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घनास्रता और पक्षाघात

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

घनास्रता और पक्षाघात के बीच अंतर

घनास्रता vs. पक्षाघात

दाएँ पैर का तीव्र धमनीजन्य घनास्रता किसी रक्तवाहिका के अन्दर रक्त के जम जाने (तरल के बजाय ठोस बन जाने (clotting)) फलस्वरूप रक्त के प्रवाह को बाधित करने को 'घनास्रता' (थ्रोम्बोसिस/Thrombosis) कहते हैं। जब कहीं कोई रक्तवाहिका क्षतिग्रस्त हो जाती है तो प्लेटलेट्स और फाइब्रिन मिलकर रक्त का थक्का बनाकर रक्त की हानि को रोक देते हैं। किन्तु घनास्रता इससे अलग है। रक्तवाहिनियों के बिना क्षतिग्रस्त हुए भी कुछ स्थितियों में वाहिकाओं के अन्दर रक्त का थक्का बन सकता है। यदि थक्का बहुत तीव्र है और वह वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर गतिमान है तो ऐसे थक्के को वाहिकारोधी (embolus) कहते हैं। घनास्रता और वाहिकारोधी दोनो विद्यमान हों तो इसे 'थ्रोम्बोइम्बोलिज्म' (Thromboembolism) कहते हैं। . पक्षाघात या लकवा मारना (Paralysis) एक या एकाधिक मांसपेशी समूह की मांसपेशियों के कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ होने की स्थिति को कहते हैं। पक्षाघात से प्रभावी क्षेत्र की संवेदन-शक्ति समाप्त हो सकती है या उस भाग को चलना-फिरना या घुमाना असम्भव हो जाता है। यदि दुर्बलता आंशिक है तो उसे आंशिक पक्षाघात कहते हैं। .

घनास्रता और पक्षाघात के बीच समानता

घनास्रता और पक्षाघात आम में 2 बातें हैं (यूनियनपीडिया में): फेफड़ा, रक्त

फेफड़ा

ग्रे की मानव शारीरिकी'', 20th ed. 1918. हवा या वायु में सांस लेने वाले प्राणियों का मुख्य सांस लेने के अंग फेफड़ा या फुप्फुस (जैसा कि इसे वैज्ञानिक या चिकित्सीय भाषा मे कहा जाता है) होता है। यह प्राणियों में एक जोडे़ के रूप मे उपस्थित होता है। फेफड़े की दीवार असंख्य गुहिकाओं की उपस्थिति के कारण स्पंजी होती है। यह वक्ष-गुहा में स्थित होता है। इसमें लहू का शुद्धीकरण होता है। प्रत्येक फेफड़ा में एक फुफ्फुसीय शिरा हिया से अशुद्ध लहू लाती है। फेफड़े में लहू का शुद्धीकरण होता है। लहू में ऑक्सीजन का मिश्रण होता है। फेफडो़ का मुख्य काम वातावरण से प्राणवायु लेकर उसे लहू परिसंचरण मे प्रवाहित (मिलाना) करना और लहू से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है। गैसों का यह विनिमय असंख्य छोटे छोटे पतली-दीवारों वाली वायु पुटिकाओं जिन्हें अल्वियोली कहा जाता है मे होता है। यह शुद्ध लहू फुफ्फुसीय धमनी द्वारा हिया में पहुँचता है, जहां से यह फिर से शरीर के विभिन्न अवयवों मे पम्प किया जाता है। .

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रक्त

मानव शरीर में लहू का संचरण लाल - शुद्ध लहू नीला - अशु्द्ध लहू लहू या रक्त या खून एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं। मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली (Phagocytosis) में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है (In 7 steps)। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती। मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दुसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है कार्य.

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सूची के ऊपर निम्न सवालों के जवाब

घनास्रता और पक्षाघात के बीच तुलना

घनास्रता 11 संबंध है और पक्षाघात 14 है। वे आम 2 में है, समानता सूचकांक 8.00% है = 2 / (11 + 14)।

संदर्भ

यह लेख घनास्रता और पक्षाघात के बीच संबंध को दर्शाता है। जानकारी निकाला गया था, जिसमें से एक लेख का उपयोग करने के लिए, कृपया देखें:

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