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बहादुर शाह ज़फ़र और लाल क़िला

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

बहादुर शाह ज़फ़र और लाल क़िला के बीच अंतर

बहादुर शाह ज़फ़र vs. लाल क़िला

बहादुर शाह ज़फ़र बहादुर शाह ज़फर (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे और उर्दू के माने हुए शायर थे। उन्होंने १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई। . लाल किला या लाल क़िला, दिल्ली के ऐतिहासिक, क़िलेबंद, पुरानी दिल्ली के इलाके में स्थित, लाल रेत-पत्थर से निर्मित है। इस किले को पाँचवे मुग़ल बाद्शाह शाहजहाँ ने बनवाया था। इस के किले को "लाल किला", इसकी दीवारों के लाल रंग के कारण कहा जाता है। इस ऐतिहासिक किले को वर्ष २००७ में युनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर स्थल चयनित किया गया था। .

बहादुर शाह ज़फ़र और लाल क़िला के बीच समानता

बहादुर शाह ज़फ़र और लाल क़िला आम में 6 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): दिल्ली, मुग़ल साम्राज्य, शाह जहाँ, औरंगज़ेब, इस्लाम शाह सूरी, १८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

दिल्ली

दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ी: National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैं: हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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शाह जहाँ

शाह जहाँ (उर्दू: شاہجہان)पांचवे मुग़ल शहंशाह था। शाह जहाँ अपनी न्यायप्रियता और वैभवविलास के कारण अपने काल में बड़े लोकप्रिय रहे। किन्तु इतिहास में उनका नाम केवल इस कारण नहीं लिया जाता। शाहजहाँ का नाम एक ऐसे आशिक के तौर पर लिया जाता है जिसने अपनी बेग़म मुमताज़ बेगम के लिये विश्व की सबसे ख़ूबसूरत इमारत ताज महल बनाने का यत्न किया। सम्राट जहाँगीर के मौत के बाद, छोटी उम्र में ही उन्हें मुगल सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में चुन लिया गया था। 1627 में अपने पिता की मृत्यु होने के बाद वह गद्दी पर बैठे। उनके शासनकाल को मुग़ल शासन का स्वर्ण युग और भारतीय सभ्यता का सबसे समृद्ध काल बुलाया गया है। .

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औरंगज़ेब

अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर (3 नवम्बर १६१८ – ३ मार्च १७०७) जिसे आमतौर पर औरंगज़ेब या आलमगीर (प्रजा द्वारा दिया हुआ शाही नाम जिसका अर्थ होता है विश्व विजेता) के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो अकबर के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। अपने जीवनकाल में उसने दक्षिणी भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करने का भरसक प्रयास किया पर उसकी मृत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य सिकुड़ने लगा। औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शातिशाली व्यक्ति था जिसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत में प्राप्त विजयों के जरिये मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और १५ करोड़ लोगों पर शासन किया जो की दुनिया की आबादी का १/४ था। औरंगज़ेब ने पूरे साम्राज्य पर फ़तवा-ए-आलमगीरी (शरियत या इस्लामी क़ानून पर आधारित) लागू किया और कुछ समय के लिए ग़ैर-मुस्लिमों पर अतिरिक्त कर भी लगाया। ग़ैर-मुसलमान जनता पर शरियत लागू करने वाला वो पहला मुसलमान शासक था। मुग़ल शासनकाल में उनके शासन काल में उसके दरबारियों में सबसे ज्यादा हिन्दु थे। और सिखों के गुरु तेग़ बहादुर को दाराशिकोह के साथ मिलकर बग़ावत के जुर्म में मृत्युदंड दिया गया था। .

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इस्लाम शाह सूरी

इस्लाम शाह सूरी सूर वंश का द्वितीय शासक था। उसका वास्तविक नाम जलाल खान था, एवं वह शेरशाह सूरी का पुत्र था। उसने सात वर्ष (1545–53) दिल्ली पर शासन किया। इस्लाम शाह सूरी के बारह वर्षीय पुत्र फिरोज़ शाह सूरी उसका उत्तराधिकारी था। परंतु गद्दी पर बैठने के कुछ ही दिन बाद शेर शाह के भतीजे मुहम्मद मुबरीज़ द्वारा उसको मौत के घाट उतार दिया गया, एवं मुबरीज़ ने मुहम्मद शाह आदिल के नाम से शासन किया। .

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१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट। १८५७ का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ मे हुई थी और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया।1 सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आस-पास के गांव विशेषकर पांचली, घाट, नंगला, गगोल इत्यादि के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।2 मेरठ की पुलिस बागी हो चुकी थी। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनका स्थानीय होना, (वह मेरठ के निकट स्थित गांव पांचली के रहने वाले थे), पुलिस में उच्च पद पर होना और स्थानीय क्रान्तिकारियों का उनको विश्वास प्राप्त होना कुछ ऐसे कारक थे जिन्होंने धन सिंह को 10 मई 1857 के दिन मेरठ की क्रान्तिकारी जनता के नेता के रूप में उभरने में मदद की। उन्होंने क्रान्तिकारी भीड़ का नेतृत्व किया और रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।3 जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 8 अप्रैल को फासी दे दी गई थी। 10 मई, 1857 को मेरठ में हुए जनक्रान्ति के विस्फोट से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। क्रान्ति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई।4 मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा इस सम्बन्ध में एक स्मरण-पत्र तैयार किया, जिसके अनुसार उन्होंने मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धन सिंह कोतवाल ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था।5 धन सिंह कोतवाल को पुलिस नियंत्रण के छिन्न-भिन्न हो जाने के लिए दोषी पाया गया। क्रान्तिकारी घटनाओं से दमित लोगों ने अपनी गवाहियों में सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गूजर है इसलिए उसने क्रान्तिकारियों, जिनमें गूजर बहुसंख्या में थे, को नहीं रोका। उन्होंने धन सिंह पर क्रान्तिकारियों को खुला संरक्षण देने का आरोप भी लगाया।6 एक गवाही के अनुसार क्रान्तिकरियों ने कहा कि धन सिंह कोतवाल ने उन्हें स्वयं आस-पास के गांव से बुलाया है 7 यदि मेजर विलियम्स द्वारा ली गई गवाहियों का स्वयं विवेचन किया जाये तो पता चलता है कि 10 मई, 1857 को मेरठ में क्रांति का विस्फोट काई स्वतः विस्फोट नहीं वरन् एक पूर्व योजना के तहत एक निश्चित कार्यवाही थी, जो परिस्थितिवश समय पूर्व ही घटित हो गई। नवम्बर 1858 में मेरठ के कमिश्नर एफ0 विलियम द्वारा इसी सिलसिले से एक रिपोर्ट नोर्थ - वैस्टर्न प्रान्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) सरकार के सचिव को भेजी गई। रिपोर्ट के अनुसार मेरठ की सैनिक छावनी में ”चर्बी वाले कारतूस और हड्डियों के चूर्ण वाले आटे की बात“ बड़ी सावधानी पूर्वक फैलाई गई थी। रिपोर्ट में अयोध्या से आये एक साधु की संदिग्ध भूमिका की ओर भी इशारा किया गया था।8 विद्रोही सैनिक, मेरठ शहर की पुलिस, तथा जनता और आस-पास के गांव के ग्रामीण इस साधु के सम्पर्क में थे। मेरठ के आर्य समाजी, इतिहासज्ञ एवं स्वतन्त्रता सेनानी आचार्य दीपांकर के अनुसार यह साधु स्वयं दयानन्द जी थे और वही मेरठ में 10 मई, 1857 की घटनाओं के सूत्रधार थे। मेजर विलियम्स को दो गयी गवाही के अनुसार कोतवाल स्वयं इस साधु से उसके सूरजकुण्ड स्थित ठिकाने पर मिले थे।9 हो सकता है ऊपरी तौर पर यह कोतवाल की सरकारी भेंट हो, परन्तु दोनों के आपस में सम्पर्क होने की बात से इंकार नहीं किया जा सकता। वास्तव में कोतवाल सहित पूरी पुलिस फोर्स इस योजना में साधु (सम्भवतः स्वामी दयानन्द) के साथ देशव्यापी क्रान्तिकारी योजना में शामिल हो चुकी थी। 10 मई को जैसा कि इस रिपोर्ट में बताया गया कि सभी सैनिकों ने एक साथ मेरठ में सभी स्थानों पर विद्रोह कर दिया। ठीक उसी समय सदर बाजार की भीड़, जो पहले से ही हथियारों से लैस होकर इस घटना के लिए तैयार थी, ने भी अपनी क्रान्तिकारी गतिविधियां शुरू कर दीं। धन सिंह कोतवाल ने योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया।10 आदेश का पालन करते हुए अंग्रेजों के वफादार पिट्ठू पुलिसकर्मी क्रान्ति के दौरान कोतवाली में ही बैठे रहे। इस प्रकार अंग्रेजों के वफादारों की तरफ से क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयास नहीं हो सका, दूसरी तरफ उसने क्रान्तिकारी योजना से सहमत सिपाहियों को क्रान्ति में अग्रणी भूमिका निभाने का गुप्त आदेश दिया, फलस्वरूप उस दिन कई जगह पुलिस वालों को क्रान्तिकारियों की भीड़ का नेतृत्व करते देखा गया।11 धन सिंह कोतवाल अपने गांव पांचली और आस-पास के क्रान्तिकारी गूजर बाहुल्य गांव घाट, नंगला, गगोल आदि की जनता के सम्पर्क में थे, धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में गूजर क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। मेरठ के आस-पास के गांवों में प्रचलित किवंदन्ती के अनुसार इस क्रान्तिकारी भीड़ ने धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में देर रात दो बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया12 और जेल को आग लगा दी। मेरठ शहर और कैंट में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था उसे यह क्रान्तिकारियों की भीड़ पहले ही नष्ट कर चुकी थी। उपरोक्त वर्णन और विवेचना के आधार पर हम निःसन्देह कह सकते हैं कि धन सिंह कोतवाल ने 10 मई, 1857 के दिन मेरठ में मुख्य भूमिका का निर्वाह करते हुए क्रान्तिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया था।1857 की क्रान्ति की औपनिवेशिक व्याख्या, (ब्रिटिश साम्राज्यवादी इतिहासकारों की व्याख्या), के अनुसार 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह था जिसका कारण मात्र सैनिक असंतोष था। इन इतिहासकारों का मानना है कि सैनिक विद्रोहियों को कहीं भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था। ऐसा कहकर वह यह जताना चाहते हैं कि ब्रिटिश शासन निर्दोष था और आम जनता उससे सन्तुष्ट थी। अंग्रेज इतिहासकारों, जिनमें जौन लोरेंस और सीले प्रमुख हैं ने भी 1857 के गदर को मात्र एक सैनिक विद्रोह माना है, इनका निष्कर्ष है कि 1857 के विद्रोह को कही भी जनप्रिय समर्थन प्राप्त नहीं था, इसलिए इसे स्वतन्त्रता संग्राम नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रवादी इतिहासकार वी0 डी0 सावरकर और सब-आल्टरन इतिहासकार रंजीत गुहा ने 1857 की क्रान्ति की साम्राज्यवादी व्याख्या का खंडन करते हुए उन क्रान्तिकारी घटनाओं का वर्णन किया है, जिनमें कि जनता ने क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया था, इन घटनाओं का वर्णन मेरठ में जनता की सहभागिता से ही शुरू हो जाता है। समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बन्जारो, रांघड़ों और गूजर किसानों ने 1857 की क्रान्ति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था। परन्तु 1857 में जनसहभागिता की शुरूआत कहाँ और किसके नेतृत्व में हुई ? इस जनसहभागिता की शुरूआत के स्थान और इसमें सहभागिता प्रदर्शित वाले लोगों को ही 1857 की क्रान्ति का जनक कहा जा सकता है। क्योंकि 1857 की क्रान्ति में जनता की सहभागिता की शुरूआत धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में मेरठ की जनता ने की थी। अतः ये ही 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते हैं। 10, मई 1857 को मेरठ में जो महत्वपूर्ण भूमिका धन सिंह और उनके अपने ग्राम पांचली के भाई बन्धुओं ने निभाई उसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। ब्रिटिश साम्राज्य की औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की कृषि नीति का मुख्य उद्देश्य सिर्फ अधिक से अधिक लगान वसूलना था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों ने महलवाड़ी व्यवस्था लागू की थी, जिसके तहत समस्त ग्राम से इकट्ठा लगान तय किया जाता था और मुखिया अथवा लम्बरदार लगान वसूलकर सरकार को देता था। लगान की दरें बहुत ऊंची थी, और उसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था। कर न दे पाने पर किसानों को तरह-तरह से बेइज्जत करना, कोड़े मारना और उन्हें जमीनों से बेदखल करना एक आम बात थी, किसानों की हालत बद से बदतर हो गई थी। धन सिंह कोतवाल भी एक किसान परिवार से सम्बन्धित थे। किसानों के इन हालातों से वे बहुत दुखी थे। धन सिंह के पिता पांचली ग्राम के मुखिया थे, अतः अंग्रेज पांचली के उन ग्रामीणों को जो किसी कारणवश लगान नहीं दे पाते थे, उन्हें धन सिंह के अहाते में कठोर सजा दिया करते थे, बचपन से ही इन घटनाओं को देखकर धन सिंह के मन में आक्रोष जन्म लेने लगा।13 ग्रामीणों के दिलो दिमाग में ब्रिटिष विरोध लावे की तरह धधक रहा था। 1857 की क्रान्ति में धन सिंह और उनके ग्राम पांचली की भूमिका का विवेचन करते हुए हम यह नहीं भूल सकते कि धन सिंह गूजर जाति में जन्में थे, उनका गांव गूजर बहुल था। 1707 ई0 में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात गूजरों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपनी राजनैतिक ताकत काफी बढ़ा ली थी।14 लढ़ौरा, मुण्डलाना, टिमली, परीक्षितगढ़, दादरी, समथर-लौहा गढ़, कुंजा बहादुरपुर इत्यादि रियासतें कायम कर वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक गूजर राज्य बनाने के सपने देखने लगे थे।15 1803 में अंग्रेजों द्वारा दोआबा पर अधिकार करने के वाद गूजरों की शक्ति क्षीण हो गई थी, गूजर मन ही मन अपनी राजनैतिक शक्ति को पुनः पाने के लिये आतुर थे, इस दषा में प्रयास करते हुए गूजरों ने सर्वप्रथम 1824 में कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकदार विजय सिंह और कल्याण सिंह उर्फ कलवा गूजर के नेतृत्व में सहारनपुर में जोरदार विद्रोह किये।16 पश्चिमी उत्तर प्रदेष के गूजरों ने इस विद्रोह में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया परन्तु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1857 के सैनिक विद्रोह ने उन्हें एक और अवसर प्रदान कर दिया। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेष में देहरादून से लेकिन दिल्ली तक, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी तक। पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गूजर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। हजारों की संख्या में गूजर शहीद हुए और लाखों गूजरों को ब्रिटेन के दूसरे उपनिवेषों में कृषि मजदूर के रूप में निर्वासित कर दिया। इस प्रकार धन सिंह और पांचली, घाट, नंगला और गगोल ग्रामों के गूजरों का संघर्ष गूजरों के देशव्यापी ब्रिटिष विरोध का हिस्सा था। यह तो बस एक शुरूआत थी। 1857 की क्रान्ति के कुछ समय पूर्व की एक घटना ने भी धन सिंह और ग्रामवासियों को अंग्रेजी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित किया। पांचली और उसके निकट के ग्रामों में प्रचलित किंवदन्ती के अनुसार घटना इस प्रकार है, ”अप्रैल का महीना था। किसान अपनी फसलों को उठाने में लगे हुए थे। एक दिन करीब 10 11 बजे के आस-पास बजे दो अंग्रेज तथा एक मेम पांचली खुर्द के आमों के बाग में थोड़ा आराम करने के लिए रूके। इसी बाग के समीप पांचली गांव के तीन किसान जिनके नाम मंगत सिंह, नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह (अथवा भज्जड़ सिंह) थे, कृषि कार्यो में लगे थे। अंग्रेजों ने इन किसानों से पानी पिलाने का आग्रह किया। अज्ञात कारणों से इन किसानों और अंग्रेजों में संघर्ष हो गया। इन किसानों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक सामना कर एक अंग्रेज और मेम को पकड़ दिया। एक अंग्रेज भागने में सफल रहा। पकड़े गए अंग्रेज सिपाही को इन्होंने हाथ-पैर बांधकर गर्म रेत में डाल दिया और मेम से बलपूर्वक दायं हंकवाई। दो घंटे बाद भागा हुआ सिपाही एक अंग्रेज अधिकारी और 25-30 सिपाहियों के साथ वापस लौटा। तब तक किसान अंग्रेज सैनिकों से छीने हुए हथियारों, जिनमें एक सोने की मूठ वाली तलवार भी थी, को लेकर भाग चुके थे। अंग्रेजों की दण्ड नीति बहुत कठोर थी, इस घटना की जांच करने और दोषियों को गिरफ्तार कर अंग्रेजों को सौंपने की जिम्मेदारी धन सिंह के पिता, जो कि गांव के मुखिया थे, को सौंपी गई। ऐलान किया गया कि यदि मुखिया ने तीनों बागियों को पकड़कर अंग्रेजों को नहीं सौपा तो सजा गांव वालों और मुखिया को भुगतनी पड़ेगी। बहुत से ग्रामवासी भयवश गाँव से पलायन कर गए। अन्ततः नरपत सिंह और झज्जड़ सिंह ने तो समर्पण कर दिया किन्तु मंगत सिंह फरार ही रहे। दोनों किसानों को 30-30 कोड़े और जमीन से बेदखली की सजा दी गई। फरार मंगत सिंह के परिवार के तीन सदस्यों के गांव के समीप ही फांसी पर लटका दिया गया। धन सिंह के पिता को मंगत सिंह को न ढूंढ पाने के कारण छः माह के कठोर कारावास की सजा दी गई। इस घटना ने धन सिंह सहित पांचली के बच्चे-बच्चे को विद्रोही बना दिया।17 जैसे ही 10 मई को मेरठ में सैनिक बगावत हुई धन सिंह और ने क्रान्ति में सहभागिता की शुरूआत कर इतिहास रच दिया। क्रान्ति मे अग्रणी भूमिका निभाने की सजा पांचली व अन्य ग्रामों के किसानों को मिली। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने तोपों से हमला किया। रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को बाद में फांसी की सजा दे दी गई।18 आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक स्वाधीनता आन्दोलन और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। पूरे गांव को लगभग नष्ट ही कर दिया गया। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। संदर्भ एवं टिप्पणी 1.

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

बहादुर शाह ज़फ़र और लाल क़िला के बीच तुलना

बहादुर शाह ज़फ़र 26 संबंध है और लाल क़िला 35 है। वे आम 6 में है, समानता सूचकांक 9.84% है = 6 / (26 + 35)।

संदर्भ

यह लेख बहादुर शाह ज़फ़र और लाल क़िला के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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