पोवाड़ा और लोककला
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पोवाड़ा और लोककला के बीच अंतर
पोवाड़ा vs. लोककला
पोवाड़ा महाराष्ट्र का प्रसिद्ध लोक गायन है। मुख्यतः यह शिवाजी महाराज के युद्ध कौशल का यशोगान तथा स्तुति है। पोवाडा वीर रस के गायन एवं लेखन प्रकार है जो महाराष्ट्र में लोकप्रिय है। मूल रूप से दलित समुदायों द्वारा गाये जाने वाले गाथागीतों की इस विधा ने शिवाजी महाराज को युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। पोवाडा का प्राचीन मराठी भाषा में अर्थ होता है गुणगान करना। मराठी में पोवाड़ा गाने वालों को शाहिर कहा जाता है। शाहिर शब्द उतना ही पुराना है जितनी कि मराठी संस्कृति। शाहिर साहित्य को मराठी कविताओं का उदयकाल कहा जाता है। मराठी भाषिको को यह स्फूर्ति देणे वाला गीत प्रकार है। भारत में इसका उदय १७वी शताब्धि में हुआ। इसमें ऐतिहासिक घटना सामने रखकर गीत की रचना की जाती है। इस गीत प्रकार की रचना करनेवाले गीतकारों को शाहिर कहां जाता है। इसी दौरान यह व्यवसाय करनेवाले जो गायक सामने आये है उन्हें गोंधली कहते है। पोवाडा मराठी साहित्य की एक प्रमुख विधा है पोवाडा जिसे गोंधल (गोंधिया) दलित जाति के लोग गाते थे पर आगे चलकर, शिवाजी के बाद, सभी जातियों के लोगों ने इसे अपना लिया। युद्धों का वर्णन पोवाडा गायकों का प्रमुख विषय होता था जिसका वे बेहद सजीव और ओजपूर्ण वर्णन करते थे, वह भीतरी कलहों और बाहरी आक्रमणों का काल था। अतः अपने आश्रयदाताओं को उनकी पूरी ताकत से युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करना, उस काल के कवि का प्रमुख कर्तव्य-सा बन गया था। लेकिन महात्मा फुले ने पोवाडा का जनजागृति के लिए इस्तेमाल किया. भारत की अनेक जातियों व जनजातियों में पीढी दर पीढी चली आ रही पारंपरिक कलाओं को लोककला कहते हैं। इनमें से कुछ आधुनिक काल में भी बहुत लोकप्रिय हैं जैसे मधुबनी और कुछ लगभग मृतप्राय जैसे जादोपटिया। कलमकारी, कांगड़ा, गोंड, चित्तर, तंजावुर, थंगक, पातचित्र, पिछवई, पिथोरा चित्रकला, फड़, बाटिक, मधुबनी, यमुनाघाट तथा वरली आदि भारत की प्रमुख लोक कलाएँ हैं। .
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