महिमभट्ट और संस्कृत साहित्य के बीच समानता
महिमभट्ट और संस्कृत साहित्य आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): व्यक्तिविवेक, काव्यशास्त्र।
व्यक्तिविवेक
व्यक्तिविवेक, आचार्य महिमभट्ट द्वारा रचित भारतीय काव्यशास्त्र का ग्रन्थ है। इसमें आचार्य ने काव्यशास्त्र में प्रवर्तित 'ध्वनि सम्प्रदाय' का खण्डन किया है। यह पुस्तक विमर्शों में विभक्त है। इसमें कुल तीन विमर्श हैं। सबसे पहले शब्द खण्डन, अर्थ खण्डन तत्पश्चात व्यंजना का खण्डन करके ध्वनि को अनुमान में अन्तर्भूत किया है। इस पुस्तक के तीन भाग हैं- कारिका, वृत्ति और उदाहरण। श्रेणी:पुस्तक श्रेणी:भारतीय काव्यशास्त्र.
महिमभट्ट और व्यक्तिविवेक · व्यक्तिविवेक और संस्कृत साहित्य ·
काव्यशास्त्र
काव्यशास्त्र काव्य और साहित्य का दर्शन तथा विज्ञान है। यह काव्यकृतियों के विश्लेषण के आधार पर समय-समय पर उद्भावित सिद्धांतों की ज्ञानराशि है। युगानुरूप परिस्थितियों के अनुसार काव्य और साहित्य का कथ्य और शिल्प बदलता रहता है; फलत: काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों में भी निरंतर परिवर्तन होता रहा है। भारत में भरत के सिद्धांतों से लेकर आज तक और पश्चिम में सुकरात और उसके शिष्य प्लेटो से लेकर अद्यतन "नवआलोचना' (नियो-क्रिटिसिज्म़) तक के सिद्धांतों के ऐतिहासिक अनुशीलन से यह बात साफ हो जाती है। भारत में काव्य नाटकादि कृतियों को 'लक्ष्य ग्रंथ' तथा सैद्धांतिक ग्रंथों को 'लक्षण ग्रंथ' कहा जाता है। ये लक्षण ग्रंथ सदा लक्ष्य ग्रंथ के पश्चाद्भावनी तथा अनुगामी है और महान् कवि इनकी लीक को चुनौती देते देखे जाते हैं। काव्यशास्त्र के लिए पुराने नाम 'साहित्यशास्त्र' तथा 'अलंकारशास्त्र' हैं और साहित्य के व्यापक रचनात्मक वाङमय को समेटने पर इसे 'समीक्षाशास्त्र' भी कहा जाने लगा। मूलत: काव्यशास्त्रीय चिंतन शब्दकाव्य (महाकाव्य एवं मुक्तक) तथा दृश्यकाव्य (नाटक) के ही सम्बंध में सिद्धांत स्थिर करता देखा जाता है। अरस्तू के "पोयटिक्स" में कामेडी, ट्रैजेडी, तथा एपिक की समीक्षात्मक कसौटी का आकलन है और भरत का नाट्यशास्त्र केवल रूपक या दृश्यकाव्य की ही समीक्षा के सिद्धांत प्रस्तुत करता है। भारत और पश्चिम में यह चिंतन ई.पू.
काव्यशास्त्र और महिमभट्ट · काव्यशास्त्र और संस्कृत साहित्य ·
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संदर्भ
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