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प्रागैतिहासिक बुंदेली समाज और संस्कृति और बुन्देलखण्ड

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

प्रागैतिहासिक बुंदेली समाज और संस्कृति और बुन्देलखण्ड के बीच अंतर

प्रागैतिहासिक बुंदेली समाज और संस्कृति vs. बुन्देलखण्ड

बुंदेलखंड नर्मदा, चंबल, बेतवा और केन आदि नदियों से घिरा हुआ है और प्राचीन काल में प्रसिद्ध मध्यप्रदेश का एक अंग था। बुंदेलखंड के आदिम निवासियों #ौर उनकी संस्कृति का स्वरुप निर्णय करने में तीन प्रकार की सामग्री मिलती है। पुरातात्विक चित्र और औज़ार तथा वैदिक एवं पौरामिक साहित्य में आये उल्लेख। भित्ति चित्रों और औज़ारों के आधार पर नृवंशीय एवं समाजशास्रीय उपलब्धियों हुई हैं तथा पौराणिक साहित्य के आदिम समाज की धार्मिक उपलब्धियों का प्रमाणीकरण हो जाता है। एतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से बुंदेली समाज का मिला-जुला रूप इस प्रकार आता ह। ऐतिहासिक युग से बहुत पहले बुंदेलखंड की आदिम संस्कृति को दर्शाने वाले वे शिलागृह हैं जिनका पता बीसवीं शताब्दी के छठे दशक में लगा है। आदिम निवासी प्राय: पर्वत की गुफाओं में रहते थे। बुंदेलखंड के सागर, पन्ना, होशंगाबाद, छतरपुर, रायसेन आदि स्थानों के समीप अनेक भित्ती चित्र प्राप्त हुए हैं। इन चित्रों का निर्माण पं० कृष्णदत्त वाजपेयी के मतानुसार कम से कम ६००० ई० पू० से प्रचलित हो गया था। उन्होंने मध्यप्रदेश में पाये जाने वाली भित्ति-चित्र की गुफाओं का वैज्ञानिक ढंग से आकलन करके निर्णय दिया है कि प्राचीन गुफा-चित्रों से वहां निवास करने वालों की जीवन-चर्चा तथा रुचि का पता चलता है। मुख्यतया जो दृश्य इन चित्रों में मिलते हैं - विविध आयुधों से पशु पक्षियों का शिकार, जानवरों की लड़ाई, मानवों में पारंपरिक युद्ध, पशुओं पर सवाली, गीत, नृत्य, पूजन, मधु-संचय था घरेलू जीवन-संबंधी अनेक दृश्य। लोगों के जीवन-निर्वाह का मुख्य साधन शिकार था। शिकार किये जाने वाले जानवर बाघ, हिरन, भैंसा, हाथी, गैंडा और शूकर विशेष हैं। भित्ति चित्र दो प्रकार के हैं - एक वे जिनमें शिकार और रक्षा के लिये विविध आयुधों का प्रयोग है, दूसरे वे, जिनमें युद्ध के दृश्य चित्रित है। इनमें घोड़ों पर सवार सरदार अपने सिर के ऊपर छत लगाये जा रहे हैं। कई जगह शिकारियों और योद्धाओं के विचित् पहनावे मिले हैं। बरौदा गाँव (जिला सागर) के समीप के गुफा चित्र में एक योद्धा ऊँची टोपी और लम्बा कोट पहने दिखाया गया है। अनेक चित्रों में हाथी पर सवार लोग दिखाए गए हैं। सागर जिले के बरथावली नामक स्थान में एक रोचक गुहा-चित्र है, जिसमें नदी का खेल प्रदर्शित है। एक व्यक्ति का सिर नीचे और पैर ऊपर किये हुए दिखाया गया है। किन्हीं किन्हीं चित्रों में घरेलू जीवन, खान-पान, नृत्य, गायन आदि के चित्रण हैं। विद्वानों के मत से भित्ति-चित्रों के माध्यम से हमें जिस आध समाज का अनुमान लगता है। वह अत्यंत परवर्ती समाज है। मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की सभ्यता से बहुत पहले इस भू-भाग पर नर्मदा और चम्बल की प्राचीन सभ्यताएं प्रचलित थीं जिनका समय प्राप्त प्राचीनतम पत्थरों के औज़ारों के आधार पर लगभग पाँच लाख ई० पू० माना गया है। (क) पूर्व पाषाण युग - पुरातत्व सामग्री के आधार पर इस युग का समय ५ लाख वर्ष पूर्व माना गया है। नर्मदा घाटी के अवशेष होशंगाबाद, नरसिंहपुर के बीच भुतरा, सागर, दमोह, रीवा तथा बुंदेलखंड के क्षेत्रो में मिले हैं जिन्हें बी. बुन्देलखण्ड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है।इसका प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है.

प्रागैतिहासिक बुंदेली समाज और संस्कृति और बुन्देलखण्ड के बीच समानता

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संदर्भ

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