बिहारी सतसई बिहारीलाल की एकमात्र रचना है, यह मुक्तक काव्य है, इसमें 719 दोहे संकलित हैं। बिहारी सतसई श्रृंगार रस की सुप्रसिद्ध और अनुपम रचना है। इसका हर एक दोहा हिन्दी साहित्य का अनमोल रत्न माना जाता है। सतसैया के दोहरे, ज्यों नैनन के तीर। देखन में छोटे लगे, बेधे सकल शरीर। बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ। सौह करे भौह्नी हँसे दैन कहे नाती जाई।। कहत, नटत, रीझत, खीझत, मिळत, खिलत, लजियात। भरे भौन में करत है, नैनन ही सों बात। मेरी भव- बाधा हरो राधा नागरि सोइ। जा तन की झांई परे, श्याम हरित धुती होइ।। दुसह दुराज प्रजान को क्यों न बड़े दुःख द्वंद। अधिक अंधेरो जग करत, मिलि मावस रविचंद।। सोहत ओढैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात। मनौ नीलमनि-सैल पर आपतु परयौ प्रभात।। कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ। जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ – दाघ निदाघ।। श्रेणी:हिन्दी साहित्य श्रेणी:हिन्दी कविता.
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