दक्षिण कोरिया और हानगुल के बीच समानता
दक्षिण कोरिया और हानगुल आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): कोरियाई भाषा, कोरियाई साहित्य।
कोरियाई भाषा
कोरियाई भाषा दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया की आधिकारिक भाषा है और इसे बोलने वालों की संख्या लगभग ८ करोड़ है। इस भाषा का विकास १४४३ ई० में किंगसेजोंग के शासनकाल में हुआ। इस भाषा की लिपि हंगुल (Hangul 한글) है। कोरियन में 한 (हान/Haan) का अर्थ है - कोरिया अथवा महान और 글/गुल/geul का अर्थ है - लिपि। इस प्रकार हंगुल का अर्थ हुआ - "महान लिपि" अथवा "कोरियन लिपि"। कोरियायी भाषा अल्टाइक कुल की भाषा है जो चीनी की भाँति संसार की प्राचीन भाषाओं में गिनी जाती है। चीनी की भाँति यह भी दाए से बाई ओर लिखी जाती है। इसका इतिहास कोरिया के इतिहास की तरह ही 4000 वर्ष प्राचीन है। प्राचीन काल में चीनी लोग कोरिया में जाकर बस गए थे, इसलिये वहाँ की भाषा भी चीनी भाषा से काफी प्रभावित है। चीनी और कोरियायी के अनेक शब्द मिलते जुलते हैं: उस समय कोरिया के विद्वानों की बोलचाल की भाषा तो कोरियायी थी लेकिन वे चीनी में लिखते थे। चीनी लिपि में लिखी जानेवाली कोरियायी भाषा की लिपि हानमून/hanmun कही जाती थी। जबतक कोई विद्वान प्राचीन चीनी का ज्ञाता न हो तब तक वह पूर्ण विद्वान नहीं माना जाता था। कोरियायी भाषा अपनी शिष्टता और विनम्रता के लिये प्रसिद्ध है। शिष्टता और विनम्रतासूचक कितने ही शब्द इस भाषा में पाए जाते हैं। कोरिया के लोग अभिवादन के समय "आप शांतिपूर्वक आएँ", "आप शांतिपूर्वक सोएँ" जैसे आदरसूचक शब्दों का प्रयोग करते हैं। .
कोरियाई भाषा और दक्षिण कोरिया · कोरियाई भाषा और हानगुल ·
कोरियाई साहित्य
चीनी आदि भाषाओं के प्राचीन साहित्य की भाँति कोरियायी के प्राचीन साहित्य में भी धार्मिक कर्मकांड की मुख्यता देखने में आती है। नीतिशास्त्र, आचारशास्त्र, तथा कनफ्यूशियस और बौद्धधर्म (ईसवी सन् 369 में चीन से होकर प्रविष्ट) के उपदेश इस साहित्य में प्रधानता से पाए जाते हैं। भौतिक ध्रम् 14वीं शताब्दी से 19 वीं शताब्दी ईसवी तक कोरियायी साहित्य की दिन पर दिन उन्नति होती गई। 14वीं शताब्दी में कासन नामक एक बौद्ध भिक्षु ने हौंग किल डोंग के साहसपूर्ण कृत्य नामक उपन्यास लिखा। 1478 में सुंगजोंग ने कोरियाई भाषा के आदि से अंत तक सर्वश्रेष्ठ साहित्य का संकलन करने के लिये 23 विद्वानों का एक आयोग नियुक्त किया जिसके फलस्वरूप तौंगमुन नाम का एक संकलन तैयार हुआ जिसमें 500 लेखकों की रचनाएँ संकलित की गईं। इस काल में इतिहास, आयुर्वेद, कृषि आदि पर भी साहित्य का निर्माण हुआ। हानगूल वर्णमाला का आविष्कार भी इसी समय हुआ। 18वीं सदी में कोरिया में ईसाई धर्म का प्रवेश हुआ। इस समय जन्म, विवाह, मृत्यु, अंत्येष्टि क्रिया, पितृ पूजा और आतिथ्य आदि के संबंध में साहित्य का निर्माण हुआ। 18वीं 19 वीं सदी में कनफ्यूशियस धर्म के आधार पर अनेक उपन्यासों, कहानियों और नाटकों की रचना हुई। वसंत ऋ तु की सुगंध नामक उपन्यास में एक पतिव्रता स्त्री का सुंदर चित्रण उपस्थित किया गया। यह साहित्य कोरिया की नई वर्णमाला में लिखा गया। .
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संदर्भ
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