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पूर्वी अंटार्कटिका

सूची पूर्वी अंटार्कटिका

पूर्वी अंटार्कटिका (East Antarctica) अंटार्कटिका महाद्वीप का पूर्वी दो-तिहाई हिस्सा है। पार-अंटार्कटिक पर्वतमाला अंटार्कटिका को दो भागों में बांटती है। पूर्वी अंटार्कटिका इस पर्वतमाला से पूर्व में स्थित भाग है। इस के विपरीत पश्चिमी अंटार्कटिका इस पर्वतमाला की दूसरी ओर है और यहाँ अंटार्कटिका के कुल क्षेत्रफल का लगभग एक-तिहाई हिस्सा आता है। अंटार्कटिका के इन दोनों भागों के बीच पूर्वी अंटार्कटिका की औसत ऊँचाई अधिक है और महान गामबूर्तसेव पर्वतमाला पूर्वी अंटार्कटिका के ठीक मध्य में स्थित है। हमारी पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव भी पूर्वी अंटार्कटिका में ही स्थित है। .

16 संबंधों: दक्षिणी ध्रुव, पश्चिमी अंटार्कटिका, पार-अंटार्कटिक पर्वत, पृथ्वी, पेंगुइन, भूमंडलीय ऊष्मीकरण, महाद्वीप, लाइकेन, शैवाल, सूत्रकृमि, हरिता, हिमचादर, गामबूर्तसेव पर्वतमाला, अंटार्कटिक सन्धि तंत्र, अंटार्कटिका, अकशेरुकी प्राणी

दक्षिणी ध्रुव

दक्षिणी ध्रुवदक्षिणी ध्रुव पृथ्वी का सबसे दक्षिणी छोर है। इसे अंटार्कटिका के नाम से भी जाना जाता है। तथ्यानुसार दो मुख्य दक्षिणी ध्रुव हैं, एक स्थिर और दूसरा जो घूमता है। चुम्बकीय उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव वहाँ होते है जहाँ पर कम्पास संकेत करता है। ये ध्रुव वर्ष प्रतिवर्ष घूमते रहते हैं। केवल कम्पास को देखकर ही लोग यह बता सकते हैं की वे इन ध्रुवों के निकट है। दक्षिणी ध्रुव से सारी दिशाएँ उत्तर में होती हैं, पर ध्रुवों के बिल्कुल निकट कम्पास भरोसेमंद नहीं है। भौगोलिक उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव वे ध्रुव हैं जिनपर पृथ्वी घूमती है, वहीं जिन्हें लोग एक ग्लोब पर देखते हैं कहाँ पर साती उत्तर/दक्षिण की रेखाएँ मिलती है। ये ध्रुव एक ही स्थान पर रहते है और यही वे ध्रुव होते हैं जब हम केवल उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। लोग कुछ विशेष तारों को देखकर ये बता सकते हैं कि वे इन ध्रुवों पर है। ध्रुवों पर एक तारा समान ऊँचाई पर चक्कर लगाता है और क्षितिज पर कबी भी अस्त नहीं होता। दक्षिणी ध्रुव पर पड़ने वाला महाद्वीप है अंटार्कटिका। यह बहुत ही ठंडा स्थान है। सर्दियों के दौरान कई सप्ताहों तक यहाँ सूर्योदय नहीं होता। और गर्मियों के दौरान, दिसंबर के अंत से मार्च के अंत तक सूर्यास्त नहीं होता। स्वयं ध्रुवीय बिन्दु पर भी छः महीने की सर्दियाँ होती हैं और इतने समय तक सूर्योदय नहीं होता। और जब सूर्योदय होता है तो, यह छः महीनों की लंबी गर्मियाँ आरंभ होती हैं, जब कोई व्यक्ति दिन के किसी भी समय खड़े होकर सूरज को क्षितिज के ऊपर घड़ी की उल्टी दिशा में अपने चारो ओर घूमते हुए देख सकता है। दक्षिणी ध्रुव पर पहुँचना कठिन है। उत्तरी ध्रुव के विपरीत, जोकि समुद्र और समतल समुद्री बर्फ से ढका होता है, दक्षिणी ध्रुव एक पर्वतीय महाद्वीप पर स्थित है। यह महाद्वीप है अंटार्कटिका। यह बर्फ की मोटी चादर से ढका है और अपने केंद्र पर तो १.५ किमी से भी मोटी बर्फ से। दक्षिणी ध्रुव बहुत ऊँचे स्थान पर है और बहुत वातमय (तूफ़ानी)। यह उन स्थानों से बहुत दूर है जहाँ पर वैज्ञानिकों की बस्तियाँ हैं और यहाँ जाने वाले जहाज़ों को प्रायः बर्फ़ीले समुद्री रास्ते से होकर जाना पड़ता है। तट पर पहुँचने के बाद भी भूमार्ग से यात्रा करने वाले खोजियों को ध्रुव तक पहुँचने के लिए १,६०० किलोमीटर से भी अधिक की यात्रा करनी पड़ती है। उन्हें तैरते हिमखंडों को पार करके बर्फ़ से ढकी भूमि और फ़िर सीधे खड़े पर्वतीय हिमनदों को जो टूटी, मुड़ी हुई समुद्र में गिरती बर्फ से ढके होते हैं और तेज़ जमाने वाली बर्फीली हवाओं वाले पठार को भी पार करना होता है। .

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पश्चिमी अंटार्कटिका

पश्चिमी अंटार्कटिका (West Antarctica) अंटार्कटिका महाद्वीप का पश्चिमी एक-तिहाई हिस्सा है। पार-अंटार्कटिक पर्वतमाला अंटार्कटिका को दो भागों में बांटती है। पश्चिमी अंटार्कटिका इस पर्वतमाला से पश्चिम में स्थित भाग है। इस के विपरीत पूर्वी अंटार्कटिका इस पर्वतमाला की दूसरी ओर है और यहाँ अंटार्कटिका के कुल क्षेत्रफल का लगभग दो-तिहाई हिस्सा आता है। अंटार्कटिका के इन दोनों भागों के बीच पूर्वी अंटार्कटिका की औसत ऊँचाई अधिक है। .

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पार-अंटार्कटिक पर्वत

पार-अंटार्कटिक पर्वत (Transantarctic Mountains) अंटार्कटिका की एक पर्वतमाला है जो पश्चिमी अंटार्कटिका और पूर्वी अंटार्कटिका के क्षेत्रों को एक-दूसरे से विभाजित करती है। यह कुछ जगहों को छोड़कर अंटार्कटिका के एक छोर में तट पर स्थित केप अडेर से लेकर दूसरे छोर के तट तक जाती है। इसकी कई उपशृंखलाएँ हैं।, Timothy M. Kusky, Katherine E. Cullen, pp.

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पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

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पेंगुइन

पेंगुइन (पीढ़ी स्फेनिस्कीफोर्मेस, प्रजाति स्फेनिस्कीडाई) जलीय समूह के उड़ने में असमर्थ पक्षी हैं जो केवल दक्षिणी गोलार्द्ध, विशेष रूप से अंटार्कटिक में पाए जाते हैं। पानी में जीवन के लिए अत्याधिक अनुकूलित, पेंगुइन विपरीत रंगों, काले और सफ़ेद रंग के बालों वाला पक्षी है और उनके पंख हाथ (फ्लिपर) बन गये हैं। पानी के नीचे तैराकी करते हुए अधिकांश पेंगुइन पकड़ी गयी छोटी मछलियों, मछलियों, स्क्विड और अन्य जलीय जंतुओं को भोजन बनाते हैं। वे अपना लगभग आधा जीवन धरती पर और आधा जीवन महासागरों में बिताते हैं। हालांकि सभी पेंगुइन प्रजातियां दक्षिणी गोलार्द्ध की मूल निवासी हैं, लेकिन ये केवल अंटार्कटिक जैसे ठंडे मौसम में ही नहीं पाई जातीं. वास्तव में, पेंगुइन की कुछ प्रजातियों में अब केवल कुछ ही दक्षिण में रहती हैं। कई प्रजातियां शीतोष्ण क्षेत्र में पाई जाती हैं और एक प्रजाति गैलापागोस पेंगुइन भूमध्य रेखा के पास रहती है। सबसे बड़ी जीवित प्रजाति एम्परर पेंगुइन (एप्टेनोडाईट्स फ़ोर्सटेरी): है - वयस्क की उंचाई औसतन 1.1 मी (3 फुट 7 इंच) लंबा और वजन 35 किलोग्राम (75 पौंड) होता है। सबसे छोटी प्रजाति लिटिल ब्लू पेंगुइन (यूडिपटुला माइनर), फेयरी पेंगुइन के नाम से भी जानी जाती है, की उंचाई लगभग 40 सेमी (16 इंच) और वजन 1 किलोग्राम (2.2 पौंड) होता है। वर्तमान में पाए जाने वाले पेंगुइनों में, बड़े पेंगुइन ठंडे क्षेत्रों में निवास करते हैं, जबकि छोटे पेंगुइन आम तौर पर शीतोष्ण या उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी पाए जाते हैं (इसे भी देखें बर्गमैन'ज़ रूल). कुछ प्रागैतिहासिक प्रजातियां आकार में व्यस्क मानव जितनी उंची तथा वजनी थीं (अधिक जानकारी के लिए नीचे देखें). ये प्रजाति अंटार्कटिक क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं थी; बल्कि इसके विपरीत, अंटार्कटिक उपमहाद्वीप के क्षेत्रों में ज्यादा विविधता मिलती थी और कम से कम एक विशाल पेंगुइन उस क्षेत्र में मिला है जो भूमध्य रेखा के 35 से 2000 किमी दक्षिण से ज्यादा दूर नहीं था तथा जहां का वातावरण आज के अपेक्षाकृत ज्यादा गरम था। .

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भूमंडलीय ऊष्मीकरण

वैश्‍विक माध्‍य सतह का ताप 1961-1990 के सापेक्ष से भिन्‍न है 1995 से 2004 के दौरान औसत धरातलीय तापमान 1940 से 1980 तक के औसत तापमान से भिन्‍न है भूमंडलीय ऊष्मीकरण (या ग्‍लोबल वॉर्मिंग) का अर्थ पृथ्वी की निकटस्‍थ-सतह वायु और महासागर के औसत तापमान में 20वीं शताब्‍दी से हो रही वृद्धि और उसकी अनुमानित निरंतरता है। पृथ्‍वी की सतह के निकट विश्व की वायु के औसत तापमान में 2005 तक 100 वर्षों के दौरान 0.74 ± 0.18 °C (1.33 ± 0.32 °F) की वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन पर बैठे अंतर-सरकार पैनल ने निष्कर्ष निकाला है कि "२० वीं शताब्दी के मध्य से संसार के औसत तापमान में जो वृद्धि हुई है उसका मुख्य कारण मनुष्य द्वारा निर्मित ग्रीनहाउस गैसें हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही विश्वव्यापी बढ़ोतरी को 'ग्लोबल वार्मिंग' कहा जा रहा है। हमारी धरती सूर्य की किरणों से उष्मा प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल से गुजरती हुईं धरती की सतह से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण बना लेती हैं जो लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव। आईपीसीसी द्वारा दिये गये जलवायु परिवर्तन के मॉडल इंगित करते हैं कि धरातल का औसत ग्लोबल तापमान 21वीं शताब्दी के दौरान और अधिक बढ़ सकता है। सारे संसार के तापमान में होने वाली इस वृद्धि से समुद्र के स्तर में वृद्धि, चरम मौसम (extreme weather) में वृद्धि तथा वर्षा की मात्रा और रचना में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के अन्य प्रभावों में कृषि उपज में परिवर्तन, व्यापार मार्गों में संशोधन, ग्लेशियर का पीछे हटना, प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा आदि शामिल हैं। .

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महाद्वीप

महाद्वीपों को समाहित या विभाजित किया जा सकता है, उदाहरणतः यूरेशिया को प्रायः यूरोप तथा एशिया में विभाजित किया जाता है लाल रंग में। बक्मिन्स्टर फुलर द्वारा डायमैक्सियम नक्शा जो दर्शित करता है भूमिखण्ड कम से कम विरूपण समेत, एक एक लगातार महाद्वीप में बंटे हुए विश्व के महाद्वीप महाद्वीप (en:Continent) एक विस्तृत ज़मीन का फैलाव है जो पृथ्वी पर समुद्र से अलग दिखाई देतै हैं। महाद्वीप को व्यक्त करने के कोई स्पष्ट मापदण्ड नहीं है। अलग-अलग सभ्यताओं और वैज्ञानिकों नें महाद्वीप की अलग परिभाषा दी है। पर आम राय ये है कि एक महाद्वीप धरती बहुत बड़ा का विस्तृत क्षेत्र होता है जिसकी सीमाएं स्पष्ट पहचानी जा सके.

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लाइकेन

लाइकेन से आच्छादित वृक्ष लाइकेन (Lichen) निम्न श्रेणी की ऐसी छोटी वनस्पतियों का एक समूह है, जो विभिन्न प्रकार के आधारों पर उगे हुए पाए जाते हैं। इन आधारों में वृक्षों की पत्तियाँ एवं छाल, प्राचीन दीवारें, भूतल, चट्टान और शिलाएँ मुख्य हैं। यद्यपि ये अधिकतर धवल रंग के होते हैं, तथापि लाल, नारंगी, बैंगनी, नीले एवं भूरे तथा अन्य चित्ताकर्षक रंगों के लाइकेन भी पाए जाते हैं। इनकी वृद्धि की गति मंद होती है एंव इनके आकार और बनावट में भी पर्याप्त भिन्नता रहती है। .

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शैवाल

एक शैवाल लौरेंशिया शैवाल (Algae /एल्गी/एल्जी; एकवचन:एल्गै) सरल सजीव हैं। अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं। ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं। ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल, वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं। .

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सूत्रकृमि

एक प्रकार का गोल कृमि सूत्रकृमि या गोल कृमि (नेमैटोड) अपृष्ठवंशी, जलीय, स्थलीय या पराश्रयी प्राणी है। ये सूदूर अन्टार्कटिक तथा महासागरों के गर्तों में भी देखें गएं हैं। इनका शरीर अखंडित, लम्बे पतले धागे जैसा तथा बेलनाकार होता है, इसलिए इसे राउण्डवर्म कहा जाता है। इनको प्राणि जगत में एक संघ की मर्यादा प्राप्त हैं। इनकी लगभग ८०,००० जातियाँ हैं जिसमें से १५,००० से अधिक परजीवी है। इस जन्तु में नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं जिसमें नर छोटा तथा पीछे का भाग मुड़ा़ हुआ रहता है किन्तु मादा का शरीर सीधा होता है। नर का जनन अंग क्लोयका के पास होता है किन्तु मादा का जनन अंग वल्वा के रूप में बाहर की ओर खुलता है। इनमें रक्त-परिवहन तंत्र और श्वसन तंत्र नहीं पाये जाते हैं इसलिए श्वसन का कार्य विसरण के द्वारा होता है। .

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हरिता

वन में मॉस चट्टान पर हरिता (मॉस) हरिता या मॉस (Moss) अपुष्पक पादप है। ब्रायोफाइटा वर्ग के इस प्रचलित पौधे में वास्तविक जड़ों का अभाव रहता है। यह सामान्यतः १ से १० से.

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हिमचादर

हिमचादर (ice sheet) हिमानी (ग्लेशियर) बर्फ़ का एक बड़ा समूह होता है जो धरती को ढके और कम-से-कम ५०,००० वर्ग किमी क्षेत्रफल पर विस्तृत हो। तुलना के लिये यह भारत के पंजाब राज्य के क्षेत्रफल के लगभग बराबर है। वर्तमानकाल में हिमचादरें केवल अंटार्कटिका और ग्रीनलैण्ड में मिलती हैं, लेकिन पिछले हिमयुग में उत्तर अमेरिका के अधिकांश भाग पर लौरेनटाइड हिमचादर, उत्तरी यूरोप पर विशेली हिमचादर और दक्षिणी दक्षिण अमेरिका पर पैतागोनियाई हिमचादर फैली हुई थी। क्षेत्रफल में हिमचादरें हिमचट्टानों और हिमानियों से बड़ी होती हैं। ५०,००० वर्ग किमी से कम आकार की हिमचादर को बर्फ़ की टोपी (ice cap) कहते हैं। .

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गामबूर्तसेव पर्वतमाला

गामबूर्तसेव पर्वतमाला (Gamburtsev Mountain Range) पूर्वी अंटार्कटिका में स्थित एक पर्वतमाला है। अंटार्कटिका के दुर्गम स्थान के कारण इसका अस्तित्व लगभग पूर्ण मानव इतिहास में अज्ञात रहा और यह सन् १९५८ में तीसरे सोवियत अंटार्कटिक अभियान में पाई गई। इसका नाम भूभौतिकी के प्रसिद्ध सोवियत वैज्ञानिक ग्रिगोरी आलेक्सान्द्रिविच गामबूर्तसेव (Grigoriy A. Gamburtsev, Григорий Александрович Гамбурцев) पर रखा गया। यह पर्वतमाला लगभग १२०० किमी तक चलती है और इसके पर्वतों की अनुमानित ऊँचाई २,७०० मीटर (८,९०० फ़ुट) है। यह हमेशा लगभग ६०० मीटर मोटी हिमचादर से ढके होते हैं। .

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अंटार्कटिक सन्धि तंत्र

अंटार्कटिक सन्धि तंत्र (Antarctic Treaty System) दिसम्बर १, १९५९ में हस्ताक्षरित होने वाली अंटार्कटिक सन्धि (Antarctic Treaty) और उस से सम्बन्धित समझौतों का सामूहिक नाम है। अंटार्कटिका पृथ्वी का इकलौता महाद्वीप है जहाँ कोई मनुष्य मूल रूप से नहीं रहता था और यह सन्धि व्यवस्था अंटार्कटिका के विषय में सभी अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों को निर्धारित करता है। अंटार्कटिक सन्धि १९६१ से लागू हुई और सन् २०१६ तक इसपर ५३ देश हस्ताक्षर कर चुके थे। इस सन्धि के अंतर्गत अंटार्कटिका को एक वैज्ञानिक संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया और इस महाद्वीप पर किसी भी प्रकार की सैनिक कार्यवाई पर पाबंदी लगा दी गई। साथ ही अंटार्कटिका के मामलों पर निर्णय करने के लिये एक वार्षिक "अंटार्कटिक सन्धि परामर्श बैठक" (Antarctic Treaty Consultative Meeting या ATCM) की परम्परा शुरु की गई। .

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अंटार्कटिका

अंटार्कटिका अंतरिक्ष से अंटार्कटिका का दृश्य। 230px लाम्बर्ट अजिमुथाल प्रोजेक्शन पर आधारित मानचित्र।दक्षिणी ध्रुव मध्य में है। अंटार्कटिका (या अन्टार्टिका) पृथ्वी का दक्षिणतम महाद्वीप है, जिसमें दक्षिणी ध्रुव अंतर्निहित है। यह दक्षिणी गोलार्द्ध के अंटार्कटिक क्षेत्र और लगभग पूरी तरह से अंटार्कटिक वृत के दक्षिण में स्थित है। यह चारों ओर से दक्षिणी महासागर से घिरा हुआ है। अपने 140 लाख वर्ग किलोमीटर (54 लाख वर्ग मील) क्षेत्रफल के साथ यह, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के बाद, पृथ्वी का पांचवां सबसे बड़ा महाद्वीप है, अंटार्कटिका का 98% भाग औसतन 1.6 किलोमीटर मोटी बर्फ से आच्छादित है। औसत रूप से अंटार्कटिका, विश्व का सबसे ठंडा, शुष्क और तेज हवाओं वाला महाद्वीप है और सभी महाद्वीपों की तुलना में इसका औसत उन्नयन सर्वाधिक है। अंटार्कटिका को एक रेगिस्तान माना जाता है, क्योंकि यहाँ का वार्षिक वर्षण केवल 200 मिमी (8 इंच) है और उसमे भी ज्यादातर तटीय क्षेत्रों में ही होता है। यहाँ का कोई स्थायी निवासी नहीं है लेकिन साल भर लगभग 1,000 से 5,000 लोग विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों जो कि पूरे महाद्वीप पर फैले हैं, पर उपस्थित रहते हैं। यहाँ सिर्फ शीतानुकूलित पौधे और जीव ही जीवित, रह सकते हैं, जिनमें पेंगुइन, सील, निमेटोड, टार्डीग्रेड, पिस्सू, विभिन्न प्रकार के शैवाल और सूक्ष्मजीव के अलावा टुंड्रा वनस्पति भी शामिल hai हालांकि पूरे यूरोप में टेरा ऑस्ट्रेलिस (दक्षिणी भूमि) के बारे में विभिन्न मिथक और अटकलें सदियों से प्रचलित थे पर इस भूमि से पूरे विश्व का 1820 में परिचय कराने का श्रेय रूसी अभियान कर्ता मिखाइल पेट्रोविच लाज़ारेव और फैबियन गॉटलिएब वॉन बेलिंगशौसेन को जाता है। यह महाद्वीप अपनी विषम जलवायु परिस्थितियों, संसाधनों की कमी और मुख्य भूमियों से अलगाव के चलते 19 वीं शताब्दी में कमोबेश उपेक्षित रहा। महाद्वीप के लिए अंटार्कटिका नाम का पहले पहल औपचारिक प्रयोग 1890 में स्कॉटिश नक्शानवीस जॉन जॉर्ज बार्थोलोम्यू ने किया था। अंटार्कटिका नाम यूनानी यौगिक शब्द ανταρκτική एंटार्कटिके से आता है जो ανταρκτικός एंटार्कटिकोस का स्त्रीलिंग रूप है और जिसका अर्थ "उत्तर का विपरीत" है।" 1959 में बारह देशों ने अंटार्कटिक संधि पर हस्ताक्षर किए, आज तक छियालीस देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। संधि महाद्वीप पर सैन्य और खनिज खनन गतिविधियों को प्रतिबन्धित करने के साथ वैज्ञानिक अनुसंधान का समर्थन करती है और इस महाद्वीप के पारिस्थितिक क्षेत्र को बचाने के लिए प्रतिबद्ध है। विभिन्न अनुसंधान उद्देश्यों के साथ वर्तमान में कई देशों के लगभग 4,000 से अधिक वैज्ञानिक विभिन्न प्रयोग कर रहे हैं। .

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अकशेरुकी प्राणी

कुछ अकशेरुक प्राणी अकशेरुकी प्राणी (Invertebrate) उन प्राणियों को कहते हैं जिनमें मेरुदंड नहीं होता और न ही किसी अवस्था में मेरुदण्ड विकसित होता है। परिभाषा के अनुसार इसमें कशेरुक प्राणियों के अलावा सभी प्राणी आ जाते हैं। अकशेरुक प्राणियों के कुछ प्रमुख उदाहरण ये हैं - कीट, केकड़ा, झिंगा, घोंघा, ऑक्टोपस, स्टारफिश आदि। .

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