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धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिर

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिर के बीच अंतर

धृष्टद्युम्न vs. युधिष्ठिर

धृष्टद्युम्न पांचालराज द्रुपद का अग्नि तुल्य तेजस्वी पुत्र। यह पृषत अथवा जंतु राजा का नाती, एवं द्रुपद राजा का पुत्र था। द्रोणाचार्य का विनाश करने के लिये, प्रज्त्रलित अग्निकुंड से इसका प्रादुर्भाव हुआ था। फिर उसी वेदी में से द्रौपदी प्रकट हुई थी। अतः इन दोनों को ‘अयोनिसंभव’ एवं इसे द्रौपदी का ‘अग्रज बंधु’ कहा जाता है। अग्नि के अंश से इसका जन्म हुआ था। इसे ‘याज्ञसेनि’, अथवा ‘यज्ञसेनसुत’ भी कहते थे। द्रोण से बदला लेने के लिये, द्रुपद ने याज एवं उपयाज नामक मुनियों के द्वारा एक यज्ञ करवाया। उस यज्ञ के ‘हविष्य’ सिद्ध होते ही, याज ने द्रुपद की रानी सौत्रामणी को, उसका ग्रहण करने के लिये बुलाया। महारानी के आने में जरा देर हुई। फिर याज ने क्रोध से कहा, ‘रानी! इस हविष्य को यज ने तयार किया है, एवं उपयाज ने उसका संस्कार किया है। इस कारण इससे संतान की उत्पत्ति अनिवार्य है। तुम इसे लेने आवो, या न आओ’। इतना कह कर, याज ने उस हविष्य की अग्नि में आहुति दी। फिर उस प्रज्वलित अग्नि से, यह एक तेजस्वी वीरपुरुष के रुपो में प्रकट हुआ। इसके अंगों की कांति अग्निज्वाला के समान तेजस्वी थी। इसके मस्तक पर किरीट, अंगों मे उत्तम कवच, एवं हाथों में खड्ग, बाण एवं धनुष थे। अग्नि से बाहेर आते ही, यह गर्जना करता हुआ एक रथ पर जा चढा मानो कही युद्ध के लिये जा रहा हो। उसी समय, आकाशवाणी हुई, ‘यह कुमार पांचालों का दुःख दूर करेगा। द्रोणवध के लिये इसका अवतार हुआ है उपस्थित पांचालो को बडी प्रसन्नता हुई। वे ‘साधु, साधु’; कह कर, इसे शाबाशी देने लगे। द्रौपदी स्वयंवर के समय, ‘मत्स्यवेध’ के प्रण की घोषणा द्रुपद ने धृष्टद्युम्न के द्वारा ही करवायी थी स्वयंवर के लिये, पांडव ब्राह्मणो के वंश में आये थे। अर्जुन द्वारा द्रौपदीजीति जाने पर, ‘एक ब्राह्मण ने क्षत्रियकन्या को जीत लिया’, यह बात सारे राजमंडल में फैल गयी। सारा क्षत्रिय राजमंडल क्रुद्ध हो गया। बात युद्ध तक आ गयी। फिर इसने गुप्तरुप से पांडवों के व्यवहार का निरीक्षण किया, एवं सारे राजाओं को विश्वास दिलाया ‘ब्राह्मणरुपधारी व्यक्तियॉं पांडव राजपुत्र है’ । धृष्टद्युम्न अत्यंत पराक्रमी था। इसे द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या सिखाई। भारतीय युद्ध में यह पांडवपक्ष मे था। प्रथम यह पांडवों की सेना में एक अतिरथी था। इसकी युद्धचपलता देख कर, युधिष्ठिर ने इसे कृष्ण की सलाह से सेनापति बना दिया युद्धप्रसंग में धृष्टद्युम्न ने बडे ही कौशल्य से अपना उत्तरदायित्व सम्हाला था। द्रोण सेनापति था, तब भीम ने अश्वत्थामा नामक हाथी को मार कर, किंवदंती फैला दी कि, ‘अश्वत्थामा मृत हो गया’। तब पुत्रवध की वार्ता सत्य मान कर, उद्विग्र मन से द्रोणाचार्य ने शस्त्रसंन्यास किया। तब अच्छा अवसर पा कर, धृष्टद्युम्न ने द्रोण का शिरच्छेद किया धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य की असहाय स्थिति में उसका वध किया। यह देख कर सात्यकि ने धृष्टद्युम्न की बहुत भर्त्सना की। तब दोनों में युद्ध छिडने की स्थिति आ गयी। परंतु कृष्ण ने वह प्रसंग टाल दिया। आगे चल कर, युद्ध की अठारहवे दिन, द्रोणपुत्र अश्वत्थामन ने अपने पिता के वध का बदला लेने के लिये, कौरवसेना का सैनापत्य स्वीकार किया। उसी रात को त्वेष एवं क्रोध के कारण पागलसा हो कर, वह पांडवों के शिबिर में सर्वसंहार के हेतु घुस गया। सर्वप्रथम अपने पिता के खूनी धृष्टद्युम्न के निवास में वह गया। उस समय वह सो रहा था। अश्वत्थामन ने इसे लत्ताप्रकार कर के जागृत किया। फिर धृष्टद्युम्न शस्त्रप्रहार से मृत्यु स्वीकारने के लिये तयार हुआ। किंतु अश्वत्थामन् ने कहा, ‘मेरे पिता को निःशस्त्र अवस्था में तुमने मारा हैं। इसलिये शस्त्र से मरने के लायक तुम नहीं हो’। पश्चात् अश्वत्थामन् ने इसे लाथ एवं मुक्के से कुचल कर, इसका वध किया। बाद में उसने पांडवकुल का ही पूरा संहारा किया। . प्राचीन भारत के महाकाव्य महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर पांच पाण्डवों में सबसे बड़े भाई थे। वह पांडु और कुंती के पहले पुत्र थे। युधिष्ठिर को धर्मराज (यमराज) पुत्र भी कहा जाता है। वो भाला चलाने में निपुण थे और वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। महाभारत के अंतिम दिन उसने अपने मामा शलय का वध किया जो कौरवों की तरफ था। .

धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिर के बीच समानता

धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिर आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): द्रौपदी, अर्जुन

द्रौपदी

द्रौपदी महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक है। इस महाकाव्य के अनुसार द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री है जो बाद में पांचों पाण्डवों की पत्नी बनी। द्रौपदी पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। ये कृष्णा, यज्ञसेनी, महाभारती, सैरंध्री आदि अन्य नामो से भी विख्यात है। द्रौपदी का विवाह पाँचों पाण्डव भाईयों से हुआ था। पांडवों द्वारा इनसे जन्मे पांच पुत्र (क्रमशः प्रतिविंध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ती, शतानीक व श्रुतकर्मा) उप-पांडव नाम से विख्यात थे। .

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अर्जुन

शिव अर्जुन को अस्त्र देते हुए। महाभारत के मुख्य पात्र हैं। महाराज पाण्डु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। द्रौपदी, कृष्ण और बलराम की बहन सुभद्रा, नाग कन्या उलूपी और मणिपुर नरेश की पुत्री चित्रांगदा इनकी पत्नियाँ थीं। इनके भाई क्रमशः युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव। .

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धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिर के बीच तुलना

धृष्टद्युम्न 6 संबंध है और युधिष्ठिर 16 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 9.09% है = 2 / (6 + 16)।

संदर्भ

यह लेख धृष्टद्युम्न और युधिष्ठिर के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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