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गजनी (2008 फ़िल्म) और लोधी वंश

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

गजनी (2008 फ़िल्म) और लोधी वंश के बीच अंतर

गजनी (2008 फ़िल्म) vs. लोधी वंश

ग़जनी (घजनी) गीता आर्ट्स के बैनर तले बनी ए.आर. मुरुगाडोस द्वारा निर्देशित एवं निर्मित 2008 की एक बॉलीवुड फिल्म है। तमिल फिल्म जो मुरुगाडोस द्वारा ही निर्देशित थी, इसी नाम से बनी ग़जनी की पटकथा क्रिस्टोफ़र नोलन द्वारा लिखित तथा निर्देशित हॉलीवुड की फिल्म "मेमेंटो" पर आधारित है। इसकी मुख्य भूमिका में आमिर खान और असिन है जबकि जिया खान, प्रदीप रावत और रियाज़ खान सहायक भूमिकाओं में हैं। आमिर खान ने इस भूमिका के लिए अपने निजी प्रशिक्षक के साथ लगातार एक साल अपनी निजी व्यायामशाला में प्रशिक्षण के लिए बिताया। यह फिल्म मारधाड़ वाली अपने रोमांटिक तत्वों के साथ एक्शन-थ्रिलर फिल्म है जो कि उच्च प्रकृति के पूर्व स्मृति लोप (एंटीरोग्रेड एम्नेसिया) रोग से ग्रस्त एक अमीर व्यापारी की जिंदगी की छानबीन करती है, जिसे यह रोग अपनी प्रेयसी मॉडल कल्पना की एक हिंसक मुठभेड़ में हत्या के कारण हो जाता है। वह पोलोरोयड इंस्टैंट कैमरा के फोटोग्राफ्स एवं चिरस्थायी टैटूज के जरिये हत्या का बदला लेने की कोशिश करता है। आमिर खान का चरित्र ग़जनी द गेम शीर्षक वाले 3-डी वीडियो गेम में, जो इसी फिल्म पर आधारित है, विशेष स्थान पाएगा. . लोदी वंश (पश्तो / उर्दु) खिलजी अफ़्गान लोगों की पश्तून जाति से बना था। इस वंश ने दिल्ली के सल्तनत पर उसके अंतिम चरण में शासन किया। इन्होंने 1451 से 1526 तक शासन किया। दिल्ली का प्रथम अफ़गान शासक परिवार लोदियों का था। वे एक अफ़गान कबीले के थे, जो सुलेमान पर्वत के पहाड़ी क्षेत्र में रहता था और अपने पड़ोसी सूर, नियाजी और नूहानी कबीलों की ही तरह गिल्ज़ाई कबीले से जुड़ा हुआ था। गिल्ज़ाइयों में ताजिक या तुर्क रक्त का सम्मिश्रण था। पूर्व में मुल्तान और पेशावर के बीच और पश्चिम में गजनी तक सुलेमान पर्वत क्षेत्र में जो पहाड़ी निवासी फैले हुए थे लगभग १४वीं शताब्दी तक उनकी बिल्कुल अज्ञात और निर्धनता की स्थिति थी। वे पशुपालन से अपनी जीविका चलाते थे और यदा कदा अपने संपन्न पड़ोसी क्षेत्र पर चढ़ाई करके लूटपाट करते रहते थे। उनके उच्छृंखल तथा लड़ाकू स्वभाव ने महमूद गजनवी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया और अल-उत्बी के अनुसार उसने उन्हें अपना अनुगामी बना लिया। गोरवंशीय प्रभुता के समय अफ़गान लोग दु:साहसी और पहाड़ी विद्रोही मात्र रहे। भारत के इलबरी शासकों ने अफ़गान सैनिकों का उपयोग अपनी चौकियों को मज़बूत करने और अपने विरोधी पहाड़ी क्षेत्रों पर कब्जा जमाने के लिए किया। यह स्थिति मुहम्मद तुगलक के शासन में आई। एक अफ़गान को सूबेदार बनाया गया और दौलताबाद में कुछ दिनों के लिए वह सुल्तान भी बना। फीरोज तुगलक के शासनकाल में अफ़गानों का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ और १३७९ ई. में मलिक वीर नामक एक अफ़गान बिहार का सूबेदार नियुक्त किया गया। दौलत खां शायद पहला अफ़गान था जिसने दिल्ली की सर्वोच्च सत्ता (१४१२-१४१४) प्राप्त की, यद्यपि उसने अपने को सुल्तान नहीं कहा। सैयदों के शासनकाल में कई प्रमुख प्रांत अफ़गानों के अधीन थे। बहलोल लोदी के समय दिल्ली की सुल्तानशाही में अफ़गानो का बोलबाला था। बहलोल लोदी मलिक काला का पुत्र और मलिक बहराम का पौत्र था। उसने सरकारी सेवा सरहिंद के शासक के रूप में शुरू की और पंजाब का सूबेदार बन गया। १४५१ ई. तक वह मुल्तान, लाहौर, दीपालपुर, समाना, सरहिंद, सुंनाम, हिसार फिरोज़ा और कतिपय अन्य परगनों का स्वामी बन चुका था। प्रथम अफ़गान शाह के रूप में वह सोमवार १९ अप्रैल १४५१ को अबू मुज़फ्फर बहलोल शाह के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। गद्दी पर बैठने के बाद बहलोल लोदी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। उसके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी थे जौनपुर के शर्की सुल्तान किंतु वह विजित प्रदेशों में अपनी स्थिति दृढ़ करने और अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल हुआ। बहलोल लोदी की मृत्यु १४८९ ई. में हुई। उसकी मृत्यु के समय तक लोदी साम्राज्य आज के पूर्वी और पश्चिमी पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के एक भाग तक फैल चुका था। सुल्तान के रूप में बहलाल लोदी ने जो काम किए वे सिद्ध करते हैं कि वह बहुत बुद्धिमान तथा व्यवहारकुशल शासक था। अब वह लड़ाकू प्रवृत्ति का या युद्धप्रिय नहीं रह गया था। वह सहृदय था और शांति तथा व्यवस्था स्थापित करके, न्याय की प्रतिष्ठा द्वारा तथा अपनी प्रजा पर कर का भारी बोझ लादने से विरत रहकर जनकल्याण का संवर्धन करना चाहता था। वहलोल लोदी का पुत्र निजाम खाँ, जो उसकी हिंदू पत्नी तथा स्वर्णकार पुत्री हेमा के गर्भ से उत्पन्न हुआ था, १७ जुलाई १४८९ को सुल्तान सिकंदर शाह की उपाधि धारण करके दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। अपने पिता से प्राप्त राज्य में सिकंदर लोदी ने वियाना, बिहार, तिरहुत, धोलपुर, मंदरैल, अर्वतगढ़, शिवपुर, नारवार, चंदेरी और नागर के क्षेत्र भी मिलाए। शर्की शासकों की शक्ति उसने एकदम नष्ट कर दी, ग्वालियर राज्य को बहुत कमजोर बना दिया और मालवा का राज्य तोड़ दिया। किंतु नीतिकुशल, रणकुशल कूटनीतिज्ञ और जननायक के रूप में सिकंदर लोदी अपने पिता बहलोल लोदी की तुलना में नहीं टिक पाया। सिकंदर लोदी २१ नवम्बर १५१७ को मरा। गद्दी के लिए उसके दोनों पुत्रों, इब्राहीम और जलाल में झगड़ा हुआ। अत: साम्राज्य दो भागों में बँट गया। किंतु इब्राहीम ने बँटा हुआ दूसरा भाग भी छीन लिया और लोदी साम्राज्य का एकाधिकारी बन गया। जलाल १५१८ में मौत के घाट उतार दिया गया। लोदी वंश का आखिरी शासक इब्राहीम लोदी उत्तर भारत के एकीकरण का काम और भी आगे बढ़ाने के लिए व्यग्र था। ग्वालियर को अपने अधीन करने में वह सफल हो गया और कुछ काल के लिए उसने राणा साँगा का आगे बढ़ना रोक दिया। किंतु अफगान सरकार की अंतर्निहित निर्बलताओं ने सुल्तान की निपुणताहीन कठोरता का संयोग पाकर, आंतरिक विद्रोह तथा बाहरी आक्रमण के लिए दरवाजा खोल दिया। जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर ने २० अप्रैल १५२६ ई. को पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम को हरा और मौत के घाट उतारकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। तीनों लोदी राजाओं ने चौथाई शताब्दी तक शासन किया। इस प्रकार मुगलों के पूर्व के शाही वंशों में तुगलकों को छोड़कर उनका शासन सबसे लंबा था। दिल्ली के लोदी सुल्तानों ने एक नए वंश की स्थापना ही नहीं की; उन्होंने सुल्तानशारी की परंपराओं में कुछ परिवर्तन भी किए; हालाँकि उनकी सरकार का आम ढाँचा भी मुख्यत: वैसा ही था जैसा भारत में पिछले ढाई सौ वर्षों के तुर्क शासन में निर्मित हुआ था। हिंदुओं के साथ व्यवहार में वे अपने पूर्ववर्तियों से कहीं अधिक उदार थे और उन्होंने अपने आचरण का आधार धर्म के बजाय राजनीति को बनाया। फलस्वरूप उनके शासन का मूल बहुत गहराई तक जा चुका था। लोदियों ने हिंदू-मुस्लिम-सद्भाव का जो बीजारोपण किया वह मुगलशासन में खूब फलदायी हुआ। .

गजनी (2008 फ़िल्म) और लोधी वंश के बीच समानता

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संदर्भ

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