तीर्थंकर और धर्मनाथ के बीच समानता
तीर्थंकर और धर्मनाथ आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): शिखरजी, श्रावस्ती, जैन धर्म में भगवान।
शिखरजी
शिखरजी या श्री शिखरजी या पारसनाथ पर्वत भारत के झारखंड राज्य के गिरीडीह ज़िले में छोटा नागपुर पठार पर स्थित एक पहाड़ी है जो विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल भी है। 'श्री सम्मेद शिखरजी' के रूप में चर्चित इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की। यहीं 23 वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। माना जाता है कि 24 में से 20 जैन ने पर मोक्ष प्राप्त किया था।, Travel.hindustantimes.com, Accessed 2012-07-07 1,350 मीटर (4,430 फ़ुट) ऊँचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊंचा स्थान भी है। .
तीर्थंकर और शिखरजी · धर्मनाथ और शिखरजी ·
श्रावस्ती
भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश प्रांत के गोंडा-बहराइच जिलों की सीमा पर यह प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थान है। गोंडा-बलरामपुर से १२ मील पश्चिम में आज का सहेत-महेत गाँव ही श्रावस्ती है। प्राचीन काल में यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। भगवान राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। श्रावस्ती बौद्ध व जैन दोनों का तीर्थ स्थान है। तथागत दीर्घ काल तक श्रावस्ती में रहे थे। यहाँ के श्रेष्ठी अनाथपिण्डिक असंख्य स्वर्ण मुद्राएँ व्यय करके भगवान बुद्ध के लिए जेतवन बिहार बनवाया था। अब यहाँ बौद्ध धर्मशाला, मठ और मन्दिर हैं। .
तीर्थंकर और श्रावस्ती · धर्मनाथ और श्रावस्ती ·
जैन धर्म में भगवान
जैन धर्म में भगवान अरिहन्त (केवली) और सिद्ध (मुक्त आत्माएँ) को कहा जाता है। जैन धर्म इस ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति, निर्माण या रखरखाव के लिए जिम्मेदार किसी निर्माता ईश्वर या शक्ति की धारणा को खारिज करता है। जैन दर्शन के अनुसार, यह लोक और इसके छह द्रव्य (जीव, पुद्गल, आकाश, काल, धर्म, और अधर्म) हमेशा से है और इनका अस्तित्व हमेशा रहेगा। यह ब्रह्माण्ड स्वयं संचालित है और सार्वभौमिक प्राकृतिक क़ानूनों पर चलता है। जैन दर्शन के अनुसार भगवान, एक अमूर्तिक वस्तु एक मूर्तिक वस्तु (ब्रह्माण्ड) का निर्माण नहीं कर सकती। जैन ग्रंथों में देवों (स्वर्ग निवासियों) का एक विस्तृत विवरण मिलता है, लेकिन इन प्राणियों को रचनाकारों के रूप में नहीं देखा जाता है; वे भी दुखों के अधीन हैं और अन्य सभी जीवित प्राणियों की तरह, अपनी आयु पूरी कर अंत में मर जाते है। जैन धर्म के अनुसार इस सृष्टि को किसी ने नहीं बनाया। देवी, देवताओं जो स्वर्ग में है वह अपने अच्छे कर्मों के कारण वहाँ है और भगवान नहीं माने जा सकते। यह देवी, देवता एक निशित समय के लिए वहाँ है और यह भी मरण उपरांत मनुष्य बनकर ही मोक्ष जा सकते है। जैन धर्म के अनुसार हर आत्मा का असली स्वभाव भगवंता है और हर आत्मा में अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत सुख है। आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण यह गुण प्रकट नहीं हो पाते। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र के माध्यम से आत्मा के इस राज्य को प्राप्त किया जा सकता है। इन रतंत्रय के धारक को भगवान कहा जाता है। एक भगवान, इस प्रकार एक मुक्त आत्मा हो जाता है - दुख से मुक्ति, पुनर्जन्म, दुनिया, कर्म और अंत में शरीर से भी मुक्ति। इसे निर्वाण या मोक्ष कहा जाता है। इस प्रकार, जैन धर्म में अनंत भगवान है, सब बराबर, मुक्त, और सभी गुण की अभिव्यक्ति में अनंत हैं। जैन दर्शन के अनुसार, कर्म प्रकृति के मौलिक कण होते हैं। जिन्होंने कर्मों का हनन कर केवल ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उन्हें अरिहन्त कहते है। तीर्थंकर विशेष अरिहन्त होते है जो 'तीर्थ' की रचना करते है, यानी की जो अन्य जीवों को मोक्ष-मार्ग दिखाते है।जैन धर्म किसी भी सर्वोच्च जीव पर निर्भरता नहीं सिखाता। तीर्थंकर आत्मज्ञान के लिए रास्ता दिखाते है, लेकिन ज्ञान के लिए संघर्ष ख़ुद ही करना पड़ता है। .
जैन धर्म में भगवान और तीर्थंकर · जैन धर्म में भगवान और धर्मनाथ ·
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संदर्भ
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