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प्रबन्धन और संचार प्रबंधन

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

प्रबन्धन और संचार प्रबंधन के बीच अंतर

प्रबन्धन vs. संचार प्रबंधन

व्यवसाय एवं संगठन के सन्दर्भ में प्रबन्धन (Management) का अर्थ है - उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए लोगों के कार्यों में समन्वय करना ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। प्रबन्धन के अन्तर्गत आयोजन (planning), संगठन-निर्माण (organizing), स्टाफिंग (staffing), नेतृत्व करना (leading या directing), तथा संगठन अथवा पहल का नियंत्रण करना आदि आते हैं। संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर-लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिर्माणकर्ता, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ति सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सकें। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंधित वह कार्य सम्मिलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। प्रबंधक अलग-अलग कार्यों पर भिन्न समय लगाते हैं। संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अधिक समय लगाते हैं। kisi bhi business ko start krne se phle prabandh yaani ke managements ki jaroort hoti h . 1) समन्वय में सुविधा - कृत्यों तथा विभागों का समाकलन करते समय समन्वय का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। प्रबन्ध का यह मुख्य कार्य है कि वह कर्मचारी के अलग-अलग कार्यों, प्रयासों, हितों व दृष्टिकोण में एक उचित समन्वय स्थापित करे। संगठन का निर्माण करते समय उपक्रम की क्रियाओं का वर्गीकरण एवं समूहीकरण किया जाता है। उपक्रम के सभी विभाग सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं जिसके परिणामस्वरूप समन्वय का कार्य सुविधाजनक हो जाता है। (2) अधिकार प्रत्यायोजन में सुविधा - एक अच्छे संगठन में प्रत्येक अधिकारी को अपने कार्यक्षेत्र, उद्देश्यों एवं अधिकारों का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है। वह अपने अधीनस्थों को आवश्यक कार्य एवं अधिकार सौंप सकता है। कुशल संगठन अधिकारों के प्रत्यायोजन को सुगम बनाता है। एक कुशल संगठन में एक अधिकारी को यह ज्ञात होता है कि उनके अधीनस्थ कौन-कौन व्यक्ति हैं और किसे क्या-क्या कार्य करना है। सुदृढ़ संगठन यथार्थ एवं प्रभावपूर्ण प्रत्यायोजन को सुविधाजनक बनाता है। (3) भ्रष्टाचार की समाप्ति - संगठन के विभिन्न स्तरों पर निरन्तर नियंत्रण का कार्य किया जाता है। अच्छा संगठन अपने कर्मचारियों में वैयक्तिक गुणों, परिश्रम, दायित्व, भावना आदि को प्रोत्साहित करके भ्रष्टाचार एवं निष्क्रियता को समाप्त करता है। (4) संचार में सुविधा - संगठन के द्वारा संस्था में अधिकारी, अधीनस्थ संबंध स्थापित हो जाते हैं एवं औपचारिक संचार के मार्गों का निर्धारण हो जाता है। जिसके कारण ऊपर से नीचे की ओर आदेशों के प्रवाह में और नीचे से ऊपर की और कर्मचारियों के विचारों, सुझावों एवं समस्याओं के प्रवाह में सुवि धा होती है। (5) अच्छे मानवीय संबंधों को बढ़ावा - प्रभावी संगठन संरचना कार्मिकों में समूह भावना का विकास करती है, एक साथ मिलकर कार्य करने की प्रेरणा देती है तथा मानव के साथ मानवता का व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती है। अधिकार-दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या, कुशल संचार, प्रत्यायोजन, रूचि के अनुसार कार्य-वितरण, आदेश-निर्देशों की एकता आदि घटकों से श्रेष्ठ मानवीय संबंधों का विकास होता है। (6) मनोबल का विकास - स्वस्थ संगठन में कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। कर्मचारियों को उनकी योग्यता के अनुरूप ही कार्य दिया जाता है जिससे कर्मचारियों को अपने दायित्वों एवं अधिकारों का स्पष्ट ज्ञान होता है। अतः कर्मचारियों को अच्छा कार्य करने पर प्रशंसा एवं खराब कार्य पर चेतावनी मिलती है जिससे कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है। (7) विशिष्टीकरण को बढ़ावा - संगठन संरचना का निर्माण श्रम विभाजन के आधार पर किया जाता है। संगठन संरचना का मुख्य आधार श्रम विभाजन होता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष कार्य ही करता है। विशिष्टीकरण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ती है तथा अधिक उत्पादन का मार्ग प्रशस्त होता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्तियों की कुशलता बढ़ती है। कुशलता बढ़ने से उत्पादन अधिक होता है तथा प्रति इकाई लागत घटती है जिससे लोगों को कम आय में अधिक वस्तुएँ प्राप्त होती है एवं जीवन स्तर में वृद्धि होती है। (8) उपक्रम के कार्यों को व्यवस्थित करना - संगठन प्रत्येक व्यक्ति के लिए निश्चित कार्य, निश्चित स्थान तथा निश्चित साधनों की व्यवस्था करता है, जिससे उपक्रम के कार्य व्यवस्थित रूप से चलते रहते हैं। संगठन व्यवस्था को जन्म देता है। संगठन का अभाव ही अव्यवस्था को जन्म देता है। (9) विकास को बढ़ावा - संगठन विकास का मूल मंत्र है। उपक्रम का विकास संगठन की कुशलता पर निर्भर करता है। बड़े-बड़े उपक्रमों के विकास का इतिहास अच्छे एवं कुशल संगठन की ही कहानी है। कोई भी उपक्रम संगठन के अभाव में विकास की आशा नहीं कर सकता है। (10) रचनात्मक विचारधारा को प्रोत्साहन - संगठन में कार्य करने वाले कर्मचारी रचनात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। कर्मचारियों की इच्छा के अनुरूप कार्य मिलने पर वे उसे सम्पन्न करने में सक्षम होते हैं जिससे कर्मचारियों को संतोष प्राप्त होता है। अतः उनकी सोचने समझने की शक्ति बढ़ती है फलस्वरूप रचनात्मक विचारों को प्रोत्साहन मिलता है। (11) व्यवस्था का निर्माण - एक संस्था में छोटी सी गलती समस्त पूंजी विनियोजन को व्यर्थ बना सकती है। अतः संगठन के द्वारा ही मतभेदों एवं अनियमितताओं को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है। (12) प्रबन्धकीय कार्य क्षमता में वृद्धि - कर्मचारियों में मधुर संबंध स्थापित करना, कार्य की आवश्यकता के अनुरूप कर्मचारियों की भर्ती, कार्र्यों का वैज्ञानिक आधार पर बंटवारा आदि के द्वारा प्रबन्धकीय कार्य-क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। (13) साधनों का अनुकूलतम उपयोग - कर्मचारियों की इच्छा के अनुरूप कार्य मिलने पर उसे वे भली-भांति सम्पन्न करने में सक्षम होते हैं तथा उचित समन्वय के द्वारा कार्यों के दोहराव व अपव्यय को समाप्त किया जा सकता है जिसके कारण साधनों का अनुकूलतम उपयोग होता है। (14) व्यक्तिगत योग्यताओं के मापन का आधार - जब कर्मचारियों को कार्यभार सौंप दिया जाता है तो कर्मचारियों को अपने दायित्व का बोध हो जाता है अतः यह आसानी से पता किया जा सकता है कि कर्मचारी ने सौंपे गये कार्य को किस सीमा तक पूरा किया है जिसके फलस्वरूप कर्मचारी की व्यक्तिगत योग्यता एवं क्षमता का सही मापन हो जाता है। (15) सामूहिक प्रयासों की प्रभावशीलता - संगठित प्रयासों के माध्यम से ही उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है। इसके माध्यम से ही व्यक्तिगत प्रयासों का एकीकरण किया जाता है। (16) नियंत्रण में सुविधा - कार्यों, अधिकारों एवं दायित्वों के निश्चित होने के कारण संगठन के विभिन्न स्तरों पर अनावश्यक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है तथा उच्च प्रबन्धकों को केवल महत्त्वपूर्ण नियंत्रण केन्द्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। (17) मानवीय प्रयासों का समुचित उपयोग - विशिष्टीकरण के माध्यम से जब कार्मिकों को अपनी योग्यता, अनुभव एवं रुचि के अनुसार कार्य मिल जाता है तो वे सौंपे गये कृत्य का अपनी योग्यता, कुशलता एवं अनुभव का पूरा उपयोग करके ठीक ढंग से निष्पादन करते हैं। इस प्रकार सुदृढ़ संगठन से “सही व्यक्ति को सही कार्य“ प्रदान करने से उनके प्रयास का समुचित उपयोग सम्भव होता है और समय, श्रम एवं धन का दुरुपयोग नहीं होता। (18) तकनीकी सुधारों का समुचित उपयोग - इस वैज्ञानिक युग में शोध एवं अनुसंधानों के कारण औद्योगिक जगत में आये दिन परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों, सुधारों एवं विकसित नवीन तकनीकों की प्रयुक्ति न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए आवश्यक हो जाती है। प्रभावी संगठन द्वारा ही इन नवीन सुधारों का लाभ उठाया जा सकता है। .

प्रबन्धन और संचार प्रबंधन के बीच समानता

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प्रबन्धन और संचार प्रबंधन के बीच तुलना

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संदर्भ

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