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भारतेन्दु हरिश्चंद्र

सूची भारतेन्दु हरिश्चंद्र

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ्य परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (१८६७) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया। उन्होंने 'हरिश्चंद्र पत्रिका', 'कविवचन सुधा' और 'बाल विबोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा वे लेखक, कवि, संपादक, निबंधकार, एवं कुशल वक्ता भी थे।। वेबदुनिया। स्मृति जोशी भारतेन्दु जी ने मात्र ३४ वर्ष की अल्पायु में ही विशाल साहित्य की रचना की। पैंतीस वर्ष की आयु (सन् १८८५) में उन्होंने मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा, इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया। .

35 संबंधों: नाटक, पत्रकारिता, पंजाबी, बलिया, बाङ्ला भाषा, भारत, भारत दुर्दशा, भारतेन्दु मंडल, भारतेन्दु युग, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, मराठी भाषा, राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द', सत्य हरिश्चन्द्र, संस्कृत भाषा, हिन्दी, हिन्दी कवि, हिंदी साहित्य, वाराणसी, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, गुजराती भाषा, आधुनिक काल, काशी, काव्य, अवधी, अंधेर नगरी, उत्तर प्रदेश, उर्दू भाषा, १८५०, १८५७, १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, १८८०, १८८५, ६ जनवरी, ७ जनवरी, ९ सितम्बर

नाटक

नाटक, काव्य का एक रूप है। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। श्रव्य काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है। नाट्यशास्त्र में लोक चेतना को नाटक के लेखन और मंचन की मूल प्रेरणा माना गया है। .

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पत्रकारिता

पत्रकारिता (अंग्रेजी: journalism) आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुँचाना, सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता आदि। बदलते वक्त के साथ के अंतर्संबंधों ने पत्रकारिता की विषय-वस्तु तथा प्रस्तुति शैली में व्यापक परिवर्तन किए। .

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पंजाबी

पंजाबी का इनमें से मतलब हो सकता: संस्कृति में.

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बलिया

बलिया (भोजपुरी: बलिया या बलिंयाँ) भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में एक नगर निगम वाला शहर है। यह अपने ही नाम के जिले का मुख्यालय भी है। इस शहर की पूर्वी सीमा गंगा और सरयू के संगम द्वारा बनायी जाती है। यह शहर वाराणसी से 155 किलोमीटर स्थित है। भोजपुरी यहाँ की प्राथमिक स्थानीय भाषा है। यह क्षेत्र गंगा और घाघरा के बीच के जलोढ़ मैदानों में स्थित है। अक्सर बाढ़ग्रस्त रहने वाले इस उपजाऊ क्षेत्र में चावल, जौ, मटर, ज्वार-बाजरा, दालें, तिलहन और गन्ना उगाया जाता है। .

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बाङ्ला भाषा

बाङ्ला भाषा अथवा बंगाली भाषा (बाङ्ला लिपि में: বাংলা ভাষা / बाङ्ला), बांग्लादेश और भारत के पश्चिम बंगाल और उत्तर-पूर्वी भारत के त्रिपुरा तथा असम राज्यों के कुछ प्रान्तों में बोली जानेवाली एक प्रमुख भाषा है। भाषाई परिवार की दृष्टि से यह हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार का सदस्य है। इस परिवार की अन्य प्रमुख भाषाओं में हिन्दी, नेपाली, पंजाबी, गुजराती, असमिया, ओड़िया, मैथिली इत्यादी भाषाएँ हैं। बंगाली बोलने वालों की सँख्या लगभग २३ करोड़ है और यह विश्व की छठी सबसे बड़ी भाषा है। इसके बोलने वाले बांग्लादेश और भारत के अलावा विश्व के बहुत से अन्य देशों में भी फ़ैले हैं। .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भारत दुर्दशा

भारत दुर्दशा नाटक की रचना 1875 इ. में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा की गई थी। इसमें भारतेन्दु ने प्रतीकों के माध्यम से भारत की तत्कालीन स्थिती का चित्रण किया है। वे भारतवासियों से भारत की दुर्दशा पर रोने और फिर इस दुर्दशा का अंत करने का प्रयास करने का आह्वान करते हैं। वे ब्रिटिश राज और आपसी कलह को भारत दुर्दशा का मुख्य कारण मानते हैं। तत्पश्चात वे कुरीतियाँ, रोग, आलस्य, मदिरा, अंधकार, धर्म, संतोष, अपव्यय, फैशन, सिफारिश, लोभ, भय, स्वार्थपरता, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, बाढ़ आदि को भी भारत दुर्दशा का कारण मानते हैं। लेकिन सबसे बड़ा कारण अंग्रेजों की भारत को लूटने की नीति को मानते हैं। .

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भारतेन्दु मंडल

भारतेन्दु हरिश्चंद्र के जीवनकाल में ही कवियों और लेखकों का एक खासा मंडल चारो ओर तैयार हो गया था। हिन्दी साहित्य के इतिहास में इसे भारतेन्दु मंडल के नाम से जाना जाता है। इन सभी ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के नेतृत्व में हिन्दी गद्य की सभी विधाओं में अपना योगदान दिया। ये लोग भारतेन्दु की मृत्यु के बाद भी लम्बे समय तक साहित्य साधना करते रहे।;भारतेन्दु मंडल के प्रमुख साहित्यकार.

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भारतेन्दु युग

जिस समय खड़ी बोली गद्य अपने प्रारिम्भक रूप में थी, उस समय हिन्दी के सौभाग्य से भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया। उन्होंने राजा शिवप्रसाद तथा राजा लक्ष्मण सिंह की आपस में विरोधी शैलियों में समन्वय स्थापित किया और मध्यम मार्ग अपनाया। इस काल में हिन्दी के प्रचार में जिन पत्र-पत्रिकाओं ने विशेष योग दिया, उनमें उदन्त मार्तण्ड, कवि वचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगजीन अग्रणी हैं। इस समय हिन्दी गद्य की सर्वांगीण प्रगति हुई और उसमें उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध, आलोचना, जीवनी आदि विधाओं में अनूदित तथा मौलिक रचनाएं लिखी गयीं। .

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भारतेन्दु हरिश्चंद्र

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (९ सितंबर १८५०-७ जनवरी १८८५) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है। उन्होंने रीतिकाल की विकृत सामन्ती संस्कृति की पोषक वृत्तियों को छोड़कर स्वस्थ्य परम्परा की भूमि अपनाई और नवीनता के बीज बोए। हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। हिंदी में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है। भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुंदर (१८६७) नाटक के अनुवाद से होती है। यद्यपि नाटक उनके पहले भी लिखे जाते रहे किंतु नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिंदी नाटक की नींव को सुदृढ़ बनाया। उन्होंने 'हरिश्चंद्र पत्रिका', 'कविवचन सुधा' और 'बाल विबोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा वे लेखक, कवि, संपादक, निबंधकार, एवं कुशल वक्ता भी थे।। वेबदुनिया। स्मृति जोशी भारतेन्दु जी ने मात्र ३४ वर्ष की अल्पायु में ही विशाल साहित्य की रचना की। पैंतीस वर्ष की आयु (सन् १८८५) में उन्होंने मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा, इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया। .

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मराठी भाषा

मराठी भारत के महाराष्ट्र प्रांत में बोली जानेवाली सबसे मुख्य भाषा है। भाषाई परिवार के स्तर पर यह एक आर्य भाषा है जिसका विकास संस्कृत से अपभ्रंश तक का सफर पूरा होने के बाद आरंभ हुआ। मराठी भारत की प्रमुख भाषओं में से एक है। यह महाराष्ट्र और गोवा में राजभाषा है तथा पश्चिम भारत की सह-राजभाषा हैं। मातृभाषियों कि संख्या के आधार पर मराठी विश्व में पंद्रहवें और भारत में चौथे स्थान पर है। इसे बोलने वालों की कुल संख्या लगभग ९ करोड़ है। यह भाषा 900 ईसवी से प्रचलन में है और यह भी हिन्दी के समान संस्कृत आधारित भाषा है। .

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राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द'

राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द' (३ फरवरी १८२४ -- २३ मई १८९५) हिन्दी के उन्नायक एवं साहित्यकार थे। वे शिक्षा-विभाग में कार्यरत थे। उनके प्रयत्नों से स्कूलों में हिन्दी को प्रवेश मिला। उस समय हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों का बहुत अभाव था। उन्होंने स्वयं इस दिशा में प्रयत्न किया और दूसरों से भी लिखवाया। आपने 'बनारस अखबार' नामक एक हिन्दी पत्र निकाला और इसके माध्यम से हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया। इनकी भाषा में फारसी-अरबी के शब्दों का अधिक प्रयोग होता था। राजा साहब 'आम फहम और खास पसंद' भाषा के पक्षपाती और ब्रिटिश शासन के निष्ठावान् सेवक थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इन्हें गुरु मानते हुए भी इसलिए इनका विरोध भी किया था। फिर भी इन्हीं के उद्योग से उस समय परम प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शिक्षा विभाग में हिंदी का प्रवेश हो सका। साहित्य, व्याकरण, इतिहास, भूगोल आदि विविध विषयों पर इन्होंने प्राय: ३५ पुस्तकों की रचना की जिनमें इनकी 'सवानेह उमरी' (आत्मकथा), 'राजा भोज का सपना', 'आलसियों का कोड़ा', 'भूगोल हस्तामलक' और 'इतिहासतिमिरनाशक' उल्लेख्य हैं। .

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सत्य हरिश्चन्द्र

सत्य हरिश्चंद्र भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा लिखित चार अंकों का नाटक है। काशी पत्रिका नामक पाक्षिक हिन्दी पत्र में प्रकाशित यह नाटक पहली बार १८७६ ई. में बनारस न्यु मेडिकल हाल प्रेस में पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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हिन्दी कवि

हिन्दी साहित्य राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी कविता परम्परा बहुत समृद्ध है। .

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हिंदी साहित्य

चंद्रकांता का मुखपृष्ठ हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई।हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। .

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति ये भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित एक नाटक है। इस प्रहसन में भारतेंदु ने परंपरागत नाट्य शैली को अपनाकर मांसाहार के कारण की जाने वाली हिंसा पर व्यंग्य किया गया है। नाटक का आरम्भ नांदी के दोहा गायन के साथ होआ है - .

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गुजराती भाषा

गुजराती भारत की एक भाषा है जो गुजरात राज्य, दीव और मुंबई में बोली जाती है। गुजराती साहित्य भारतीय भाषाओं के सबसे अधिक समृद्ध साहित्य में से है। भारत की दूसरी भाषाओं की तरह गुजराती भाषा का जन्म संस्कृत भाषा से हुआ है। वहीं इसके कई शब्द ब्रजभाषा के हैं ऐसा भी माना जाता है की इसका जन्म ब्रजभाषा में से भी हुआ अर्थात संस्कृत और ब्रजभाषा के मिले जुले शब्दों से गुजरातीे भाषा का जन्म हुआ। दूसरे राज्य एवं विदेशों में भी गुजराती बोलने वाले लोग निवास करते हैं। जिन में पाकिस्तान, अमेरिका, यु.के., केन्या, सिंगापुर, अफ्रिका, ऑस्ट्रेलीया मुख्य है। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की मातृभाषा गुजराती थी। गुजराती बोलने वाले भारत के दूसरे महानुभावों में पाकिस्तान के राष्ट्रपिता मुहम्मद अली जिन्ना, महर्षि दयानंद सरस्वती, मोरारजी देसाई, नरेन्द्र मोदी, धीरु भाई अंबानी भी सम्मिलित है। .

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आधुनिक काल

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ। इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ। सं 1800 वि.

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काशी

काशी जैनों का मुख्य तीर्थ है यहाँ श्री पार्श्वनाथ भगवान का जन्म हुआ एवम श्री समन्तभद्र स्वामी ने अतिशय दिखाया जैसे ही लोगों ने नमस्कार करने को कहा पिंडी फट गई और उसमे से श्री चंद्रप्रभु की प्रतिमा जी निकली जो पिन्डि आज भी फटे शंकर के नाम से प्रसिद्ध है काशी विश्वनाथ मंदिर (१९१५) काशी नगरी वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है। इसे संसार के सबसे पुरानी नगरों में माना जाता है। भारत की यह जगत्प्रसिद्ध प्राचीन नगरी गंगा के वाम (उत्तर) तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगासंगमों के बीच बसी हुई है। इस स्थान पर गंगा ने प्राय: चार मील का दक्षिण से उत्तर की ओर घुमाव लिया है और इसी घुमाव के ऊपर इस नगरी की स्थिति है। इस नगर का प्राचीन 'वाराणसी' नाम लोकोच्चारण से 'बनारस' हो गया था जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने शासकीय रूप से पूर्ववत् 'वाराणसी' कर दिया है। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है - 'काशिरित्ते..

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काव्य

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .

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अवधी

अवधी हिंदी क्षेत्र की एक उपभाषा है। यह उत्तर प्रदेश में "अवध क्षेत्र" (लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, उन्नाव, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर, फैजाबाद, प्रतापगढ़), इलाहाबाद, कौशाम्बी, अम्बेडकर नगर, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती तथा फतेहपुर में भी बोली जाती है। इसके अतिरिक्त इसकी एक शाखा बघेलखंड में बघेली नाम से प्रचलित है। 'अवध' शब्द की व्युत्पत्ति "अयोध्या" से है। इस नाम का एक सूबा के राज्यकाल में था। तुलसीदास ने अपने "मानस" में अयोध्या को 'अवधपुरी' कहा है। इसी क्षेत्र का पुराना नाम 'कोसल' भी था जिसकी महत्ता प्राचीन काल से चली आ रही है। भाषा शास्त्री डॉ॰ सर "जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन" के भाषा सर्वेक्षण के अनुसार अवधी बोलने वालों की कुल आबादी 1615458 थी जो सन् 1971 की जनगणना में 28399552 हो गई। मौजूदा समय में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 6 करोड़ से ज्यादा लोग अवधी बोलते हैं। उत्तर प्रदेश के 19 जिलों- सुल्तानपुर, अमेठी, बाराबंकी, प्रतापगढ़, इलाहाबाद, कौशांबी, फतेहपुर, रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद व अंबेडकर नगर में पूरी तरह से यह बोली जाती है। जबकि 6 जिलों- जौनपुर, मिर्जापुर, कानपुर, शाहजहांपुर, बस्ती और बांदा के कुछ क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता है। बिहार के 2 जिलों के साथ पड़ोसी देश नेपाल के 8 जिलों में यह प्रचलित है। इसी प्रकार दुनिया के अन्य देशों- मॉरिशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, फिजी, गयाना, सूरीनाम सहित आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व हॉलैंड में भी लाखों की संख्या में अवधी बोलने वाले लोग हैं। .

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अंधेर नगरी

अंधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रीय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। भारतेंदु ने इसकी रचना बनारस के हिंदू नेशनल थिएटर के लिए एक हीं दिन की थी । .

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उत्तर प्रदेश

आगरा और अवध संयुक्त प्रांत 1903 उत्तर प्रदेश सरकार का राजचिन्ह उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा (जनसंख्या के आधार पर) राज्य है। लखनऊ प्रदेश की प्रशासनिक व विधायिक राजधानी है और इलाहाबाद न्यायिक राजधानी है। आगरा, अयोध्या, कानपुर, झाँसी, बरेली, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, मथुरा, मुरादाबाद तथा आज़मगढ़ प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण शहर हैं। राज्य के उत्तर में उत्तराखण्ड तथा हिमाचल प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली तथा राजस्थान, दक्षिण में मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ और पूर्व में बिहार तथा झारखंड राज्य स्थित हैं। इनके अतिरिक्त राज्य की की पूर्वोत्तर दिशा में नेपाल देश है। सन २००० में भारतीय संसद ने उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी (मुख्यतः पहाड़ी) भाग से उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) राज्य का निर्माण किया। उत्तर प्रदेश का अधिकतर हिस्सा सघन आबादी वाले गंगा और यमुना। विश्व में केवल पाँच राष्ट्र चीन, स्वयं भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंडोनिशिया और ब्राज़ील की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या से अधिक है। उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर में स्थित है। यह राज्य उत्तर में नेपाल व उत्तराखण्ड, दक्षिण में मध्य प्रदेश, पश्चिम में हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान तथा पूर्व में बिहार तथा दक्षिण-पूर्व में झारखण्ड व छत्तीसगढ़ से घिरा हुआ है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ है। यह राज्य २,३८,५६६ वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यहाँ का मुख्य न्यायालय इलाहाबाद में है। कानपुर, झाँसी, बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन, महोबा, ललितपुर, लखीमपुर खीरी, वाराणसी, इलाहाबाद, मेरठ, गोरखपुर, नोएडा, मथुरा, मुरादाबाद, गाजियाबाद, अलीगढ़, सुल्तानपुर, फैजाबाद, बरेली, आज़मगढ़, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर यहाँ के मुख्य शहर हैं। .

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उर्दू भाषा

उर्दू भाषा हिन्द आर्य भाषा है। उर्दू भाषा हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप मानी जाती है। उर्दू में संस्कृत के तत्सम शब्द न्यून हैं और अरबी-फ़ारसी और संस्कृत से तद्भव शब्द अधिक हैं। ये मुख्यतः दक्षिण एशिया में बोली जाती है। यह भारत की शासकीय भाषाओं में से एक है, तथा पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा है। इस के अतिरिक्त भारत के राज्य तेलंगाना, दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त शासकीय भाषा है। .

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१८५०

1850 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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१८५७

कोई विवरण नहीं।

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१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट। १८५७ का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।1 सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।2 मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।3 जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 8 अप्रैल को फासी दे दी गई थी। 10 मई, 1857 को मेरठ में हुए जनक्रान्ति के विस्फोट से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई।4 मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धन सिंह कोतवाल ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था।5 धन सिंह कोतवाल को पुलिस नियंत्रण के छिन्न-भिन्न हो जाने के लिए दोषी पाया गया। क्रान्तिकारी घटनाओं से दमित लोगों ने अपनी गवाहियों में सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गूजर है इसलिए उसने क्रान्तिकारियों, जिनमें गूजर बहुसंख्या में थे, को नहीं रोका। उन्होंने धन सिंह पर क्रान्तिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप भी लगाया।6 एक गवाही के अनुसार क्रान्तिकरियों ने कहा कि धन सिंह कोतवाल ने उन्हें स्वयं आस-पास के गांव से बुलाया है 7 यदि मेजर विलियम्स द्वारा ली गई गवाहियों का स्वयं विवेचन किया जाये तो पता चलता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट काई स्वतः विस्फोट नहीं वरन् एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी, जो परिस्थितिवश समय पूर्व ही घटित हो गई। नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था।8 विद्रोही सैनिक, मेरठ शहर की पुलिस, तथा जनता और आस-पास के गांव के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेरठ के आर्य समाजी, इतिहासज्ञ एवं स्वतन्त्रता सेनानी आचार्य दीपांकर के अनुसार यह साधु स्वयं दयानन्द जी थे और वही मेरठ में 10 मई, 1857 की घटनाओं के सूत्रधार थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही के अनुसार कोतवाल स्वयं इस साधु से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे।9 हो सकता है ऊपरी तौर पर यह कोतवाल की सरकारी भेंट हो, परन्तु दोनों के आपस में सम्पर्क होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में कोतवाल सहित पूरी पुलिस फोर्स इस योजना में साधु (सम्भवतः स्वामी दयानन्द) के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो चुकी थी। 10 मई को जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़, जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं। धन सिंह कोतवाल ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया।10 आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पिट्ठू पुलिसकर्मी क्रान्ति के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। इस प्रकार अंग्रेजों के वफादारों की तरफ से क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयास नहीं हो सका, दूसरी तरफ उसने क्रान्तिकारी योजना से सहमत सिपाहियों को क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया।11 धन सिंह कोतवाल अपने गांव पांचली और आस-पास के क्रान्तिकारी गूजर बाहुल्य गांव घाट, नंगला, गगोल आदि की जनता के सम्पर्क में थे, धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गूजर क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। मेरठ के आस-पास के गांवों में प्रचलित किवंदन्ती के अनुसार इस क्रान्तिकारी भीड़ ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया12 और जेल को आग लगा दी। मेरठ शहर और कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था उसे यह क्रान्तिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। उपरोक्त वर्णन और विवेचना के आधार पर हम निःसन्देह कह सकते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने 10 मई, 1857 के दिन मेरठ में मुख्य भूमिका का निर्वाह करते हुए क्रान्तिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया था।1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है, इनका निष्कर्ष है कि 1857 के विद्रोह को कही भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था, इसलिए इसे स्वतन्त्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है। समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बन्जारो, रांघड़ों और गूजर किसानों ने 1857 की क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई ? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही 1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं। 10, मई 1857 को मेरठ में जो महत्वपूर्ण भूमिका धन सिंह और उनके अपने ग्राम पांचली के भाई बन्धुओं ने निभाई उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य सिर्फ अधिक से अधिक लगान वसूलना था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने महलवाड़ी व्यवस्था लागू की थी, जिसके तहत समस्त ग्राम से इकट्ठा लगान तय किया जाता था और मुखिया अथवा लम्बरदार लगान वसूलकर सरकार को देता था। लगान की दरें बहुत ऊंची थी, और उसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। कर न दे पाने पर किसानों को तरह-तरह से बेइज्जत करना, कोड़े मारना और उन्हें जमीनों से बेदखल करना एक आम बात थी, किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी। धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से सम्बन्धित थे। किसानों के इन हालातों से वे बहुत दुखी थे। धन सिंह के पिता पांचली ग्राम के मुखिया थे, अतः अंग्रेज पांचली के उन ग्रामीणों को जो किसी कारणवश लगान नहीं दे पाते थे, उन्हें धन सिंह के अहाते में कठोर सजा दिया करते थे, बचपन से ही इन घटनाओं को देखकर धन सिंह के मन में आक्रोष जन्म लेने लगा।13 ग्रामीणों के दिलो दिमाग में ब्रिटिष विरोध लावे की तरह धधक रहा था। 1857 की क्रान्ति में धन सिंह और उनके ग्राम पांचली की भूमिका का विवेचन करते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि धन सिंह गूजर जाति में जन्में थे, उनका गांव गूजर बहुल था। 1707 ई0 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गूजरों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी राजनैतिक ताकत काफी बढ़ा ली थी।14 लढ़ौरा, मुण्डलाना, टिमली, परीक्षितगढ़, दादरी, समथर-लौहा गढ़, कुंजा बहादुरपुर इत्यादि रियासतें कायम कर वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक गूजर राज्य बनाने के सपने देखने लगे थे।15 1803 में अंग्रेजों द्वारा दोआबा पर अधिकार करने के वाद गूजरों की शक्ति क्षीण हो गई थी, गूजर मन ही मन अपनी राजनैतिक शक्ति को पुनः पाने के लिये आतुर थे, इस दषा में प्रयास करते हुए गूजरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गूजर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये।16 पश्चिमी उत्तर प्रदेष के गूजरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1857 के सैनिक विद्रोह ने उन्हें एक और अवसर प्रदान कर दिया। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेष में देहरादून से लेकिन दिल्ली तक, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी तक। पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गूजर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। हजारों की संख्या में गूजर शहीद हुए और लाखों गूजरों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेषों में कृषि मजदूर के रूप में निर्वासित कर दिया। इस प्रकार धन सिंह और पांचली, घाट, नंगला और गगोल ग्रामों के गूजरों का संघर्ष गूजरों के देशव्यापी ब्रिटिष विरोध का हिस्सा था। यह तो बस एक शुरूआत थी। 1857 की क्रान्ति के कुछ समय पूर्व की एक घटना ने भी धन सिंह और ग्रामवासियों को अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। पांचली और उसके निकट के ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार घटना इस प्रकार है, ”अप्रैल का महीना था। किसान अपनी फसलों को उठाने में लगे हुए थे। एक दिन करीब 10 11 बजे के आस-पास बजे दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में थोड़ा आराम करने के लिए रूके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह (अथवा भज्जड़ सिंह) थे, कृषि कार्यो में लगे थे। अंग्रेजों ने इन किसानों से पानी पिलाने का आग्रह किया। अज्ञात कारणों से इन किसानों और अंग्रेजों में संघर्ष हो गया। इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया। एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक दायं हंकवाई। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ वापस लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे। अंग्रेजों की दण्ड नीति बहुत कठोर थी, इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी धन सिंह के पिता, जो कि गांव के मुखिया थे, को सौंपी गई। ऐलान किया गया कि यदि मुखिया ने तीनों बागियों को पकड़कर अंग्रेजों को नहीं सौपा तो सजा गांव वालों और मुखिया को भुगतनी पड़ेगी। बहुत से ग्रामवासी भयवश गाँव से पलायन कर गए। अन्ततः नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया। धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छः माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया।17 जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरूआत कर इतिहास रच दिया। क्रान्ति मे अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई।18 आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। संदर्भ एवं टिप्पणी 1.

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१८८०

1880 ग्रेगोरी कैलंडर का एक अधिवर्ष है। .

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१८८५

1885 ग्रेगोरी कैलंडर का एक साधारण वर्ष है। .

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६ जनवरी

6 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 6वाँ दिन है। साल में अभी और 359 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 360)।.

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७ जनवरी

7 जनवरी ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 7वाँ दिन है। साल में अभी और 358 दिन बाकी हैं (लीप वर्ष में 359)। .

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९ सितम्बर

9 सितंबर ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 252वॉ (लीप वर्ष मे 253 वॉ) दिन है। साल मे अभी और 113 दिन बाकी है। .

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