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मगही उपन्यास

सूची मगही उपन्यास

मगही (मागधी) में पद्य साहित्य जितना प्राचीन और समृद्ध है, उतना गद्य साहित्य नहीं। अन्य भारतीय भाषाओं की तरह मगही में भी गद्य साहित्य का आरंभ 19वीं सदी के अंत में हुआ। लेकिन मगही साहित्येतिहासकारों के अनुसार मगही का पहला उपन्यास उपन्यासिका या लंबी कहानी ‘सुनीता’ (1928) बीसवीं सदी के तीसरे दशक में छपी। तब से लेकर वर्तमान समय तक तीन दर्जन से ज्यादा मगही उपन्यास लिखे जा चुके हैं और मगही उपन्यासों का प्रकाशन निरंतर हो रहा है। .

6 संबंधों: फूल बहादुर, मगही, सुनीता-मगही का प्रथम उपन्यास, सुनीति कुमार चटर्जी, जयनाथ पति, खाँटी किकटिया

फूल बहादुर

फूल बहादुर 1928 में प्रकाशित मगही उपन्यास है। इसके लेखक नवादा (बिहार) के उद्भट विद्वान, स्वतंत्रता सुराजी और मगही के प्रथम उपन्यासकार बाबू जयनाथ पति हैं। मगही उपन्यासों की शृंखला में ‘फूल बहादुर’ प्रकाशन की दृष्टि से दूसरा और उपलब्धता के लिहाज से पहला उपन्यास है। क्योंकि मगही का पहला उपन्यास ‘सुनीता’ (रचना 1927, प्रकाशन 1928) जिसके लेखक जयनाथ पति ही हैं, अब उपलब्ध नहीं है। ‘फूल बहादुर’ का प्रकाशन औपनिवेशिक भारत में बीसवीं सदी के तीसरे दशक में 1 मई 1928 को हुआ था। इस मगही उपन्यास की कथावस्तु के केन्द्र में मनुष्य का नैतिक पतन और ब्रिटिशकालीन भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार है। हास्य-व्यंग्य की कचोटने वाली शैली में लिखे गए ‘उपन्यास का नायक सामलाल बिहारशरीफ में कार्यरत एक मोख्तार है। वह किसी भी कीमत पर रायबहादुर की पदवी पाने के लिए बेचैन है। इसके लिये वह अधिकरियों की खुशामद करता है। नवागंतुक अनुमंडलाधिकारी को सुरा-सुन्दरी उपलब्ध कराकर वह अपनी मनोकामना पूर्ण करना चाहता है किन्तु उसे सफलता नहीं मिलती है। नगर के लोग उसकी व्यग्रता को देखकर रायबहादुर बनाने का एक फर्जी आदेश उसके पास भेज कर उसे बेवकूफ बनाते हैं। रायबहादुर के बदले वह फूल बहादुर बन जाता है। मोख्तारी के अनुभव के ऊपर पर रचित इस उपन्यास में तत्कालीन कचहरी एवं सरकारी अधिकारी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया गया है। इसमें नगरीय और कचहरी के आस-पास के परिवेश पर प्रकाश डाला गया है।’ उपन्यास में प्रयुक्त भाषा नवादा अंचल में बोले जाने वाली मगही है। मगही के इस पहले उपलब्ध उपन्यास का दूसरा संस्करण 1974 में बिहार मगही मंडल, पटना (बिहार) ने प्रकाशित किया था। फिर मगही भाषाप्रेमी नारायण प्रसाद ने 2008 में इसे अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत किया। ‘फूल बहादुर’ का तीसरा संस्करण इसी वर्ष 2018 में प्यारा केरकेट्टा फाउंडेशन, रांची (झारखंड) द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसकी प्रति archive.org से निःशुल्क डाउनलोड की जा सकती है। .

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मगही

मगही या मागधी भाषा भारत के मध्य पूर्व में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। इसका निकट का संबंध भोजपुरी और मैथिली भाषा से है और अक्सर ये भाषाएँ एक ही साथ बिहारी भाषा के रूप में रख दी जाती हैं। इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। मगही बोलनेवालों की संख्या (2002) लगभग १ करोड़ ३० लाख है। मुख्य रूप से यह बिहार के गया, पटना, राजगीर,नालंदा,जहानाबाद,अरवल,नवादा,शेखपुरा,लखीसराय,जमुई और औरंगाबाद के इलाकों में बोली जाती है। मगही का धार्मिक भाषा के रूप में भी पहचान है। कई जैन धर्मग्रंथ मगही भाषा में लिखे गए हैं। मुख्य रूप से वाचिक परंपरा के रूप में यह आज भी जीवित है। मगही का पहला महाकाव्य गौतम महाकवि योगेश द्वारा 1960-62 के बीच लिखा गया। दर्जनो पुरस्कारो से सम्मानित योगेश्वर प्रसाद सिन्ह योगेश आधुनिक मगही के सबसे लोकप्रिय कवि माने जाते है। 23 अक्तुबर को उनकी जयन्ति मगही दिवस के रूप मे मनाई जा रही है। मगही भाषा में विशेष योगदान हेतु सन् 2002 में डॉ॰रामप्रसाद सिंह को दिया गया। ऐसा कुछ विद्वानों का मानना है कि मगही संस्कृत भाषा से जन्मी हिन्द आर्य भाषा है, परंतु महावीर और बुद्ध दोनों के उपदेश की भाषा मागधी ही थी। बुद्ध ने भाषा की प्राचीनता के सवाल पर स्पष्ट कहा है- ‘सा मागधी मूल भाषा’। अतः मगही ‘मागधी’ से ही निकली भाषा है। .

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सुनीता-मगही का प्रथम उपन्यास

सुनीता 1927 में रचित मगही भाषा का पहला उपन्यास है। इसकी रचना नवादा (बिहार) के मोख्तार बाबू जयनाथ पति ने की थी। उपन्यास की कथावस्तु सामाजिक रूढ़ि बेमेल विवाह और उसका नकार है। सामाजिक वर्जना को तोड़ने और अंतरजातीय विवाह संबंध की वकालत करने वाले नायिका केन्द्रित इस उपन्यास को प्रकाशन के बाद समाज के उच्च जातियों का जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा था। वर्तमान में इस उपन्यास की एक भी प्रति उपलब्ध नहीं है। .

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सुनीति कुमार चटर्जी

सुनीति कुमार चटर्जी (बांग्ला: সুনীতি কুমার চ্যাটার্জী) (26 अक्टूबर, 1890 - 29 मई, 1977) भारत के जानेमाने भाषाविद्, साहित्यकार तथा भारतविद् के रूप में विश्वविख्यात व्यक्तित्व थे। वे एक लोकप्रिय कला-प्रेमी भी थे। .

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जयनाथ पति

जयनाथ पति (1880-1939) मगही भाषा के पहले उपन्यासकार, भारतीय इतिहास व संस्कृति के प्रमुख विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी हैं। आपका जन्म जिला नवादा (बिहार) के गांव शादीपुर, पो.

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खाँटी किकटिया

खाँटी किकटिया हिंदी के चर्चित कहानीकार और उपन्यासकार अश्विनी कुमार पंकज का उपन्यास है। ‘माटी माटी अरकाटी’ फेम श्री पंकज का यह दूसरा उपन्यास है जो उन्होंने अपनी मातृभाषा मगही में लिखा हॅै। जनवरी, 2018 में प्रकाशित यह उपन्यास 600 ईसा पूर्व के सुप्रसिद्ध दार्शनिक मक्खलि गोसाल के जीवन और दर्शन पर आधारित है। आलोचकों के अनुसार ‘खाँटी किकटिया’ मगही साहित्य के उपन्यास लेखन में अपनी तरह का विरल प्रयास है। 1928 में छपी सुनीता मगही भाषा में जयनाथ पति का लिखा पहला उपन्यास है। तब से अब तक कुल 28 मगही उपन्यासों का प्रकाशन हो चुका है। लेकिन मगही उपन्यासों की शृंखला में यह पहला उपन्यास है जो व्यापक फलक पर मगध में विकसित हुई आजीवक दर्शन की परंपरा को उसके मूल सरोकार के साथ उसको समग्रता में व्याख्यायित करता है। बहुजन साहित्य के विचारक और प्रखर हिंदी आलोचक प्रेमकुमार मणि कहते हैं, ‘मगध के इतिहास की व्याख्या करने वाली यह कृति बहुत ही बहसतलब है और रचनात्मकता से भरी पड़ी है। मगही लेखक घमंडी राम की टिप्पणी है, ‘वर्ण व्यवस्था देश में सदियों से अपने बर्बर रूप में विद्यमान रही है। लेखक ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बौद्धकालीन समाज की सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक जीवन की जो तस्वीर इस कृति में खींची है, वह मगही साहित्य में अपनी वैचारिकता के लिए सदैव याद की जाएगी।’ मगही लेखक धनंजय श्रोत्रिय का मानना है कि मगही के इतिहास लेखन में अश्विनी पंकज ने ‘खाँटी किकटिया’ लिखकर एक ऐतिहासिक धरोहर मगध के समाज को सौंपा है। कवि हरीन्द्र विद्यार्थी की सम्मति है, ‘भाषा, शैली, कथन और पात्रों के सृजन की दृष्टि से यह मगही का एक सर्वोत्कृष्ट उपन्यास है। इस शोधपरक कृति ने मगही उपन्यास का मानक तय कर दिया है।’ वहीं, साहित्यकार ध्रुव गुप्त के अनुसार ‘अश्विनी कुमार पंकज ने मक्खलि गोसाल के जीवन, विचार और उनके नेतृत्व में आजीवकों की लड़ाई की जैसी जीवंत तस्वीर खींची है, उससे गुज़रना एक दुर्लभ अनुभव है। उनकी इस कृति में देशज भाषा मगही और उसकी लोकोक्तियों का सौंदर्य अपने पूरे निखार पर है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मगही भाषा का यह सर्वथा अलग-सा उपन्यास मगही ही नहीं, तमाम देशज भाषाओं के लिए गर्व का विषय साबित होगा।’ .

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