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जैमिनि और सूत्र

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

जैमिनि और सूत्र के बीच अंतर

जैमिनि vs. सूत्र

जैमिनि प्राचीन भारत के एक महान ऋषि थे। वे पूर्व मीमांसा के प्रवर्तक थे। वे वेदव्यास के शिष्य थे। . सूत्र, किसी बड़ी बात को अतिसंक्षिप्त रूप में अभिव्यक्त करने का तरीका है। इसका उपयोग साहित्य, व्याकरण, गणित, विज्ञान आदि में होता है। सूत्र का शाब्दिक अर्थ धागा या रस्सी होता है। जिस प्रकार धागा वस्तुओं को आपस में जोड़कर एक विशिष्ट रूप प्रदान करतअ है, उसी प्रकार सूत्र भी विचारों को सम्यक रूप से जोड़ता है। हिन्दू (सनातन धर्म) में सूत्र एक विशेष प्रकार की साहित्यिक विधा का सूचक भी है। जैसे पतंजलि का योगसूत्र और पाणिनि का अष्टाध्यायी आदि। सूत्र साहित्य में छोटे-छोटे किन्तु सारगर्भित वाक्य होते हैं जो आपस में भलीभांति जुड़े होते हैं। इनमें प्रायः पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्दों का खुलकर किया जाता है ताकि गूढ से गूढ बात भी संक्षेप में किन्तु स्पष्टता से कही जा सके। प्राचीन काल में सूत्र साहित्य का महत्व इसलिये था कि अधिकांश ग्रन्थ कंठस्थ किये जाने के ध्येय से रचे जाते थे; अतः इनका संक्षिप्त होना विशेष उपयोगी था। चूंकि सूत्र अत्यन्त संक्षिप्त होते थे, कभी-कभी इनका अर्थ समझना कठिन हो जाता था। इस समस्या के समाधान के रूप में अनेक सूत्र ग्रन्थों के भाष्य भी लिखने की प्रथा प्रचलित हुई। भाष्य, सूत्रों की व्याख्या (commentary) करते थे। बौद्ध धर्म में सूत्र उन उपदेशपरक ग्रन्थों को कहते हैं जिनमें गौतम बुद्ध की शिक्षाएं संकलित हैं। .

जैमिनि और सूत्र के बीच समानता

जैमिनि और सूत्र आम में 4 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): पाणिनि, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा दर्शन, अष्टाध्यायी

पाणिनि

पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। .

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ब्रह्मसूत्र

ब्रहमसूत्र, हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक है। इसके रचयिता बादरायण हैं। इसे वेदान्त सूत्र, उत्तर-मीमांसा सूत्र, शारीरिक सूत्र और भिक्षु सूत्र आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस पर अनेक भाष्य भी लिखे गये हैं। वेदान्त के तीन मुख्य स्तम्भ माने जाते हैं - उपनिषद्, भगवदगीता एवं ब्रह्मसूत्र। इन तीनों को प्रस्थान त्रयी कहा जाता है। इसमें उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्रों को न्याय प्रस्थान कहते हैं। ब्रह्म सूत्रों को न्याय प्रस्थान कहने का अर्थ है कि ये वेदान्त को पूर्णतः तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है। (न्याय .

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मीमांसा दर्शन

मीमांसा दर्शन हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक है। पक्ष-प्रतिपक्ष को लेकर वेदवाक्यों के निर्णीत अर्थ के विचार का नाम मीमांसा है। उक्त विचार पूर्व आर्य परंपरा से चला आया है। किंतु आज से प्राय: सवा पाँच हजार वर्ष पूर्व सामवेद के आचार्य कृष्ण द्वैपायन के शिष्य ने उसे सूत्रबद्ध किया। सूत्रों में पूर् पक्ष और सिद्धान्त के रूप में बादरायण, बादरि, आत्रेय, आश्मरथ्य, आलेखन, एेतिशायन, कामुकायन, कार्ष्णाजिनि अाैर लाबुकायन महर्षियों का उल्लेख मिलता है, जिसका विस्तृत विवेचन सूत्रों के भाष्य अाैर वार्तिक में किया गया है, जिनसे सहस्राधिकरण हो गए हैं। इस शास्त्र काे पूर्वमीमांसा अाैर वेदान्त काे उत्तरमीमांसा भी कहा जाता है। पूर्ममीमांसा में धर्म का विचार है अाैर उत्तरमीमांसा में ब्रह्म का। अतः पूर्वमीमांसा काे धर्ममीमांसा अाैर उत्तर मीमांसा काे ब्रह्ममीमांसा भी कहा जाता है। जैमिनि मुनि द्वारा रचित सूत्र हाेने से मीमांसा काे जैमिनीय धर्ममीमांसा कहा जाता है। जर्मन विद्वान मैक्समूलर का कहना है कि - "यह दर्शन शास्त्र कोटि में नहीं आ सकता, क्योंकि इसमें धर्मानुष्ठान का ही विवेचन किया गया है। इसमें जीव, ईश्वर, बंध, मोक्ष और उनके साधनों का कहीं भी विवेचन नहीं है।" मैक्समूलर मत के पक्षपाती कुछ भारतीय विद्वान् भी इसे दर्शन कहने में संकोच करते हैं, क्योंकि न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग और वेदांत में जिस प्रकार तत् तत् प्रकरणों में प्रमाण और प्रमेयों के द्वारा आत्मा-अनात्मा, बंध-मोक्ष आदि का मुख्य रूप से विवेचन मिलता है, वैसा मीमांसा दर्शन के सूत्र, भाष्य और वार्तिक आदि में दृष्टिगोचर नहीं होता। उपर्युक्त विचारकों ने स्थूल बुद्धि से ग्रंथ का अध्ययन कर अपने विचार व्यक्त किए हैं। फिर भी स्पष्ट है कि मीमांसा दर्शन ही सभी दर्शनों का सहयोगी कारण है। जैमिनि ने इन विषयों का बीज रूप से अपने सूत्रों में उपन्यास किया है "सत्संप्रयोगे पुरुषस्येंद्रियणां बुद्धि जन्म तत् प्रत्यक्षम्" (जै.ध.मी.सू. १।१।४) चतुर्थ सूत्र में दो शब्द आए हैं - पुरुष और बुद्धि। पुरुष शब्द से "आत्मा" ही विवक्षित है। यह अर्थ कुमारिल भट्ट ने "भाट्टदीपिका" में लिखा है। बुद्धि शब्द से ज्ञान, (प्रमिति) प्रमाता, प्रमेय और प्रमाण अर्थ को व्यक्त किया गया है। वृत्तिकार ने "तस्य निमित्त परीष्टि:" पर्यत तीन सूत्रों में प्रत्यक्ष, अनुमान शब्द, अर्थापति और अनुपलब्धि प्रमाणों का सपरिकर विशद विवेचन तथा औत्पत्तिक सूत्र में आत्मवाद का विशेष विवेचन अपने व्याख्यान में किया है। इसी का विश्लेषण शाबर भाष्य, श्लोक वार्तिक, शास्त्रदीपिका, भाट्ट चिंतामणि आदि ग्रंथों में किया गया है जिसमें प्रमाण और प्रमेयों का भेद, बंध, मोक्ष और उनके साधनों का भी विवेचन है। मीमांसा दर्शन में भारतवर्ष के मुख्य प्राणधन धर्म का वर्णाश्रम व्यवस्था, आधानादि, अश्वमेधांत आदि विचारों का विवेचन किया गया है। प्राय: विश्व में ज्ञानी और विरक्त पुरुष सर्वत्र होते आए हैं, किंतु धर्माचरण के साक्षात् फलवेत्ता और कर्मकांड के प्रकांड विद्वान् भारतवर्ष में ही हुए हैं। इनमें कात्यायन, आश्वलायन, आपस्तंब, बोधायन, गौतम आदि महर्षियों के ग्रंथ आज भी उपलब्ध हैं। (कर्मकांड के विद्वानों के लिए उपनिषदों में महाशाला; श्रोत्रिया:, यह विशेषण प्राप्त होता है)। भारतीय कर्मकांड सिद्धांत का प्रतिदान और समर्थन इसी दर्शन में प्राप्त होता है। डॉ॰ कुंनन् राजा ने "बृहती" के द्वितीय संस्करण की भूमिका में इसका समुचित रूप से निरूपण किया है। यद्यपि कणाद मुनि कृत वैशेषिक दर्शन में धर्म का नामतः उल्लेख प्राप्त होता है - (1. 1, 11. 1. 2, 1.1. 3) तथापि उसके विषय में आगे विचार नहीं किया गया है। किसी विद्वान् का कहना है - अर्थात् जैसे कोई मनुष्य समुद्र पर्यन्त जाने की इच्छा रखते हुए हिमालय में चला जाता है, उसी प्रकार धर्म के व्याख्यान के इच्छुक कणाद मुनि षट् पदार्थों का विवेचन करते रह गए। उत्तर मीमांसा (वेदान्त) के सिद्धांत के अनुसार कर्मत्याग के पश्चात् ही आत्मज्ञान प्राप्ति का अधिकार है, किंतु पूर्व मीमांसा दर्शन के अनुसार - इस वेदमंत्र के अनुसार मुमुक्षु जनों को भी कर्म करना चाहिए। वेदविहित कर्म करने से कर्मबंधन स्वत: समाप्त हो जाता है - ("कर्मणा त्यज्यते ह्यसौ।) तस्मान्मुमुक्षुभिः कार्य नित्यं नैमित्तिकं तथा" आदि वचनों के अनुसार भारतीय आस्तिक दर्शनों का मुख्य प्राण मीमांसा दर्शन है। .

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अष्टाध्यायी

अष्टाध्यायी (अष्टाध्यायी .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

जैमिनि और सूत्र के बीच तुलना

जैमिनि 18 संबंध है और सूत्र 23 है। वे आम 4 में है, समानता सूचकांक 9.76% है = 4 / (18 + 23)।

संदर्भ

यह लेख जैमिनि और सूत्र के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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