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दोस्त मुहम्मद ख़ान और प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

दोस्त मुहम्मद ख़ान और प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध के बीच अंतर

दोस्त मुहम्मद ख़ान vs. प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध

दोस्त मोहम्मद खान (पश्तो: दोस्त मोहम्मद खान, 23 दिसंबर 1793 - 1863) 9 जून प्रथम आंग्ल-अफगान दौरान बारक़ज़ई वंश का संस्थापक और अफगानिस्तान के प्रमुख शासकों में से एक था।826-1839 अफगानिस्तान के अमीर बन गया और दुर्रानी वंश के पतन के साथ, वह 1845 से 1863 तक अफ़ग़ानिस्तान पर शासन किया। वह सरदार पाइंदा खान (बरक़ज़ई जनजाति के प्रमुख) का 11 वां बेटा था जो जमान शाह दुर्रानी से 1799 में मारा गया था। दोस्त मोहम्मद के दादा हाजी जमाल खान था। अफ़ग़ानों और अंग्रेजों की पहली लड़ाई के बाद उसे कलकत्ता निर्वासित कर दिया गया था लेकिन शाह शुजा की हत्या के बाद, 1842 में ब्रिटिश उसे अफ़ग़ानिस्तान का अमीर बना गए। उसने पंजाब के रणजीत सिंह से भी लोहा लिया। . एलिजाबेथ बटलर द्वारा बनाया गया चित्र जिसमें जनवरी १८४२ में जलालाबाद के अंग्रेज़ सैन्य अड्डे पर पहुँचने वाले एक मात्र ब्रिटिश विलियम ब्राइडन को दिखाया गया है। काबुल से वापसी की शुरुआत क़रीब १६५०० ब्रिटिश तथा भारतीय सैनिकों और कर्मचारियों ने की थी। प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध जिसे प्रथम अफ़ग़ान युद्ध के नाम से भी जाना जाता है, 1839 से 1842 के बीच अफ़ग़ानिस्तान में अंग्रेजों और अफ़ग़ानिस्तान के सैनिकों के बीच लड़ा गया था। इसकी प्रमुख वजह अंग्रज़ों के रूसी साम्राज्य विस्तार की नीति से डर था। आरंभिक जीत के बाद अंग्रेज़ो को भारी क्षति हुई, बाद में सामग्री और सैनिकों के प्रवेश के बाद वे जीत तो गए पर टिक नहीं सके। .

दोस्त मुहम्मद ख़ान और प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध के बीच समानता

दोस्त मुहम्मद ख़ान और प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध आम में 6 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): महाराजा रणजीत सिंह, शाह शुजा, हेरात, ग़ज़नी, कांधार, अलेक्ज़ेंडर बर्न्स

महाराजा रणजीत सिंह

महाराजा रणजीत सिंह (पंजाबी: ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ) (१७८०-१८३९) सिख साम्राज्य के राजा थे। वे शेर-ए पंजाब के नाम से प्रसिद्ध हैं। जाट सिक्ख महाराजा रणजीत एक ऐसी व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं भटकने दिया। रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) जाट सिक्ख महाराजा महां सिंह के घर हुआ था। उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी जाती रही। महज 12 वर्ष के थे जब पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर आ गया। 12 अप्रैल 1801 को रणजीत ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। गुरु नानक के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। उन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया। महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी पंजाब की ओर खदेड़ दिया। अब पेशावर समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने पेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया। पहली आधुनिक भारतीय सेना - "सिख खालसा सेना" गठित करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उनकी सरपरस्ती में पंजाब अब बहुत शक्तिशाली सूबा था। इसी ताकतवर सेना ने लंबे अर्से तक ब्रिटेन को पंजाब हड़पने से रोके रखा। एक ऐसा मौका भी आया जब पंजाब ही एकमात्र ऐसा सूबा था, जिस पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं था। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक, अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते। महाराजा रणजीत खुद अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया। उन्होंने पंजाब में कानून एवं व्यवस्था कायम की और कभी भी किसी को मृत्युदण्ड नहीं दी। उनका सूबा धर्मनिरपेक्ष था उन्होंने हिंदुओं और सिखों से वसूले जाने वाले जजिया पर भी रोक लगाई। कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया। उन्होंने अमृतसर के हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा। बेशकीमती हीरा कोहिनूर महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। सन 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई, जो आज भी वहां कायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। अंग्रेज-सिख युद्ध के बाद 30 मार्च 1849 में पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया और कोहिनूर महारानी विक्टोरिया के हुजूर में पेश कर दिया गया। .

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शाह शुजा

शाह शुजा दुर्रानी अफ़ग़ानिस्तान का अमीर था(1803-9, 1839-42) जो दोस्त मुहम्मद ख़ान से हारकर कश्मीर में रहा था। प्रथम आंग्ल अफ़ग़ान युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने उसे अफ़ग़ानिस्तान का शासक फिर से बनाया लेकिन २ साल के भीतर उसकी काबुल में हत्या कर दी गई। इसके बाद दुर्रानी वंश का पतन हो गया था। उसे सिख महाराजा रणजीत सिंह ने एक आक्रमण में कश्मीर से छुड़वाया था और अपनी रिहाई के बदले में उसने रणजीत सिंह को प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा दिया था। श्रेणी:अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास.

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हेरात

हेरात हेरात (पश्तो:, अंग्रेजी: Herat) अफ़्ग़ानिस्तान का एक नगर है और हेरात प्रान्त की राजधानी भी है। यह देश के पश्चिम में है और ऐतिहासिक महत्व के शहर है। यह वृहत ख़ोरासान क्षेत्र का हिस्सा है और सबसे बड़ा शहर भी। रेशम मार्ग पर स्थित होने के कारण यह वाणिज्य का केन्द्र रहा है जहाँ से भारत और चीन से पश्चिमी देशों का व्यापार होता रहा है। पारसी ग्रंथ अवेस्ता में इसका ज़िक्र मिलता है। ईसा के पूर्व पाँचवीं सदी के हख़ामनी काल से ही यह एक संपन्न शहर रहा है। यहाँ इस्लाम सातवीं सदी के मध्य में आया जिसके बाद कई विद्रोह हुए। हेरात हरी नदी (हरीरूद) के किनारे बसा हुआ है। .

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ग़ज़नी

ग़ज़नी भगवान श्रीकृष्णजी के उत्तराधिकारी द्वारिका की बजाय मथुरा की राजगद्दी पर विराजमान हुए, जिनकी पाँचवीं पीढ़ी में सुबाहु नाम के एक प्रतापी शासक हुए। राजा सुबाहु ने पुरुषपुर(पेशावर) पर आक्रमण कर अपना अधिकार जमा लिया एवं उसे अपनी राजधानी बनाया। एक बार राजा सुबाहु शिकार के दौरान एक सुअर का पीछा करते हुए पाताल लोक पधारे जहां वराह भगवान के दर्शन होने से सुअर का शिकार न करने का संकल्प लिया, तब से यदु वंश राजपूत में सुअर का शिकार निषेध है। राजा सुबाहु के पौत्र एवं राजा रजसेन के पुत्र राजा गजबाहु एक वीर और शक्तिशाली शासक थे। इनका साम्राज्य पशि्चमोतर भारत के विशाल भू-भाग पर फैला था। राजा गजबाहु ने साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ उसकी सुरक्षा हेतु गंधार प्रदेश में युधिष्ठिर संवत् ३०८ कि अक्षय तृतीया रविवार को रोहिणी नक्षत्र में कुलदेवी स्वांगिया माता की कृपा से गजनी नगर की स्थापना कर वहां एक सुदृढ़ किले का निर्माण करवाकर उसकी प्रतिष्ठा करवाई। "रवि रोहिणी गजबाहु ने गजनी रची नवीन। वर्तमान से लगभग साढ़े चार हजार से भी अधिक वर्ष पूर्व निर्मित गजनी का किला अत्यंत ही मजबूत व अभेद्य था।पीतल के समान ठोस बनावट वाले इस किले की प्रचीरें एक दूसरे में गुंथी हुई डमरुनुमा थी, जिसे शत्रु बारूद से भी नहीं उड़ा सकता था। राजा गजबाहु के शासन काल में रुम प्रदेश कि फौज ने खुरासान कि मदद से गजनीपर आक्रमण की योजना बनाई दोनों प्रदेशों की सेना के गजनी पहुंचने से पहले राजा गजबाहु ने आगे बढ़कर कुंज शहर के नजदीक मुकाबला किया जिसमें राजा गजबाहु विजय हासिल की। उन्होंने अपने बल व पराक्रम से अपना साम्राज्य खुरासान बकत्रिया व बल्ख बुखारा तक फैला दिया। राजा गजबाहु ने कंधार,काबुल, मुल्तान, लाहौर व मथुरा तक के विस्तृत भू -भाग पर अपना सुशासन स्थापित किया। राजा गजबाहु के वंशज ने कई किलो का निर्माण करवाया गजबाहु के वंशज ने जैसलमेर की स्थापना कर नई राजधानी बसाई के कुछ समय बाद ही राजा कि अकाल मृत्यु ओर सड़यंत्र के कारण राजगद्दी वारिस को जैसलमेर त्यागना पड़ा। एक नया गांव बसाया डांगरी तथा यहाँ के ठाकुर ही राजा गजबाहु के वंशज थे जिन्होंने जैसलमेर त्यागने के पश्चात् इन्हीं के वंशज राजा देरावर ने देरावरगढ कि स्थापना की। राजा भूपत भटनेर ओर भटिन्डा बसाया डांगरी के अन्तिम ठाकुर सतीदानसिहं हुए। डांगरी जैसलमेर जिला मुख्यालयसे ८० किमीदुर है। इनके बाद राजा गजबाहु के वंशजों की पृष्ट नहीं है। नोट:- यह इतिहास १०० वर्ष से ४००० वर्ष पूर्व का है।.

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कांधार

The final phase of the battle of Kandahar on the side of the Murghan mountain कांधार या कंदहार अफ़ग़ानिस्तान का एक शहर है। यह अफगानिस्तान का तीसरा प्रमुख ऐतिहासिक नगर एवं कंदहार प्रान्त की राजधानी भी है। इसकी स्थिति 31 डिग्री 27मि उ.अ. से 64 डिग्री 43मि पू.दे.

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अलेक्ज़ेंडर बर्न्स

बुख़ारा के परिधान में सर बर्न्स अलेक्ज़ेंडर बर्न्स (Sir Alexander Burnes) या सिकंदर बर्न्स (16 मई 1805-2 नवंबर 1841) एक ब्रिटिश यात्रावृत्त लेखक तथा जासूस थे जिनकी 1831-32 के बीच की पंजाब, पेशावर, काबुल होते हुए बुख़ारा की यात्रा से उन्हें ख्याति मिली थी। उनकी लिखी किताबों को उस समय ब्रिटेन में बहुत प्रसिद्धि मिली थी जिसके बाद उन्हें सर की उपाधि भी दी गई थी। इससे अंग्रेज़ों को मध्य एशिया में हो रही गतिविधियों के अलावा वहाँ की भौगोलिक जानकारी भी मिली थी। इसके बाद ब्रिटिश सेना ने अफ़गानिस्तान पर चढ़ाई की थी और इसी दौरान सन् 1841 के नवंबर में काबुल में उनका क़त्ल कर दिया गया था। इससे पहले विलियम मूरक्रॉफ़्ट और उनके साथ गए नौजवान ने बुखारा की यात्रा की थी जो घोड़ो के पालन के तथाकथित विश्व प्रसिद्ध स्थान बुख़ारा की परंपरा देखना चाहते थे। दोनों बुख़ारा तो पहुँच गए थे पर वापस लौटते वक़्त बाल्ख़ के मज़ार-ए-शरीफ़ में बामारी वजह से मारे गए थे। स्कॉटलैंड में जन्मे बर्न्स को सिकंदर (पश्चिम में अलेक्ज़ेंडर) के विजित प्रदेशों को देखने का बहुत शौक था। अपनी किताब ट्रावेल्स इन टू बोख़ारा की प्रस्तावना में उन्होंने लिखा है कि सिन्धु नदी के आवागमन का रास्ता पता करने के बाद उनमें काबुल और उसके पार जाने का उत्साह आया। विजेता सिकंदर ३३० ईस्वी पूर्व के आसपास पेशावर और उसके उत्तर के प्रदेश तक पहुँचा था। वो बुख़ारा और बाल्ख़ से होते हुए आया था। भारतीय मुहम्मद अली और मोहन लाल ज़ुत्शी भी इस यात्रा में उसके साथ थे - वापस आने के साथ ही मुहम्मद अली किसी बीमारी की वजह से चल बसा था। .

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दोस्त मुहम्मद ख़ान और प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध के बीच तुलना

दोस्त मुहम्मद ख़ान 20 संबंध है और प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध 13 है। वे आम 6 में है, समानता सूचकांक 18.18% है = 6 / (20 + 13)।

संदर्भ

यह लेख दोस्त मुहम्मद ख़ान और प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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