पुरुष और हिन्दू देवी देवताओं की सूची के बीच समानता
पुरुष और हिन्दू देवी देवताओं की सूची आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): ईश्वर, कपिल।
ईश्वर
यह लेख पारलौकिक शक्ति ईश्वर के विषय में है। ईश्वर फ़िल्म के लिए ईश्वर (1989 फ़िल्म) देखें। यह लेख देवताओं के बारे में नहीं है। ---- परमेश्वर वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का स्रष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में परमेश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना से जुडी हुई है। संस्कृत की ईश् धातु का अर्थ है- नियंत्रित करना और इस पर वरच् प्रत्यय लगाकर यह शब्द बना है। इस प्रकार मूल रूप में यह शब्द नियंता के रूप में प्रयुक्त हुआ है। इसी धातु से समानार्थी शब्द ईश व ईशिता बने हैं। .
ईश्वर और पुरुष · ईश्वर और हिन्दू देवी देवताओं की सूची ·
कपिल
कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली मुनि थे। इन्हें सांख्यशास्त्र (यानि तत्व पर आधारित ज्ञान) के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है जिसके मान्य अर्थों के अनुसार विश्व का उद्भव विकासवादी प्रक्रिया से हुआ है। कई लोग इन्हें अनीश्वरवादी मानते हैं लेकिन गीता में इन्हें श्रेष्ठ मुनि कहा गया है। कपिल ने सर्वप्रथम विकासवाद का प्रतिपादन किया और संसार को एक क्रम के रूप में देखा। संसार को स्वाभाविक गति से उत्पन्न मानकर इन्होंने संसार के किसी अति प्राकृतिक कर्ता का निषेध किया। सुख दु:ख प्रकृति की देन है तथा पुरुष अज्ञान में बद्ध है। अज्ञान का नाश होने पर पुरुष और प्रकृति अपने-अपने स्थान पर स्थित हो जाते हैं। अज्ञानपाश के लिए ज्ञान की आवश्यकता है अत: कर्मकांड निरर्थक है। ज्ञानमार्ग का यह प्रवर्तन भारतीय संस्कृति को कपिल की देन है। यदि बुद्ध, महावीर जैसे नास्तिक दार्शनिक कपिल से प्रभावित हों तो आश्चर्य नहीं। आस्तिक दार्शनिकों में से वेदांत, योग और पौराणिक स्पष्ट रूप में सांख्य के त्रिगुणवाद और विकासवाद को अपनाते हैं। इस प्रकार कपिल प्रवर्तित सांख्य का प्रभाव प्राय: सभी दर्शनों पर पड़ा है। कपिल ने क्या उपदेश दिया, इस पर विवाद और शोध होता रहा है। तत्वसमाससूत्र को उसके टीकाकार कपिल द्वारा रचित मानते हैं। सूत्र छोटे और सरल हैं। इसीलिए मैक्समूलर ने उन्हें बहुत प्राचीन बतलाया। 8वीं शताब्दी के जैन ग्रंथ 'भगवदज्जुकीयम्' में सांख्य का उल्लेख करते हुए कहा गया है– 'तत्वसमाससूत्र' में भी ऐसा ही पाठ मिलता है। साथ ही तत्वसमाससूत्र के टीकाकार भावागणेश कहते हैं कि उन्होंने टीका लिखते समय पंचशिख लिखित टीका से सहायता ली है। रिचार्ड गार्वे के अनुसार पंचशिख का काल प्रथम शताब्दी का होना चाहिए। अत: भगवज्जुकीयम् तथा भावागणेश की टीका को यदि प्रमाण मानें तो 'तत्वसमाससूत्र' का काल ईसा की पहली शताब्दी तक ले जाया जा सकता है। इसके पूर्व इसकी स्थिति के लिए सबल प्रमाण का अभाव है। सांख्यप्रवचनसूत्र को भी कुछ टीकाकार कपिल की कृति मानते हैं। कौमुदीप्रभा के कर्ता स्वप्नेश्वर 'सांख्यप्रवचनसूत्र' को पंचशिख की कृति मानते हैं और कहते हैं कि यह ग्रंथ कपिल द्वारा निर्मित इसलिए माना गया है कि कपिल सांख्य के प्रवर्तक हैं। यही बात 'तत्वसमास' के बारे में भी कही जा सकती है। परंतु सांख्यप्रवचनसूत्र का विवरण माधव के 'सर्वदर्शनसंग्रह' में नहीं है और न तो गुणरत्न में ही इसके आधार पर सांख्य का विवरण दिया है। अत: विद्वान् लोग इसे 14वीं शताब्दी का ग्रंथ मानते हैं। लेकिन गीता (१०.२६) में इनका ज़िक्र आने से ये और प्राचीन लगते हैं। .
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संदर्भ
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