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नागरीप्रचारिणी सभा और भारत कला भवन (वाराणसी)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

नागरीप्रचारिणी सभा और भारत कला भवन (वाराणसी) के बीच अंतर

नागरीप्रचारिणी सभा vs. भारत कला भवन (वाराणसी)

नागरीप्रचारिणी सभा, हिंदी भाषा और साहित्य तथा देवनागरी लिपि की उन्नति तथा प्रचार और प्रसार करनेवाली भारत की अग्रणी संस्था है। भारतेन्दु युग के अनंतर हिंदी साहित्य की जो उल्लेखनीय प्रवृत्तियाँ रही हैं उन सबके नियमन, नियंत्रण और संचालन में इस सभा का महत्वपूर्ण योग रहा है। . भारत कला भवन भारत कला भवन, वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रांगण में स्थित एक चित्रशाला है। यह एशिया का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय संग्रहालय है। यहां की चित्र वीथिका (गैलरी) में 12वीं से 20वीं शती तक के भारतीय लघु चित्र प्रदर्शित हैं। इनके चित्रण में ताड़ पत्र, कागज, कपड़ा, काठ, हाथी दांत आदि का उपयोग किया गया है। प्रदर्शित चित्र भारतीय सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रकाशित करते हैं। वीथिका में प्रदर्शित चित्रों का क्रम गोविन्द पाल के शासन के चतुर्थ वर्ष (12वीं शती) में चित्रित बौद्ध ग्रंथ 'प्रज्ञापारमिता' से प्रारंभ होता है। लघुचित्रों की विकास गाथा पूर्वी भारत में चित्रित पोथी चित्रों से आरंभ होती है, जिनमें अजंता-भित्ति चित्रों की उत्कृष्ट परम्परा तथा मध्यकालीन कला विशिष्टताओं का अद्भुत समन्वय है। भारतीय चित्रकला के विषय में यदि कोई भी विद्वान, शोधकर्ता या कलाविद गहन अध्ययन करना चाहे तो यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि उसे वाराणसी में स्थित 'भारत कला भवन' के चित्र संग्रह का अवलोकन करना ही होगा। भारत में प्रचलित लगभग समस्त शैलियों के चित्रों का विशाल संग्रह इस संग्रहालय में है। यहाँ का चित्र संग्रह, विशेषकर लघुचित्रों का विश्व में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। .

नागरीप्रचारिणी सभा और भारत कला भवन (वाराणसी) के बीच समानता

नागरीप्रचारिणी सभा और भारत कला भवन (वाराणसी) आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): वाराणसी

वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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नागरीप्रचारिणी सभा और भारत कला भवन (वाराणसी) के बीच तुलना

नागरीप्रचारिणी सभा 35 संबंध है और भारत कला भवन (वाराणसी) 14 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 2.04% है = 1 / (35 + 14)।

संदर्भ

यह लेख नागरीप्रचारिणी सभा और भारत कला भवन (वाराणसी) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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