जनक और जनक विदेह
शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ।
जनक और जनक विदेह के बीच अंतर
जनक vs. जनक विदेह
जनक नाम से अनेक व्यक्ति हुए हैं। पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकुपुत्र निमि ने विदेह के सूर्यवंशी राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी मिथिला हुई। मिथिला में जनक नाम का एक अत्यंत प्राचीन तथा प्रसिद्ध राजवंश था जिसके मूल पुरुष कोई जनक थे। मूल जनक के बाद मिथिला के उस राजवंश का ही नाम 'जनक' हो गया जो उनकी प्रसिद्धि और शक्ति का द्योतक है। जनक के पुत्र उदावयु, पौत्र नंदिवर्धन् और कई पीढ़ी पश्चात् ह्रस्वरोमा हुए। ह्रस्वरोमा के दो पुत्र सीरध्वज तथा कुशध्वज हुए। जनक नामक एक अथवा अनेक राजाओं के उल्लेख ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में हुए हैं। इतना निश्चित प्रतीत होता है कि जनक नाम के कम से कम दो प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए; एक तो वैदिक साहित्य के दार्शनिक और तत्वज्ञानी जनक विदेह और दूसरे राम के ससुर जनक, जिन्हें वायुपुराण और पद्मपुराण में सीरध्वज कहा गया है। असंभव नहीं, और भी जनक हुए हों और यही कारण है, कुछ विद्वान् वशिष्ठ और विश्वामित्र की भाँति 'जनक' को भी कुलनाम मानते हैं। सीरध्वज की दो कन्याएँ सीता तथा उर्मिला हुईं जिनका विवाह, राम तथा लक्ष्मण से हुआ। कुशध्वज की कन्याएँ मांडवी तथा श्रुतिकीर्ति हुईं जिनके व्याह भरत तथा शत्रुघ्न से हुए। श्रीमद्भागवत में दी हुई जनकवंश की सूची कुछ भिन्न है, परंतु सीरध्वज के योगिराज होने में सभी ग्रंथ एकमत हैं। इनके अन्य नाम 'विदेह' अथवा 'वैदेह' तथा 'मिथिलेश' आदि हैं। मिथिला राज्य तथा नगरी इनके पूर्वज निमि के नाम पर प्रसिद्ध हुए। . जनक विदेह के उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में चार भिन्न भिन्न स्थलों में हुए हैं और सभी में याज्ञवल्क्य भी साथ-साथ आते हैं। वहाँ जनक विदेह, याज्ञवल्क्य को शिक्षा देते हुए पाए जाते हैं। यह भी कहा गया है कि वे अंत में स्वयं ब्रह्मण्य (ब्रह्मा) पद प्राप्त कर लेते हैं। यों तो वैदिक युग में वर्णपरिवर्तन संभव ही नहीं अपितु प्रचलित भी था; यह कह सकना कठिन है कि यहाँ जनक द्वारा क्षत्रिय वर्ण छोड़कर ब्राह्मण वर्ण में प्रवेश कर जाने का उल्लेख है अथवा केवल ज्ञान और दर्शन क्षेत्र में ब्रह्मण्य प्राप्त कर लेने की ओर निर्देश है। यह भी कहा गया है कि अग्निहोत्र के बारे में उचित उत्तर पाकर जनक ने याज्ञवल्क्य को १०० गायों का दान दिया। एक दूसरे स्थल पर १००० गायों के दान देने की बात भी कही गई है। शाखायन श्रौतसूत्र में उन्हें 'सप्तरात्र' नामक यज्ञ का कर्ता भी कहा गया है। जनक और याज्ञवल्क्य का बृहदारण्यक उपनिषद् में भी उल्लेख हुआ है, किंतु वहाँ याज्ञवल्क्य शिष्यत्व छोड़कर गुरु का स्थान प्राप्त कर लेते हैं और स्वयं जनक उनसे परलोक, ब्रह्म और आत्मा के विषय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक और कौषीतकि उपनिषदों तथा शांखायन आरण्यक से यह तो सिद्ध होता ही है कि जनक विदेह और याज्ञवल्क्य समकालीन थे, यह भी ज्ञात होता है कि श्वेतकेतु आरुणेय और काशी के प्रसिद्ध दार्शनिक राजा अजातशत्रु भी उन्हीं के समय में हुए थे। एक विद्वान् ने काशी के अजातशत्रु के मगध के अजातशत्रु से मिलाते हुए जनक का समय ई.पू.
जनक और जनक विदेह के बीच समानता
जनक और जनक विदेह आम में एक बात है (यूनियनपीडिया में): मिथिला के राजाओं की सूची।
सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब
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जनक और जनक विदेह के बीच तुलना
जनक 25 संबंध है और जनक विदेह 14 है। वे आम 1 में है, समानता सूचकांक 2.56% है = 1 / (25 + 14)।
संदर्भ
यह लेख जनक और जनक विदेह के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: