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पतंगा

सूची पतंगा

सम्राट गम पतंगा (Opodiphthera eucalypti) केरल में पाया जाने वाला एक पत्तेनुमा पतंगा शलभ, पतंगा या तितली जैसा एक कीट होता है। जीवविज्ञान श्रेणीकरण के हिसाब से तितलियाँ और पतंगे दोनों 'लेपीडोप्टेरा' वर्ग के प्राणी होते हैं। पतंगों की १.६ लाख से ज़्यादा क़िस्में (स्पीशीयाँ) ज्ञात हैं, जो तितलियों की क़िस्मों से लगभग १० गुना हैं। वैज्ञानिकों ने पतंगों और तितलियों को अलग बतलाने के लिए ठोस अंतर समझने का प्रयत्न किया है लेकिन यह सम्भव नहीं हो पाया है। अंत में यह बात स्पष्ट हुई है कि तितलियाँ वास्तव में रंग-बिरंगे पतंगों का एक वर्ग है जो भिन्न नज़र आने की वजह से एक अलग श्रेणी समझी जाने लगी हैं। अधिकतर पतंगे निशाचरता दिखलाते हैं (यानी रात को सक्रीय होते हैं), हालाँकि दिन में सक्रीय पतंगों की भी कई जातियाँ हैं।, David Carter, Roger Phillips, British Museum (Natural History), Heinemann, published in association with the British Museum (Natural History), 1982,...

9 संबंधों: चन्द्रमा, तितली, निशाचरता, भारतीय उपमहाद्वीप, शल्कपंखी गण, जिप्सी शलभ, जीव विज्ञान, कीट, अवरक्त

चन्द्रमा

कोई विवरण नहीं।

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तितली

तितली कीट वर्ग का सामान्य रूप से हर जगह पाया जानेवाला प्राणी है। यह बहुत सुन्दर तथा आकर्षक होती है। दिन के समय जब यह एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ती है और मधुपान करती है तब इसके रंग-बिरंगे पंख बाहर दिखाई पड़ते हैं। इसके शरीर के मुख्य तीन भाग हैं सिर, वक्ष तथा उदर। इनके दो जोड़ी पंख तथा तीन जोड़ी सन्धियुक्त पैर होते हैं अतः यह एक कीट है। इसके सिर पर एक जोड़ी संयुक्त आँख होती हैं तथा मुँह में घड़ी के स्प्रिंग की तरह प्रोवोसिस नामक खोखली लम्बी सूँड़नुमा जीभ होती है जिससे यह फूलों का रस (नेक्टर) चूसती है। ये एन्टिना की मदद से किसी वस्तु एवं उसकी गंध का पता लगाती है। केरल में तितली तितली एकलिंगी प्राणी है अर्थात नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं। मादा तितली अपने अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है। अण्डे से कुछ दिनों बाद एक छोटा-सा कीट निकलता है जिसे कैटरपिलर लार्वा कहा जाता है। यह पौधे की पत्तियों को खाकर बड़ा होता है और फिर इसके चारों ओर कड़ा खोल बन जाता है। अब इसे प्यूपा कहा जाता है। कुछ समय बाद प्यूपा को तोड़कर उसमें से एक सुन्दर छोटी-सी तितली बाहर निकलती है। तितली का दिमाग़ बहुत तेज़ होता है। देखने, सूंघने, स्वाद चखने व उड़ने के अलावा जगह को पहचानने की इनमें अद्भुत क्षमता होती है। वयस्क होने पर आमतौर पर ये उस पौधे या पेड़ के तने पर वापस आती हैं, जहाँ इन्होंने अपना प्रारंभिक समय बिताया होता है। तितली का जीवनकाल बहुत छोटा होता है। ये ठोस भोजन नहीं खातीं, हालाँकि कुछ तितलियाँ फूलों का रस पीती हैं। दुनिया की सबसे तेज़ उड़ने वाली तितली मोनार्च है। यह एक घंटे में १७ मील की दूरी तय कर लेती है। कोस्टा रीका में तितलियों की १३०० से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनिया की सबसे बड़ी तितली जायंट बर्डविंग है, जो सोलमन आईलैंड्स पर पाई जाती है। इस मादा तितली के पंखों का फैलाव १२ इंच से ज्यादा होता है। .

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निशाचरता

उल्लू एक निशाचरी प्राणी है निशाचरता कुछ जानवरों की रात को सक्रीय रहने की प्रवृति को कहते हैं। निशाचरी जीवों में उल्लू, चमगादड़ और रैकून जैसे प्राणी शामिल हैं। कुछ निशाचरी जानवरों में दिन और रात दोनों में साफ़ देखने की क्षमता होती है लेकिन कुछ की आँखें अँधेरे में ही ठीक से काम करती हैं और दिन के वक़्त चौंधिया जाती हैं। .

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भारतीय उपमहाद्वीप

भारतीय उपमहाद्वीप का भौगोलिक मानचित्र भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया के दक्षिणी भाग में स्थित एक उपमहाद्वीप है। इस उपमहाद्वीप को दक्षिण एशिया भी कहा जाता है भूवैज्ञानिक दृष्टि से भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश भाग भारतीय प्रस्तर (या भारतीय प्लेट) पर स्थित है, हालाँकि इस के कुछ भाग इस प्रस्तर से हटकर यूरेशियाई प्रस्तर पर भी स्थित हैं। .

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शल्कपंखी गण

एलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा २०० गुना आवर्धित करके देखने पर शल्क (स्केल) का दृष्य शल्कपंखी या लेपिडॉप्टेरा (Lepidoptera), कीटों का एक विशाल गण है, जिसमें तितलियाँ एवं शलभ (moths) के अतिरिक्त बहुत से कीट सम्मिलित हैं। कीटों के वर्गीकरण के लिए लेपिडॉप्टेरा शब्द का उपयोग सर्वप्रथम लिनिअस (Linnaeus) ने किया। यह शब्द लैटिन के लेपिडॉस (lepidos .

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जिप्सी शलभ

वयस्क मादा जिप्सी शलभ वयस्क नर जिप्सी शलभ जिप्सी शलभ (Moth, Gypsy) लेपिडॉप्टेरीय (lepidopterous) कीट है, जो लाइमैनट्राइडी (Lymantridae) कुल के अंतर्गत आता है। इस कुल के अंतर्गत कुछ बड़े भयंकर कीट भी पाए जाते हैं। ये शलभ मध्यम आकार के होते हैं। इनकी टाँगें घने बालों से ढँकी रहती हैं। इस कुल के शलभ प्राय: रात्रि में उड़नेवाले होते हैं, परंतु कुछ दिन में भी उड़ते हैं। जिप्सी शलभ के वयस्क नर का रंग भूरा होता है, जिसमें कुछ पीले निशान होते हैं जो डेढ़ इंच तक फैले होते है। दिन में यह स्वच्छंदता से उड़ता है। मादा शलभ के पंख, जिनपर काले निशान होते हैं, लगभग सफेद होते हैं। इसका शरीर भारी और पुष्ट होता है तथा पांडु रंग के बालों से ढँका रहता है। पंख लगभग दो इंच तक फैले होते हैं, परंतु ऐसे विकसित पंखों के होते हुए भी ये शरीर के भारीपन के कारण उड़तीं नहीं। मादा जाड़े में अंडाकार गुच्छों में अंडे देती है, जो पांडु बालों से ढँके होते हैं। प्रत्येक गुच्छे में ४००-५०० अंडे होते हैं। अंडे देने के लिए मादा स्थान के चयन पर कोई विशेष ध्यान नहीं देती। ये स्थान वृक्ष की शाखाएँ, धड़, घड़ों के कोटर, पत्थर और टिन के डिब्बे तक हो सकते हैं। वसंत में अंडों के फूटने पर इल्लियाँ (caterpillars) निकल आती हैं। इल्लियाँ अनेक प्रकार की पत्तियाँ खाती हैं। सेब, बांज, विलो, अल्डर और बर्च की पत्तियाँ इन्हें विशेष प्रिय हैं। इस प्रकार खाते खाते इल्लियाँ जुलाई के प्रारंभ तक काफी बड़ी हो जात हैं। अब तक इल्लियों का आकार लगभग तीन इंच लंबा और पेंसिल सा मोटा हो जाता है। ये भूरे रंग की होती हैं और इनके शरीर के कुछ भाग पर गुच्छेदार बाल होते हैं। इनकी पीठ पर पाँच जोड़ी नीले धब्बे होते हैं, जिनके पीछे छह जोड़े लाल धब्बे होते हैं। भोजन के पश्चात् इल्लियाँ किसी वृक्ष की शाखा, या तने के भीतर, उपयुक्त स्थान में चली जाती हैं। वहाँ पर वे अपने शरीर को पकड़ रखने के लिए कुछ तागों का कोया (cocoon) बुनती हैं। इसी कोए में इल्लियाँ प्यूपा (pupa) बनती हैं और सात से १७ दिनों के पश्चात् शलभ के रूप में निकल आती हैं। .

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जीव विज्ञान

जीवविज्ञान भांति-भांति के जीवों का अध्ययन करता है। जीवविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की तीन विशाल शाखाओं में से एक है। यह विज्ञान जीव, जीवन और जीवन के प्रक्रियाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इस विज्ञान में हम जीवों की संरचना, कार्यों, विकास, उद्भव, पहचान, वितरण एवं उनके वर्गीकरण के बारे में पढ़ते हैं। आधुनिक जीव विज्ञान एक बहुत विस्तृत विज्ञान है, जिसकी कई शाखाएँ हैं। 'बायलोजी' (जीवविज्ञान) शब्द का प्रयोग सबसे पहले लैमार्क और ट्रविरेनस नाम के वैज्ञानिको ने १८०२ ई० में किया। जिन वस्तुओं की उत्पत्ति किसी विशेष अकृत्रिम जातीय प्रक्रिया के फलस्वरूप होती है, जीव कहलाती हैं। इनका एक परिमित जीवनचक्र होता है। हम सभी जीव हैं। जीवों में कुछ मौलिक प्रक्रियाऐं होती हैं.

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कीट

एक टिड्डा कीट अर्थोपोडा संघ का एक प्रमुख वर्ग है। इसके 10 लाख से अधिक जातियों का नामकरण हो चुका है। पृथ्वी पर पाये जाने वाले सजीवों में आधे से अधिक कीट हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि कीट वर्ग के 3 करोड़ प्राणी ऐसे हैं जिनको चिन्हित ही नहीं किया गया है अतः इस ग्रह पर जीवन के विभिन्न रूपों में कीट वर्ग का योगदान 90% है। ये पृथ्वी पर सभी वातावरणों में पाए जाते हैं। सिर्फ समुद्रों में इनकी संख्या कुछ कम है। आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण कीट हैं: एपिस (मधुमक्खी) व बांबिक्स (रेशम कीट), लैसिफर (लाख कीट); रोग वाहक कीट, एनाफलीज, क्यूलेक्स तथा एडीज (मच्छर); यूथपीड़क टिड्डी (लोकस्टा); तथा जीवीत जीवाश्म लिमूलस (राज कर्कट किंग क्रेब) आदि। .

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अवरक्त

दो व्यक्तियों की मध्य अधोरक्त (तापीय) प्रकाश में छाया चित्र अवरक्त किरणें, अधोरक्त किरणें या इन्फ़्रारेड वह विद्युत चुम्बकीय विकिरण है जिसका तरंग दैर्घ्य (वेवलेन्थ) प्रत्यक्ष प्रकाश से बड़ा हो एवं सूक्ष्म तरंग से कम हो। इसका नाम 'अधोरक्त' इसलिए है क्योंकि विद्युत चुम्बकीय तरंग के वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) में यह मानव द्वारा दर्शन योग्य लाल वर्ण से नीचे (या अध) होती है। इसका तरंग दैर्घ्य 750 nm and 1 mm के बीच होता है। सामान्य शारिरिक तापमान पर मानव शरीर 10 माइक्रॉन की अधोरक्त तरंग प्रकाशित कर सकता है। .

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