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चंद्रकीर्ति और निर्वाण

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

चंद्रकीर्ति और निर्वाण के बीच अंतर

चंद्रकीर्ति vs. निर्वाण

चंद्रकीर्ति - बौद्ध माध्यमिक सिद्धांत के व्याख्याता एक अचार्य। तिब्बती इतिहासलेखक तारानाथ के कथनानुसार चंद्रकीर्ति का जन्म दक्षिण भारत के किसी 'समंत' नामक स्थान में हुआ था। लड़कपन से ही ये बड़े प्रतिभाशाली थे। बौद्ध धर्म में दीक्षित होकर इन्होंने त्रिपिटकों का गंभीर अध्ययन किया। थेरवादी सिद्धांत से असंतुष्ट होकर ये महायान दर्शन के प्रति आकृष्ट हुए। उसका अध्ययन इन्होंने आचार्य कमलबुद्धि तथा आचार्य धर्मपाल की देखरेख में किया। कमलबुद्धि शून्यवाद के प्रमुख आचार्य बुद्धपालत तथा आचार्य भावविवेक (भावविवेक या भव्य) के पट्ट शिष्य थे। आचार्य धर्मपाल नालंदा महाविहार के कुलपति थे जिनके शिष्य शीलभद्र ह्वेन्त्सांग को महायान के प्रमुख ग्रंथों का अध्यापन कराया था। चंद्रकीर्ति ने नालंदा महाविहार में ही अध्यापक के गौरवमय पद पर आरुढ़ होकर अपने दार्शनिक ग्रंथों का प्रणयन किया। चंद्रकीर्ति का समय ईस्व षष्ठ शतक का उत्तरार्ध है। योगाचार मत के आचार्य चंद्रगोमी से इनकी स्पर्धा की कहानी बहुश: प्रसिद्ध है। ये शून्यवाद के प्रासंगिक मत के प्रधान प्रतिनिधि माने जाते हैं। . निर्वाण का शाब्दिक अर्थ है - 'बुझा हुआ' (दीपक अग्नि, आदि)। किन्तु बौद्ध, जैन धर्म और वैदिक धर्म में इसके विशेष अर्थ हैं। श्रमण विचारधारा में (निर्वाण;निब्बान) पीड़ा या दु:ख से मुक्ति पाने की स्थिति है। पाली में "निब्बाण" का अर्थ है "मुक्ति पाना"- यानी, लालच, घृणा और भ्रम की अग्नि से मुक्ति। यह बौद्ध धर्म का परम सत्य है और जैन धर्म का मुख्य सिद्धांत। यद्यपि 'मुक्ति' के अर्थ में निर्वाण शब्द का प्रयोग गीता, भागवत, रघुवंश, शारीरक भाष्य इत्यादि नए-पुराने ग्रंथों में मिलता है, तथापि यह शब्द बौद्धों का पारिभाषिक है। सांख्य, न्याय, वैशेषिक, योग, मीमांसा (पूर्व) और वेदांत में क्रमशः मोक्ष, अपवर्ग, निःश्रेयस, मुक्ति या स्वर्गप्राप्ति तथा कैवल्य शब्दों का व्यवहार हुआ है पर बौद्ध दर्शन में बराबर निर्वाण शब्द ही आया है और उसकी विशेष रूप से व्याख्या की गई है। बौद्ध धर्म की दो प्रधान शाखाएँ हैं—हीनयान (या उत्त- रीय) और महायान (या दक्षिणी)। इनमें से हीनयान शाखा के सब ग्रंथ पाली भाषा में हैं और बौद्ध धर्म के मूल रूप का प्रतिपादन करते हैं। महायान शाखा कुछ पीछे की है और उसके सब ग्रंथ सस्कृत में लिखे गए हैं। महायान शाखा में ही अनेक आचार्यों द्वारा बौद्ध सिद्धांतों का निरूपण गूढ़ तर्कप्रणाली द्वारा दार्शनिक दृष्टि से हुआ है। प्राचीन काल में वैदिक आचार्यों का जिन बौद्ध आचार्यों से शास्त्रार्थ होता था वे प्रायः महायान शाखा के थे। अतः निर्वाण शब्द से क्या अभिप्राय है इसका निर्णय उन्हीं के वचनों द्वारा हो सकता है। बोधिसत्व नागार्जुन ने माध्यमिक सूत्र में लिखा है कि 'भवसंतति का उच्छेद ही निर्वाण है', अर्थात् अपने संस्कारों द्वारा हम बार बार जन्म के बंधन में पड़ते हैं इससे उनके उच्छेद द्वारा भवबंधन का नाश हो सकता है। रत्नकूटसूत्र में बुद्ध का यह वचन हैः राग, द्वेष और मोह के क्षय से निर्वाण होता है। बज्रच्छेदिका में बुद्ध ने कहा है कि निर्वाण अनुपधि है, उसमें कोई संस्कार नहीं रह जाता। माध्यमिक सूत्रकार चंद्रकीर्ति ने निर्वाण के संबंध में कहा है कि सर्वप्रपंचनिवर्तक शून्यता को ही निर्वाण कहते हैं। यह शून्यता या निर्वाण क्या है ! न इसे भाव कह सकते हैं, न अभाव। क्योंकि भाव और अभाव दोनों के ज्ञान के क्षप का ही नाम तो निर्वाण है, जो अस्ति और नास्ति दोनों भावों के परे और अनिर्वचनीय है। माधवाचार्य ने भी अपने सर्वदर्शनसंग्रह में शून्यता का यही अभिप्राय बतलाया है—'अस्ति, नास्ति, उभय और अनुभय इस चतुष्कोटि से विनिमुँक्ति ही शून्यत्व है'। माध्यमिक सूत्र में नागार्जुन ने कहा है कि अस्तित्व (है) और नास्तित्व (नहिं है) का अनुभव अल्पबुद्धि ही करते हैं। बुद्धिमान लोग इन दोनों का अपशमरूप कल्याण प्राप्त करते हैं। उपयुक्त वाक्यों से स्पष्ट है कि निर्वाण शब्द जिस शून्यता का बोधक है उससे चित्त का ग्राह्यग्राहकसंबंध ही नहीं है। मै भी मिथ्या, संसार भी मिथ्या। एक बात ध्यान देने की है कि बौद्ध दार्शनिक जीव या आत्मा की भी प्रकृत सत्ता नहीं मानते। वे एक महाशून्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं मानते। .

चंद्रकीर्ति और निर्वाण के बीच समानता

चंद्रकीर्ति और निर्वाण आम में 3 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): नागार्जुन, शून्यता, संस्कृत भाषा

नागार्जुन

नागार्जुन (३० जून १९११-५ नवंबर १९९८) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली संस्कृत एवं बाङ्ला में मौलिक रचनाएँ भी कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने मैथिली में यात्री उपनाम से लिखा तथा यह उपनाम उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के साथ मिलकर एकमेक हो गया। .

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शून्यता

शून्यवाद या शून्यता बौद्धों की महायान शाखा माध्यमिक नामक विभाग का मत या सिद्धान्त है जिसमें संसार को शून्य और उसके सब पदार्थों को सत्ताहीन माना जाता है (विज्ञानवाद से भिन्न)। "माध्यमिक न्याय" ने "शून्यवाद" को दार्शनिक सिद्धांत के रूप में अंगीकृत किया है। इसके अनुसार ज्ञेय और ज्ञान दोनों ही कल्पित हैं। पारमार्थिक तत्व एकमात्र "शून्य" ही है। "शून्य" सार, असत्, सदसत् और सदसद्विलक्षण, इन चार कोटियों से अलग है। जगत् इस "शून्य" का ही विवर्त है। विवर्त का मूल है संवृति, जो अविद्या और वासना के नाम से भी अभिहित होती है। इस मत के अनुसार कर्मक्लेशों की निवृत्ति होने पर मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर उसी प्रकार शांत हो जाता है जैसे तेल और बत्ती समाप्त होने पर प्रदीप। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

चंद्रकीर्ति और निर्वाण के बीच तुलना

चंद्रकीर्ति 5 संबंध है और निर्वाण 38 है। वे आम 3 में है, समानता सूचकांक 6.98% है = 3 / (5 + 38)।

संदर्भ

यह लेख चंद्रकीर्ति और निर्वाण के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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