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नैषधीयचरित और मल्लिनाथ

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

नैषधीयचरित और मल्लिनाथ के बीच अंतर

नैषधीयचरित vs. मल्लिनाथ

नैषधीयचरित, श्रीहर्ष द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है। यह वृहत्त्रयी नाम से प्रसिद्ध तीन महाकव्यों में से एक है। महाभारत का नलोपाख्यान इस महाकाव्य का मूल आधार है। . मल्लिनाथ, संस्कृत के सुप्रसिद्ध टीकाकार। इनका पूरा नाम कोलाचल मल्लिनाथ था। पेड्ड भट्ट भी इन्हीं का नाम था। ये संभावत: दक्षिण भारत के निवासी थे। इनका समय प्राय: 14वीं या 15वीं शती माना जाता है। ये काव्य, अलंकार, व्याकरण, स्मृति, दर्शन, ज्योतिष आदि के विद्वान् थे। व्याकरण, व्युत्पत्ति एवं अर्थ-विवेचन आदि की दृष्टि से इनकी टीकाएँ विशेष प्रशंसनीय हैं। टीकाकार के रूप में इनका सिद्धांत था कि "मैं ऐसी कोई बात न लिखूँगा जो निराधार हो अथवा अनावश्यक हो।" इन्होंने पंचमहाकाव्यों (अभिज्ञानशाकुन्तलम्, रघुवंश, शिशुपालवध, किरातार्जुनीय, नैषधीयचरित) तथा मेघदूत, कुमारसंभव, अमरकोष आदि ग्रंथों की टीकाएँ लिखीं जिनमें उक्त सिद्धांत का भलीभाँति पालन किया गया है। श्रेणी:संस्कृत साहित्यकार श्रेणी:संस्कृत टीकाकार.

नैषधीयचरित और मल्लिनाथ के बीच समानता

नैषधीयचरित और मल्लिनाथ आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): शिशुपालवध, संस्कृत भाषा, किरातार्जुनीयम्

शिशुपालवध

श्रीकृष्ण द्वारा चक्र से शिशुपाल का सिरोच्छेदन शिशुपालवध महाकवि माघ द्वारा रचित संस्कृत काव्य है। २० सर्गों तथा १८०० अलंकारिक छन्दों में रचित यह ग्रन्थ संस्कृत के छः महाकाव्यों में गिना जाता है। इसमें कृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध की कथा का वर्णन है। .

नैषधीयचरित और शिशुपालवध · मल्लिनाथ और शिशुपालवध · और देखें »

संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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किरातार्जुनीयम्

अर्जुन शिव को पहचान जाते हैं और नतमस्तक हो जाते हैं। (राजा रवि वर्मा द्वारा१९वीं शती में चित्रित) किरातार्जुनीयम् महाकवि भारवि द्वारा सातवीं शती ई. में रचित महाकाव्य है जिसे संस्कृत साहित्य में महाकाव्यों की 'वृहत्त्रयी' में स्थान प्राप्त है। महाभारत में वर्णित किरातवेशी शिव के साथ अर्जुन के युद्ध की लघु कथा को आधार बनाकर कवि ने राजनीति, धर्मनीति, कूटनीति, समाजनीति, युद्धनीति, जनजीवन आदि का मनोरम वर्णन किया है। यह काव्य विभिन्न रसों से ओतप्रोत है किन्तु यह मुख्यतः वीर रस प्रधान रचना है। संस्कृत के छ: प्रसिद्ध महाकाव्य हैं – बृहत्त्रयी और लघुत्रयी। किरातार्जनुयीयम्‌ (भारवि), शिशुपालवधम्‌ (माघ) और नैषधीयचरितम्‌ (श्रीहर्ष)– बृहत्त्रयी कहलाते हैं। कुमारसम्भवम्‌, रघुवंशम् और मेघदूतम् (तीनों कालिदास द्वारा रचित) - लघुत्रयी कहलाते हैं। किरातार्जुनीयम्‌ भारवि की एकमात्र उपलब्ध कृति है, जिसने एक सांगोपांग महाकाव्य का मार्ग प्रशस्त किया। माघ-जैसे कवियों ने उसी का अनुगमन करते हुए संस्कृत साहित्य भण्डार को इस विधा से समृद्ध किया और इसे नई ऊँचाई प्रदान की। कालिदास की लघुत्रयी और अश्वघोष के बुद्धचरितम्‌ में महाकाव्य की जिस धारा का दर्शन होता है, अपने विशिष्ट गुणों के होते हुए भी उसमें वह विषदता और समग्रता नहीं है, जिसका सूत्रपात भारवि ने किया। संस्कृत में किरातार्जुनीयम्‌ की कम से कम 37 टीकाएँ हुई हैं, जिनमें मल्लिनाथ की टीका घंटापथ सर्वश्रेष्ठ है। सन 1912 में कार्ल कैप्पलर ने हारवर्ड ओरियेंटल सीरीज के अंतर्गत किरातार्जुनीयम् का जर्मन अनुवाद किया। अंग्रेजी में भी इसके भिन्न-भिन्न भागों के छ: से अधिक अनुवाद हो चुके हैं। .

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नैषधीयचरित और मल्लिनाथ के बीच तुलना

नैषधीयचरित 10 संबंध है और मल्लिनाथ 17 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 11.11% है = 3 / (10 + 17)।

संदर्भ

यह लेख नैषधीयचरित और मल्लिनाथ के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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