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मलय रॉय चौधुरी

सूची मलय रॉय चौधुरी

मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .

28 संबंधों: एलेन गिन्सबर्ग, डाडावाद, त्रिदिब मित्रा, देबी राय, धर्मवीर भारती, नव्योत्तर काल, प्रदीप चौधुरी, फणीश्वर नाथ "रेणु", फालगुनि राय, बहुसंस्कृतिवाद, बासुदेब दाशगुप्ता, बाङ्ला भाषा, भारत, भारतीय साहित्य अकादमी, भूखी पीढ़ी, मलय रॉय चौधुरी, महाभारत, रामायण, शक्ति चट्टोपाध्याय, श्रीमद्भगवद्गीता, श्रीरामचरितमानस, समीर रायचौधुरी, सुबिमल बसाक, विनय मजुमदार, विलियम ब्लेक, आधुनिकतावाद, कवि, अनुपम मुखोपाध्याय

एलेन गिन्सबर्ग

इर्विन एलेन गिन्सबर्ग (Irwin Allen Ginsberg; 3 जून 1926 – 5 अप्रैल 1997), अमेरिका के बीटनिक आंदोलन के प्रख्यात कवि हैं। इनके द्वारा लिखित लंबी कविता हाउल (१९५६) को बीट आंदोलन की महाकविता कहा जाता है। इस कविता को पूंजीवाद और नियन्त्रणवाद के खिलाफ अमेरिकी की नयी पीढ़ी की आवाज माना जाता है जिस समय अमेरिकी समाज को साम्यवादी भय ने जकड़ लिया था। प्रकाशित होते ही इसकी हजारों प्रतियां बिक गयीं और गिंसबर्ग रातों रात नयी पीढ़ी के मसीहा बन गये, जिस पीढ़ी को आज बीटनिक पीढ़ी कहा जाता है। आज तक इस काव्यग्रन्थ की लाखों प्रतियां बिक चुकी हैं। गिंसबर्ग द्वारा निवेदित हाउल की वीसीडी, सीडी और डीवीडी भी खूब बिकी हैं और आज तक उनकी यह पुस्तक और डीवीडी बिक रही हैं। अपनी इस कविता के लिये उन्होने एक नयी लेखन प्रणाली अपनायी जो सांस लेने और सांस छोड़ने के समय पर आधारित थी। यद्यपि उनके पिता एक गीतकार थे, पर गिंसबर्ग ने अपने पिता द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलना उचित नहीं समझा क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि अमेरिकी समाज बदल चुका है। गिंसबर्ग की माता नायोमी गिंसबर्ग का मानसिक सन्तुलन ठीक नहीं था और इसका प्रभाव किशोर गिंसबर्ग पर भी रहा। हाउल प्रकाशित होने के बाद उन्होने अपनी मां के याद मे कैडिश नाम की एक लंबी कविता हाउल के ही अनुरूप लिखी थी। ख्याति मिलने के बाद उन्हें बहुत सारे देशों में कविता पढ़ने के लिये आमंत्रित किया गया और वह भारत भी आये। भारत आकर वह दो साल तक यहीं रहे। बनारस, पटना, कोलकाता, चाइबासा आदि जगहों पर इन्होने कई दिन बिताये एवं यह स्थानीय कवियों से काफी घुलमिल गये। वह हिन्दु और बौद्ध साधुओं से भी मिले। अमेरिका लौटने के बाद गिंसबर्ग ने बौद्धधर्म अपना लिया। भारत से लौटने के बाद जो कवितायें इन्होने लिखीं उन पर भारतीय प्रभाव साफ झलकता है, यहां तक की उनकी किताबों-दस्तावेजों में दिये गये प्रतीक चिह्न असल में अकबर के मकबरे में अंकित तीन मछलियों का चित्र है। .

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डाडावाद

ट्रिस्टन ज़ारा द्वारा प्रकाशन डाडा के पहले संस्करण के कवर, ज्यूरिख, 1917. डाडा या डाडावाद एक सांस्कृतिक आन्दोलन है जो प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ज्यूरिख, स्विटज़रलैंड में शुरू हुआ था और 1916 से 1922 के बीच अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया था। यह आन्दोलन मुख्यतया दृश्य कला, साहित्य-कविता, कला प्रकाशन, कला सिद्धांत-रंगमंच और ग्राफिक डिजाइन को सम्मिलित करता है और इस आन्दोलन ने कला-विरोधी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा अपनी युद्ध विरोधी राजनीति को कला के वर्तमान मापदंडों को अस्वीकार करने के माध्यम से एकत्रित किया। इसका उद्देश्य आधुनिक जगत की उन बातों का उपहास करना था जिसे इसके प्रतिभागी अर्थहीनता समझते थे। युद्ध विरोधी होने के अतिरिक्त, डाडा आन्दोलन प्रकृति से पूंजीवाद विरोधी और राष्ट्रविप्लवकारी भी था। डाडा गतिविधियों के अंतर्गत सार्वजनिक सभाएं, प्रदर्शन और कला/साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन होता था; इसके अंतर्गत विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा कला, राजनीति और संस्कृति की भावनात्मक और विस्तृत सूचना आदि विषयों पर चर्चा की जाती थी। इस आन्दोलन ने उत्तरकालीन शैलियों जैसे को भी प्रभावित किया जैसे अवंत-गर्दे और शहर के व्यापारिक क्षेत्र में शुरू हुए संगीत आन्दोलन तथा इसने कुछ समूहों को भी प्रभावित किया जिसमें अतियथार्थवाद, नव यथार्थवाद, पॉप आर्ट, फ्लक्सस और पंक संगीत शामिल थे। डाडा अमूर्त कला और ध्वनिमय कविता का आधार कार्य है, यह कला प्रदर्शन का आरंभिक बिंदु है, पश्च आधुनिकतावाद की एक प्रस्तावना, पॉप आर्ट पर एक प्रभाव, कला विरोधियों का एक उत्सव जिसे बाद में 1960 के दशक में अराजक-राजनीतिक प्रयोग के लिए अंगीकार कर लिया गया था और यही वह आन्दोलन है जिसने अतियथार्थवाद की नींव रखी थी। मार्क लोवेन्थल, फ्रैंसिस पिकाबिया की आई एम ए ब्यूटीफुल मॉन्स्टर के लिए अनुवादक द्वारा दिया गया परिचय.

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त्रिदिब मित्रा

त्रिदिब मित्रा (३१ दिसम्बर १९४०) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी (हंगरी जेनरेशन) आंदोलन के प्रख्यात कवि थे। वह और उनकि पत्नी आलो मित्रा दोनों मिलकर भुखी पीढी आंदोलन के दो पत्रिकायें चलाया करते थे; अंग्रेजी में वेस्ट्पेपर एवम बांग्ला में उन्मार्ग। बचपन में स्कुली परीक्षा के बाद वह एकबार घर से सात महिनें के लिये भाग गये थे। उस दौरान उनहे जो जीवन व्यतीत करना पडा उसका असर उनके और उनके लेखन में दिखायी देते हैं। उनके सम्पादित लघु पत्रिकायों के नाम से ही प्ता चल जाता है कि उनके मनन में क्या प्रभाव रहा होगा। भुखी पीढी अंदोलन में योग देने के पश्चात ही वह यातनामय स्मृति से उभर पाये थे। उनके लेखन में वह क्रोध झलकता है। बांग्ला संस्कृती में एक नयी आयाम का अनुप्रवेश घटाया था त्रिदिब मित्रा ने। श्मशान, कबरगाह, बाजर, रेल-स्टेशन, खालसिटोला के मद्यपों के बिच कविता पढने और ग्रन्थों का उन्मोचन करने का जो सिलसिला भुखी पीढी अंदोलन के बाद शुरु हुये, उस प्रक्रिया के जनक थे त्रिदिब मित्रा और आलो मित्रा। वे दोनों के कविता पठन के कार्ञक्रम में काफि भीड हुया करता था, क्यों कि पहलिबार कविता को ले जाया गया था आम आदमि के समाज में। अनिल करनजय के बनाये पोस्टरों को कोलकाता के दिवारों में वही दोनों बेझिझक चिपकया करते थे। भुखी पीढी ने जो मुखौटा कार्यक्रम शुरु किया था उसको अनजाम भी त्रिदिब और आलो ने दिये। उंचे पद के लोगों के दफतर में वही दोनों मुखौटा पहुंचाया था। जानवर, राक्षस, जोकर इत्यादि के मुखौटा पर लिखा होता था "कृपया अपना मुखौटा उतारे"। यह कार्यक्रम के कारण ही प्रधानत: कोलकाता प्रशासन भुखी पीढी के खिलाफ खफा हो गया था। त्रिदिब देखने मे सुंदर थे एवम इसि कारण उन्हे भुखी पीढी का राजकुमार कहा जाता था। .

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देबी राय

देबी राय (४-८-१९४०) (দেবী রায়)बांग्ला भाषा के प्रख्यात कवि एवम अनुवादक हैं। भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) के प्रतिष्ठातायों में वह प्रधान हैं एवम आन्दोलनके बुलेटिन के सम्पादक रहे हैं। उन्होनें तिस से भी ज्यादा कवितापुस्तके लिखें। बांग्ला आधुनिक कविता के वह प्रथम निम्नबर्ग के कवि हैं। .

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धर्मवीर भारती

धर्मवीर भारती (२५ दिसंबर, १९२६- ४ सितंबर, १९९७) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे। डॉ धर्मवीर भारती को १९७२ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है। सूरज का सातवां घोड़ा को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनायी, अंधा युग उनका प्रसिद्ध नाटक है।। इब्राहीम अलकाजी, राम गोपाल बजाज, अरविन्द गौड़, रतन थियम, एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशकों ने इसका मंचन किया है। .

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नव्योत्तर काल

हिन्दी साहित्य के नव्योत्तर काल (पोस्ट-माडर्न) की कई धाराएं हैं -.

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प्रदीप चौधुरी

प्रदीप चौधुरी (५ फरबरि १९४३) बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) साहित्य अंदोलनके प्रख्यात कवि, आलोचक एवम अनुवादक हैं। भूखी पीढी आंदोलन में योगदान के लिये उन्हें विश्वभारती विश्वविद्यालय से रसटिकेट (बेदखल) कर दिया गया था। आन्दोलन के जिन ग्यारह सदस्य के खिलाफ़ गिरफ़्तारी का समन निकला था उन लोगों में प्रदीप चौधुरी भी थे। उनके पिता के अगरतला (त्रिपुरा) स्थित घर से गिरफतार करके उन्हें कोलकाता के बंकशल अदालत में पेश किया गया था, हालांकि उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चला था। रसटिकेट होने के बाद उन्होंने फिर से यादबपुर विश्व्विद्यालय में दाखिला लिया और अंग्रेजी में एम ए पास किया। वे कोलकाता में में स्कूलों में शिक्षक रहे, जिस दौरान उन्होंने फ़्रेन्च भाषा में पठन किया। यह पठन बाद में उनके अनुवाद कार्य में काम आया। शान्तिनिकेतन में पढ़ते समय वे स्वकाल् नाम से भूखी पीढ़ी की एक लघु पत्रिका का सम्पादन किया करते थे, जिसका नाम बदलकर सत्तर के दशक में उन्होने फु: रख लिया। फु: एक त्रिभाषिक (बांग्ला, अंग्रेजी एवं फ़्रेन्च) पत्रिका के रूप में काफ़ी सफल रही। .

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फणीश्वर नाथ "रेणु"

फणीश्वर नाथ 'रेणु' (४ मार्च १९२१ औराही हिंगना, फारबिसगंज - ११ अप्रैल १९७७) एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। इनके पहले उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। .

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फालगुनि राय

Falguni Roy by Subimal Basak 1995 फालगुनि राय (जन्म ७-०६-१९४५—मृत्यु ३१-०५-१९८१) (ফালগুনি রায়) बांग्ला साहित्यके भुखी पीढी (हंगरि जेनरेशन) आन्दोलन के सबसे कम उमर के प्रमुख कवि हैं जो मात्र ३६ साल के अवधि में अपने मादक्सेवन एवम बोहेमियन जीवन के कारण तरुण लेखकों में किंबदन्ति बन गये हैं। उनके जीवनकाल में वह केवल एक ही काब्यग्रन्थ नष्टो आत्मार टेलिविशन प्रकाशित किये। १५ अगस्त १९७३ के दिन वह काव्यग्रन्थ का उन्मोचन खालासिटोला में किया गया था। आलोचकों का कहना है कि वह पुस्तक का प्रकाश का साल बांग्ला सहित्य में अपनेआप एक जलबिभाजक सा है; पुस्तक के प्रकाश से बांग्ला कविता में आधुनिकता के युग समप्त हो गये। अपने जीवनकाल में उन्होने जो सारे कवितायें लिखे वह अप्रकाशित कवितायें उनके म्ररणोपरान्त कोलकाता एवम ढाका से बारबार प्रकाशित हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल एवम बांगलादेश में उनपर बहुत सारे शोध हो चुके हैं। .

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बहुसंस्कृतिवाद

बहुसंस्कृतिवाद, बहु जातीय संस्कृति की स्वीकृति देना या बढ़ावा देना होता है, एक विशिष्ट स्थान के जनसांख्यिकीय बनावट पर यह लागू होती है, आमतौर पर यह स्कूलों, व्यापारों, पड़ोस, शहरों या राष्ट्रों जैसे संगठनात्मक स्तर पर होते हैं। इस संदर्भ में, बहुसंस्कृतिवादी, केन्द्र के रूप में कोई विशेष जातीय, धार्मिक समूह और/ या सांस्कृतिक समुदाय को बढ़ावा देने के बिना विशिष्ट जातीय और धार्मिक समूहों के लिए विस्तारित न्यायसम्मत मूल्य स्थिति की वकालत करते हैं। बहुसंस्कृतिवाद की नीति अक्सर आत्मसातकरण और सामाजिक एकीकरण अवधारणाओं के साथ विपरीत होती है। .

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बासुदेब दाशगुप्ता

बासुदेब दाशगुप्ता (३१ दिसम्बर १९३८---३१ अगस्त २००५) (বাসুদেব দাশগুপ্ত) बांग्ला साहित्य के भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के एक प्रमुख कहानीकार एवम उपन्यासकार हैं। सन १९६५ में प्रकाशित उनकी कहानी 'रन्धनशाला' को बांग्ला साहित्य की कालजयी रचना माना जाता है। वह पूर्वी बंगाल के मदारिपुर में पैदा हुये एवम पर्टिशन के समय भारत चले आये। अशोक्नगर रिफिउजि कलोनि में घर मिलने प्र वहिं बस गये, बि एड पढें और आजिवन वहिं कल्याण्गढ विद्यामन्दिर में पढाये। बीच में मार्क्सबाद के प्रति आकृष्ट हुये परन्तु क्रमश राजनीति से निर्मोह हो गये। अत्यधिक मादक सेवन एवम पीने के लत के कारण उनका स्वास्थ्य ढल गया और बिमार रहने लगे। .

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बाङ्ला भाषा

बाङ्ला भाषा अथवा बंगाली भाषा (बाङ्ला लिपि में: বাংলা ভাষা / बाङ्ला), बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी भारत के त्रिपुरा तथा असम राज्यों के कुछ प्रान्तों में बोली जानेवाली एक प्रमुख भाषा है। भाषाई परिवार की दृष्टि से यह हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार का सदस्य है। इस परिवार की अन्य प्रमुख भाषाओं में हिन्दी, नेपाली, पंजाबी, गुजराती, असमिया, ओड़िया, मैथिली इत्यादी भाषाएँ हैं। बंगाली बोलने वालों की सँख्या लगभग २३ करोड़ है और यह विश्व की छठी सबसे बड़ी भाषा है। इसके बोलने वाले बांग्लादेश और भारत के अलावा विश्व के बहुत से अन्य देशों में भी फ़ैले हैं। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारतीय साहित्य अकादमी

भारत की साहित्य अकादमी भारतीय साहित्य के विकास के लिये सक्रिय कार्य करने वाली राष्ट्रीय संस्था है। इसका गठन १२ मार्च १९५४ को भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं और भारत में होनेवाली साहित्यिक गतिविधियों का पोषण और समन्वय करना है। .

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भूखी पीढ़ी

भूखी पीढ़ी (Hungry generation, बांग्ला: হাংরি আন্দোলন (हंगरी आन्दोलन)) मूलतः अमेरिकी साहित्य से प्रेरित बांग्ला साहित्य में उथलपुथल मचा देनेवाला एक आन्दोलन रहा है। यह साठ के दशक मे बिहार के पटना शहर मे कवि मलय रायचौधुरी के घर पर एकत्र देबी राय, शक्ति चट्टोपाध्याय और समीर रायचौधुरी के मस्तिष्क से उजागर होकर कोलकाता शहर जा पंहुचा जहाँ उनहोंने नवम्बर १९६१ को एक मेनिफेस्टो (घोषणापत्र) के जरिये आन्दोलन की घोषणा की। बाद में आन्दोलन में योगदान देनेवाले कवि, लेखक एवं चित्रकार थे उतपलकुमार बसु, सन्दीपन चट्टोपाध्याय, बासुदेब दाशगुप्ता, सुबिमल बसाक, अनिल करनजय करुणानिधान मुखोपाध्याय्, सुबो आचारजा, विनय मजुमदार, फालगुनि राय, आलो मित्रा, प्रदीप चौधुरि और सुभाष घोष सहित तीस सदस्य। भुखी पीढी के मैनिफेस्टो गोष्ठी के सदस्यों ने साप्ताहिक बुलेटिन एवं पत्रिका के माध्यम से अपने नये नन्द्नतत्व प्रसारित किये एवं सारे भारत मे हलचल मचा दी। उन लोगों के नयेपन से कोलकाता के साहित्य प्रसाशकगण क्षुब्ध हुये। सितम्बर १९६४ को आन्दोलन के ११ सदस्यो के विरुद्ध अश्लीलता के आरोप मे मुकदमा दायर हुया। मलय रायचौधुरी के लिखे हुये कविता प्रचण्ड बैद्युतिक क्षुतार को निम्न अदालत ने अश्लील करार देक्रर एक माह का काराद्ण्ड का आदेश दिया। उच्च अदालत ने कविता को अश्लील नहीं पाया एवं मलय को बाइज्जत बरी किया। मुकदमे के कारण सारे जगत मे आन्दोलन को प्रचार मिला। भारत एवं बिश्व के प्रमुख सम्बाद तथा सहित्य पत्रिकाओं मे उनके कॄति के चर्चे हुये। वर्तमान में आन्दोलनकारीयो पर शोधकार्य हो रहे है। उनके मेनिफेस्टो आदि ढाका बांग्ला अकादेमि तथा अमरिका के विश्वविद्यालयों में सुरक्षित किये गये है। गिरफ़्तारी एवं आन्दोलन में भाग लेने वाले कवि और लेखकगण जो गिरफतार हुये थे वे लोग अपनी नौकरी से निकाले गये थे। गिरफ़्तारी के समय उन लोगों को रस्सी बांधकर, हाथों में हथकड़ी पहनाकर बीच बाजार से आदालत तक पैदल ले जाया गया था। अध्यापक उत्त्म दाश एवं डक्टर विष्णुच्र्ण दे, जिन्होंने इस आन्दोलन पर शोधकार्य किया है, उनका कहना है कि यह आन्दोलन भारत के उत्तर-उपनिवेशबादी समाज का प्रतिफलन है। आन्दोलन के कवि एवं लेखक भाषा में अनुप्रबेश किये हुये उपनिबेशिय मनन-चिन्तन को झकझोर देने में जुटे रहे। कोलकाता प्रशासन के लिये यह दुश्चिन्ता पैदा करने में कामियाब हो गया था। .

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मलय रॉय चौधुरी

मलय रायचौधुरी (जन्म २९ अक्टूबर १९३९) (মলয় রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के प्रख्यात कवि एवम आलोचक है। वे साठ के दशक के सहित्य आन्दोलन भूखी पीढ़ी (हंगरी जनरेशन) के जन्मदाता माने जाते है। इस आन्दोलन ने बांग्ला साहित्य को एक नयी दिशा दी और पूरे भारत में उथलपुथल मचायी। आन्दोलन के सिलसिले में मलय को उनहे कविता लिखने के कारण कारावास का दण्ड मिला था। वे अब तक सत्तर से ज्यादा कविताग्रन्थ, नाटक, उपन्यास एवम अनुवद के पुस्तक लिख चुके हैं। साठ के दशक मे जो बदलाव बांगला कविता मे आये, उन में एक बड़ा योगदान मलय रायचौधुरी का रहा है। उनके काव्यग्रन्थो मे ख्याति प्राप्त हैं मेधार वतानुकूल घुन्गुर। २००३ में उन्हें अनुवाद के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

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शक्ति चट्टोपाध्याय

शक्ति चट्टोपाध्याय (जन्म २५ नवम्बर १९३४ - मृत्यु २३ मार्च १९९५) (শক্তি চট্টোপাধ্যায়) बांग्ला साहित्य के भुखी पीढी आन्दोलन के नेता माने जाते हैं, जो सन १९६१ में एक मेनिफेस्टो के जरिये कोलकाता को आश्चर्य चकित कर दिये थे। वह दक्षिण २४ परगणा के जयनगर-मजिलपुर गांव में एक गरीब परिबार में पैदा हुये। प्रेसिडेन्सि कालेज में बि॰ए॰ पढ्ते समय वह कविता लिखना शुरु किये एवम कालेज से गायब होकर चाइबासा अपने प्रिय मित्र समीर रायचौधुरी के घर जा कर बसे। चाइबासा में दो साल के जीवनकाल में उन्होने श्रेष्ठ कवितायें लिखे। उनको जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला लिरिक कवियों में प्रधान माना गया है। अपने जीवनकाल में वह ३४ काव्यग्रन्थ प्रकाश किये। शान्तिनिकेतन में आधुनिकता पर पडाते समय १९९५ स्न मे उनका मृत्यु हुया। मरणोपरान्त उनके बहुत सारे अप्रकाशित कवितायों का संकलन उनके मित्र समीर सेनगुप्ता ने सम्पादित किये। सन १९८३ में जेते पारि किन्तु केनो जाबो काव्यग्रन्थ के लिये उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किय गया था। .

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श्रीमद्भगवद्गीता

कुरु क्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है- तं धर्मं भगवता यथोपदिष्ट वेदव्यास: सर्वज्ञोभगवान् गीताख्यै: सप्तभि: श्लोकशतैरु पनिबंध। ज्ञात होता है कि लगभग ८वीं सदी के अंत में शंकराचार्य (७८८-८२०) के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है। १०वीं सदी के लगभग भीष्मपर्व का जावा की भाषा में एक अनुवाद हुआ था। उसमें अनेक मूलश्लोक भी सुरक्षित हैं। श्रीपाद कृष्ण बेल्वेलकर के अनुसार जावा के इस प्राचीन संस्करण में गीता के केवल साढ़े इक्यासी श्लोक मूल संस्कृत के हैं। उनसे भी वर्तमान पाठ का समर्थन होता है। गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी संमिलित हैं। अतएव भारतीय परंपरा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और ब्रह्मसूत्रों का है। गीता के माहात्म्य में उपनिषदों को गौ और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है। गीता में 'ब्रह्मविद्या' का आशय निवृत्तिपरक ज्ञानमार्ग से है। इसे सांख्यमत कहा जाता है जिसके साथ निवृत्तिमार्गी जीवनपद्धति जुड़ी हुई है। लेकिन गीता उपनिषदों के मोड़ से आगे बढ़कर उस युग की देन है, जब एक नया दर्शन जन्म ले रहा था जो गृहस्थों के प्रवृत्ति धर्म को निवृत्ति मार्ग के समकक्ष और उतना ही फलदायक मानता था। इसी का संकेत देनेवाला गीता की पुष्पिका में ‘योगशास्त्रे’ शब्द है। यहाँ ‘योगशास्त्रे’ का अभिप्राय नि:संदेह कर्मयोग से ही है। गीता में योग की दो परिभाषाएँ पाई जाती हैं। एक निवृत्ति मार्ग की दृष्टि से जिसमें ‘समत्वं योग उच्यते’ कहा गया है अर्थात् गुणों के वैषम्य में साम्यभाव रखना ही योग है। सांख्य की स्थिति यही है। योग की दूसरी परिभाषा है ‘योग: कर्मसु कौशलम’ अर्थात् कर्मों में लगे रहने पर भी ऐसे उपाय से कर्म करना कि वह बंधन का कारण न हो और कर्म करनेवाला उसी असंग या निर्लेप स्थिति में अपने को रख सके जो ज्ञानमार्गियों को मिलती है। इसी युक्ति का नाम बुद्धियोग है और यही गीता के योग का सार है। गीता के दूसरे अध्याय में जो ‘तस्य प्रज्ञाप्रतिष्ठिता’ की धुन पाई जाती है, उसका अभिप्राय निर्लेप कर्म की क्षमतावली बुद्धि से ही है। यह कर्म के संन्यास द्वारा वैराग्य प्राप्त करने की स्थिति न थी बल्कि कर्म करते हुए पदे पदे मन को वैराग्यवाली स्थिति में ढालने की युक्ति थी। यही गीता का कर्मयोग है। जैसे महाभारत के अनेक स्थलों में, वैसे ही गीता में भी सांख्य के निवृत्ति मार्ग और कर्म के प्रवृत्तिमार्ग की व्याख्या और प्रशंसा पाई जाती है। एक की निंदा और दूसरे की प्रशंसा गीता का अभिमत नहीं, दोनों मार्ग दो प्रकार की रु चि रखनेवाले मनुष्यों के लिए हितकर हो सकते हैं और हैं। संभवत: संसार का दूसरा कोई भी ग्रंथ कर्म के शास्त्र का प्रतिपादन इस सुंदरता, इस सूक्ष्मता और निष्पक्षता से नहीं करता। इस दृष्टि से गीता अद्भुत मानवीय शास्त्र है। इसकी दृष्टि एकांगी नहीं, सर्वांगपूर्ण है। गीता में दर्शन का प्रतिपादन करते हुए भी जो साहित्य का आनंद है वह इसकी अतिरिक्त विशेषता है। तत्वज्ञान का सुसंस्कृत काव्यशैली के द्वारा वर्णन गीता का निजी सौरभ है जो किसी भी सहृदय को मुग्ध किए बिना नहीं रहता। इसीलिए इसका नाम भगवद्गीता पड़ा, भगवान् का गाया हुआ ज्ञान। .

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श्रीरामचरितमानस

गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीरामचरितमानस का आवरण श्री राम चरित मानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा १६वीं सदी में रचित एक महाकाव्य है। इस ग्रन्थ को हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। इसे सामान्यतः 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण' भी कहा जाता है। रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। उत्तर भारत में 'रामायण' के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है। रामायण मण्डलों द्वारा शनिवार को इसके सुन्दरकाण्ड का पाठ किया जाता है। श्री रामचरित मानस के नायक राम हैं जिनको एक महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक मानव के रूप में दिखाया गया है। तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। त्रेता युग में हुए ऐतिहासिक राम-रावण युद्ध पर आधारित और हिन्दी की ही एक लोकप्रिय भाषा अवधी में रचित रामचरितमानस को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में ४६वाँ स्थान दिया गया। .

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समीर रायचौधुरी

समीर रायचौधुरी समीर रायचौधुरी (१-११-१९३३) (সমীর রায়চৌধুরী) बांग्ला साहित्य के एक प्रमुख कवि, आलोचक, कहानीलेखक एवम दार्शनिक हैं। भुखी पीढी आन्दोलन के प्रथम मेनिफेस्टो घोषणाकारीयों में वह प्रधान थे। हवा ४९ साहित्यपत्र के वह सम्पादक रहे हैं। उन्होनें अंग्रेजि भाषा में भी कविता एवम कहानियों के संकलन सम्पाद्न किये हैं। उनके लिखे खुलजा सिमसिम कहानी संकलन को अधुनान्तिक कहा गया है। .

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सुबिमल बसाक

सुबिमल बसाक (१५ दिसम्बर १९३९) (সুবিমল বসাক)बांग्ला साहित्य के प्रमुख उपन्यासकार है। 'भूखी पीढ़ी आन्दोलन' शुरु करनेवाले साहित्यिकों मे उनका प्रधान योगदान रहा है। उन्होने कहानीलेखन की एक नयी भाषा को जन्म दिया जो बिहार के रहनेवाले बांग्लाभाषी बोला करते हैं। सुबिमल बसाक ने हिन्दी से बहुत सारे उपन्यास अनुवाद किया। वर्ष २००८ में उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सन्मानित किया गया। .

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विनय मजुमदार

विनय मजूमदार (१७ सितम्बर १९३४ - ११ दिसम्बर २००६) (বিনয় মজুমদার) बर्मा में पैदा हुए। आधुनिक बांगला साहित्य की 'भूखी पीढ़ी' के वह भी प्रमुख कवियों में रहे हैं। जीवनानंद दास के बाद के बांग्ला साहित्य में उनको सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। २००५ में उनको हासपाताले लेखा कवितागौच्चो के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस से पहले उन्हें रबीन्द्र पुरस्कार, सुधीन्द्रनाथ दत्ता पुरस्कार एवम कृत्तिवास पुरस्कार दिये गये थे। १९८०-१९९० के बीच वह अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। तब उन्होंने कविता लिखना ही त्याग दिया था। इन्होंने चार बार आत्महत्या की कोशिश भी की। पर वह मित्रों की सहायता से कोलकाता से बाहर ठाकुरनगर गांव जा कर ग्रामीण लोगों के बीच रहने लगे और फिर से लिखना शुरु किया। गणित में माहिर, वह इन्जीनीयरिंग के पण्डित थे। कविता में भी वे गणित का प्रयोग किया करते थे। मजुमदार ने रूसी भाषा की गणित की बहुत सी किताबों के अनुवाद किये थे। .

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विलियम ब्लेक

विलियम ब्लेक (28 नवम्बर 1757 – 12 अगस्त 1827) एक अंग्रेज कवि, चित्रकार तथा प्रिंट रचयिता थे। अपने जीवनकाल में उन्हें ख्याति नहीं मिली, किंतु अब उन्हें रोमैंटिक युग की कविता और चाक्षुष कलाओं के क्षेत्र की एक महान आरंभिक हस्ती के रूप में माना जाता है। उनके भविष्यदर्शी काव्य के बारे में कहा गया है कि वह “अंग्रेजी भाषा का ऐसा काव्य है जिसे उसकी खूबियों के अनुपात से कम पढ़ा गया”.

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आधुनिकतावाद

हंस होफ्मन, "द गेट", 1959–1960, संग्रह: सोलोमन आर. गुगेन्हीम म्यूज़ियम होफ्मन केवल एक कलाकार के रूप में ही नहीं, बल्कि एक कला शिक्षक के रूप में भी मशहूर थे और वे अपने स्वदेश जर्मनी के साथ-साथ बाद में अमेरिका के भी एक आधुनिकतावादी सिद्धांतकार थे। 1930 के दशक के दौरान न्यूयॉर्क एवं कैलिफोर्निया में उन्होंने अमेरिकी कलाकारों की एक नई पीढ़ी के लिए आधुनिकतावाद एवं आधुनिकतावादी सिद्धांतों की शुरुआत की.ग्रीनविच गांव एवं मैसाचुसेट्स के प्रोविंसटाउन में स्थित अपने कला विद्यालयों में अपने शिक्षण एवं व्याख्यान के माध्यम से उन्होंने अमेरिका में आधुनिकतावाद के क्षेत्र का विस्तार किया।हंस होफ्मन की जीवनी, 30 जनवरी 2009 को उद्धृत आधुनिकतावाद, अपनी व्यापक परिभाषा में, आधुनिक सोच, चरित्र, या प्रथा है अधिक विशेष रूप से, यह शब्द उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के आरम्भ में मूल रूप से पश्चिमी समाज में व्यापक पैमाने पर और सुदूर परिवर्तनों से उत्पन्न होने वाली सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के एक समूह एवं सम्बद्ध सांस्कृतिक आन्दोलनों की एक सरणी दोनों का वर्णन करता है। यह शब्द अपने भीतर उन लोगों की गतिविधियों और उत्पादन को समाहित करता है जो एक उभरते सम्पूर्ण औद्योगीकृत विश्व की नवीन आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थितियों में पुराने होते जा रहे कला, वास्तुकला, साहित्य, धार्मिक विश्वास, सामाजिक संगठन और दैनिक जीवन के "पारंपरिक" रूपों को महसूस करते थे। आधुनिकतावाद ने ज्ञानोदय की सोच की विलंबकारी निश्चितता को और एक करुणामय, सर्वशक्तिशाली निर्माता के अस्तित्व को भी मानने से अस्वीकार कर दिया.

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कवि

कवि वह है जो भावों को रसाभिषिक्त अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है। इसीलिये वैदिक काल में ऋषय: मन्त्रदृष्टार: कवय: क्रान्तदर्शिन: अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है। "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" इस लोकोक्ति को एक दोहे के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गयी है: "जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ, कवि पहुँचे तत्काल। दिन में कवि का काम क्या, निशि में करे कमाल।।" ('क्रान्त' कृत मुक्तकी से साभार) .

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अनुपम मुखोपाध्याय

अनुपम मुखोपाध्याय अनुपम मुखोपाध्याय (१७ फरबरि १९७९) (অনুপম মুখোপাধ্যায়) बांग्ला साहित्यके नव्योत्तर काल से जुडे जानेमाने एवम वितर्कित कवि और आलोचक हैं। उनका जन्म मिदनापुर जिलेके घाटाल गांवमें एक ब्राह्मण परिवार में हुया। सन २००० से वे नवोत्तरवादी समान्तराल साहित्य के भागीदार हैं और अल्प समय में अप्ना जगह बना लिया है। उनके लिखे जिन साहित्यिकों का आलोचना दृष्टि आकर्शन किया है वह हैं बाब डिलन, जार्ज लेनन, विलियम कारलस विलियमस, फ्रान्तस काफका, मलय रायचौधुरी, सुनील गंगोपाध्याय, जीवनानंद दास, सुकुमार राय, विनय मजुमदार, डबलु एच अडेन, समीर रायचौधुरी तथा बुद्धदेव बसु। उनका कविता जो कि नवोत्तरवादी या अधुनान्तिक है आलोचकों में चर्चा का विषय बना हुया है। .

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