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देवीमाहात्म्य और संस्कृत साहित्य

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

देवीमाहात्म्य और संस्कृत साहित्य के बीच अंतर

देवीमाहात्म्य vs. संस्कृत साहित्य

ताड़पत्र पर भुजिमोल लिपि में लिखी देवीमाहात्म्य की सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि देवीमाहात्म्यम् (अर्थ: देवी का महात्म्य) हिन्दुओं का एक धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें देवी दुर्गा की महिषासुर नामक राक्षस के ऊपर विजय का वर्णन है। यह मार्कण्डेय पुराण का अंश है। इसमें ७०० श्लोक होने के कारण इसे 'दुर्गा सप्तशती' भी कहते हैं। इसमें सृष्टि की प्रतीकात्मक व्याख्या की गई है। जगत की सम्पूर्ण शक्तियों के दो रूप माने गये है - संचित और क्रियात्मक। नवरात्रि के दिनों में इसका पाठ किया जाता है। इस रचना का विशेष संदेश है कि विकास-विरोधी दुष्ट अतिवादी शक्तियों को सारे सभ्य लोगों की सम्मिलित शक्ति "सर्वदेवशरीजम" ही परास्त कर सकती है, जो राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। इस प्रकार आर्यशक्ति अजेय है। इसमे गमन (इसका भेदन) दुष्कर है। इसलिए यह 'दुर्गा' है। यह अतिवादियों के ऊपर संतुलन-शक्ति (stogun) सभ्यता के विकास की सही पहचान है। . बिहार या नेपाल से प्राप्त देवीमाहात्म्य की यह पाण्डुलिपि संस्कृत की सबसे प्राचीन सुरक्षित बची पाण्डुलिपि है। (११वीं शताब्दी की) ऋग्वेदकाल से लेकर आज तक संस्कृत भाषा के माध्यम से सभी प्रकार के वाङ्मय का निर्माण होता आ रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी के छोर तक किसी न किसी रूप में संस्कृत का अध्ययन अध्यापन अब तक होता चल रहा है। भारतीय संस्कृति और विचारधारा का माध्यम होकर भी यह भाषा अनेक दृष्टियों से धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) रही है। इस भाषा में धार्मिक, साहित्यिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक और मानविकी (ह्यूमैनिटी) आदि प्राय: समस्त प्रकार के वाङ्मय की रचना हुई। संस्कृत भाषा का साहित्य अनेक अमूल्य ग्रंथरत्नों का सागर है, इतना समृद्ध साहित्य किसी भी दूसरी प्राचीन भाषा का नहीं है और न ही किसी अन्य भाषा की परम्परा अविच्छिन्न प्रवाह के रूप में इतने दीर्घ काल तक रहने पाई है। अति प्राचीन होने पर भी इस भाषा की सृजन-शक्ति कुण्ठित नहीं हुई, इसका धातुपाठ नित्य नये शब्दों को गढ़ने में समर्थ रहा है। संस्कृत साहित्य इतना विशाल और scientific है तो भारत से संस्कृत भाषा विलुप्तप्राय कैसे हो गया? .

देवीमाहात्म्य और संस्कृत साहित्य के बीच समानता

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