्ग से आशय उन सभी प्रकार के पञ्चाङ्गों से है जो परम्परागत रूप प्राचीन काल से भारत में प्रयुक्त होते आ रहे हैं। ये चान्द्रसौर प्रकृति के होते हैं। सभी हिन्दू पञ्चाङ्ग, कालगणना की समान संकल्पनाओं और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ (वर्षप्रतिपदा) आदि की दृष्टि से अलग होते हैं। भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख क्षेत्रीय पञ्चाङ्ग ये हैं-.

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गंगा नदी

गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .

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इन्द्र

इन्द्र (या इंद्र) हिन्दू धर्म में सभी देवताओं के राजा का सबसे उच्च पद था जिसकी एक अलग ही चुनाव-पद्धति थी। इस चुनाव पद्धति के विषय में स्पष्ट वर्णन उपलब्ध नहीं है। वैदिक साहित्य में इन्द्र को सर्वोच्च महत्ता प्राप्त है लेकिन पौराणिक साहित्य में इनकी महत्ता निरन्तर क्षीण होती गयी और त्रिदेवों की श्रेष्ठता स्थापित हो गयी। .

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इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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अकबर

जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५) तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था। अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है। अंतरण करने वाले के अनुसार बादशाह अकबर की जन्म तिथि हुमायुंनामा के अनुसार, रज्जब के चौथे दिन, ९४९ हिज़री, तदनुसार १४ अक्टूबर १५४२ को थी। सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था। बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की। उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने। अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था। अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था। अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये। अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा। उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया। अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये। अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामंत थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया। इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अंत्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। .

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उत्तरकाशी

उत्तरकाशी ऋषिकेश से 155 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक शहर है, जो उत्तरकाशी जिले का मुख्यालय है। यह शहर भागीरथी नदी के तट पर बसा हुआ है। उत्तरकाशी धार्मिक दृष्‍िट से भी महत्‍वपूर्ण शहर है। यहां भगवान विश्‍वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। यह शहर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां एक तरफ जहां पहाड़ों के बीच बहती नदियां दिखती हैं वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों पर घने जंगल भी दिखते हैं। यहां आप पहाड़ों पर चढ़ाई का लुफ्त भी उठा सकते हैं। .

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उत्तरकाशी जिला

उत्तरकाशी या उत्तर काशी भारत के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल का एक जिला है। इस जिले का मुख्यालय उत्तरकाशी कस्बा है। उत्तरकाशी जिला हिमालय रेंज की ऊँचाई पर बसा हुआ है और इस जिले में गंगा और यमुना दोनों नदियों का उद्गम है, जहाँ पर हज़ारों हिन्दू तीर्थयात्री प्रति वर्ष पधारते हैं। उत्तरकाशी कस्बा, गंगोत्री जाने के मुख्य मार्ग में पड़ता है, जहाँ पर बहुत से मंदिर हैं और यह एक प्रमुख हिन्दू तीर्थयात्रा केन्द्र माना जाता है। जिले के उत्तर और उत्तरपश्चिम में हिमाचल प्रदेश राज्य, उत्तरपूर्व में तिब्बत, पूर्व में, दक्षिणपूर्व में रूद्रप्रयाग जिला, दक्षिण में टिहरी गढ़वाल जिला और दक्षिणपश्चिम में देहरादून जिला पड़ते हैं। .

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१० मार्च

10 मार्च ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 69वॉ (लीप वर्ष में 70 वॉ) दिन है। साल में अभी और 296 दिन बाकी है। .

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१५ जनवरी

15 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 15वाँ दिन है। साल में अभी और 350 दिन बाकी है (लीप वर्ष में 351)। .

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२००८

२००८ ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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२१ दिसम्बर

21 दिसंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 355वॉ (लीप वर्ष में 356 वॉ) दिन है। साल में अभी और 10 दिन बाकी है। .

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