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नाभादास और हिंदी साहित्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

नाभादास और हिंदी साहित्य के बीच अंतर

नाभादास vs. हिंदी साहित्य

भक्तिकाल के कवियों में स्वामी अग्रदास के शिष्य नाभादास का विशिष्ट स्थान है। अंतस्साक्ष्य के अभाव में इनकी जन्म तथा मृत्यु की तिथियाँ अनिश्चित हैं। मिश्रबंधु, डॉ॰ श्यामसुंदरदास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ॰ दीनदयालु गुप्त, आचार्य क्षितिमोहन सेन आदि ने इस संबंध में जो तिथियाँ निर्धारित की हैं उनमें पर्याप्त अंतर है। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ 'भक्तमाल' की टीका प्रियादास जी ने संवत्‌ 1769 में, सौ वर्ष बाद, लिखी थी। इस आधार पर नाभादास का समय 17वीं शताब्दी के मध्य और उत्तरार्ध के बीच माना जाता है। नाभादास के जन्मस्थान, माता पिता, जाति आदि के संबंध में भी प्रमाणों के अभाव में अधिकारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। 'भक्तनामावली' के संपादक श्री राधाकृष्णदास ने किंवदंती के आधार पर लिखा है कि नाभादास जन्मांध थे और बाल्यावस्था में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई। उस समय देश में अकाल की स्थिति थी, अत: माता इनका पालनपोषण न कर सकीं और इन्हें वन में छोड़कर चली गईं। संयोगवश श्री कील्ह और अग्रदास जी उसी वन में होकर जा रहे थे, उन्होंने बालक को देखा और उठा ले आए। बाद में उन्हीं महात्माओं के प्रभाव से नाभादास ने आँखों की ज्योति प्राप्त की और अग्रदास जी ने इन्हें दीक्षित किया। परंपरा के अनुसार नाभादास डोम अथवा महाराष्ट्रीय ब्राह्मण जाति के थे। टीकाकार प्रियादास ने इन्हें हनुमानवंशीय महाराष्ट्रीय ब्राह्मण माना है। टीकाकार रूपकला जी ने इन्हें डोम जाति का मानते हुए लिखा है कि डोम नीच जाति नहीं थी, वरन्‌ कलावंत, ढाढी, भाट, डोम आदि गानविद्याप्रवीण जातियों के ही नाम हैं। मिश्रबंधुओं ने भी इन्हें हनुमानवंशी मानते हुए लिखा है कि मारवाड़ी में हनुमान शब्द 'डोम' के लिए प्रयुक्त होता है। . चंद्रकांता का मुखपृष्ठ हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई।हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। .

नाभादास और हिंदी साहित्य के बीच समानता

नाभादास और हिंदी साहित्य आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): भक्ति काल

भक्ति काल

हिंदी साहित्य में भक्ति काल अपना एक अहम और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आदिकाल के बाद आये इस युग को पूर्व मध्यकाल भी कहा जाता है। जिसकी समयावधि 1375 ईo से 1700 ईo तक की मानी जाती है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है। जिसको जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, श्यामसुन्दर दास ने स्वर्णयुग, आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक जागरण कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी युग में प्राप्त होती हैं। दक्षिण में आलवार बंधु नाम से कई प्रख्यात भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें रामानुजाचार्य प्रमुख थे। रामानुजाचार्य की परंपरा में रामानंद हुए। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। वे उस समय के सबसे बड़े आचार्य थे। उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में ऊंच-नीच का भेद तोड़ दिया। सभी जातियों के अधिकारी व्यक्तियों को आपने शिष्य बनाया। उस समय का सूत्र हो गयाः महाप्रभु वल्लभाचार्य ने पुष्टि-मार्ग की स्थापना की और विष्णु के कृष्णावतार की उपासना करने का प्रचार किया। उनके द्वारा जिस लीला-गान का उपदेश हुआ उसने देशभर को प्रभावित किया। अष्टछाप के सुप्रसिध्द कवियों ने उनके उपदेशों को मधुर कविता में प्रतिबिंबित किया। इसके उपरांत माध्व तथा निंबार्क संप्रदायों का भी जन-समाज पर प्रभाव पड़ा है। साधना-क्षेत्र में दो अन्य संप्रदाय भी उस समय विद्यमान थे। नाथों के योग-मार्ग से प्रभावित संत संप्रदाय चला जिसमें प्रमुख व्यक्तित्व संत कबीरदास का है। मुसलमान कवियों का सूफीवाद हिंदुओं के विशिष्टाद्वैतवाद से बहुत भिन्न नहीं है। कुछ भावुक मुसलमान कवियों द्वारा सूफीवाद से रंगी हुई उत्तम रचनाएं लिखी गईं। संक्षेप में भक्ति-युग की चार प्रमुख काव्य-धाराएं मिलती हैं.

नाभादास और भक्ति काल · भक्ति काल और हिंदी साहित्य · और देखें »

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नाभादास और हिंदी साहित्य के बीच तुलना

नाभादास 5 संबंध है और हिंदी साहित्य 89 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 1.06% है = 1 / (5 + 89)।

संदर्भ

यह लेख नाभादास और हिंदी साहित्य के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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