लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

ताल

सूची ताल

तबले में ताल का प्रयोग्। संगीत में समय पर आधारित एक निश्चित ढांचे को ताल कहा जाता है। शास्त्रीय संगीत में ताल का बड़ी अहम भूमिका होती है। संगीत में ताल देने के लिये तबले, मृदंग, ढोल और मँजीरे आदि का व्यवहार किया जाता है। प्राचीन भारतीय संगीत में मृदंग, घटम् इत्यादि का प्रयोग होता है। आधुनिक हिन्दुस्तानी संगीत में तबला सर्वाधिक लोकप्रिय है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त कुछ तालें इस प्रकार हैं: दादरा, झपताल, त्रिताल, एकताल। तंत्री वाद्यों की एक शैली ताल के विशेष चलन पर आधारित है। मिश्रबानी में डेढ़ और ढ़ाई अंतराल पर लिए गए मिज़राब के बोल झप-ताल, आड़ा चार ताल और झूमरा का प्रयोग करते हैं। संगीत के संस्कृत ग्रंथों में ताल दो प्रकार के माने गए हैं—मार्ग और देशी। भरत मुनि के मत से मार्ग ६० हैं— चंचत्पुट, चाचपुट, षट्पितापुत्रक, उदघट्टक, संनिपात, कंकण, कोकिलारव, राजकोलाहल, रंगविद्याधर, शचीप्रिय, पार्वतीलोचन, राजचूड़ामणि, जयश्री, वादकाकुल, कदर्प, नलकूबर, दर्पण, रतिलीन, मोक्षपति, श्रीरंग, सिंहविक्रम, दीपक, मल्लिकामोद, गजलील, चर्चरी, कुहक्क, विजयानंद, वीरविक्रम, टैंगिक, रंगाभरण, श्रीकीर्ति, वनमाली, चतुर्मुख, सिंहनंदन, नंदीश, चंद्रबिंब, द्वितीयक, जयमंगल, गंधर्व, मकरंद, त्रिभंगी, रतिताल, बसंत, जगझंप, गारुड़ि, कविशेखर, घोष, हरवल्लभ, भैरव, गतप्रत्यागत, मल्लताली, भैरव- मस्तक, सरस्वतीकंठाभरण, क्रीड़ा, निःसारु, मुक्तावली, रंग- राज, भरतानंद, आदितालक, संपर्केष्टक। इसी प्रकार १२० देशी ताल गिनाए गए हैं। इन तालों के नामों में भिन्न भिन्न ग्रंथों में विभिन्नता देखी जाती हैं। ताल में परिवर्तन / ताल माला: - ताल में परिवर्तन / ताल माला एक राग में हर पंक्ति में ताल परिवर्तन / वृद्धि करते हुये राग को गाया जाता है विषम से है तो विषम से तथा सम से है तो सम से। जैसे 10 मात्रा से राग के विभिन्न भाषा अर्थात शुरू, अगली पंक्ति 12 मात्रा, अन्य पंक्तियां भी बढ़ते क्रम से गायी जाती है। ताल माला आरोही आदेश में बढ़ती हैं। दोहरीकरण / ताल माला में राग का तीन गुना आरोही आदेश में वृद्धि की जाती है। जब एक गायक ताल माला में गायी जाने वाली राग की दोगुन करता है तो आरोही आदेशों (उदाहरणार्थ 18,20,22,24....) बढ़ते क्रम से ताल माला को गाया जाता है, ताल का बदलाव और अजीब के लिए इसी तरह की संख्या में वृद्धि की जाती है। इसका उल्लेख गुरमत ज्ञान समूह, राग रतन, ताल अंक, संगीत शास्त्र में भी दर्शाया गया है। .

11 संबंधों: झपताल, तबला, दादरा, भरत मुनि, मंजीरा, मृदंग, शास्त्रीय संगीत, संस्कृत भाषा, संगीत, सोनकुत्ता, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत

झपताल

झपताल-यह दस मात्राओं की ताल है। ‌× २ ० ३ धि ना धि धि ना ति ना धि धि ना श्रेणी:नृत्य.

नई!!: ताल और झपताल · और देखें »

तबला

तबला भारतीय संगीत में प्रयोग होने वाला एक तालवाद्य है जो मुख्य रूप से दक्षिण एशियाई देशों में बहुत प्रचलित है। यह लकड़ी के दो ऊर्ध्वमुखी, बेलनाकार, चमड़ा मढ़े मुँह वाले हिस्सों के रूप में होता है, जिन्हें रख कर बजाये जाने की परंपरा के अनुसार "दायाँ" और "बायाँ" कहते हैं। यह तालवाद्य हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में काफी महत्वपूर्ण है और अठारहवीं सदी के बाद से इसका प्रयोग शाष्त्रीय एवं उप शास्त्रीय गायन-वादन में लगभग अनिवार्य रूप से हो रहा है। इसके अतिरिक्त सुगम संगीत और हिंदी सिनेमा में भी इसका प्रयोग प्रमुखता से हुआ है। यह बाजा भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, और श्री लंका में प्रचलित है। एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका पहले यह गायन-वादन-नृत्य इत्यादि में ताल देने के लिए सहयोगी वाद्य के रूप में ही बजाय जाता था, परन्तु बाद में कई तबला वादकों ने इसे एकल वादन का माध्यम बनाया और काफी प्रसिद्धि भी अर्जित की। नाम तबला की उत्पत्ति अरबी-फ़ारसी मूल के शब्द "तब्ल" से बतायी जाती है। हालाँकि, इस वाद्य की वास्तविक उत्पत्ति विवादित है - जहाँ कुछ विद्वान् इसे एक प्राचीन भारतीय परम्परा में ही उर्ध्वक आलिंग्यक वाद्यों का विकसित रूप मानते हैं वहीं कुछ इसकी उत्पत्ति बाद में पखावज से निर्मित मानते हैं और कुछ लोग इसकी उत्पत्ति का स्थान पच्छिमी एशिया भी बताते हैं। .

नई!!: ताल और तबला · और देखें »

दादरा

दादरे की शैली ठुमरी से मिलती-जुलती है। इसे मुख्य रूप से कहरवा और दीपचंदी में गाया जाता है और इसकी गति ठुमरी से तेज होती है। इसे पूरब अंग की ठुमरी का हल्का संस्करण भी कहा जाता है। इसमें प्रमुख भाव शृंगार का होता है लेकिन इसमें ठुमरी के मुकाबले अधिक उन्मुक्तता होती है। श्रेणी:संगीत.

नई!!: ताल और दादरा · और देखें »

भरत मुनि

भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र लिखा। इनका समय विवादास्पद हैं। इन्हें 400 ई॰पू॰ 100 ई॰ सन् के बीच किसी समय का माना जाता है। भरत बड़े प्रतिभाशाली थे। इतना स्पष्ट है कि भरतमुनि रचित नाट्यशास्त्र से परिचय था। इनका 'नाट्यशास्त्र' भारतीय नाट्य और काव्यशास्त्र का आदिग्रन्थ है।इसमें सर्वप्रथम रस सिद्धांत की चर्चा तथा इसके प्रसिद्द सूत्र -'विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:" की स्थापना की गयी है| इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छंदशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है। 'भारतीय नाट्यशास्त्र' अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। आचार्य भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियो को काव्य शास्त्र का उपदेश दिया। विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफ़ी क्षेपक बताते हैं श्रेणी:संस्कृत आचार्य.

नई!!: ताल और भरत मुनि · और देखें »

मंजीरा

मंजीरा भजन में प्रयुक्त होने वाला एक महत्वपूर्ण वाद्य है। इसमें दो छोटी गहरी गोल मिश्रित धतु की बनी कटोरियाँ जैसी होती है। इनका मध्य भाग गहरा होता है। इस भाग में बने गड्ढे के छेद में डोरी लगी रहती है। ये दोनों हाथों से बजाए जाते हैं, दोनों हाथों में एक-एक मंजीरा रहता है। परस्पर आघात करने पर ध्वनि निकलती है। मुख्य रूप से भक्ति एवं धार्मिक संगीत में ताल व लय देने के लिए ढोलक तथा हारमोनियम के साथ इसका प्रयोग होता है। श्रेणी:वाद्य यंत्र श्रेणी:तालवाद्य श्रेणी:भारतीय वाद्य यंत्र.

नई!!: ताल और मंजीरा · और देखें »

मृदंग

मृदंग (मृदंग,மிருதங்கம், ಮೃದಂಗ., മൃദംഗം, మృదంగం) दक्षिण भारत का एक थाप यंत्र है। यह कर्नाटक संगीत में प्राथमिक ताल यंत्र होता है। इसे मृदंग खोल, मृदंगम आदि भी कहा जाता है। गांवों में लोग मृदंग बजाकर कीर्तन गीत गाते है। इसका एक सिरा काफी छोटा और दूसरा सिरा काफी बड़ा (लगभग दस इंच) होता है। मृदंग एक बहुत से प्राचीन वाद्य है। इनको पहले मिट्टी से ही बनाया जाता था लेकिन आजकल मिट्टी जल्दी फूट जने और जल्दी खराब होने के कारण लकड़ी का खोल बनाने लग गये हैं। इनको उपयोग, ये ढोलक ही जैसे होते है। बकरे के खाल से दोनों तरफ छाया जाता है इनको, दोनों तरफ स्याही लगाया जाता है। हाथ से आघात करके इनको भी बजाया जाता है। छत्तीसगढ़ में नवरात्रि के समय देवी पूजा होती है, उसमें एक जस गीत गाये जाते हैं। उसमें इनका उपयोग होता है। .

नई!!: ताल और मृदंग · और देखें »

शास्त्रीय संगीत

भारतीय शास्त्रीय संगीत या मार्ग, भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है। शास्त्रीय संगीत को ही ‘क्लासिकल म्जूजिक’ भी कहते हैं। शास्त्रीय गायन ध्वनि-प्रधान होता है, शब्द-प्रधान नहीं। इसमें महत्व ध्वनि का होता है (उसके चढ़ाव-उतार का, शब्द और अर्थ का नहीं)। इसको जहाँ शास्त्रीय संगीत-ध्वनि विषयक साधना के अभ्यस्त कान ही समझ सकते हैं, अनभ्यस्त कान भी शब्दों का अर्थ जानने मात्र से देशी गानों या लोकगीत का सुख ले सकते हैं। इससे अनेक लोग स्वाभाविक ही ऊब भी जाते हैं पर इसके ऊबने का कारण उस संगीतज्ञ की कमजोरी नहीं, लोगों में जानकारी की कमी है। .

नई!!: ताल और शास्त्रीय संगीत · और देखें »

संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

नई!!: ताल और संस्कृत भाषा · और देखें »

संगीत

नेपाल की नुक्कड़ संगीत-मण्डली द्वारा पारम्परिक संगीत सुव्यवस्थित ध्वनि, जो रस की सृष्टि करे, संगीत कहलाती है। गायन, वादन व नृत्य ये तीनों ही संगीत हैं। संगीत नाम इन तीनों के एक साथ व्यवहार से पड़ा है। गाना, बजाना और नाचना प्रायः इतने पुराने है जितना पुराना आदमी है। बजाने और बाजे की कला आदमी ने कुछ बाद में खोजी-सीखी हो, पर गाने और नाचने का आरंभ तो न केवल हज़ारों बल्कि लाखों वर्ष पहले उसने कर लिया होगा, इसमें संदेह नहीं। गान मानव के लिए प्राय: उतना ही स्वाभाविक है जितना भाषण। कब से मनुष्य ने गाना प्रारंभ किया, यह बतलाना उतना ही कठिन है जितना कि कब से उसने बोलना प्रारंभ किया। परंतु बहुत काल बीत जाने के बाद उसके गान ने व्यवस्थित रूप धारण किया। जब स्वर और लय व्यवस्थित रूप धारण करते हैं तब एक कला का प्रादुर्भाव होता है और इस कला को संगीत, म्यूजिक या मौसीकी कहते हैं। .

नई!!: ताल और संगीत · और देखें »

सोनकुत्ता

सोनकुत्ता या वनजुक्कुर (Cuon alpinus) कुत्तों के कुल का जंगली प्राणी है जो दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है। यह अपनी प्रजाति का इकलौता जीवित प्राणी है जो कि कुत्तों से दंतावली और स्तनाग्रों में अलग है। अब यह अंतर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा विलुप्तप्राय प्रजाति घोषित हो गई है क्योंकि इनके आवासीय क्षेत्र में कमी, शिकार की कमी, अन्य शिकारियों से स्पर्धा और शायद घरेलू या जंगली कुत्तों से बीमारी सरने के कारण इनकी संख्या तेज़ी से घट रही है। यह एक निहायत सामाजिक प्राणी है जो कि बड़े कुटुम्बों में रहता है जो कि अक्सर शिकार के लिए छोटे टुकड़ों में बँट जाते हैं।Fox, M. W. (1984), The Whistling Hunters: Field Studies of the Indian Wild Dog (Cuon Alpinus), Steven Simpson Books, ISBN 0-9524390-6-9, p-85 अफ्री़की जंगली कुत्तों की भांति और अन्य कुत्तों के विपरीत ढोल शिकार के बाद अपने शावकों को पहले खाने देता है। हालाँकि ढोल मनुष्यों से डरता है, लेकिन इनके झुण्ड बड़े और खतरनाक प्राणियों, जैसे जंगली शूकर, जंगली भैंसा तथा बाघ पर भी आक्रमण करने से नहीं हिचकिचाते हैं। .

नई!!: ताल और सोनकुत्ता · और देखें »

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो प्रमुख शैली में से एक है। दूसरी प्रमुख शैली है - कर्नाटक संगीत। यह एक परम्प्रिक उद्विकासी है जिसने 11वीं और 12वीं शताब्दी में मुस्लिम सभ्यता के प्रसार ने भारतीय संगीत की दिशा को नया आयाम दिया। यह दिशा प्रोफेसर ललित किशोर सिंह के अनुसार यूनानी पायथागॉरस के ग्राम व अरबी फ़ारसी ग्राम के अनुरूप आधुनिक बिलावल ठाठ की स्थापना मानी जा सकती है। इससे पूर्व काफी ठाठ शुद्ध मेल था। किंतु शुद्ध मेल के अतिरिक्त उत्तर भारतीय संगीत में अरबी-फ़ारसी अथवा अन्य विदेशी संगीत का कोई दूसरा प्रभाव नहीं पड़ा। "मध्यकालीन मुसलमान गायकों और नायकों ने भारतीय संस्कारों को बनाए रखा।" राजदरबार संगीत के प्रमुख संरक्षक बने और जहां अनेक शासकों ने प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को प्रोत्साहन दिया वहीं अपनी आवश्यकता और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन भी किए। हिंदुस्तानी संगीत केवल उत्तर भारत का ही नहीं। बांगलादेश और पाकिस्तान का भी शास्त्रीय संगीत है। .

नई!!: ताल और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »