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नाइट्रोसेलूलोज

सूची नाइट्रोसेलूलोज

सेलूलोज के नाइट्रिक अम्ल के ऐस्टरों को नाइट्रोसेलूलोज़ (Nitrocellulose) या सेलूलोज़ नाइट्रेट, कहते हैं। .

6 संबंधों: एस्टर, डायनामाइट, नाइट्रिक अम्ल, सेलुलोस, गनकॉटन, उत्प्रेरण

एस्टर

कार्बोजाइलेट एस्टर (carboxylate ester); R तथा R' कोई एल्किल (alkyl) या एरिल (aryl) समूह हो सकता है। एस्टर (esters) वे रासायनिक यौगिक हैं जो अम्लों (कार्बनिक अथवा अकार्बनिक) से व्युत्पन्न होते हैं और उनमें कम से कम एक -OH (हाइड्रॉक्सिल / hydroxyl) समूह -O-alkyl (alkoxy) समूह से प्रतिस्थापित होता है। प्रायः एस्टर कार्बोजिलिक अम्ल और अल्कोहल से की क्रिया से बनाये जाते हैं। श्रेणी:एस्टर श्रेणी:प्रकार्यात्मक समूह श्रेणी:कार्बनिक रसायन.

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डायनामाइट

डाइनामाइट एक प्रमुख विस्फोटक है। इसका आविष्कार अल्फ्रेड नोबेल ने किया था। .

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नाइट्रिक अम्ल

नाइट्रिक अम्ल (Nitric acid) (HNO3), एक अत्यन्त संक्षारक (कोरोसिव) खनिज अम्ल है। इसे एक्वा फ्रोटिस (aqua fortis) और 'स्पिरिट ऑफ नाइटर' भी कहते हैं। कीमियागरों को नाइट्रिक अम्ल का ज्ञान था, जिसे वे ऐक्वा फॉर्टिस के नाम से पुकारते थे। प्रसिद्ध कीमियागर जेबर ने नाइटर (niter) और ताम्र सल्फेट, (Cu SO4) तथा फिटकरी के साथ आसवन से प्राप्त कर इसका वर्णन किया है। भारत में शोरा तथा नाइट्रिक अम्ल का १६वीं शताब्दी में ज्ञान था। शुक्राचार्य के ग्रंथ शुक्रनीति में बारूद बनाने के लिए इसे उपयोग का वर्णन हुआ है। उड़ीसा के गजपति प्रतापरुद्रदेव द्वारा लिखित ग्रंथ 'कौतुकचिंतामणि' में यवक्षार (साल्टपीटर) का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त सुवर्णतंत्र ग्रंथ (लगभग १७वीं शताब्दी में लिखा गया) में 'शंखद्राव' का वर्णन है, जो शोरे और नमक के अम्लों (HCl) का मिश्रण था। आईने अकबरी ग्रंथ में रासी (शोरे के अम्ल) का वर्णन है, जिसका चाँदी को स्वच्छ करने में उपयोग हो सकता था। वर्ष १६४८ ई. में ग्लॉबर (Glauber) ने नाइटर पर विट्रियल तेल (oil of vitreol) की अभिक्रिया द्वारा संद्र नाइट्रिक अम्ल का निर्माण किया। कैवेंडिश ने १७७६ ई में इसका संघटन ज्ञात किया। वायुमंडल में नाइट्रिक अम्ल विद्युत विसर्जन (electric discharge) द्वारा सूक्ष्म मात्रा में बनता रहता है, जो वर्षाजल में घुलकर पृथ्वी पर आता है। मिट्टी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण द्वारा भी नाइट्रिक अम्ल बनता है। यह अम्ल अनेक नाइट्रेट पदार्थों के रूप में भूमि में संचित होकर पौधों के उपयोग में आता है। नाइट्रेट यौगिकों का प्रमुख स्रोत चिली देश है। भारत की साँभर झील में पोटासियम नाइट्रेट पाया जाता है। भारत के कुछ राज्यों में मिट्टी के साथ मिला हुआ पोटासियम नाइट्रेट पाया जाता है। इससे एक समय प्रचुर मात्रा में शोरा (व्यापारिक पोटासियम नाइट्रेट) तैयार होता था। .

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सेलुलोस

सेलुलोस (Cellulose) एक कार्बनिक यौगिक है जिसका रासायनिक सूत्र है। यह एक बहुशर्करा (पॉलीसैक्कराइड) है जिसमें एक ही प्रकार का अणु लगातार जुड़ने से एक हजारों अणुओं वाला पॉलीमर बन जाता है। बहुत सारे हरे पौधों की कोशिका भित्तियाँ सेलुलोस की ही बनी होतीं हैं और जीव-जगत में इसका बहुत महत्व है। कपास के रेशों का ९०% हिस्सा सेलुलोस होता है। .

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गनकॉटन

गनकॉटन एक प्रकार का विस्फोटक है जो सैलूलोज़ का नाइट्रेट एस्टर है और रुई या सैलूलोज को सांद्र नाइट्रिक और सांद्र सल्फ्यूरिक अम्लों के मिश्रण के साथ उपचारित करने से प्राप्त होता है। देखने में यह बिल्कुल रुई सा लगता है और रुई सा ही सफेद, गंधहीन और स्वादहीन ठोस होता है। जल, ऐल्कोहल, ईथर और ग्लेशियल ऐसीटिक अम्ल (glacial acetic acid) में यह अविलेय होता है, पर ऐसीटोन, ऐल्किल ऐसीटेट और नाइट्रो-बेंज़ीन में घुल जाता है। गनकॉटन में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग 14.14% रहनी चाहिए यदि नाइट्रोजन की प्रति शत मात्रा कम हो तो ईथर-ऐल्कोहल में घुलकर कोलोडियम बनता है। गनकाटन बड़ी तीव्रता से जलता है। यह प्रस्फोटन से ही विस्फुटित होता है। प्रस्फोटन के लिए मरकरी फल्मिनेट प्रयुक्त होता है। संपीडन से विस्फोटन के लिए टारपीडो और कारतूस में प्रयुक्त होता है। पाइरॉक्सीलीन के साथ मिलकर यह धूम्रहीन चूर्ण बनाता है, जिसमें विस्फोटनतरंग का वेग बहुत मंद हो जाता है। प्रणोदक के लिये अधिक सुविधाजनक होता है। बंदूक और तोपों में इसका प्रयोग व्यापक रूप से होता है। यदि गनकॉटन को नाइट्रोग्लिसरीन के साथ ऐसीटोन के सहारे मिलाया जाए तो ऐसे मिश्रण को कॉर्डाइट कहते हैं। यह बहुत महत्व का विस्फोटक है। नाइट्रो-ग्लिसरीन को कोलोडियन के साथ मिलाने से भी बिना ऐसीटोन की सहायता से कॉर्डाइट प्राप्त हो सकता है। इसका आविष्कार 1846 में स्विटज़रलैंड के एक जर्मन वैज्ञानिक सी.

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उत्प्रेरण

जब किसी रासायनिक अभिक्रिया की गति किसी पदार्थ की उपस्थिति मात्र से बढ जाती है तो इसे उत्प्रेरण (Catalysis) कहते हैं। जिस पदार्थ की उपस्थिति से अभिक्रिया की गति बढ जाती है उसे उत्प्रेरक (catalyst) कहते हैं। उत्प्रेरक अभिक्रिया में भाग नहीं लेता, केवल क्रिया की गति को प्रभावित करता है। औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण रसायनों के निर्माण में उत्प्रेरकों की बहुत बड़ी भूमिका है, क्योंकि इनके प्रयोग से अभिक्रिया की गति बढ जाती है जिससे अनेक प्रकार से आर्थिक लाभ होता है और उत्पादन तेज होता है। इसलिये उत्प्रेरण के क्षेत्र में अनुसंधान के लिये बहुत सा धन एवं मानव श्रम लगा हुआ है। .

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