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बाजीराव प्रथम और मराठी लोग

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

बाजीराव प्रथम और मराठी लोग के बीच अंतर

बाजीराव प्रथम vs. मराठी लोग

पेशवा बाजीराव प्रथम (१७०० - १७४०) महान सेनानायक थे। वे १७२० से १७४० तक मराठा साम्राज्य के चौथे छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधानमन्त्री) रहे। इनको 'बाजीराव बल्लाल' तथा 'थोरले बाजीराव' के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें प्रेम से लोग अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट भी कहते थे। इन्होंने अपने कुशल नेतृत्व एवं रणकौशल के बल पर मराठा साम्राज्य का विस्तार (विशेषतः उत्तर भारत में) किया। इसके कारण ही उनकी मृत्यु के २० वर्ष बाद उनके पुत्र के शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच सका। बाजीराव प्रथम को सभी ९ महान पेशवाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इनके पिता बालाजी विश्वनाथ पेशवा भी शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक था। १३-१४ वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ घूमते थे।। वेबदुनिया उनके साथ घूमते हुए वह दरबारी चालों व रीतिरिवाजों को आत्मसात करते रहते थे।यह क्रम १९-२० वर्ष की आयु तक चलता रहा। जब बाजीराव के पिता का अचानक निधन हो गया तो मात्र बीस वर्ष की आयु के बाजीराव को शाहूजी महाराज ने पेशवा बना दिया। जब महाराज शाहू ने १७२० में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरांत उसके १९ वर्षीय ज्येष्ठपुत्र बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरंपरागत बन गया। अल्पवयस्क होते हुए भी बाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते रहे। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था; तथा उनमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासंपन्न अनुज श्रीमान चिमाजी साहिब अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया।हिन्दी विश्वकोश, भाग-7, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण 1966, पृष्ठ 339. शिवाजी महाराज डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल रजनीकांत सचिन तेंदुलकर .

बाजीराव प्रथम और मराठी लोग के बीच समानता

बाजीराव प्रथम और मराठी लोग आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): बालाजी बाजी राव, बालाजी विश्वनाथ, मराठा साम्राज्य, शाहु

बालाजी बाजी राव

बालाजी बाजी राव (8 दिसम्बर 1720 – 23 जून 1761) को नाना साहेब के नाम से भी जाना जाता है। वे मराठा साम्राज्य के पेशवा (प्रधानमंत्री) थे। इनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँचा। श्रेणी:मराठा साम्राज्य.

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बालाजी विश्वनाथ

बालाजी विश्वनाथ (1662–1720) प्रथम पेशवा (प्रधानमंत्री के लिए मराठी शब्द) थे।, इन्हें प्रायः पेशवा बालाजी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है। ये एक ब्राह्मण परिवार से थे और १८वीं सदी के दौरान मराठा साम्राज्य का प्रभावी नियंत्रण इनके हाथों में आ गया। बालाजी विश्वनाथ ने शाहुजी की सहायता की और राज्य पर पकड़ मजबूत बनायी। इसके पहले आपसी युद्ध तथा औरंगजेब के अधीन मुगलों की आक्रमणों के कारण मराठा साम्राज्य की स्थिति कमजोर हो चली थी। श्रेणी:मराठा साम्राज्य.

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मराठा साम्राज्य

मराठा साम्राज्य या मराठा महासंघ एक भारतीय साम्राज्यवादी शक्ति थी जो 1674 से 1818 तक अस्तित्व में रही। मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपती शिवाजी महाराज जी ने १६७४ में डाली। उन्होने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। बाद में आये पेशवाओनें इसे उत्तर भारत तक बढाया, ये साम्राज्य १८१८ तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया। .

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शाहु

छत्रपति शाहु (१६८२-१७४९) मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी के पौत्र और सम्भाजी का बेटे थे। ये ये छत्रपति शाहु महाराज के नाम से भी जाने जाते हैं। छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 1874 में हुआ था। उनके बचपन का नाम यशवंतराव था। जब शाहूजी महाराज बालावस्था में थे तभी उनकी माता राधाबाई का निधन तब हो गया । उनके पिता का नाम श्रीमान जयसिंह राव अप्पा साहिब घटगे था। कोलहापुर के राजा शिवजी चतुर्थ की हत्या के पश्चात उनकी विधवा आनन्दीबाई ने उन्हें गोद ले लिया। शाहूजी महाराज को अल्पायु में ही कोल्हापुर की राजगद्दी का उतरदायित्व वहन करना पड़ा। वर्ण-विधान के अनुसार शहूजी शूद्र थे। वे बचपन से ही शिक्षा व कौशल में निपुर्ण थे। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् उन्होने भारत भ्रमण किया। यद्यपि वे कोल्हापुर के महाराज थे परन्तु इसके बावजूद उन्हें भी भारत भ्रमण के दौरान जातिवाद के विष को पीना पड़ा। नासिक, काशी व प्रयाग सभी स्थानों पर उन्हें रूढ़ीवादी ढोंगी ब्राम्हणो का सामना करना करना पड़ा। वे शाहूजी महाराज को कर्मकांड के लिए विवश करना चाहते थे परंतु शाहूजी ने इंकार कर दिया। समाज के एक वर्ग का दूसरे वर्ग के द्वारा जाति के आधार पर किया जा रहा अत्याचार को देख शाहूजी महाराज ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि दलित उद्धार योजनाए बनाकर उन्हें अमल में भी लाए। लन्दन में एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह के पश्चात् शाहूजी जब भारत वापस लौटे तब भी ब्राह्मणो ने धर्म के आधार पर विभिन्न आरोप उन पर लगाए और यह प्रचारित किया गया की समुद्र पार किया है और वे अपवित्र हो गए है। शाहूजी महाराज की ये सोच थी की शासन स्वयं शक्तिशाली बन जाएगा यदि समाज के सभी वर्ग के लोगों की इसमें हिस्सेदारी सुनिश्चित हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सन 1902 में शाहूजी ने अतिशूद्र व पिछड़े वर्ग के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण सरकारी नौकरियों में दिया। उन्होंने कोलहापुर में शुद्रों के शिक्षा संस्थाओ की शृंखला खड़ी कर दी। अछूतों की शिक्षा के प्रसार के लिए कमेटी का गठन किया। शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए छात्रवृति व पुरस्कार की व्यवस्था भी करवाई। यद्यपि शाहूजी एक राजा थे परन्तु उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक समाजसेवक के रूप में व्यतीत किया। समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ प्रारम्भ की। उन्होंने देवदासी प्रथा, सती प्रथा, बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त किया। विधवा विवाह को मान्यता प्रदान की और नारी शिक्षा को महत्वपूर्ण मानते हुए शिक्षा का भार सरकार पर डाला। मन्दिरो, नदियों, सार्वजानिक स्थानों को सबके लिए समान रूप से खोल दिया गया। शाहूजी महाराज ने डॉ.

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बाजीराव प्रथम और मराठी लोग के बीच तुलना

बाजीराव प्रथम 12 संबंध है और मराठी लोग 41 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 7.55% है = 4 / (12 + 41)।

संदर्भ

यह लेख बाजीराव प्रथम और मराठी लोग के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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