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दहेज प्रथा और भाग्यवती उपन्यास

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

दहेज प्रथा और भाग्यवती उपन्यास के बीच अंतर

दहेज प्रथा vs. भाग्यवती उपन्यास

दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं। यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज, हुँडा या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई हँ। पिछड़े भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा अभी भी विकराल रूप में है। . भाग्यवती पण्डित श्रद्धाराम फिल्लौरी द्वारा रचित हिन्दी उपन्यास है। इसकी रचना सन् १८८७ में हुई थी। इसे हिन्दी का प्रथम् उपन्यास होने का गौरव प्राप्त है। इसकी रचना मुख्यत: अमृतसर में हुई थी और सन् १८८८ में यह प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास की पहली समीक्षा अप्रैल 1887 में हिन्दी की मासिक पत्रिका प्रदीप में प्रकाशित हुई थी। इसे पंजाब सहित देश के कई राज्यो के स्कूलों में कई सालों तक पढाया जाता रहा। इस उपन्यास में उन्होंने काशी के एक पंडित उमादत्त की बेटी भगवती के किरदार के माध्यम से बाल विवाह पर ज़बर्दस्त चोट की। इसी इस उपन्यास में उन्होंने भारतीय स्त्री की दशा और उसके अधिकारों को लेकर क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किए। यह उपन्यास स्त्रियों में जागृति लाने के उद्देश्य से लिखा गया था। इस उपन्यास की मुख्य पात्र एक स्त्री है। इसमें स्त्रियों के प्रगतिशील रूप का चित्रण है एवं उनके अधिकारों एवं स्थिति की बात की गयी है। उस जमाने में इस उपन्यास में विधवा विवाह का पक्ष लिया गया है; बालविवाह की निन्दा की गयी है; बच्चा और बच्ची के समानता की बात की गयी है। यह पुस्तक उस समय विवाह में लड़कियों को दहेज के रूप में दी जाती थी। पं.

दहेज प्रथा और भाग्यवती उपन्यास के बीच समानता

दहेज प्रथा और भाग्यवती उपन्यास आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): बाल विवाह

बाल विवाह

बालविवाह? एक ऐसी प्रथा जिससे कोई अपरिचित नहीं हैं। बालविवाह केवल भारत मैं ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में होते आएं हैं और समूचे विश्व में भारत का बालविवाह में दूसरा स्थान हैं। सम्पूर्ण भारत मैं विश्व के 40% बालविवाह होते हैं और समूचे भारत में 49% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता हैं। भारत में, बाल विवाह केरल राज्य, जो सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है, में अब भी प्रचलन में है। यूनिसेफ (संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल आपात निधि) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों से अधिक बाल विवाह होते है। आँकड़ो के अनुसार, बिहार में सबसे अधिक 68% बाल विवाह की घटनाएं होती है जबकि हिमाचल प्रदेश में सबसे कम 9% बाल विवाह होते है। यह सोच कर बड़ा अजीब लगता हैं कि वह भारत जो अपने आप में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा हैं उसमें आज भी एक ऐसी कुरीति जिन्दा हैं। एक ऐसी कुरीति जिसमें दो अपरिपक्व लोगो को जो आपस में बिलकुल अनजान हैं उन्हें जबरन ज़िन्दगी भर साथ रहने के एक बंधन में बांध दिया जाता हैं और वे दो अपरिपक्व बालक शायद पूरी ज़िन्दगी भर इस कुरीति से उनके ऊपर हुए अत्याचार से उभर नहीं पाते हैं और बाद में स्तिथियाँ बिलकुल खराब हो जाती हैं और नतीजे तलाक और मृत्यु तक पहुच जाते हैं। तो क्या यह प्रथा भारत में आदिकाल से ही थी? या इसे बाद में प्रचलन में लाया गया? और यदि बाद में लाया गया तो इसका क्या कारण था? यह प्रथा भारत में शुरू से नहीं थी। ये दिल्ली सल्तनत के समय में अस्तित्व में आया जब राजशाही प्रथा प्रचलन में थी। भारतीय बाल विवाह को लड़कियों को विदेशी शासकों से बलात्कार और अपहरण से बचाने के लिये एक हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता था। बाल विवाह को शुरु करने का एक और कारण था कि बड़े बुजुर्गों को अपने पौतो को देखने की चाह अधिक होती थी इसलिये वो कम आयु में ही बच्चों की शादी कर देते थे जिससे कि मरने से पहले वो अपने पौत्रों के साथ कुछ समय बिता सकें। बालविवाह के दुस्परिणाम? बालविवाह के केवल दुस्परिणाम ही होते हैं जीनमें सबसे घातक शिशु व माता की मृत्यु दर में वृद्धि | शारीरिक और मानसिक विकास पूर्ण नहीं हो पता हैं और वे अपनी जिम्मेदारियों का पूर्ण निर्वेहन नहीं कर पाते हैं और इनसे एच.आई.वि.

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दहेज प्रथा और भाग्यवती उपन्यास के बीच तुलना

दहेज प्रथा 3 संबंध है और भाग्यवती उपन्यास 11 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 7.14% है = 1 / (3 + 11)।

संदर्भ

यह लेख दहेज प्रथा और भाग्यवती उपन्यास के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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