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छन्दशास्त्र और हलायुध (भाष्यकार)

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

छन्दशास्त्र और हलायुध (भाष्यकार) के बीच अंतर

छन्दशास्त्र vs. हलायुध (भाष्यकार)

छन्दः शास्त्र पिंगल द्वारा रचित छन्द का मूल ग्रन्थ है। यह सूत्रशैली में है और बिना भाष्य के अत्यन्त कठिन है। इस ग्रन्थ में पास्कल त्रिभुज का स्पष्ट वर्णन है। इस ग्रन्थ में इसे 'मेरु-प्रस्तार' कहा गया है। दसवीं शती में हलायुध ने इस पर 'मृतसंजीवनी' नामक भाष्य की रचना की। अन्य टीकाएं-. हलायुध ने शुक्लयजुर्वेद की काण्वसंहिता पर भाष्य लिखा था। उस भाष्य का नाम 'ब्राह्मणसर्वस्वम्' था। सायण के परवर्ती अनन्ताचार्य और आनन्दबोध इत्यादि बहुत विद्वानों ने काण्वसंहिता पर भाष्य लिखे। परन्तु सायणाचार्य के पूर्ववर्त्तिओं में से हलायुध ने ही शुक्लयजुर्वेद की काण्वसंहिता पर अपना भाष्य लिखा। .

छन्दशास्त्र और हलायुध (भाष्यकार) के बीच समानता

छन्दशास्त्र और हलायुध (भाष्यकार) आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): पिङ्गल, भाष्य, हलायुध

पिङ्गल

पिंगल भारत के प्राचीन गणितज्ञ और छन्दःसूत्रम् के रचयिता। इनका काल ४०० ईपू से २०० ईपू अनुमानित है। जनश्रुति के अनुसार यह पाणिनि के अनुज थे। छन्द:सूत्र में मेरु प्रस्तार (पास्कल त्रिभुज), द्विआधारी संख्या (binary numbers) और द्विपद प्रमेय (binomial theorem) मिलते हैं। .

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भाष्य

संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। मुख्य रूप से सूत्र ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं। भाष्य, मोक्ष की प्राप्ति हेतु अविद्या (ignorance) का नाश करने के साधन के रूप में जाने जाते हैं। पाणिनि के अष्टाध्यायी पर पतंजलि का व्याकरणमहाभाष्य और ब्रह्मसूत्रों पर शांकरभाष्य आदि कुछ प्रसिद्ध भाष्य हैं। .

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हलायुध

हलायुध या भट्ठ हलायुध (समय लगभग १० वीं० शताब्दी ई०) भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद्, गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे। उन्होने मृतसंजीवनी नामक ग्रन्थ की रचना की जो पिंगल के छन्दशास्त्र का भाष्य है। इसमें पास्कल त्रिभुज (मेरु प्रस्तार) का स्पष्ट वर्णन मिलता है। हलायुध द्वारा रचित कोश का नाम अभिधानरत्नमाला है, पर यह हलायुधकोश नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इसके पाँच कांड (स्वर, भूमि, पाताल, सामान्य और अनेकार्थ) हैं। प्रथम चार पर्यायवाची कांड हैं, पंचम में अनेकार्थक तथा अव्यय शब्द संगृहीत है। इसमें पूर्वकोशकारों के रूप में अमरदत्त, वरुरुचि, भागुरि और वोपालित के नाम उद्धृत है। रूपभेद से लिंग-बोधन की प्रक्रिया अपनाई गई है। ९०० श्लोकों के इस ग्रंथ पर अमरकोश का पर्याप्त प्रभाव जान पड़ता है। कविरहस्य भी इनका रचित है जिसमें 'हलायुध' ने धातुओं के लट्लकार के भिन्न भिन्न रूपों का विशदीकरण भी किया है। .

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छन्दशास्त्र और हलायुध (भाष्यकार) के बीच तुलना

छन्दशास्त्र 6 संबंध है और हलायुध (भाष्यकार) 5 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 27.27% है = 3 / (6 + 5)।

संदर्भ

यह लेख छन्दशास्त्र और हलायुध (भाष्यकार) के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें: