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डीरिख्ले श्रेणी

सूची डीरिख्ले श्रेणी

गणित में डीरिख्ले श्रेणी निम्न प्रकार की श्रेणी को कहा जाता है: जहाँ s सम्मिश्र और a सम्मिश्र अनुक्रम है। यह सामान्य डीरिख्ले श्रेणी की विशेष अवस्था है। डीरिख्ले श्रेणी विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में विभिन्न प्रकार से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रीमान जीटा फलन की सबसे प्रचलित परिभाषा डीरिख्ले एल-फलन के रूप में डीरिख्ले श्रेणी है। श्रेणी का नामकरण पीटर गुस्ताफ लजन डीरिक्ले के सम्मान में रखा गया। .

7 संबंधों: पीटर गुस्ताफ लजन डीरिक्ले, रीमान जीटा फलन, श्रेणी (गणित), समिश्र संख्या, विश्लेषी संख्या सिद्धान्त, गणित, अनुक्रम

पीटर गुस्ताफ लजन डीरिक्ले

पीटर गुस्ताफ लजन डीरिक्ले पीटर गुस्ताफ लजन डीरिक्ले (Peter Gustav Legeune Dirichlet, जर्मन उच्चारण: / लजन डीरिक्ले या / लजन डीरिश्ले; १३ फ़रवरी १८०५ - ५ मई १८५१ ई०) जर्मनी के महान गणितज्ञ थे। डीरिक्ले ने बर्लिन तथा गोटिंजेन में शिक्षण कार्य किया तथा मुख्यतः गणितीय विश्लेषण एवं संख्या सिद्धान्त के क्षेत्र में कार्य किया। डीरिक्ले का जन्म १३ फरवरी, १८०५ ई० को द्युरैन में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा बॉन और कोलोन में प्राप्त करके ये गणित के अध्ययन के लिये पेरिस गए। वहाँ इन्होंने गाउस की "दिस्कुइजिस्योनेस अरितमेतिके" (Disquisitiones Arithmeticoe) का अध्ययन किया और उसके अनेक स्थलों को गणितज्ञों के लिए सहज बोधगम्य कर दिया। १८२४ ई० में इन्होंने सिद्ध किया कि n .

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रीमान जीटा फलन

रीमान जीटा फलन अथवा आयलर–रीमान जीटा फलन, ζ(s), उन सम्मिश्र चर s का फलन है जो अनन्त श्रेणी के संकलन में वैश्लेषिक हैं जो s के वास्तविक मान के 1 से अधिक होने पर अभिसारी होती है। सभी s के लिए ζ(s) व्यापक निरूपण नीचे दिया गया है। रीमान जीटा फलन विश्लेषी संख्या सिद्धान्त में मुख्य फलन के रूप में प्रयुक्त होता है और इसके अनुप्रयोग भौतिकी, प्रायिकता सिद्धांत और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी में मिलते हैं। वास्तविक तर्क के फलन के रूप में, यह फलन १८वीं सदी के पूर्वार्द्ध में सम्मिश्र विश्लेषण का उपयोग किये बिना (क्योंकि उस समय यह उपलब्ध नहीं थी) पहली बार लियोनार्ड आयलर ने किया था। बर्नहार्ड रीमान ने 1859 में प्रकाशित अपने लेख "दिये गये परिमाण से छोटी अभाज्य संख्याओं पर" (मूल जर्मन: Ueber die Anzahl der Primzahlen unter einer gegebenen Grösse) आयलर की परिभाषा सम्मिश्र चरों के लिए विस्तारित किया तथा फलनिक समीकरण और अनंतकी अनुवर्ती सिद्ध किया एवं शून्य व अभाज्य संख्याओं के बंटन में सम्बन्ध स्थापित किया। धनात्मक सम संख्याओं पर रीमान जीटा फलन के मान आयलर द्वारा अभिकलित किये गये। इनमें प्रथम ζ(2) बेसल समस्या का हल प्रदान करता है। सन् १९७९ में एपेरी ने ''ζ''(3) की अपरिमेयता सिद्ध की। नकारात्मक पूर्णांक बिन्दुओं के लिए भी आयलर के अनुसार परिमेय संख्यायें प्रतिरूपक के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। डीरिख्ले श्रेणी, डीरिख्ले एल-फलन और एल-फलन के रूप में रीमान जीटा फलन के विभिन्न व्यापकीकरण ज्ञात हैं। .

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श्रेणी (गणित)

गणित में किसी अनुक्रम के जोड़ को सीरीज कहा जाता है। उदाहरण के लिए, कोई श्रेणी सीमित (लिमिटेड) हो सकती है या अनन्त (इनफाइनाइट)। .

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समिश्र संख्या

किसी समिश्र संख्या का अर्गेन्ड आरेख पर प्रदर्शन गणित में समिश्र संख्याएँ (complex number) वास्तविक संख्याओं का विस्तार है। किसी वास्तविक संख्या में एक काल्पनिक भाग जोड़ देने से समिश्र संख्या बनती है। समिश्र संख्या के काल्पनिक भाग के साथ i जुड़ा होता है जो निम्नलिखित सम्बन्ध को संतुष्ट करती है: किसी भी समिश्र संख्या को a + bi, के रूप में व्यक्त किया जा सकता है जिसमें a और b दोनो ही वास्तविक संख्याएं हैं। a + bi में a को वास्तविक भाग तथा b को काल्पनिक भाग कहते हैं। उदाहरण: 3 + 4i एक समिश्र संख्या है। .

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विश्लेषी संख्या सिद्धान्त

विश्लेषी संख्या सिद्धान्त गणितीय विश्लेषण से शब्दार्थ के अनुसार गणित को सरलतम तत्वों में विघटित करने का तात्पर्य होता है। ये तत्व अंततोगत्वा संख्याएँ ही हैं। क्रॉनेकर ने भी कहा है: ईश्वर ने धन पूर्णांकों की रचना की है, तथा अन्य सभी संख्याएँ मनुष्य द्वारा बनाई हुई हैं। .

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गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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अनुक्रम

वस्तुओं की किसी क्रमित सूची को अनुक्रम (sequence) कहते हैं। अनुक्रम में 'क्रम' का महत्व है जबकि समुच्चय में क्रम का महत्व नहीं होता। अनुक्रम में एक ही सदस्य अलग-अलग स्थानों पर भी आ सकते हैं। अनुक्रम के सदस्य 'कुछ भी' हो सकते हैं, जैसे संख्याएँ, शब्द, वर्ण, रंग, नाम आदि। अनुक्रम सीमित या असीमित दोनों प्रकार के होते हैं। अनुक्रम के कुछ उदाहरण: श्रेणी और अनुक्रम अलग-अलग हैं। श्रेणी, 'संख्याओं के योग' का नाम है। इस श्रेणी में जो संख्याएँ जोड़ी जा रहीं हैं उनका एक अनुक्रम है। अर्थात .

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