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घोष (स्वनविज्ञान) और स्वनविज्ञान

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

घोष (स्वनविज्ञान) और स्वनविज्ञान के बीच अंतर

घोष (स्वनविज्ञान) vs. स्वनविज्ञान

स्वनविज्ञान और स्वनिमविज्ञान में घोष (voiced) वह ध्वनियाँ (विशेषकर व्यंजन) होती हैं जिनमें स्वर-रज्जु में कम्पन होता है, जबकि अघोष वह ध्वनियाँ होती हैं जिनमें यह कम्पन नहीं होता। उदाहरण के लिए "प" एक अघोष ध्वनि है जबकि "ब" एक घोष ध्वनि है। इसी तरह "स" और "श" दोनों अघोष है, जबकि "ज़" घोष है। देवनागरी के हर नियमित वर्ग में पहले दो वर्ण अघोष और उन के बाद के दो घोष होते हैं। क/ख, च/छ, त/थ, ट/ठ, प/फ घोष हैं, जबकि ग/घ, ज/झ, द/ध, ड/ढ, ब/भ घोष हैं। . स्वानिकी या स्वनविज्ञान (Phonetics), भाषाविज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत मानव द्वारा बोली जाने वाली ध्वनियों का अध्ययन किया जाता है। यह बोली जाने वाली ध्वनियों के भौतिक गुण, उनके शारीरिक उत्पादन, श्रवण ग्रहण और तंत्रिका-शारीरिक बोध की प्रक्रियाओं से संबंधित है। .

घोष (स्वनविज्ञान) और स्वनविज्ञान के बीच समानता

घोष (स्वनविज्ञान) और स्वनविज्ञान आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): स्वनिमविज्ञान, उच्चारण स्थान

स्वनिमविज्ञान

स्वनिमविज्ञान (Phonology) भाषाविज्ञान की वह शाखा है जो किसी भी मानव भाषा में ध्वनि के सम्यक उपयोग द्वारा अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति से सम्बन्धित मुद्दों का अध्ययन करती है। किसी भाषा की सार्थक ध्वनियों की व्यवस्था का अध्ययन ही स्वनिमविज्ञान कहलाता है। स्वनिमविज्ञान अपनी मूल इकाई के रूप में स्वनिम (फोनीम) की संकल्पना करता है और इसके उपरांत स्वनिम तथा सहस्वन, उनके वितरण तथा अनुक्रम आदि का अध्ययन करता है। यह 'शब्द' के स्तर के नीचे के स्तर पर अध्यन करता है। .

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उच्चारण स्थान

मानव द्वारा ध्वनि उत्पन्न करने वाले प्रमुख अंगों का विवरण 1. बाह्योष्ठ्य (exo-labial) 2. अन्तःओष्ठ्य (endo-labial)3. दन्त्य (dental) 4. वर्त्स्य (alveolar) 5. post-alveolar6. prä-palatal 7. तालव्य (palatal)8. मृदुतालव्य (velar)9. अलिजिह्वीय (uvular)10. ग्रसनी से (pharyngal) 11. श्वासद्वारीय (glottal)12. उपजिह्वीय (epiglottal)13. जिह्वामूलीय (Radical)14. पश्चपृष्ठीय (postero-dorsal)15. अग्रपृष्ठीय (antero-dorsal) 16. जिह्वापाग्रीय (laminal)17. जिह्वाग्रीय (apical)18. sub-laminal स्वनविज्ञान के सन्दर्भ में, मुख गुहा के उन 'लगभग अचल' स्थानों को उच्चारण बुन्दु (articulation point या place of articulation) कहते हैं जिनको 'चल वस्तुएँ' छूकर जब ध्वनि मार्ग में बाधा डालती हैं तो उन व्यंजनों का उच्चारण होता है। उत्पन्न व्यंजन की विशिष्ट प्रकृति मुख्यतः तीन बातों पर निर्भर करती है- उच्चारण स्थान, उच्चारण विधि और स्वनन (फोनेशन)। मुख गुहा में 'अचल उच्चारक' मुख्यतः मुखगुहा की छत का कोई भाग होता है जबकि 'चल उच्चारक' मुख्यतः जिह्वा, नीचे वाला ओठ, तथा श्वासद्वार (ग्लोटिस) हैं। व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में हवा अबाध गति से न निकलकर मुख के किसी भाग (तालु, मूर्धा, दांत, ओष्ठ आदि) से या तो पूर्ण अवरूद्ध होकर आगे बढ़ती है या संकीर्ण मार्ग से घर्षण करते हुए या पार्श्व से निकले। इस प्रकार वायु मार्ग में पूर्ण या अपूर्ण अवरोध उपस्थित होता है। .

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घोष (स्वनविज्ञान) और स्वनविज्ञान के बीच तुलना

घोष (स्वनविज्ञान) 8 संबंध है और स्वनविज्ञान 13 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 9.52% है = 2 / (8 + 13)।

संदर्भ

यह लेख घोष (स्वनविज्ञान) और स्वनविज्ञान के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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