लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

चारण और सोलंकी वंश

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

चारण और सोलंकी वंश के बीच अंतर

चारण vs. सोलंकी वंश

राजस्थान की एक जाति-विशेष, जिस के महापुरुषो ने अनेक रजवाडो के राजदरबारों में अपने ओजपूर्ण काव्य के द्वारा राज्य की रक्षा के लिए राजा और सेना की भुजाओं में फौलाद भरने का काम किया करते थे,और खुद युद्वभुमी मे विरता दीखा कर नीडर होकर क्षत्रियधर्म नीभाते थे । युद्ध-विषयक काव्य-लेखन,कवित्व शक्ति,और युद्धभुमी मे विरता दीखाने से बहोत से रजवाडो मे ईन्हे बडी बडी जागीरे और दरबार मे सन्मानीय स्थान प्राप्त हुआ। ये अर्वाचीन काल से युद्ध आदी वीषयो मे नीपुण रहे है,अपीतु चारण क्षत्रिय वर्णस्थ माने जाते है।ईन्हे जागीरदार और ठाकुर कहा जाता है। . सोलंकी वंश मध्यकालीन भारत का एक गुर्जर राजपूत राजवंश था। सोलंकी का अधिकार पाटन और कठियावाड़ राज्यों तक था। ये ९वीं शताब्दी से १३वीं शताब्दी तक शासन करते रहे।इन्हे गुजरात का चालुक्य भी कहा जाता था। यह लोग मूलत: सूर्यवंशी व्रात्य क्षत्रिय हैं और दक्षिणापथ के हैं परन्तु जैन मुनियों के प्रभाव से यह लोग जैन संप्रदाय में जुड़ गए। उसके पश्चात भारत सम्राट अशोकवर्धन मौर्य के समय में कान्य कुब्ज के ब्राह्मणो ने ईन्हे पून: वैदिकों में सम्मिलित किया(अर्बुद प्रादुर्भूत)।। १३वीं और १४वीं शताब्दी की चारणकथाओं में गुजरात के चालुक्यों का सोलंकियों के रूप में वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि इस वंश का संस्थापक आबू पर्वत पर एक अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ था। यह वंश, गुर्जर प्रतिहार, परमार और चहमाण सभी अग्निकुल के सदस्य थे। अपने पुरालेखों के आधार पर चौलुक्य यह दावा करते हैं कि वे ब्रह्मा के चुलुक (करतल) से उत्पन्न हुए थे, और इसी कारण उन्हें यह नाम (चौलुक्य) मिला। प्राचीन परंपराओं में ऐसा लगता है कि चौलुक्य मूल रूप से कन्नौज के कल्याणकटक नामक स्थान में रहते थे और वहीं से वे गुजरात जाकर बस गए। इस परिवार की चार शाखाएँ अब तक ज्ञात हैं। इनमें से सबसे प्राचीन मत्तमयूर (मध्यभारत) में नवीं शताब्दी के चतुर्थांश में शासन करती थी। अन्य तीन गुजरात और लाट में शासन करती थीं। इन चार शाखाओं में सबसे महत्वपूर्ण वह शाखा थी जो सारस्वत मंडल में अणहिलपत्तन (वर्तमान गुजरात के पाटन) को राजधानी बनाकर शासन करती थी। इस वंश का सबसे प्राचीन ज्ञात राजा मूलराज है। उसने ९४२ ईस्वी में चापों को परास्त कर सारस्वतमंडल में अपनी प्रभुता कायम की। मूलराज ने सौराष्ट्र और कच्छ के शासकों को पराजित करके, उनके प्रदेश अपने राज्य में मिला लिए, किंतु उसे अपने प्रदेश की रक्षा के लिए, शाकंभरी के चहमाणों, लाट के चौलुक्यों, मालव के परमारों और त्रिपुरी के कलचुरियों से युद्ध करने पड़े। इस वंश का दूसरा शासक भीम प्रथम है, जो १०२२ में सिंहासन पर बैठा। इस राजा के शासन के प्रारंभिक काल में महमूद गजनवी ने १०२५ में अणहिलपत्तन को ध्वंस कर दिया और सोमनाथ के मंदिर को लूट लिया। महमूद गजनवी के चौलुक्यों के राज्य से लौटने के कुछ समय पश्चात् ही, भीम ने आबू पर्वत और भीनमाल को जीत लिया और दक्षिण मारवाड़ के चाहमानों से लड़ा। ११वीं शताब्दी के मध्यभाग में उसने कलचुरि कर्ण से संधि करके परमारों को पराजित कर दिया और कुछ काल के लिए मालव पर अधिकार कर लिया। भीम के पुत्र और उत्तराधिकारी कर्ण ने कर्णाटवालों से संधि कर ली और मालव पर आक्रमण करके उसके शासक परमार जयसिंह को मार डाला, किंतु परमार उदयादित्य से हार खा गया। कर्ण का बेटा और उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था। ११वीं शताब्दी के पूर्वार्ध से चौलुक्यों का राज्य गुर्जर कहलाता था। जयसिंह शाकंभरी और दक्षिण मारवाड़ के चहमाणी, मालव के परमारों, बुंदेलखंड के चंदेलों और दक्षिण के चौलुक्यों से सफलतापूर्वक लड़ा। उसके उत्तराधिकारी कुमारपाल ने, शांकभरी के चहमाणों, मालव नरेश वल्लाल और कोंकण नरेश मल्लिकार्जुन से युद्ध किया। वह महान् जैनधर्म शिक्षक हेमचंद्र के प्रभाव में आया। उसके उत्तराधिकारी अजयपाल ने भी शार्कभरी के चाहमानों और मेवाड़ के गुहिलों से युद्ध किया, किंतु ११७६ में अपने द्वारपाल के हाथों मारा गया। उसके पुत्र और उत्तराधिकारी मूलराज द्वितीय के शासनकाल में मुइजउद्दीन मुहम्मद गोरी ने ११७८ में गुजरात पर आक्रमण किया, किंतु चौलुक्यों ने उसे असफल कर दिया। मूलराज द्वितीय का उत्तराधिकार उसके छोटे भाई भीम द्वितीय ने सँभाला जो एक शक्तिहीन शासक था। इस काल में प्रांतीय शासकों और सांमतों ने स्वतंत्रता के लिए सिर उठाया किंतु बघेलवंशी सरदार, जो राजा के मंत्री थे, उनपर नियंत्रण रखने में सफल हुए। फिर भी उनमें से जयसिंह नामक एक व्यक्ति को कुछ काल तक सिंहासन पर बलात् अधिकार करने में सफलता मिली किंतु अंत में उसे भीम द्वितीय के सम्मुख झुकना पड़ा। चौलुक्य वंश से संबंधित बघेलों ने इस काल में गुजरात की विदेशी आक्रमणों से रक्षा की, और उस प्रदेश के वास्तविक शासक बन बैठे। भीम द्वितीय के बाद दूसरा त्रिभुवनपाल हुआ, जो इस वंश का अंतिम ज्ञात राजा है। यह १२४२ में शासन कर रहा था। चौलुक्यों की इस शाखा के पतन के पश्चात् बघेलों का अधिकार देश पर हो गया। .

चारण और सोलंकी वंश के बीच समानता

चारण और सोलंकी वंश आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): जैन धर्म, कच्छ

जैन धर्म

जैन ध्वज जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। 'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। 'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जैन दर्शन में सृष्टिकर्ता कण कण स्वतंत्र है इस सॄष्टि का या किसी जीव का कोई कर्ता धर्ता नही है।सभी जीव अपने अपने कर्मों का फल भोगते है।जैन धर्म के ईश्वर कर्ता नही भोगता नही वो तो जो है सो है।जैन धर्म मे ईश्वरसृष्टिकर्ता इश्वर को स्थान नहीं दिया गया है। जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था। जैन धर्म की अत्यंत प्राचीनता करने वाले अनेक उल्लेख अ-जैन साहित्य और विशेषकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। .

चारण और जैन धर्म · जैन धर्म और सोलंकी वंश · और देखें »

कच्छ

कच्छ गुजरात प्रान्त का एक जिला है। गुजरात यात्रा कच्छ जिले के भ्रमण के बिना अधूरी मानी जाती है। पर्यटकों को लुभाने के लिए यहां बहुत कुछ है। जिले का मुख्यालय है भुज। जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हर वर्ष कच्छ महोत्सव आयोजित किया जाता है। 45652 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले गुजरात के इस सबसे बड़े जिले का अधिकांश हिस्सा रेतीला और दलदली है। जखाऊ, कांडला और मुन्द्रा यहां के मुख्‍य बंदरगाह हैं। जिले में अनेक ऐतिहासिक इमारतें, मंदिर, मस्जिद, हिल स्टेशन आदि पर्यटन स्थलों को देखा जा सकता है। मिलें अवशेषों के आधार पर कच्छ प्राचीन सिन्धु संस्कृति का हिस्सा माना जाता है। सन १२७० में कच्छ एक स्वतंत्र प्रदेश था। सन १८१५ में यह ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हुआ। रजवाड़े के रूप में कच्छ के तत्कालीन महाराजा ने ब्रिटिश सत्ता स्वीकार कर ली। सन १९४७ में भारत की स्वतंत्रता के बाद कच्छ तत्कालीन ' महागुजरात ' राज्य का जिला बना। सन १९५० में कच्छ भारत का एक राज्य बना। १ नवम्बर सन १९५६ को यह मुंबई राज्य के अंतर्गत आया। सन १९६० में भाषा के आधार पर मुंबई राज्य का महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजन हो गया तथा कच्छ गुजरात का एक हिस्सा बन गया। सन १९४७ में भारत के विभाजन के पश्चात सिंध और कराची में स्थित बंदरगाह पाकिस्तान के अंतर्गत चला गया। स्वतंत्र भारत की सरकार ने कच्छ के कंडला में नवीन बंदरगाह विकसित करने का निर्णय लिया। कंडला बंदरगाह पश्चिम भारत का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह है। इतिहास में १६ जून सन १८१५ का दिन कच्छ के पहले भूकंप के रूप में दर्ज है। २६ जनवरी २००१ में आया प्रचंड भूकंप का केंद्र कच्छ जिले के अंजार में था। कच्छ के १८५ वर्ष के दर्ज भूस्तरीयशास्त्र के इतिहास में यह सबसे बड़ा भूकंप था। .

कच्छ और चारण · कच्छ और सोलंकी वंश · और देखें »

सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

चारण और सोलंकी वंश के बीच तुलना

चारण 15 संबंध है और सोलंकी वंश 18 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 6.06% है = 2 / (15 + 18)।

संदर्भ

यह लेख चारण और सोलंकी वंश के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »