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मनु और संस्कृत ग्रन्थों की सूची

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

मनु और संस्कृत ग्रन्थों की सूची के बीच अंतर

मनु vs. संस्कृत ग्रन्थों की सूची

मनु हिन्दू धर्म के अनुसार, संसार के प्रथम पुरुष थे। प्रथम मनु का नाम स्वयंभुव मनु था, जिनके संग प्रथम स्त्री थी शतरूपा। ये स्वयं भू (अर्थात होना) ब्रह्मा द्वारा प्रकट होने के कारण ही स्वयंभू कहलाये। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव या मनुष्य कहलाए। स्वायंभुव मनु को आदि भी कहा जाता है। आदि का अर्थ होता है प्रारंभ। सभी भाषाओं के मनुष्य-वाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी मनु शब्द से प्रभावित है। यह समस्त मानव जाति के प्रथम संदेशवाहक हैं। इन्हें प्रथम मानने के कई कारण हैं। सप्तचरुतीर्थ के पास वितस्ता नदी की शाखा देविका नदी के तट पर मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। प्रमाण यही बताते हैं कि आदि सृष्टि की उत्पत्ति भारत के उत्तराखण्ड अर्थात् इस ब्रह्मावर्त क्षेत्र में ही हुई। मानव का हिन्दी में अर्थ है वह जिसमें मन, जड़ और प्राण से कहीं अधिक सक्रिय है। मनुष्य में मन की शक्ति है, विचार करने की शक्ति है, इसीलिए उसे मनुष्य कहते हैं। और ये सभी मनु की संतानें हैं इसीलिए मनुष्य को मानव भी कहा जाता है। ब्रह्मा के एक दिन को कल्प कहते हैं। एक कल्प में 14 मनु हो जाते हैं। एक मनु के काल को मन्वन्तर कहते हैं। वर्तमान में वैवस्वत मनु (7वें मनु) हैं। . निम्नलिखित सूची अंग्रेजी (रोमन) से मशीनी लिप्यन्तरण द्वारा तैयार की गयी है। इसमें बहुत सी त्रुटियाँ हैं। विद्वान कृपया इन्हें ठीक करने का कष्ट करे। .

मनु और संस्कृत ग्रन्थों की सूची के बीच समानता

मनु और संस्कृत ग्रन्थों की सूची आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): मनुस्मृति, महाभारत, अत्रि

मनुस्मृति

मनुस्मृति हिन्दू धर्म का एक प्राचीन धर्मशास्त्र (स्मृति) है। इसे मानव-धर्म-शास्त्र, मनुसंहिता आदि नामों से भी जाना जाता है। यह उपदेश के रूप में है जो मनु द्वारा ऋषियों को दिया गया। इसके बाद के धर्मग्रन्थकारों ने मनुस्मृति को एक सन्दर्भ के रूप में स्वीकारते हुए इसका अनुसरण किया है। धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाणरूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है, वैवस्वत मनु या प्राचनेस मनु द्वारा नहीं। मनुस्मृति से यह भी पता चलता है कि स्वायंभुव मनु के मूलशास्त्र का आश्रय कर भृगु ने उस स्मृति का उपवृहण किया था, जो प्रचलित मनुस्मृति के नाम से प्रसिद्ध है। इस 'भार्गवीया मनुस्मृति' की तरह 'नारदीया मनुस्मृति' भी प्रचलित है। मनुस्मृति वह धर्मशास्त्र है जिसकी मान्यता जगविख्यात है। न केवल भारत में अपितु विदेश में भी इसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय होते रहे हैं और आज भी होते हैं। अतः धर्मशास्त्र के रूप में मनुस्मृति को विश्व की अमूल्य निधि माना जाता है। भारत में वेदों के उपरान्त सर्वाधिक मान्यता और प्रचलन ‘मनुस्मृति’ का ही है। इसमें चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबन्ध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने सम्भव है। यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है। मनु महाराज के जीवन और उनके रचनाकाल के विषय में इतिहास-पुराण स्पष्ट नहीं हैं। तथापि सभी एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि मनु आदिपुरुष थे और उनका यह शास्त्र आदिःशास्त्र है। मनुस्मृति में चार वर्णों का व्याख्यान मिलता है वहीं पर शूद्रों को अति नीच का दर्जा दिया गया और शूद्रों का जीवन नर्क से भी बदतर कर दिया गया मनुस्मृति के आधार पर ही शूद्रों को तरह तरह की यातनाएं मनुवादियों द्वारा दी जाने लगी जो कि इसकी थोड़ी सी झलक फिल्म तीसरी आजादी में भी दिखाई गई है आगे चलकर बाबासाहेब आंबेडकर ने सर्वजन हिताय संविधान का निर्माण किया और मनु स्मृति में आग लगा दी गई जो कि समाज के लिए कल्याणकारी साबित हुई और छुआछूत ऊंच-नीच का आडंबर समाप्त हो गया। .

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महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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अत्रि

Atri (Sanskrit: अत्रि अत्री एक वैदिक ऋषि है, जो कि अग्नि, इंद्र और हिंदू धर्म के अन्य वैदिक देवताओं को बड़ी संख्या में भजन लिखने का श्रेय दिया जाता है। अत्री हिंदू परंपरा में सप्तर्षि (सात महान वैदिक ऋषियों) में से एक है, और सबसे अधिक ऋग्वेद में इसका उल्लेख है। ऋग्वेद के पांचवें मंडल (पुस्तक 5) को उनके सम्मान में अत्री मंडला कहा जाता है, और इसमें अस्सी और सात भजन उनके और उनके वंशज के लिए जिम्मेदार हैं। अत्री का पुराणों और हिंदू महाकाव्य जैसे रामायण और महाभारत में भी उल्लेख किया गया है। अत्रि गोत्र भार्गव ब्राह्मणों की शाखा है। ब्राह्मणों में श्रेष्ठतम अत्रि पूर्व में शिक्षण और तप किया करते थे। अत्रि गोत्रिय ब्राह्मण पूर्व काल से ही अन्य ब्राह्मणों की भांति केवल शैव, वैष्णव या शाक्त मत वाले नहीं है अपितु सभी मतों को मानने वाले हैं। अत्रि मुनि के अनुसार दिवसों, समय योग और औचित्य के अनुसार देव आराधना होनी चाहिए। Life (जीवन) अत्री सात महान ऋषि या सप्तर्षी में से एक है, जिसमें मरिची, अंगिरस, पुलाहा, क्रतु, पुलस्ट्य और वशिष्ठ शामिल हैं। वैदिक युग के पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋषि अत्री का अनसुया देवी से विवाह हुआ था। उनके तीन पुत्र थे, दत्तात्रेय, दुर्वासस और सोमा। दैवीय लेखा के अनुसार, वह सात सांपथीओं में से अंतिम है और माना जाता है कि वह जीभ से उत्पन्न हुआ है। अत्री की पत्नी अनुसूया थी, जिन्हें सात महिला पथरावों में से एक माना जाता है। जब दैवीय आवाज़ से तपस्या करने का निर्देश दिया जाता है, तो अत्री तुरंत सहमत हो गया और गंभीर तपस्या की। उनकी भक्ति और प्रार्थनाओं से प्रसन्नता, हिंदू त्रयी, अर्थात्, ब्रह्मा, विष्णु और शिव उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें वरदान दिया। उसने सभी तीनों को उसके पास जन्म लेने की मांग की पौराणिक कथाओं का एक और संस्करण बताता है कि अनसुया, उसकी शुद्धता की शक्तियों के द्वारा, तीन देवताओं को बचाया और बदले में, उनका जन्म बच्चों के रूप में हुआ था। ब्रह्मा का जन्म चंद्र के रूप में हुआ, विष्णु को दत्तात्रेय के रूप में और शिव के कुछ हिस्से में दुर्वासा के रूप में पैदा हुआ था। अत्री के बारे में उल्लेख विभिन्न शास्त्रों में पाया जाता है, जिसमें ऋगवेद में उल्लेखनीय अस्तित्व है। वह कई युगों से भी जुड़ा हुआ है, रामायण के दौरान त्रेता युग में उल्लेखनीय अस्तित्व है, जब वह और अनुसूया ने राम और उनकी पत्नी सीता को सलाह दी थी। इस जोड़ी को भी गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसका उल्लेख शिव पुराण में पाया जाता है। ऋग्वेद का द्रष्टा (Seer of Rig Veda) वह ऋग्वेद का पांचवां मंडल (पुस्तक 5) का द्रष्टा है। अत्री के कई पुत्र और शिष्यों ने ऋगवेद और अन्य वैदिक ग्रंथों के संकलन में योगदान दिया है। मंडल 5 में 87 भजन शामिल हैं, मुख्य रूप से अग्नि और इंद्र, लेकिन विस्वासदेव ("सभी देवताओं"), मारुत्स, जुड़वां-देवता मित्रा-वरुना और असिन्स के लिए। दो भजन उषाओं (सुबह में) और सावित्री के लिए। इस पुस्तक के अधिकांश भजन अत्रि कबीले संगीतकारों को दिया जाता है, जिन्हें अत्रेस कहा जाता है। ऋग्वेद के ये भजन भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बनाये गये थे, जो कि लगभग 1500 -1200 बीसीई। ऋग्वेद के अत्री भजन उनके संगीत संबंधी संरचना के लिए महत्वपूर्ण हैं और पहेलियों के रूप में आध्यात्मिक विचारों को दर्शाने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। इन भजनों में संस्कृत भाषा की लचीलेपन का उपयोग करने वाले लेक्सिकल, वाक्यविन्यास, रूपवाचक और क्रिया नाटक शामिल हैं। अत्री मंडल में ऋग्वेद का भजन 5.44 विद्वानों द्वारा माना जाता है जैसे कि गेल्डनर ऋग्वेद में सबसे कठिन पहेली भजन है। छंद, रूपकों के माध्यम से प्राकृतिक घटना की अपनी सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति के लिए भी जाना जाता है, जैसे भजन 5.80 में एक हंसमुख महिला के रूप में काव्य रूप से प्रारम्भ किया गया। जबकि पांचवी मंडल को अत्री और उसके सहयोगियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है, ऋषि अत्री को अन्य मंडल में 10.137.4 के रूप में ऋग्वेद की कई अन्य छंदों का उल्लेख या श्रेय दिया गया है। रामयान में अध्याय रामायण में, राम, सीता और लक्ष्मण उनके आश्रम में अत्री और अनासूया का दौरा करते हैं। अत्री की झोपड़ी को चित्रकूट में वर्णित किया गया है, दिव्य संगीत और गीतों के साथ एक झील के पास, पानी, फूलों से भरा हुआ, कई "क्रेन, मछुआरों, फ्लोटिंग कछुए, हंस, बेडूक और गुलाबी हंस" के साथ। पुराणों अत्रियों नाम के कई संतों का उल्लेख विभिन्न मध्यकालीन युग पुराणों में किया गया है। अत्री में उस पौराणिक किंवदंतियां विविध और असंगत हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि यदि ये एक ही व्यक्ति, या अलग ऋषियों के समान है, जिनका नाम एक ही है। सांस्कृतिक प्रभाव बाएं से दाएं: अत्री, भृगु, विखानास, मारिची और कश्यप वैष्णववाद के भीतर वैश्यन्सास उप-परंपरा तिरुपति के निकट दक्षिण भारत में पाए गए, उनके धर्मशास्त्र को चार ऋषियों (ऋषियों), अर्थात् अत्री, मारीसी, भृगु और कश्यप को जमा करते हैं। इस परंपरा के प्राचीन ग्रंथों में से एक है अत्री संहिता, जो पांडुलिपियों के बेहद असंगत टुकड़ों में जीवित है। पाठ वैचारणा परंपरा के ब्राह्मणों के उद्देश्य से आचरण के नियम हैं। अत्री संहिता के जीवित हिस्सों का सुझाव है कि पाठ में अन्य बातों के बीच, योग और नैतिकता के बारे में चर्चा की गई थी, जैसे कि: आत्म संयम: अगर सामग्री या आध्यात्मिक दर्द दूसरों के द्वारा उत्पन्न होता है, और कोई नाराज नहीं होता है और बदला लेने की स्थिति में नहीं है, इसे दामा कहा जाता है। अन्य की स्त्री को माता समझना भी आत्म संयम में शामिल है। दान पुण्य: यहां तक ​​कि सीमित आय के साथ, कुछ को ध्यान में रखते हुए दैनिक और दैनिक उदारवाद के साथ दिया जाना चाहिए। इसे दाना कहा जाता है। करुणा: किसी को अपने स्वयं की तरह व्यवहार करना चाहिए, दूसरों के प्रति, अपने स्वयं के संबंधों और दोस्तों, जो उसे ईर्ष्या करते हैं, और यहां तक ​​कि अपने दुश्मन भी। इसे दया कहा जाता है। मन-वचन-कर्म से की गई अहिंसा भी करुणा के अंतर्गत आती है। - अत्री संहिता, एमएन दत्त द्वारा अनुवादित दक्षिण भारत में वैचारस एक महत्वपूर्ण समुदाय बना रहे हैं, और वे अपने वैदिक विरासत का पालन करते हैं। अत्रि हिंदुओं के एक महान ऋषि हैं। वनवास काल में श्रीराम तथा माता सीता ने अत्रि आश्रम का भ्रमण किया था। इनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पतिव्रता धर्म का उपदेश दिया। अत्रि परंपरा के तीर्थ स्थलों में चित्रकूट, रामेश्वरम, मीनाक्षी अम्मन, तिरुपति बालाजी और हिंगलाज माता मंदिर(वर्तमान में पाकिस्तान) आदि हैं। श्रेणी:रामायण के पात्र श्रेणी:चित्र जोड़ें श्रेणी:हिन्दू पुराण आधार (अत्री/अत्रि, अत्रे/अत्रस्य/आत्रेय।अत्रिष/दत्तात्रे) " हरियाणा, पंजाब, जम्मू & कश्मीर, हिमाचल, उत्तरांचल, देहली, उतर-प्रदेश,चंडीगढ़, पश्चिम-बंगाल, महाराष्ट्र,गुजरात, मध्य प्रदेश के भिंड एवं ग्वालियर जिलों, गोवा,राजस्थान,केरल,तमिल, कर्णाटक, उड़ीसा, श्री-लंका,नेपाल, मलेशिया आदि स्थान पर "अत्री गोत्र" बस्ते हैं। अत्री ऋषि के अनेक पुत्र हुये, इनमें से तीन बड़े पुत्रओ के नाम 1. सोम 2. दुर्वासा 3. दत्ताअत्रे, सभी ब्राह्मण पुत्र हैं, चंद्रमा ओर चन्द्रमा से सभी अत्री हम "चंद्रवंसी" हैं। ओर बहुत प्राचीन समय में हमारी एक शाखा ने क्षत्रिये कर्म अपना लिया। ओर वो शाखा क्षत्रिये अत्रियों की हुई, उतर-प्रदेश में ह वो शाखा जो "अत्रि ऋषि के पुत्र सोम से ये शाखा सोम-राजपूतो की हुई, इसमें राणा ओर तोमर राजपूत आते हैं जो हमारे अत्रि भाई है, ये गाजियाबाद में 64 गांव ओर गौतमबुद्ध नगर(नोयडा) में 84 गांव में हैं ऒर सोम(राणा) अत्रि शामली-बड़ोत में 24 गांव में हैं,महाभारत से पहले अत्रियों के एक ओर शाखा के "यदु" नामक हमारे बड़े ने एक राज्य की स्थापना कि ओर उससे "यदु" अत्री कुल शरू किया ओर इस कुल को मानने वाले यादव हुये।16वीं शाताब्दी में अत्रियों की एक शाखा जाट जाति में आ गई। और ये शाखा राजस्थान,उतरप्रदेश ओर हरियाणा में है।हरियाणा के फरिदाबाद के मोहना और 2गांव पलवल में है।ये शाखा ज्यादा नही है। अब भी ब्राह्मणों वाली शाखा सबसे बड़ी है ओर पुरे हिंदुस्तान के साथ सभी हिन्दू देशो में है। अत्रि ऋषि ने "अत्रि स्मृति लिखी । SC-ST ने भी अत्री गौत्र को ग्रहण किया अत्री गोत्र लिखने लगे। ये पंजाब और जम्मु & कश्मीर में पाए जाते है। गौड़-सारस्वत-द्रविड़-तमिल-मैथली, अय्यर-अयंगर, नंबूदरीपाद, मोहयाल-चितपावन-पंडा-बरागी-डकोत-भूमिहार(बिहार) हम सब (हम सब भाई-भाई) 卐🚩ॐ🚩 वेद_उपनिषद_दर्शन_सारे, स्मृती_पुराण_इतिहास_हमारे ~~🚩ॐ🚩卐.

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मनु और संस्कृत ग्रन्थों की सूची के बीच तुलना

मनु 23 संबंध है और संस्कृत ग्रन्थों की सूची 253 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 1.09% है = 3 / (23 + 253)।

संदर्भ

यह लेख मनु और संस्कृत ग्रन्थों की सूची के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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