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धनुष और बाण

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

धनुष और बाण के बीच अंतर

धनुष vs. बाण

thumbधनुष की सहायता से बाण चलाना निस्संदेह बहुत प्राचीन कला है, जिसका चलन आज भी है। आहार और आत्मरक्षा के लिए संसार के सभी भागों में अन्य हथियारों की अपेक्षा धनुष-बाण का प्रयोग सर्वाधिक और व्यापक हुआ है। आदिकाल से लेकर 16वीं शताब्दी तक धनुषबाण मनुष्य के निरंतर सहायक रहे हैं; यहाँ तक कि जब अग्न्यस्त्रों ने इनकी उपयोगिता समाप्त कर दी, तब भी खेल, शौक और मनोरंजन के रूप में इनका प्रयोग चलता रहा है। . यह धनुष के साथ प्रयुक्त होने वाला एक अस्त्र है जिसका अग्र भाग नुकीला होता है। बाण का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद संहिता में मिलता है। इषुकृत् और इषुकार शब्दों का प्रयोग सिद्ध करता है कि उन दिनों बाण-निर्माण-कार्य व्यवस्थित व्यवसाय था। ऋग्वेदकालीन लोहार केवल लोहे का काम ही नहीं करता था, बाण भी तैयार करता था। बाण का अग्र भाग लोहार बनाता था और शेष बाण-निर्मातानिकाय बनाता था। ऐतरेय ब्राह्मण (ई. पू. 600 वर्ष) में देवताओं के धनुष का रोचक वर्णन मिलता है। देवताओं ने सोमयज्ञ के उपसद् में एक धनुष तैयार किया। धनुष का अग्रभाग अग्नि, आधार सोम, दंड विष्णु और पंख वरुण था। बाण का नाम शर कैसे पड़ा, इसका वर्णन शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। जब वृत्रासुर पर इंद्र ने वज्र चलाया तब वज्र के चार खंड हो गए - स्फाय, यूप, रथ और अंतिम भाग शर के रूप में धरती पर गिर पड़ा। टूटने के कारण इनका नाम शर पड़ा। उसमें यह भी लिखा है कि बाण का शीर्ष वैसा ही है जैसे यज्ञ के लिए अग्नि। अग्निपुराण में बाण के निर्माण का वर्णन है। यह लोहे या बाँस से बनता है। बाँस सोने के रंग का और उत्तम कोटि के रेशोंवाला होना चाहिए। बाण के पुच्छभाग पर पंख होते हैं। उसपर तेल लगा रहना चाहिए, ताकि उपयोग में सुविधा हो। इसकी नोक पर स्वर्ण भी जड़ा होता है। हरिहरचतुरंग के अनुसार बाण तालतृण के दंत, शृंग या शारभ द्रुम (साल या वेणु) के बनते थे। विष्णुधर्मोत्तर में उनके धातु के, शृंग के तथा दारु (बाँस) के बने होने का उल्लेख है। इससे सिद्ध होता है कि ज्यों ज्यों समय बीतता गया पुरानी चीजें छोड़ दी गई। धातु का उपयोग महत्व का है और युद्धकला का अंतिम विकास है। अग्निपुराण में उत्कृष्ट, सामान्य और निकृष्ट तीन प्रकार के बाणों की पहचान दी है। बाण को निर्मुक्त करने के लिए उसके पंखदार सिरे को अँगूठे की सहायता से पकड़ना चाहिए। उत्कृष्ट बाण के दंत की माप 12 मुष्टि (1 मुष्टि संभवत: 1 पल के बराबर थी), सामान्यकी 11 मुष्टि और निकृष्ट की 10 मुष्टि होती थी। मनु ने भी इन आयुधों का उल्लेख किया है। कालिदास ने तेज, गहरे और दृढ़ दंडों का वर्णन किया है: वेणु, शर, शलाका, दंडसार और नाराच। कुछ बाणों पर लोहे की नोक की, कुछ पर काटने के लिए अस्थि की नोक की और कुछ पर छेदने के लिए लकड़ी की नोक की व्यवस्था रहती थी। जो धनुर्धर आधे अंगुल मोटी धातु की पट्टी को अथवा चमड़े की 24 परतों को बेध देता था, वह अत्यत कुशल माना जाता था। .

धनुष और बाण के बीच समानता

धनुष और बाण आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): अग्निपुराण

अग्निपुराण

अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। अनेक विद्वानों ने विषयवस्‍तु के आधार पर इसे 'भारतीय संस्‍कृति का विश्‍वकोश' कहा है। अग्निपुराण में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्‍णु एवं शिव तथा सूर्य की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है। इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। इस पुराण के वक्‍ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्‍यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्‍य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्‍ट तथा महत्‍वपूर्ण हो जाता है। पद्म पुराण में भगवान् विष्‍णु के पुराणमय स्‍वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के 18 अंग कहे गए हैं। उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्‍णु का बायां चरण कहा गया है। .

अग्निपुराण और धनुष · अग्निपुराण और बाण · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

धनुष और बाण के बीच तुलना

धनुष 21 संबंध है और बाण 8 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 3.45% है = 1 / (21 + 8)।

संदर्भ

यह लेख धनुष और बाण के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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