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पराशर (कृषि पराशर के रचयिता) और भारतीय कृषि का इतिहास

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

पराशर (कृषि पराशर के रचयिता) और भारतीय कृषि का इतिहास के बीच अंतर

पराशर (कृषि पराशर के रचयिता) vs. भारतीय कृषि का इतिहास

पराशर नाम के एक मुनि हुए हैं। उनके द्वारा रचित ग्रंथों में 'कृषिसंग्रह', 'कृषि पराशर' एवं 'पराशर तंत्र' के नाम गिनाए जाते हैं। किंतु इनमें से मूल ग्रंथ 'कृषि पराशर' ही है। इस ग्रंथ के रचयिता पराशर मुनि कौन से हैं, इस विषय पर यथेष्ट मतभेद है। ग्रंथ की शैली के आधार पर यह 8वीं शती के पूर्व का लिखा नहीं समझा जाता। 'कृषि पराशर' में कृषि पर ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव, मेघ और उसकी जातियाँ, वर्षामाप, वर्षा का अनुमान, विभिन्न समयों की वर्षा का प्रभाव, कृषि की देखभाल, बैलों की सुरक्षा, गोपर्व, गोबर की खाद, हल, जोताई, बैलों के चुनाव, कटाई के समय, रोपण, धान्य संग्रह आदि विषयों पर विचार प्रस्तुत किए गए हैं। ग्रंथ के अध्ययन से पता चलता है कि पराशर के मन में कृषि के लिए अपूर्व सम्मान था। किसान कैसा होना चाहिए, पशुओं को कैसे रखना चाहिए, गोबर की खाद कैसे तैयार करनी चाहिए और खेतों में खाद देने से क्या लाभ होता है, बीजों को कब और कैसे सुरक्षित रखना चाहिए, इत्यादि विषयों का सविस्तार वर्णन इस ग्रंथ में मिलता है। हलों के संबंध में दिया हुआ है कि ईषा, जुवा, हलस्थाणु, निर्योल (फार), पाशिका, अड्डचल्ल, शहल तथा पंचनी ये हल के आठ अंग हैं। पाँच हाथ की हरीस, ढाई हाथ का हलस्थाणु (कुढ़), डेढ़ हाथ का फार और कान के सदृश जुवा होना चाहिए। जुवा चार हाथ का होना चाहिए। इस ग्रंथ से पता लगता है कि पराशर के काल में कृषि अत्यंत पुष्ट कर्म थी। . कावेरी नदी पर निर्मित '''कल्लानै बाँध''' पहली-दूसरी शताब्दी में बना था था। यह संसार के प्राचीननतम बाँधों में से है जो अब भी प्रयोग किये जा रहे हैं। भारत में ९००० ईसापूर्व तक पौधे उगाने, फसलें उगाने तथा पशु-पालने और कृषि करने का काम शुरू हो गया था। शीघ्र यहाँ के मानव ने व्यवस्थित जीवन जीना शूरू किया और कृषि के लिए औजार तथा तकनीकें विकसित कर लीं। दोहरा मानसून होने के कारण एक ही वर्ष में दो फसलें ली जाने लगीं। इसके फलस्वरूप भारतीय कृषि उत्पाद तत्कालीन वाणिज्य व्यवस्था के द्वारा विश्व बाजार में पहुँचना शुरू हो गया। दूसरे देशों से भी कुछ फसलें भारत में आयीं। पादप एवं पशु की पूजा भी की जाने लगी क्योंकि जीवन के लिए उनका महत्व समझा गया। .

पराशर (कृषि पराशर के रचयिता) और भारतीय कृषि का इतिहास के बीच समानता

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संदर्भ

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