लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और यान्डाबू की संधि

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और यान्डाबू की संधि के बीच अंतर

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध vs. यान्डाबू की संधि

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध 1852 ईसवी में हुआ था। वर्मा के प्रथम युद्ध का अंत याण्डबू की संधि से हुआ था परंतु यह संधि बर्मा के इतिहास में ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुई और यह संधि समाप्त हो गई। इस संधि के समापन का कारण यह था कि संधि के पश्चात कुछ अंग्रेजी व्यापारी बर्मा के दक्षिणी तट पर बस गए और वहीं से अपने व्यापार का संचालन प्रारंभ किया। कुछ समय पश्चात इन व्यापारियों ने बर्मा सरकार के निर्देशों एवं नियमों का उल्लंघन करना प्रारंभ कर दिया। इस कारण बर्मा सरकार ने उन व्यापारियों को दंडित किया जिसके फलस्वरुप अंग्रेज व्यापारियों ने अंग्रेजी शासन से सन 1851 ईस्वी में सहायता मांगी। लॉर्ड डलहौजी ने इस अवसर का फायदा उठाकर सन 1852 ईस्वी में बर्मा के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध में अंग्रेजों ने बर्मा को पराजित किया और मर्तवान एवं रंगून पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। इस युद्ध के पश्चात बर्मा का समस्त दक्षिणी भाग अंग्रेजी सरकार के अधिकार में आ गया। . यान्डाबू की संधि (बर्मी भाषा: ရန္တပို စာချုပ် / रन्तपो चाख्युप्) प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध में बर्मा के परजय के बाद हुई थी। यह युद्ध ५ मार्च १८२४ से शुरू होकर लगभग २ वर्ष तक चला था। इस संधि पर २४ फरवरी १८२६ को हस्ताक्षर हुए थे। यह सन्धि बर्मा की राजधानी आवा से ८० किमी दूर यान्डाबू गाँव में हुई थी। इस संधि में बर्मा को बिना किसी चर्चा के ही इस संधि की शर्तों पर हस्ताक्षर करने पड़े थे। .

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और यान्डाबू की संधि के बीच समानता

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और यान्डाबू की संधि आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध, म्यान्मार

प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध

प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध (5 मार्च 1824 - 24 फ़रवरी 1826), 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासकों और बर्मी साम्राज्य के मध्य हुए तीन युद्धों में से प्रथम युद्ध था। यह युद्ध, जो मुख्यतया उत्तर-पूर्वी भारत पर अधिपत्य को लेकर शुरू हुआ था, पूर्व सुनिश्चित ब्रिटिश शासकों की विजय के साथ समाप्त हुआ, जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश शासकों को असम, मणिपुर, कछार और जैनतिया तथा साथ ही साथ अरकान और टेनासेरिम पर पूर्ण नियंत्रण मिल गया। बर्मी लोगों को 1 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग की क्षतिपूर्ति राशि की अदायगी और एक व्यापारिक संधि पर हस्ताक्षर के लिए भी विवश किया गया था। यह सबसे लम्बा तथा ब्रिटिश भारतीय इतिहास का सबसे महंगा युद्ध था। इस युद्ध में 15 हज़ार यूरोपीय और भारतीय सैनिक मारे गए थे, इसके साथ ही बर्मी सेना और नागरिकों के हताहतों की संख्या अज्ञात है। इस अभियान की लागत ब्रिटिश शासकों को 5 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग से 13 मिलियन पाउंड स्टर्लिंग तक पड़ी थी, (2005 के अनुसार लगभग 18.5 बिलियन डॉलर से लेकर 48 बिलियन डॉलर), जिसके फलस्वरूप 1833 में ब्रिरिश भारत को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था। बर्मा के लिए यह अपनी स्वतंत्रता के अंत की शुरुआत थी। तीसरा बर्मी साम्राज्य, जिससे एक संक्षिप्त क्षण के लिए ब्रिटिश भारत भयाक्रांत था, अपंग हो चुका था और अब वह ब्रिटिश भारत के पूर्वी सीमांत प्रदेश के लिए किसी भी प्रकार से खतरा नहीं था। एक मिलियन पाउंड (उस समय 5 मिलियन यूएस डॉलर के बराबर) की क्षतिपूर्ति राशि अदा करने से, जोकि उस समय यूरोप के लिए भी एक बहुत बड़ी राशि थी, बर्मी लोग आने वाले कई वर्षों के लिए स्वतः ही आर्थिक रूप से नष्ट हो जाते.

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध · प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध और यान्डाबू की संधि · और देखें »

म्यान्मार

म्यांमार यो ब्रह्मदेश दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका आधुनिक बर्मी नाम 'मयन्मा' (မြန်မာ .

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और म्यान्मार · म्यान्मार और यान्डाबू की संधि · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और यान्डाबू की संधि के बीच तुलना

द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध 6 संबंध है और यान्डाबू की संधि 4 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 20.00% है = 2 / (6 + 4)।

संदर्भ

यह लेख द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध और यान्डाबू की संधि के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »