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झारखण्ड और मुड़मा जतरा

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

झारखण्ड और मुड़मा जतरा के बीच अंतर

झारखण्ड vs. मुड़मा जतरा

झारखण्ड यानी 'झार' या 'झाड़' जो स्थानीय रूप में वन का पर्याय है और 'खण्ड' यानी टुकड़े से मिलकर बना है। अपने नाम के अनुरुप यह मूलतः एक वन प्रदेश है जो झारखंड आंदोलन के फलस्वरूप सृजित हुआ। प्रचुर मात्रा में खनिज की उपलबध्ता के कारण इसे भारत का 'रूर' भी कहा जाता है जो जर्मनी में खनिज-प्रदेश के नाम से विख्यात है। 1930 के आसपास गठित आदिवासी महासभा ने जयपाल सिंह मुंडा की अगुआई में अलग ‘झारखंड’ का सपना देखा. मुड़मा जतरा, मुड़मा नामक एक गाँव में प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है। मुड़मा गाँव झारखंड की राजधानी राँची से लगभग 28 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-75 पर जिसे राँची-डलटेनगंज मार्ग के नाम से भी जाना जाता है, स्थित है। यहाँ दशहरा के दसवें दिन ‘मुड़मा जतरा’ का आयोजन झारखंड के आदिवासी समुदायों के द्वारा मेला किया जाता है। यह मेला कब और कैसे प्रारम्भ हुआ इसकी कोई लिखित प्रामाणिक जानकारी उपल्ब्द्ध नहीं है लेकिन लोकगितों एवं किवदंतियों के अनुसार जनजातीय समुदाय के उराँव आदिवासी जनजाति जो की रोहतसगढ, बिहार के थे, के पलायन से जोड़कर देखा जाता है। छोटनागपुर के इतिहास के अनुसार जब मुग़लों ने रोहतसगढ़ पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया तो वहाँ रह रहे उराँव समुदाय के लोगों को गढ़ छोड़कर भागना पड़ा था और इसी क्रम में वे सोन नदी पार कर वर्तमान पलामू होते हुए वे राँची ज़िला में प्रवेश किए जहाँ मुड़मा में इनका सामना मुंडा जनजाति के मुँड़ाओं से हुआ और जब उराँव लोगों ने अपनी व्यथा कथा मुँड़ाओं को सुनाई तब मुँड़ाओं ने इनको पश्चिम वन क्षेत्र की सफ़ाई करके वहाँ रहने की अनुमति प्रदान की थी और यह समझौता मुड़मा गाँव में हुआ था। इसलिए उराँव समुदाय के 40 पाड़हा के लोग उस ऐतिहासिक समझौते के स्मृति में ‘मुड़मा जतरा’ को आयोजित करते हैं। इस दिन सरना धर्मगुरु के अगुवाई में अधिष्ठात्री शक्ति के प्रतीक जतरा खूंटे की परिक्रमा व जतरा खूंटा की पूजा-अर्चना भी की जाती है। पाड़हा झंडे के साथ मेला स्थल पहुंचे पाहन (पुजारी) ढोल, नगाड़ा, माँदर के थाप अन्य ग्रामीणों के साथ नाचते-गाते आते हैं और मेला स्थल पर पाहन पारम्परिक रूप से सरगुजा के फूल सहित अन्य पूजन सामग्रियों के साथ देवताओं का आहवाहन करते हुए ‘जतरा खूँटा’ का पूजन करता है एवं प्रतीक स्वरूप दीप भी जलाया जाता है और इस प्रकार मेला का आरम्भ किया जाता है। इस पूजन में सफ़ेद एवं काला मुर्ग़ा की बलि भी चढ़ाई जाती है। सरना धर्मगुरु के अनुसार यह आदिवासियों का शक्ति पीठ है। आदिवासी व  मुंडा समाज का मिलन स्थल भी है। यहां सभी  समाज के लोग आते हैं। सुख-समृद्धि व शांति के लिए प्रार्थना करते  हैं।.

झारखण्ड और मुड़मा जतरा के बीच समानता

झारखण्ड और मुड़मा जतरा आम में 5 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): मुग़ल साम्राज्य, मुंडा विद्रोह, राँची, आदिवासी, उराँव

मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल साम्राज्य (फ़ारसी:, मुग़ल सलतनत-ए-हिंद; तुर्की: बाबर इम्परातोरलुग़ु), एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ। मुग़ल सम्राट तुर्क-मंगोल पीढ़ी के तैमूरवंशी थे और इन्होंने अति परिष्कृत मिश्रित हिन्द-फारसी संस्कृति को विकसित किया। 1700 के आसपास, अपनी शक्ति की ऊँचाई पर, इसने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को नियंत्रित किया - इसका विस्तार पूर्व में वर्तमान बंगलादेश से पश्चिम में बलूचिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में कावेरी घाटी तक था। उस समय 40 लाख किमी² (15 लाख मील²) के क्षेत्र पर फैले इस साम्राज्य की जनसंख्या का अनुमान 11 और 13 करोड़ के बीच लगाया गया था। 1725 के बाद इसकी शक्ति में तेज़ी से गिरावट आई। उत्तराधिकार के कलह, कृषि संकट की वजह से स्थानीय विद्रोह, धार्मिक असहिष्णुता का उत्कर्ष और ब्रिटिश उपनिवेशवाद से कमजोर हुए साम्राज्य का अंतिम सम्राट बहादुर ज़फ़र शाह था, जिसका शासन दिल्ली शहर तक सीमित रह गया था। अंग्रेजों ने उसे कैद में रखा और 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश द्वारा म्यानमार निर्वासित कर दिया। 1556 में, जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर, जो महान अकबर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के पदग्रहण के साथ इस साम्राज्य का उत्कृष्ट काल शुरू हुआ और सम्राट औरंगज़ेब के निधन के साथ समाप्त हुआ, हालाँकि यह साम्राज्य और 150 साल तक चला। इस समय के दौरान, विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में एक उच्च केंद्रीकृत प्रशासन निर्मित किया गया था। मुग़लों के सभी महत्वपूर्ण स्मारक, उनके ज्यादातर दृश्य विरासत, इस अवधि के हैं। .

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मुंडा विद्रोह

मुंडा विद्रोह मुंडा जनजातियों ने 18वीं सदी से लेकर 20वीं सदी तक कई बार अंग्रेजी सरकार और भारतीय शासकों, जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किये। बिरसा मुंडा के नेतृत्‍व में 19वीं सदी के आखिरी दशक में किया गया मुंडा विद्रोह उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण जनजातीय आंदोलनों में से एक है। इसे उलगुलान नाम से भी जाना जाता है। मुंडा विद्रोह झारखण्ड का सबसे बड़ा और अंतिम रक्ताप्लावित जनजातीय विप्लव था, जिसमे हजारों की संख्या में मुंडा आदिवासी शहीद हुए। मशहूर समाजशास्‍त्री और मानव विज्ञानी कुमार सुरेश सिंह ने बिरसा मुंडा के नेतृत्‍व में हुए इस आंदोलन पर 'बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन' नाम से बडी महत्‍वपूर्ण पुस्‍तक लिखी है। .

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राँची

राँची भारत का एक प्रमुख नगर और झारखंड प्रदेश की राजधानी है। यह झारखंड का तीसरा सबसे प्रसिद्ध शहर है। इसे झरनों का शहर भी कहा जाता है। पहले जब यह बिहार राज्य का भाग था तब गर्मियों में अपने अपेक्षाकृत ठंडे मौसम के कारण प्रदेश की राजधानी हुआ करती थी। झारखंड आंदोलन के दौरान राँची इसका केन्द्र हुआ करता था। राँची एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र भी है। जहाँ मुख्य रूप से एच ई सी (हेवी इंजिनियरिंग कारपोरेशन), भारतीय इस्पात प्राधिकरण, मेकन इत्यादि के कारखाने हैं। राँची के साथ साथ जमशेदपुर और बोकारो इस प्रांत के दो अन्य प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं। राँची को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटीज मिशन के अन्तर्गत एक स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किये जाने वाले सौ भारतीय शहरों में से एक के रूप में चुना गया है। राँची भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का गृहनगर होने के लिए प्रसिद्ध है। झारखंड की राजधानी राँची में प्रकृति ने अपने सौंदर्य को खुलकर लुटाया है। प्राकृतिक सुन्दरता के अलावा राँची ने अपने खूबसूरत पर्यटक स्थलों के दम पर विश्व के पर्यटक मानचित्र पर भी पुख्ता पहचान बनाई है। गोंडा हिल और रॉक गार्डन, मछली घर, बिरसा जैविक उद्यान, टैगोर हिल, मैक क्लुस्किगंज और आदिवासी संग्राहलय इसके प्रमुख पर्यटक स्थल हैं। इन पर्यटक स्थलों की सैर करने के अलावा यहां पर प्रकृति की बहुमूल्य देन झरनों के पास बेहतरीन पिकनिक भी मना सकते हैं। राँची के झरनों में पांच गाघ झरना सबसे खूबसूरत है क्योंकि यह पांच धाराओं में गिरता है। यह झरने और पर्यटक स्थल मिलकर राँची को पर्यटन का स्वर्ग बनाते हैं और पर्यटक शानदार छुट्टियां बिताने के लिए हर वर्ष यहां आते हैं। राँची का नाम उराँव गांव के पिछले नाम से एक ही स्थान पर, राची के नाम से लिया गया है। "राँची" उराँव शब्द 'रअयची' से निकला है जिसका मतलब है रहने दो। पौराणिक कथाओं के अनुसार, आत्मा के साथ विवाद के बाद,एक किसान ने अपने बांस के साथ आत्मा को हराया। आत्मा ने रअयची रअयची चिल्लाया और गायब हो गया। रअयची राची बन गई, जो राँची बन गई। राची के ऐतिहासिक रूप से एक महत्वपूर्ण पड़ोस में डोरांडा (दुरन "दुरङ" का अर्थ है गीत और दाह "दएः" का अर्थ मुंदारी भाषा में जल है)। डोरांडा हीनू (भुसूर) और हरमू नदियों के बीच स्थित है, जहां ब्रिटिश राज द्वारा स्थापित सिविल स्टेशन, ट्रेजरी और चर्च सिपाही विद्रोह के दौरान विद्रोही बलों द्वारा नष्ट किए गए थे। .

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आदिवासी

ब्राजील के कयोपो (Kayapo tribe) आदिवासियों के मुखिया सामान्यत: "आदिवासी" (ऐबोरिजिनल) शब्द का प्रयोग किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से ज्ञात इतिहास में सबसे पुराना सम्बन्ध रहा हो। परन्तु संसार के विभिन्न भूभागों में जहाँ अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग क्षेत्रों से आकर लोग बसे हों उस विशिष्ट भाग के प्राचीनतम अथवा प्राचीन निवासियों के लिए भी इस शब्द का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, "इंडियन" अमरीका के आदिवासी कहे जाते हैं और प्राचीन साहित्य में दस्यु, निषाद आदि के रूप में जिन विभिन्न प्रजातियों समूहों का उल्लेख किया गया है उनके वंशज समसामयिक भारत में आदिवासी माने जाते हैं। आदिवासी के समानार्थी शब्‍दों में ऐबोरिजिनल, इंडिजिनस, देशज, मूल निवासी, जनजाति, वनवासी, जंगली, गिरिजन, बर्बर आदि प्रचलित हैं। इनमें से हर एक शब्‍द के पीछे सामाजिक व राजनीतिक संदर्भ हैं। अधिकांश आदिवासी संस्कृति के प्राथमिक धरातल पर जीवनयापन करते हैं। वे सामन्यत: क्षेत्रीय समूहों में रहते हैं और उनकी संस्कृति अनेक दृष्टियों से स्वयंपूर्ण रहती है। इन संस्कृतियों में ऐतिहासिक जिज्ञासा का अभाव रहता है तथा ऊपर की थोड़ी ही पीढ़ियों का यथार्थ इतिहास क्रमश: किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं में घुल मिल जाता है। सीमित परिधि तथा लघु जनसंख्या के कारण इन संस्कृतियों के रूप में स्थिरता रहती है, किसी एक काल में होनेवाले सांस्कृतिक परिवर्तन अपने प्रभाव एवं व्यापकता में अपेक्षाकृत सीमित होते हैं। परंपराकेंद्रित आदिवासी संस्कृतियाँ इसी कारण अपने अनेक पक्षों में रूढ़िवादी सी दीख पड़ती हैं। उत्तर और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा अनेक द्वीपों और द्वीपसमूहों में आज भी आदिवासी संस्कृतियों के अनेक रूप देखे जा सकते हैं। .

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उराँव

ओराँव या 'कुड़ुख' भारत की एक प्रमुख जनजाति हैं। ये भारत के केन्द्रीय एवं पूर्वी राज्यों में तथा बंगलादेश के निवासी हैं। इनकी भाषा का नाम भी 'उराँव' या 'कुड़ुख' है। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

झारखण्ड और मुड़मा जतरा के बीच तुलना

झारखण्ड 239 संबंध है और मुड़मा जतरा 14 है। वे आम 5 में है, समानता सूचकांक 1.98% है = 5 / (239 + 14)।

संदर्भ

यह लेख झारखण्ड और मुड़मा जतरा के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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