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जुआ और परीक्षित

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

जुआ और परीक्षित के बीच अंतर

जुआ vs. परीक्षित

Men Playing Board Games जुआ (gambling) एक अति प्राचीन खेल है। भारत में जुए का खेल अक्षक्रीड़ा या अक्षद्यूत के नाम से विख्यात है। वेद के समय से लेकर आज तक यह भारतीयों का अत्यंत लोकप्रिय खेल रहा है। ऋग्वेद के एक प्रख्यात सूक्त (10। 34) में कितव (जुआड़ी) अपनी दुर्दशा का रोचक चित्र खींचता है कि जुए में हार जाने के कारण उसकी भार्या तक उसे नहीं पूछती, दूसरों की बात ही क्या? वह स्वयं शिक्षा देता है- अक्षैर्मा दीव्यः कृषिमित् कृषस्व (ऋ. 10। 34। 13)। महाभारत जैसा प्रलयंकारी युद्ध भी अक्षक्रीड़ा के परिणामस्वरूप ही हुआ। पाणिनि की अष्टाध्यायी तथा काशिका के अनुशीलन से अक्षक्रीड़ा के स्वरूप का पूरा परिचय मिलता है। पाणिनि उसे आक्षिक कहते हैं। (अष्टा. 4। 4। 2)। पतंजलि ने सिद्धहस्त द्यूतकर के लिए अक्षकितव या अक्षधूर्त शब्दों का प्रयोग किया है। वैदिक काल में द्यूत की साधन सामग्री का निश्चित परिचय नहीं मिलता, परंतु पाणिनी के समय (पंचम शती ई. पू.) में यह खेल अक्ष तथा शलाका से खेला जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र का कथन है कि द्यूताध्यक्ष का यह काम है कि वह जुआड़ियों को राज्य की ओर से खेलने के लिए अक्ष और शलाका दिया करे (3। 20)। किसी प्राचीन काल में अक्ष से तात्पर्य बहेड़ा (बिभीतक) के बीज से था। परंतु पाणिनि काल में अक्ष चौकनी गोटी और शलाका आयताकार गोटी होती थी। इन गोटियों की संख्या पाँच होती थी, ऐसा अनुमान तैत्तिरीय ब्राह्मण (1। 7। 10) तथा अष्टाध्यायी से भलीभाँति लगाया जा सकता है। ब्राह्मणों के ग्रंथों में इनके नाम भी पाँच थे- अक्षराज, कृत, त्रेता, द्वापर तथा कलि। काशिका इसी कारण इस खेल को पंचिका द्यूत के नाम से पुकारती है (अष्टा. 2। 1। 10 पर वृत्ति)। पाणिनि के अक्षशलाका संख्याः परिणा (2। 1। 10) सूत्र में उन दशाओं का उल्लेख है जिनमें गोटी फेंकने वाले की हार होती थी और इस स्थिति की सूचना के लिए अक्षपरि, शलाकापरि, एकपरि, द्विपरि, त्रिपरि तथा चतुष्परि पदों का प्रयोग संस्कृत में किया जाता था। काशिका के वर्णन में स्पष्ट है कि यदि उपर्युक्त पाँचों गोटियाँ चित्त गिरें या पट्ट गिरें, तो दोनों अवस्थाओं में गोटी फेंकने वाले की जीत होती थी (यत्र यदा सर्वे उत्तान पतन्ति अवाच्यो वा, तदा पातयिता जयति। तस्यैवास्य विद्यातोन्यथा पाते जायते- काशिका 2। 1। 10 पर)। अर्थात् यदि एक गोटी अन्य गोटियों की अवस्था से भिन्न होकर चित्त या पट्ट पड़े, तो हार होती थी और इसके लिए एकपरि शब्द प्रयुक्त होते थे। इसी प्रकार दो गोटियों से होने वाली हार को द्विपरि तीन से त्रिपरि तथा चार की हार को चतुष्परि कहते थे। जीतने का दाँव कृत और हारने का दाँव कलि कहलाता था। बौद्ध ग्रंथों में भी कृत तथा कलि का यह विरोध संकेतित किया गया है (कलि हि धीरानं, कटं मुगानं)। जुए में बाजी भी लगाई जाती है और इस द्रव्य के लिए पाणिनि ने ग्लह शब्द की सिद्धि मानी है (अक्षे षु ग्लहः, अष्टा. 3। 3। 70)। महाभारत के प्रख्यात जुआड़ी शकुनि का यह कहना ठीक ही है कि बाजी लगाने के कारण ही जुआ लोगों में इतना बदनाम है। महाभारत, अर्थशास्त्र आदि ग्रंथों से पता चलता है कि जुआ सभा में खेला जाता था। स्मृति ग्रंथों में जुआ खेलने के नियमों का पूरा परिचय दिया गया है। अर्थशास्त्र के अनुसार जुआड़ी को अपने खेल के लिए राज्य को द्रव्य देना पड़ता था। बाजी लगाए गए धन का पाँच प्रतिशत राज्य को कर के रूप में प्राप्त होता था। पंचम शती में उज्जयिनी में इसके विपुल प्रचार की सूचना मृच्छकटिक नाटक से हमें उपलब्ध होती है। . महाभारत के अनुसार परीक्षित अर्जुन के पौत्र, अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा जनमेजय के पिता थे। जब ये गर्भ में थे तब उत्तरा के पुकारने पर विष्णु ने अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से उनकी रक्षा की थी। इसलिए इनका नाम 'विष्णुरात' पड़ा। भागवत (१, १२, ३०) के अनुसार गर्भकाल में अपने रक्षक विष्णु को ढूँढ़ने के कारण उन्हें 'परीक्षित, (परिअ ईक्ष) कहा गया किंतु महाभारत (आश्व., ७०, १०) के अनुसार कुरुवंश के परिक्षीण होने पर जन्म होने से वे 'परिक्षित' कहलाए। महाभारत में इनके विषय में लिखा है कि जिस समय ये अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में थे, द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने गर्भ में ही इनकी हत्या कर पांडुकुल का नाश करने के अभिप्राय से ऐषीक नाम के अस्त्र को उत्तरा के गर्भ में प्रेरित किया जिसका फल यह हुआ कि उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का झुलसा हुआ मृत पिंड बाहर निकला। श्रीकृष्ण को पांडुकुल का नामशेष हो जाना मंजूर न था, इसलिये उन्होंने अपने योगबल से मृत भ्रूण को जीवित कर दिया। परिक्षीण या विनष्ट होने से बचाए जाने के कारण इस बालक का नाम परीक्षित रखा गया। परीक्षित ने कृपाचार्य से अस्त्रविद्या सीखी थी जो महाभारत युद्ध में कुरुदल के प्रसिद्ध महारथी थे। युधिष्ठिर आदि पांडव संसार से भली भाँति उदासीन हो चुके थे और तपस्या के अभिलाषी थे। अतः वे शीघ्र ही परीक्षित को हस्तिनापुर के सिंहासन पर बिठा द्रौपदी समेत तपस्या करने चले गए। परीक्षित जब राजसिंहासन पर बैठे तो महाभारत युद्ध की समाप्ति हुए कुछ ही समय हुआ था, भगवान कृष्ण उस समय परमधाम सिधार चुके थे और युधिष्ठिर को राज्य किए ३६ वर्ष हुए थे। राज्यप्राप्ति के अनंतर गंगातट पर उन्होंने तीन अश्वमेघ यज्ञ किए जिनमें अंतिम बार देवताओं ने प्रत्यक्ष आकर बलि ग्रहण किया था। इनके विषय में सबसे मुख्य बात यह है के इन्हीं के राज्यकाल में द्वापर का अंत और कलियुग का आरंभ होना माना जाता है। इस संबंध में भागवत में यह कथा है— परीक्षित की मृत्यु के बाद, फिर कलियुग की रोक टोक करनेवाला कोई न रहा और वह उसी दिन से अकंटक भाव से शासन करने लगा। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये जनमेजय ने सर्पसत्र किया जिसमें सारे संसार के सर्प मंत्रबल से खिंच आए और यज्ञ की अग्नि में उनकी आहुति हुई। .

जुआ और परीक्षित के बीच समानता

जुआ और परीक्षित आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): महाभारत

महाभारत

महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी केवल "भारत" कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ हैं। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है। यद्यपि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों में से एक माना जाता है, किन्तु आज भी यह ग्रंथ प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कृति प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है। इसी में हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सन्निहित है। पूरे महाभारत में लगभग १,१०,००० श्लोक हैं, जो यूनानी काव्यों इलियड और ओडिसी से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। हिन्दू मान्यताओं, पौराणिक संदर्भो एवं स्वयं महाभारत के अनुसार इस काव्य का रचनाकार वेदव्यास जी को माना जाता है। इस काव्य के रचयिता वेदव्यास जी ने अपने इस अनुपम काव्य में वेदों, वेदांगों और उपनिषदों के गुह्यतम रहस्यों का निरुपण किया हैं। इसके अतिरिक्त इस काव्य में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। .

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जुआ और परीक्षित के बीच तुलना

जुआ 13 संबंध है और परीक्षित 28 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 2.44% है = 1 / (13 + 28)।

संदर्भ

यह लेख जुआ और परीक्षित के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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