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तुहफ़तुल हिन्द और हिन्दी व्याकरण का इतिहास

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

तुहफ़तुल हिन्द और हिन्दी व्याकरण का इतिहास के बीच अंतर

तुहफ़तुल हिन्द vs. हिन्दी व्याकरण का इतिहास

तुहफ़तुल हिन्द मिर्ज़ा ख़ान का ब्रज भाषा में लिखा गया ग्रंथ है। हिन्दी व्याकरण के इतिहास में इस ग्रंथ को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। मिर्ज़ा ख़ान ने ब्रज भाषा का एक व्याकरण १६७५ ई. से कुछ पूर्व रचा था। यह व्याकरण बहुत ही संक्षिप्त (केवल 16 पृष्ठों का) है और फारसी भाषा में लिखी उसकी मूल रचना "तुहफ़तुल-हिन्द" (हिन्दुस्तान का तोहफ़ा) का एक अंश है। तुहफ़तुल-हिन्द में तत्कालीन हिन्दी साहित्य के विविध विषयों का विवेचन है जो क्रमशः इस प्रकार हैं - व्याकरण, छन्द, तुक, अलंकार, शृंगार रस, संगीत, कामशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र और शब्दकोष। हिन्दी-फारसी शब्दकोश में तीन हजार से कुछ अधिक शब्द हैं। मीर्ज़ा ख़ान ने इस बात का बहुत खयाल रखा है कि दिये गये हिन्दी शब्दों की वर्तनी में कोई गलती न हो। इसके लिए उसने अपनी रचना के प्रत्येक शब्द की वर्तनी अपने विशिष्ट लिप्यंतरण के रूप में दी है। उदाहरणस्वरूप - फारसी/अरबी के 'वाव्' अक्षर का प्रयोग 'ऊ' (जैसे 'नूर' में) और 'ओ' (जैसे 'शोर' में) दोनों ध्वनियों के लिए किया जाता है। प्रथम ध्वनि के लिए वह 'वाव्-ए-मरूफ़' और दूसरे के लिए 'वाव्-ए-मज्हूल' शब्द का प्रयोग करता है। पूर्ण अनुनासिक ध्वनि (जैसे 'माँ' 'भँवरा' में) एवं अपूर्ण अनुनासिक ध्वनि (जैसे 'गंगा' में) - इन दोनों के लिए फारसी/अरबी लिपि में सिर्फ 'नून' अक्षर है। मीर्ज़ा ख़ान ने इन दोनों ध्वनियों के लिए 'नून' में अलग-अलग विशिष्ट चिह्न देकर अन्तर दर्शाया है। मीर्ज़ा ख़ान का विभिन्न विषयों का विवेचन संतोषजनक रूप से वैज्ञानिक एवं विस्तृत है। भाषाशास्त्र के विचार से उसका कोश देशी भाषाओं के विश्लेषण में रुचि रखनेवालों के लिए बहुत उपयोगी है। अपनी भूमिका में मीर्ज़ा ख़ान ने हिन्दी वर्णमाला का विस्तृत विवेचन किया है। यथोचित व्याकरण अंग्रेजी अनुवाद भाग में कुल 16 पृष्ठों (पृ. 53-91) का है। इस व्याकरण का फारसी शीर्षक (पृ. 51) है - "क़वाइदे कुल्लियः भाखा" (अर्थात् 'भाखा के व्याकरणिक नियम')। क़वाइद का विवेचन भूमिका के चौथे अध्याय के दूसरे भाग में है, जिसमें कुल दश अनुच्छेद हैं। पहले अनुच्छेद में ब्रज भाषा की स्थिति का वर्णन है। लेखक सभी भाषाओं में इस भाषा की विशेष प्रशंसा करता है, क्योंकि यह कवियों और संस्कृत लोगों की भाषा है। इसी कारण लेखक इस भाषा के व्याकरणिक नियमों की रचना करने का निश्चय करता है। दूसरे अनुच्छेद में शब्द और उसके प्रकार का विवेचन है। तीसरे और चौथे अनुच्छेदों में प्रत्ययों सहित क्रमशः पुलिंग (. उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण हिन्दी भाषा का व्याकरण लिखने के प्रयास काफी पहले आरम्भ हो चुके थे। अद्यतन जानकारी के अनुसार हिन्दी व्याकरण का सबसे पुराना ग्रंथ बनारस के दामोदर पण्डित द्वारा रचित द्विभाषिक ग्रंथ उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण सिद्ध होता है। यह बारहवीं शताब्दी का है। यह समय हिंदी का क्रमिक विकास इसी समय से प्रारंभ हुआ माना जाता है। इस ग्रंथ में हिन्दी की पुरानी कोशली या अवधी बोली बोलने वालों के लिए संस्कृत सिखाने वाला एक मैनुअल है, जिसमें पुरानी अवधी के व्याकरणिक रूपों के समानान्तर संस्कृत रूपों के साथ पुरानी कोशली एवं संस्कृत दोनों में उदाहरणात्मक वाक्य दिये गये हैं। 'कोशली' का लोक प्रचलित नाम वर्तमान में 'अवधी' या 'पूर्वीया हिन्दी' है। १६७५ई.

तुहफ़तुल हिन्द और हिन्दी व्याकरण का इतिहास के बीच समानता

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संदर्भ

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