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चीन और टेम्परा चित्रण

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

चीन और टेम्परा चित्रण के बीच अंतर

चीन vs. टेम्परा चित्रण

---- right चीन विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जो एशियाई महाद्वीप के पू‍र्व में स्थित है। चीन की सभ्यता एवं संस्कृति छठी शताब्दी से भी पुरानी है। चीन की लिखित भाषा प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी है जो आज तक उपयोग में लायी जा रही है और जो कई आविष्कारों का स्रोत भी है। ब्रिटिश विद्वान और जीव-रसायन शास्त्री जोसफ नीधम ने प्राचीन चीन के चार महान अविष्कार बताये जो हैं:- कागज़, कम्पास, बारूद और मुद्रण। ऐतिहासिक रूप से चीनी संस्कृति का प्रभाव पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों पर रहा है और चीनी धर्म, रिवाज़ और लेखन प्रणाली को इन देशों में अलग-अलग स्तर तक अपनाया गया है। चीन में प्रथम मानवीय उपस्थिति के प्रमाण झोऊ कोऊ दियन गुफा के समीप मिलते हैं और जो होमो इरेक्टस के प्रथम नमूने भी है जिसे हम 'पेकिंग मानव' के नाम से जानते हैं। अनुमान है कि ये इस क्षेत्र में ३,००,००० से ५,००,००० वर्ष पूर्व यहाँ रहते थे और कुछ शोधों से ये महत्वपूर्ण जानकारी भी मिली है कि पेकिंग मानव आग जलाने की और उसे नियंत्रित करने की कला जानते थे। चीन के गृह युद्ध के कारण इसके दो भाग हो गये - (१) जनवादी गणराज्य चीन जो मुख्य चीनी भूभाग पर स्थापित समाजवादी सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत चीन का बहुतायत भाग आता है। (२) चीनी गणराज्य - जो मुख्य भूमि से हटकर ताईवान सहित कुछ अन्य द्वीपों से बना देश है। इसका मुख्यालय ताइवान है। चीन की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है। प्राचीन चीन मानव सभ्यता के सबसे पुरानी शरणस्थलियों में से एक है। वैज्ञानिक कार्बन डेटिंग के अनुसार यहाँ पर मानव २२ लाख से २५ लाख वर्ष पहले आये थे। . कानवास पर टेम्परा चित्रण: पीटर ब्रुघेल की 'The Misanthrope' नामक कृति, 1568 टेंपरा (Tempera) चित्र बनाने का एक परंपरागत विधान (टेकनीक) है और आज भी बहु प्रचलित है। टेंपरा चित्रण की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें किसी प्रकार के संश्लेषयुक्त पदार्थ (बाइंर्डिग मैटीरियल) के साथ जलीय रंगों (वाटर कलर) का प्रयोग करते हैं। उक्त पदार्थ गोंद, अंडा केसिन आदि हो सकता है। इसमें रंगों का पारदर्शी रूप में प्रयोग नहीं होता। दूसरी ओर शुद्ध जलीय रंगविधान (वाटर कलर टेकनीक) में रंग पारदर्शी ही रही हैं परंतु यह विधान दो-ढाई सौ वर्षों से ही चला है। टेंपरा प्रणाली सभी देशों में प्रचलित है। इसके लिये दीवार, कपड़ा, काष्ठफलक, रेशम, कागज, भोजपत्र आदि कोई भी वस्तु आधार हो सकती है। उसपर टेंपरा प्रणाली से रंग लाकर चित्र बनाया जा सकता है। टेंपरा प्रणाली से भितिचित्रों के बनाने में उसपर एक विशेष प्रकार की जमीन तैयार करनी पड़ती है। उदाहरण के लिए अजंता में भीत को खुरदरा कर उसपर गोबर, कपड़े की महीन लुग्दी, छनी हुई मिट्टी, धान की भूसी और अलसी का लेप पलस्तर के रूप में किया गया। ऐसे कई स्तर एक के ऊपर एक करके लगाए गए कि वह शीशे के समान समतल हो गया। इस आधार या जमीन पर रंग लगाए गए, जो कुछ खनिज रंग थे जैसे गेरू, हिरौंजी, रामरज, कुछ पत्थरों को पीसकर बनाए गए जैसे लाजवर्द और दहने फिरंग, कुछ रासायनिक जैसे हरा ढाबा, आलतां, शंख या जस्ते से बना सफेदा आदि। भारत में इसी परंपरा का प्रयोग अन्य गुफाचित्रों में यथा बादामी, सित्तन्नवासल, तंजोर, कोचीन आदि में हुआ है। इसी प्रकार राजस्थानी, मुगल, पहाड़ी शैलियों में भी इसी का एक विभेद प्रयुक्त हुआ जिसे गुआश (Gouache) शैली कहते हैं। इसमें रंगों की कई तहें लगाते, परंतु प्रत्येक दो तहों के बीच सफेदे की एक तह (अस्तर) दे देते। इससे रंग में सोने जैसी चमक आ जाती और उसकी तह मोटी हो जाती। परंतु प्राय: सफेंद में गोंद अधिक होने से ये रंग तड़ककर टूट गए। चीन में चाऊ (Chou), तांग (Tang), सुंग (Sung), मिंग (Ming) आदि कालों में भी टेंपरा प्रणाली का उपयोग हुआ। यहाँ जमीन पर सरेस का अस्तर दिया जाता और कभी कभी फिटकरी के पानी का। जापान में भी इस विधान का प्रयोग हुआ, उदाहरणार्थ, होरियुजी (Horiyuji) मंदिर में चित्रित अवलोकितेश्वर की आकृति इसी प्रणाली में है। यूरोप में एत्रुस्कुल चित्र, माइकीनी ग्रीक चित्र या इजिप्त के पिरामडों के चित्र इसी प्रणाली में बने हैं। रेनेसां (Renaissance) युग के जिओत्तो (Giotto), मासाच्चिओ (Masaccio), पिअरो देला फ्रांचेस्का (Peiro della Francesca), माइकेल ऐंजेलो आदि के चित्र इसी विधान में बने। तैल-चित्र-विधान 500 वर्षों से ही चल रहा है, उसके पूर्व टेंपरा का विधान था। अब भी कुछ चित्रकार इस शैली को पसंद करते हैं क्योंकि इसमें तूलिका वे रोक टोक चलती है (रंगमाध्यम के कारण रुकती नहीं); रगों का भी अधिक सामंजस्य संभव है। .

चीन और टेम्परा चित्रण के बीच समानता

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