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खाद्य पूरक

सूची खाद्य पूरक

मानव शरीर के लिए कई प्रकार के खाद्य पूरक होते हैं। इनमें से मुख्य इस प्रकार से हैं:-.

38 संबंधों: नाइयासिन, प्रोबायोटिक, पेन्टोथेनिक अम्ल, पोषण, फ्लोरीन, फोलिक अम्ल, बायोटिन, मोलिब्डेनम, रिबोफ्लेविन, लैक्टोबैसिलस, सेलेनियम, वसा अम्ल, विटामिन, विटामिन ए, विटामिन डी, विटामिन बी समूह, विटामिन बी१, विटामिन बी१२, विटामिन बी६, विटामिन सी, विटामिन ई, विटामिन के, गंधक, आहारीय ताम्र, आहारीय पोटैशियम, आहारीय फास्फोरस, आहारीय मैग्नेशियम, आहारीय मैग्नीज़, आहारीय लौह, आहारीय सोडियम, आहारीय जस्ता, आहारीय खनिज, आहारीय आयोडीन, आहारीय कैल्शियम, क्रोमियम, क्लोरीन, कोबाल्ट, अमीनो अम्ल

नाइयासिन

नाइयासिन एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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प्रोबायोटिक

लैक्टोबैसिलस जीवाणु प्रोबायोटिक जीवाणु है, जो दूध को दही में बदलता है। प्रोबायोटिक एक प्रकार के खाद्य पदार्थ होते हैं, जिसमें जीवित जीवाणु या सूक्ष्मजीव शामिल होते हैं। प्रोबायोटिक विधि रूसी वैज्ञानिक एली मैस्निकोफ ने २०वीं शताब्दी में प्रस्तुत की थी। इसके लिए उन्हें बाद में नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।। हिन्दुस्तान लाइव। १ दिसम्बर २००९ विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रोबायोटिक वे जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जिसका सेवन करने पर मानव शरीर में जरूरी तत्व सुनिश्चित हो जाते हैं।। बिज़नेस भास्कर। २४ मई २००९। डॉ॰ रतन सागर खन्ना ये शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि कर पाचन क्रिया को बेहतर बनाते हैं।। बिज्नेस स्टैण्डर्ड। नेहा भारद्वाज। १८ सितंबर २००८ इस विधि के अनुसार शरीर में दो तरह के जीवाणु होते हैं, एक मित्र और एक शत्रु। भोजन के द्वारा यदि मित्र जीवाणुओं को भीतर लें तो वे धीरे-धीरे शरीर में उपलब्ध शत्रु जीवाणुओं को नष्ट करने में कारगर सिद्ध होते हैं। मित्र जीवाणु प्राकृतिक स्रोतों और भोजन से प्राप्त होते हैं, जैसे दूध, दही और कुछ पौंधों से भी मिलते हैं। अभी तक मात्र तीन-चार ही ऐसे जीवाणु ज्ञात हैं जिनका प्रयोग प्रोबायोटिक रूप में किया जाता है। इनमें लैक्टोबेसिलस, बिफीडो, यीस्ट और बेसिल्ली हैं। इन्हें एकत्र करके प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ में डाला जाता है। वैज्ञानिकों के अब तक के अध्ययन के अनुसार इस तरह से शरीर में पहुंचने वाले जीवाणु किसी प्रकार की हानि भी नहीं पहुंचाते हैं। शोधों में रोगों के रोकथाम में इनकी भूमिका सकारात्मक पाई गई है तथा इनके कोई दुष्प्रभाव भी ज्ञात नहीं हैं। .

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पेन्टोथेनिक अम्ल

पेन्टोथेनिक अम्ल जिसे विटामिन बी5 भी कहते हैं एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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पोषण

1.

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फ्लोरीन

फ्लोरीन एक रासायनिक तत्व है। यह आवर्त सारणी (periodic table) के सप्तसमूह का प्रथम तत्व है, जिसमें सर्वाधिक अधातु गुण वर्तमान हैं। इसका एक स्थिर समस्थानिक (भारसंख्या 19) प्राप्त है और तीन रेडियोधर्मिता समस्थानिक (भारसंख्या 17,18 और 20) कृत्रिम साधनों से बनाए गए हैं। इस तत्व को 1886 ई. में मॉयसाँ ने पृथक्‌ किया। अत्यंत क्रियाशील तत्व होने के कारण इसको मुक्त अवस्था में बनाना अत्यंत कठिन कार्य था। मॉयसाँ ने विशुद्ध हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा दहातु तरस्विनिक के मिश्रण के वैद्युत्‌ अपघटन द्वारा यह तत्व प्राप्त किया था। तरस्विनी मुक्त अवस्था में नहीं पाया जाता। इसके यौगिक चूर्णातु तरस्विनिक (फ्लुओराइड), (चूर.त2) (CaF2) और क्रायोलाइड, (क्षा3स्फ.त6) (Na3AlF6) अनेक स्थानों पर मिलते हैं। तरस्विनी का निर्माण मॉयसाँ विधि द्वारा किया जाता है। महातु घनातु मिश्रधातु का बना यू (U) के आकार का विद्युत्‌ अपघटनी कोशिका लिया जाता है, जिसके विद्युदग्र भी इसी मिश्रधातु के बने रहते हैं। हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल में दहातु तरस्विनिक (फ्लुओराइड) विलयित कर - 23° सें.

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फोलिक अम्ल

फोलिक अम्ल को विटामिन बी-9 या फोलासीन और फोलेट के नाम से भी जाना जाता है। ये विटामिन बी-9 के जल-घुल्य रूप हैं। फोलिक एसीड शरीर के विभिन्न कार्यों के संपादन के लिए आवश्यक हैं। ये न्युक्लिटाइड के संश्लेषण से लेकर हिमोसाइटिन के रिमिथाइलेशन के लिए जरूरी है। यह कोशिका निर्माण और कोशिका वृद्धि के दौरान काफी उपयोगी माना जाता है। स्वस्थ रक्त कोशिका के निर्माण के लिए बच्चों और व्यस्कों में फोलिक एसीड समान रूप से जरूरी है। ये रक्तहीनता को रोकता है। कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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बायोटिन

बायोटिन एक कार्बनिक यौगिक है। इसे विटामिन बी7 भी कहा जाता है।बायोटिन एक पानी में घुलनशील बी-विटामिन है, जिसे विटामिन बी 7 भी कहा जाता है और जिसे पहले विटामिन एच या कॉनेज़ियम आर के रूप में जाना जाता था। यह एक टिटरहाइड्रथोथेनिफ़ी अंगूठी के साथ जुड़े एक यूरिया रिंग से बना है एक वैलेरिक एसिड रिट्टेस्टेंट टैटरहाइड्रथोथेनिफ़ी अंगूठी के कार्बन परमाणुओं में से एक से जुड़ा हुआ है। बायोटिन कार्बोक्ज़ीलस एंजाइम के लिए एक सहज पदार्थ है, फैटी एसिड, आइसोल्यूसीन, और वेलिन के संश्लेषण में शामिल है, और ग्लूकोनेोजेनेसिस में। बायोटिन की कमी बायोटिन चयापचय को प्रभावित करने वाले एक या अधिक जन्मजात आनुवंशिक विकारों के अपर्याप्त आहार सेवन या विरासत के कारण हो सकती है। उप-क्लिनिक की कमी आम तौर पर चेहरे पर हल्के लक्षण, जैसे कि बाल पतला हो जाना या त्वचा के धब्बे के कारण हो सकता है। बायोटिनिडेस की कमी के लिए नवजात छाननी 1 9 84 में संयुक्त राज्य अमेरिका में शुरू हुई और आज कई देशों ने जन्म पर इस विकार के लिए परीक्षण किया। 1 9 84 से पहले पैदा हुए व्यक्तियों को स्क्रीनिंग की संभावना नहीं है, इस प्रकार विकार का असली प्रसार अज्ञात है। बायोटिन में असामान्य संरचना है (उपरोक्त आंकड़ा देखें), जिसमें दो रिंग एक-दूसरे के माध्यम से एक साथ जुड़े हुए हैं। दो अंगूठियां यूरीडो और थियोफेंए मोएटिज हैं बायोटिन एक हेरोर्काइक्लिक, एस-युक्त मोनोकार्बैक्जिलिक एसिड है। यह दो पूर्ववर्ती, अलैनिन और पीमेलोएल- कोए तीन एंजाइमों के माध्यम से किया जाता है। 8-एमिनो -7-ऑक्सोपेलार्गोनिक एसिड सिंथेस एक पाइरिडोक्सल 5'-फॉस्फेट एंजाइम है। पमेलाइल-सीओए, एक संशोधित फैटी एसिड मार्ग द्वारा निर्मित किया जा सकता है जिसमें स्टार्टर के रूप में एक मैलोनील थियोस्टर शामिल होता है। 7,8 डाइमिनोपेलोर्गोनिक एसिड (डीएपीए) एमिनोट्रांसेफेरेज एस-एडेनोसिल मेथियोनीन (एसएएम) का प्रयोग एनएच 2 दाता के रूप में असामान्य है। डीथीबायोटिन सिंथेटेट एटीपी से सक्रिय डीएपीए कारबैमेट के माध्यम से यूरिया रिंग के गठन का उत्प्रेरित करता है। बायोटिन सिंथेस ने सैम को डीओकाइडेनोसिल रैडिकल में साफ़ कर दिया- डेथियोबायोटिन पर बनने वाला पहला क्रांतिकारी सल्फर दाता द्वारा फंस गया, जो एंजाइम में निहित लोहा-सल्फर (फे-एस) केंद्र था / श्रेणी:कार्बनिक यौगिक.

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मोलिब्डेनम

मोलिब्डेनम (Molybdenum) एक रासायनिक तत्व है जिसका प्रतीक Mo एवं परमाणु क्रमांक ४२ है। इसके खनिज तो बहुत समय से ज्ञात हैं किन्तु तत्व के रूप में इसकी पहचान १७७८ में शीले ने की। मोलिब्डेनम के सात स्थिर समस्थानिक पाए जाते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या ९२, ९४, ९५, ९६, ९७, ९८ और १०० है। इनके अतिरिक्त द्रव्यमान संख्या ९३, ९९, १०१ और १०५ के अस्थिर समस्थानिक कृत्रिम विधि से निर्मित हुए हैं। इसके अयस्क मोलिब्डेनाइट को बहुत काल तक भूल से ग्रेफाइट समझा गया। सन् १७७८ में शीले ने इस अयस्क से मोलिब्डिक अम्ल बनाया। सन् १७८२ में येल्म (Hyelm) ने मोलिब्डेनम ऑक्साइड का कार्बन द्वारा अपचयन कर मोलिब्डेनम घातु तैयार की। मोलिब्डेनम स्वतंत्र अवस्था में नहीं मिलता। मोलिब्डेनाइट MnS2 एवं बुल्फेनाइट (PbMoO4) इसके मुख्य अयस्क हैं। संयुक्त राज्य अमरीका इसका मुख्य स्रोत है। चिली, दक्षिणी अमरीका और नार्वे में भी इसके अयस्क प्राप्य हैं। .

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रिबोफ्लेविन

रिबोफ्लेविन (Riboflavin) जीवित ऊतक के एक बुनियादी घटक है और प्रोटीन चयापचय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि आप इस प्रपत्र या नहीं कर सकते नई क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत वाले विटामिन याद आती है। यह भी महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह प्रोटीन एंजाइमों कि जिगर में विभिन्न चयापचय की प्रक्रिया को नियंत्रित फार्म के साथ प्रतिक्रिया.

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लैक्टोबैसिलस

लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस (Lactobacillus) एक जीवाणु है जो स्त्रियों की योनि में तथा मानवों के आहार नाल में पाया जाता है। इनका आकार दण्ड (रॉड) जैसा होता है। श्रेणी:जीवाणु.

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सेलेनियम

सेलेनियम (Selenium, संकेत Se) एक रासायनिक तत्त्व है जिसका परमाणु क्रमांक ३४ है। प्रकृति में यह अपने तत्त्व रूप में बहुत कम पाया जाता है। इसकी खोज १८१७ में बर्जीलियस ने किया था। .

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वसा अम्ल

फैटी अम्ल एक खाद्य पूरक है। श्रेणी:खाद्य पूरक.

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विटामिन

फल एवं शब्जियाँ विटामिन के अच्छे स्रोत हैं। विटामिन (vitamin) या जीवन सत्व भोजन के अवयव हैं जिनकी सभी जीवों को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। रासायनिक रूप से ये कार्बनिक यौगिक होते हैं। उस यौगिक को विटामिन कहा जाता है जो शरीर द्वारा पर्याप्त मात्रा में स्वयं उत्पन्न नहीं किया जा सकता बल्कि भोजन के रूप में लेना आवश्यक हो।विटामिन और उनकी कमी से होने वाले रोग – Vitamins and Their Deficiency Diseases |Sr No |विटामिन |कमी से होन वाले रोग |- |1 |विटामिन – ए |रतौंधी, संक्रमणों का खतरा, जीरोप्‍थैलमिया |- |2 |विटामिन – बी 1 |बेरी-बेरी |- |3 |विटामिन – बी 2 |त्‍वचा का फटना, आखों का लाल होना |- |4 |विटामिन – बी 3 |त्‍वचा पर दाद होना |- |5 |विटामिन – बी 5 |बाल सफेद होना, मंदबुद्धि होना |- |6 |विटामिन – बी 6 |एनिमिया, त्‍वचा रोग |- |7 |विटा‍मिन – बी 7 |लकवा, शरीर में दर्द, बालों का गिरना |- |8 |विटामिन – बी 11 |एनिमिया, पेचिश रोग |- |9 |विटामिन – सी |एनिमिया, पांडुरोग |- |10 |विटामिन – डी |रिकेट्स, ऑस्टियोमलेशिया |- |11 |विटामिन – ई |जनन शक्ति का कम होना |- |12 |विटामिन – के |रक्‍त का थक्‍का न जमना | .

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विटामिन ए

पोषक ए आंखों से देखने के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। साथ ही यह बीमारी से बचने के काम आता है। यह पोषक शरीर में अनेक अंगों को सामान्य रूप में बनाये रखने में मदद करता है जैसे कि त्वचा, बाल, नाखून, ग्रन्थि, दांत, मसूडा और हड्डी। सबसे महत्वपूर्ण स्थिती जो कि सिर्फ पोषक ए के अभाव में होता है, वह है अंधेरे में कम दिखाई देना, जिसे रतौंधी भी कहते हैं। इसके साथ आंखों में आंसू के कमी से आंख सूख जाते हैं और उसमें घाव भी हो सकता है। बच्चों में पोषक ए के अभाव में विकास की गति धीमि हो जाती है, जिससे कि उनके कद पर असर कर सकता है। त्वचा और बालों में भी सूखापन हो जाता है और उनमें से चमक चला जाता है। संक्रमित बीमारी होने का संभावना बढ जाता है। अत्याधिक पोषक ए लेने से शरीर पर अनेक दुर्प्रभाव हो सकते हैं जैसे कि सिरदर्द, देखने में दिक्कत, थकावट, दस्त, बाल गिरना, त्वचा खराब हो जाना, हड्डी और जोडों में दर्द, कलेजा को नुकसान पहुँचना और लडकियों में असमय मासिक धर्म। गर्भ के दौरान खास सावधानी – अत्याधिक पोषक ए, पेट में पलते बच्चे को नुकसान पहुँचा सकता है। .

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विटामिन डी

कोलेकैल्सिफेरॉल (डी३) विटामिन डी वसा-घुलनशील प्रो-हार्मोन का एक समूह होता है। इसके दो प्रमुख रूप हैं:विटामिन डी२ (या अर्गोकेलसीफेरोल) एवं विटामिन डी३ (या कोलेकेलसीफेरोल).

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विटामिन बी समूह

विटामिन बी समूह या काम्पलेक्स शरीर को जीवन शक्ति देने के लिए अति आवश्यक होता है। इस विटामिन की कमी से शरीर अनेक रोगो का गढ़ बन जता है। विटामिन बी के कई विभागो की खोज की जा चुकी है। ये सभी विभाग मिलकर ही विटामिन ‘बी’ काम्पलेक्स कहलाते है। हालांकि सभी विभाग एक दुसरे के अभिन्न अंग है, लेकिन फिर भी सभी आपस मे भिन्नता रखते है। विटामिन ‘बी’ काम्पलेक्स 120 सेंटीग्रेड तक की गर्मी सहन करने की क्षमता रखता है। उससे अधिक ताप यह सहन नही कर पाता और नष्ट हो जाता है। यह विटामिन पानी मे घुलनशील है। इसक प्रमुख कार्य स्नायु को स्वस्थ रखना तथा भोजन के पाचन मे सक्रिय योगदान देना होता है। भूख को बढ़ाकर यह शरीर को जीवन शक्ति देता है। खाया-पिया अंग लगाने मे सहायता प्रदान करता है। क्षार पदार्थो के संयोग से यह यह बिना किसी ताप के नष्ट हो जाता है, पर अम्ल के साथ उबाले जाने पर भी नष्ट नही होता। विटामिन ‘बी’ काम्पलेक्स की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग.

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विटामिन बी१

विटामिन बी१ एक विटामिन है। विटामिन “बी1” का वैज्ञानिक नाम थायमिन हाइड्रोक्लोराइड है। वयस्को को प्रतिदिन विटामिन “बी1” की एक मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है। गर्भवती स्त्रियो को संपूर्ण काल तक विटामिन “बी1” की 5 मिलीग्राम आवश्यक होती है। आवश्यकता से अधिक हो जाने पर विटामिन “बी1” मूत्र से बाहर हो जाता है। आयु बढ़ाने के लिए विटामिन “बी1” का महत्वपूर्ण योगदान होता है। विटामिन “बी1” की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है अतः इसलिए इसको वैज्ञानिक बेरी-बेरी विटामिन भी कहते है। यदि भोजन मे विटामिन “बी1” की कमी हो जाए तो शरीर कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का संपूर्ण प्रयोग कर पाने मे समर्थ नही हो पता। इससे एक विषैल एसिड जमा होकर रक्त मे मिल जाता है और मस्तिष्क के तंत्रिका संस्थान को हानि पहुंचाने लगता है। विटामिन “बी1” की कमी से होने वाले बेरी-बेरी रोग मे रोगी की मांसपेशियो को जहा भी छुआ जाए वहां वेदना होती है तथा उसके पश्चात स्पर्श शुन्यता का आभास होता है। वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन विटामिन “बी1” 900 युनिट अ. ई. की आवश्यकता पड़ती है। विटामिन “बी1” मूलांकुरो मे अधिक पाया जाता है। दूध पीते बच्चो का विटामिन “बी1” की कमी से कै (उलटी) और पेट दर्द जैसे विकार हो जाते है। विटामिन “बी1” निशास्ता युक्त भोजन को पचाने मे सहयोग करता है। विटामिन “बी1” की कमी हो जाने से रोगी की भूख मर जाती है तथा वजन तेजी से गिरने लगता है। विटामिन “बी1” की कमी से ह्रदय और मस्तिष्क मे कमजोरी तथा अन्य अनेक दोष हो जाते है। विटामिन “बी1” की कमी से पाचनांगो को भारी हानि पहुंचती है जो पहले रोगी को समझ मे नही आती लेकिन बाद मे जब उसके भयंकर परिणाम सामने आते है तब तक काफी देर हो चुकी होती है और सामने मृत्यु का संकट आ खड़ा होता है। कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का शरीर मे पूर्ण उपयोग तभी हो सकता है। जब शरीर मे पर्याप्त मात्रा मे विटामिन “बी1” हाजिर हो। विटामिन “बी1” की कमी से बेरी-बेरी रोग का रोगी इतना शक्तिहीन हो चुका होता है कि जहां एक बार बैठ जाता है दुबारा उठने का साहस अपने अंदर नही संजो पाता है। कठोर परिश्रम करने वाले लोगो का सामान्य मनुष्यो की अपेक्षा विटामिन “बी1” की मात्रा अधिक आवश्यक होती है। विटामिन “बी1” की कमी से रोगी थोड़ा सा काम करके थक जाता है। विटामिन “बी1” की कमी का रोगी अक्सर अजीर्ण का रोगी रहता है। बेरी-बेरी रोग विशेष रूप से उन लोगो को होता है जो मशीन से पिसा हुआ गेहुं तथा मशीन से पालिश किया हुआ चावल ज्यादा मात्रा मे खाते है। बेरी- बेरी रोग दो प्रकार के होते है पहला शुष्क तथा दूसरा आर्द्र। आर्द्र बेरी-बेरी रोग के रोगियो की नाड़ी तीव्र गति से चलती है तथा उसका ह्रदय कमजोर हो जाता है। शुष्क बेरी-बेरी का रोगी दिन प्रतिदिन कमजोर, कृषकाय, हीन, असहाय, दुर्बल और असमर्थ होता चला जाता है। कभी-कभी, किसी-किसी रोगी मे शुष्क और आर्द्र दोनो प्रकार के बेरी-बेरी के लक्षण मिलते है। शुष्क एवं आर्द्र लक्षणयुकत रोगी को ह्रदय संबंधी अनेक विकार होते है। उनका ह्रदय जांच करने पर फुटबाल के ब्लैडर जैसा फैला हुआ अनुभव होता है। शुष्क एवं आर्द्र बेरी-बेरी के लक्षण यदि किसी रोगी मे एक साथ दिखे तो उसकी चिकित्सा जितनी जल्दी हो सके आरम्भ कर देनी चाहिए। लापरवाही और गैर जिम्मेदरी जान का खतरा पैदा कर सकती है। विटामिन “बी1” की कमी से वात संस्थान प्रभावित होता है। इसीलिए वात नाड़ियो मे वेदना होती है। गर्भावस्था की वमन (उल्टी) विटामिन “बी1” की कमी का सूचक कहा जा सकता है। गर्भावस्था की विषममयता विटामिन “बी1” की कमी से होती है अतः विटामिन “बी1” की पूर्ति हो जाने पर गर्भावस्था की विषममयता नष्ट हो जाती है। अनेक चर्म रोग विटामिन “बी1” की कमी की वजह से भोगने पड़ते है। विटामिन “बी1” की कमी का प्रथम लक्षण बिना किसी कारण के भूख लगना बंद हो जाना है। ध्यान रहे बेरी-बेरी रोग मारक भी सिद्ध हो सकता है। वनस्पतियो, पत्तेदार शाक तथा खमीर मे विटामिन “बी1” अधिक मात्रा मे विद्यमान रहता है। पाण्डु रोग के पीछे भी विटामिन “बी1” की कमी होती है। विटामिन “बी1” की कमी से पतले वस्तु वमन तथा मितली जैसे उपद्रव हो जाते है। विटामिन “बी1” की कमी से पर्यूदर्या मे जल भर जाता है। मोटे मनुष्यो को विटामिन “बी1” की अधिक आवश्यकता होती है। विटामिन “बी1” की कमी से ह्र्दय बड़ा हो जाना मृत्यु का सूचक कहलाता है। सुखे किण्व मे विटामिन “बी1” सबसे अधिक 9000 अ. ई. युनिट होता है। मटर मे विटामिन “बी1” सबसे कम 100 युनिट अ. ई. होता है। विटामिन “बी1” की कमी से फेफ्ड़ो की झिल्ली मे तरल पदार्थ जमा हो जाता है। इसकी कमी से अण्डाकोश मे भी तरल पदार्थ जमा हो जाता है। आंतड़ियो की मांसपेशियो को शक्तिशाली बनाने मे इस विटामिन का विशेष योगदान रहता है। विटामिन “बी1” की प्रयाप्त मात्रा शरीर मे रहने पर मांसपेशियां पुष्ट रहती है। विटामिन “बी1” की प्रयाप्त भाग से आंतो के संक्रमण सुरक्षा बनी रहती है। इससे आंतो की झिल्ली मजबूत बनी रहती है। इसी मजबूती के कारण इस पर कीटाणु हमला नही कर पाते है। यह विटामिन यकृत की कार्य पणाली को स्वस्थ रखता है। यदि पाचन संस्थान स्वस्थ और शक्तिशाली है तो समझना चाहिए कि शरीर मे विटामिन “बी1” की पर्याप्त मात्रा विद्यमान है। जो लोग हरी साग-सब्जी नही खाते वे निश्चय ही विटामिन “बी1” की कमी के शिकार हो जाते है। मस्तिष्क तथा तंत्रिका संस्थान के सूत्रो को स्वस्थ रखना इसी विटामिन के जिम्मे है। यह विटामिन मानव रक्त के तरल भाग मे प्रोटीन को यथाचित मात्रा मे संतुलित रखता है। .

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विटामिन बी१२

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में विभिन विटामिन्स, मिनरल्स, प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट्स और फाइबर इत्यादि की आवश्यकता होती हैं। शरीर के लिए ज्यादातर आवश्यक तत्वों का पोषण आहार पदार्थो से हो जाता हैं। एक विटामिन ऐसा है जो शरीर के स्वास्थ्य के लिए बेहद जरुरी है परन्तु आहार तत्वों में वह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने से ज्यादातर भारतीय लोगो में इस विटामिन की कमी पायी जाती हैं। इस विटामिन का नाम हैं - विटामिन B12 विटामिन B12 को Cobalamin भी कहा जाता हैं। यह एकलौता ऐसा विटामिन है जिसमे Cobalt धातु पाया जाता हैं। यह शरीर के स्वास्थ्य और संतुलित कार्य प्रणाली के लिए बेहद आवश्यक विटामिन हैं। विटामिन B12 की कमी से शरीर को क्या नुकसान होता हैं और किन खाद्य पदार्थो में यह मिलता हैं इसकी अधिक जानकारी निचे दी गयी हैं: .

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विटामिन बी६

विटामिन बी६ एक कार्बनिक यौगिक है। । कार्बन के रासायनिक यौगिकों को कार्बनिक यौगिक कहते हैं। प्रकृति में इनकी संख्या 10 लाख से भी अधिक है। जीवन पद्धति में कार्बनिक यौगिकों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें कार्बन के साथ-साथ हाइड्रोजन भी रहता है। ऐतिहासिक तथा परंपरा गत कारणों से कुछ कार्बन के यौगकों को कार्बनिक यौगिकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इनमें कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड प्रमुख हैं। सभी जैव अणु जैसे कार्बोहाइड्रेट, अमीनो अम्ल, प्रोटीन, आरएनए तथा डीएनए कार्बनिक यौगिक ही हैं। कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिको को हाइड्रोकार्बन कहते हैं। मेथेन (CH4) सबसे छोटे अणुसूत्र का हाइड्रोकार्बन है। ईथेन (C2H6), प्रोपेन (C3H8) आदि इसके बाद आते हैं, जिनमें क्रमश: एक एक कार्बन जुड़ता जाता है। हाइड्रोकार्बन तीन श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं: ईथेन श्रेणी, एथिलीन श्रेणी और ऐसीटिलीन श्रेणी। ईथेन श्रेणी के हाइड्रोकार्बन संतृप्त हैं, अर्थात्‌ इनमें हाइड्रोजन की मात्रा और बढ़ाई नहीं जा सकती। एथिलीन में दो कार्बनों के बीच में एक द्विबंध (.

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विटामिन सी

विटामिन सी या एल-एस्कॉर्बिक अम्ल मानव एवं विभिन्न अन्य पशु प्रजातियों के लिये अत्यंत आवश्यक पोषक तत्त्व है। ये विटामिन रूप में कार्य करता है। कई प्रकार की उपापचयी अभिक्रियाओं हेतु एस्कॉर्बेट (एस्कॉर्बिक अम्ल का एक आयन) सभी पादपों व पशुओं में आवश्यक होता है। ये लगभग सभी जीवों द्वारा आंतरिक प्रणाली द्वारा निर्मित किया जाता है (सिवाय कुछ विशेष प्रजातियों के) जिनमें स्तनपायी समूह जैसे चमगादड़, एक या दो प्रधान प्राइमेट सबऑर्डर, ऐन्थ्रोपोएडिया (वानर, वनमानुष एवं मानव) आते हैं। इसका निर्माण गिनी शूकर एवं पक्षियों एवं मछलियों की कुछ प्रजातियों में नहीं होता है। जो भी प्रजातियां इसका निर्माण आंतरिक रूप से नहीं कर पातीं, उन्हें ये आहार रूप में वांछित होता है। इस विटामिन की कमी से मानवों में स्कर्वी नामक रोग हो जाता है।। हिन्दुस्ताण लाइव। २८ मार्च २०१० इसे व्यापक रूप से खाद्य पूर्क रूप में प्रयोग किया जाता है। .

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विटामिन ई

विटामिन ई यौगिकों के एक समूह का द्योतक है जिसमें टोकोफेरॉल और टोकोट्रॉयनॉल दोनों निहित हैं। यह खून में रेड बल्ड सेल या लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cell) को बनाने के काम आता है। यह विटामिन शरीर में अनेक अंगों को सामान्य रूप में बनाये रखने में मदद करता है जैसे कि मांस-पेशियां व अन्य कोशिकाएँ। यह शरीर को ऑक्सीजन के एक नुकसानदायक रूप से बचाता है, जिसे ऑक्सीजन रेडिकल्स (oxygen radicals) कहते हैं। इस गुण को एंटीओक्सिडेंट (anti-oxidants) कहा जाता है। विटामिन ई, सेल के अस्तित्व बनाय रखने के लिये, उनके बाहरी कवच या सेल मेमब्रेन को बनाए रखता है। विटामिन ई, शरीर के फैटी एसिड को भी संतुलन में रखता है। समय से पहले पैदा हुए या प्रीमेच्योर नवजात शिशु (Premature infants) में, विटामिन ई की कमी से खून की कमी हो जाती है। इससे उनमें रक्ताल्पता या एनेमिया (anemia) हो सकता है। बच्चों और व्यस्क लोगों में, विटामिन ई के अभाव से, दिमाग के नसों का या न्युरोलोजीकल (neurological) समस्या हो सकता है। अत्यधिक विटामिन ई लेने से खून के सेलों पर असर पड़ सकता है, जिससे कि खून बहना या बीमारी होना मुमकिन है। .

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विटामिन के

विटामिन K वसा में विलेय विटामिन हैं जो मानव द्वारा कुछ प्रकार के प्रोटीनों का संश्लेषण करने के लिये जरूरी होता है। विटामिन K की कमी से "रक्त का थक्का नहीं जमता हैं"। श्रेणी:विटामिन.

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गंधक

हल्के पीले रंग के गंधक के क्रिस्टल गंधक (Sulfur) एक रासायनिक अधातुक तत्त्व है। .

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आहारीय ताम्र

आहारीय ताम्र कई एन्जाइमों में पाया जाता है। विष का प्रभाव कम करने और संक्रामक रोगों में इसका सेवन किया जाता है। तांबा ग्रहण करने से लौह विटामिन-सी तथा आहारीय जस्ता को पचाने में मदद मिलती है। लाल रक्त कणिकाएं ताम्र के बिना नही बन पातीं हैं। शरीर में इसकी कमी से व्यक्ति एनीमिक (खून की कमी से ग्रस्त) हो सकता है। .

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आहारीय पोटैशियम

पोटाशियम एक भौतिक तत्त्व है, जो मानव शरीर के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह सदा ही किसी एसिड के साथ पाया जाता है। खनिज की कमी वाली मिट्टी खनिज की कमी वाला आहार उत्पन्न करती है, जिसका सेवन शरीर की कोशिकाओं से पोटाशियम लेने के लियें विवश करता है, जिससे सम्पूर्ण शरीर-रसायन विक्षुब्ध हो जाता है। पोटाशियम की कमी विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं में मिट्टी, दीवार का चूना इत्यादि या विशिष्ट प्रकार की मिट्टी भी खाने की इच्छा पैदा करती है। पोटाशियम, पेशियों, स्नायुओं की सामान्य शक्ति, हृदय की क्रिया और एन्जाइम प्रतिक्रियाओं के लियें आवश्यक है और शरीर के तरल सन्तुलन को नियमित करने में सहायक होता है। इसकी कमी से स्मरण-शक्ति का मांसपेशियों की कमजोरी, अनियमित हृदय-गति और चिड़चिड़ापन हो सकते है। इसकी अधिकता से हृदय की अनियमितायें हो सकती है। पोटाशियम कोमल ऊतकों के लिये ्वही कार्य करता है, जो कैल्शियम शरीर के कठोर ऊतकों के लिये है। पोटाशियम कोशिकाओं के भीतर और बाहर के तरलों का विद्युत-अपघटनी सन्तुलन बनाये रखने के लिये भी महत्वपूर्ण है। आयु के साथ पोटेशियम का अन्र्तग्रहण भी बढना आवश्यक होता है। पोटाशियम की कमी मानसिक सतर्कता के अभाव, पेशियों की थकावट विक्षाम करने में कठिनाई, सर्दी-जुकाम, कब्ज, मतली, त्वचा की खुजली और शरीर की मांसपेशियों में ऐठन के रूप में दिखाई होती है। सोडियम का बढा हुआ अन्र्तग्रहण शरीर की कोशिकाओं में से पोटैशियम की हानि को बढा देता है। अधिक पोटाशियम से रक्त-नलिकाओं की दीवारें कैल्शियम निक्षेप से मुक्त रखी जा सकती है। विकसित देशों में सेब के आसव का सिरका पोटेशियम का एक उत्तम स्रोत है। यह शरीर की वसाओं को जलाने में मदद करता है। गायों पर किये गये प्रयोगों में सेब के आसव के सिरके से गायों में गठिया समाप्त हो गया अरुअ दूध का उत्पादन बढ गया। .

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आहारीय फास्फोरस

मानव शरीर में अधिकांश कैल्शियम मात्रा फासफोरस के यौगिकों के रूप में उपस्थित होता है, जैसे कैल्शियम फास्फेट। अतः फास्फोरस का उपयोग कैल्शियम के उपयोग से सम्बद्ध है। सामान्य हडडी और दांत की संरचना के लिए फास्फोरस की आवश्यकता रहती है जो भोजन को ऊर्जा में बदलते हैं। इसकी कमी के परिणाम स्वरूप साधारण कमजोरी, हडडी का दर्द और भूख की कमी होती है। इसकी अधिकता कैल्शियम को ग्रहण करने में बाधा पहुंचा सकती है। हडडी टूटने में फास्फोरस स्वस्थ्य होने की प्रक्रिया में शीघ्रता लाता है और घाव से कैल्शियम की हानि को रोकता है। फास्फोरस स्त्रायविक स्वास्थ्य में मदद करता है और गुर्दो का अपशिष्ट बाहर निकालने में सहायक होता है। मैग्नेशियम या लौह की बहुलता फास्फोरस के भंडारण को रोक सकती है। सफ़ेद चीनी और उच्च वसा वाला आहार कैल्शियम-फास्फोरस सन्तुलन को बिगाड सकता है। प्रतम्ल हडिडयों की फ़ांस्फ़ोरस आपूर्ति कम कर देता है। .

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आहारीय मैग्नेशियम

मैग्नेशियम के कुछ अच्छे स्रोत मैग्नेशियम का एक भाग मानव-शरीर की प्रत्येक कोशिका में होता है। यह भाग अतिसूक्ष्म हो सकता है, किंतु महत्त्वपूर्ण अवश्य होता है। सम्पूर्ण शरीर में मैग्नेशियम की मात्रा ५० ग्राम से कम होती है। शरीर में कैल्शियम और विटामिन सी का संचालन, स्नायुओं और मांसपेशियों की उपयुक्त कार्यशीलता और एन्जाइमों, को सर्किय बनाने के लिये मैग्नेशियम आवश्यक है। कैल्शियम-मैग्नेशियम सन्तुलन में गड़बड़ी आने से स्नायु-तंत्र दुर्बल हो सकता है।|हिन्दुस्तान लाइव। १४ अप्रैल २०१० इसीलिये फ़्रांस में कैंसर की अधिकता का मुख्य कारण स्थानीय मिट्टी में मैग्नेशियम का कम अंश पाया गया है। मैग्नेशियम के निम्न स्तरों और उच्च रक्तचाप में स्पष्ट अंतर्संबंध स्थापित हो चुका है। निम्न मैग्नेशियम स्तर से मधुमेह भी हो सकता है। यूरोलोजी जर्नल की एक रिर्पोट के अनुसार मैग्नेशियम और विटामिन बी६ गुर्दे और पित्ताशय की पथरी के खतरे को कम करने में प्रभावी थे। कठोर दैहिक व्यायाम शरीर के मैग्नेशियम की सुरक्षित निधि को क्षय कर देते है और संकुचन को कमजोर कर देते है। व्यायाम एवं शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों को मैग्नेशियम सम्पूरकों की आवश्यकता है। एक गिलास भारी जल मैग्नेशियम के लियें खाघ-संपूरक है। भारी जल में निरपवाद रूप से उच्च मैग्नेशियम का अंश होता है। भारी जल का प्रयोग करने वाले क्षेत्रों में हृदयाघात न्य़ूनतम होते हैं। इसके अन्य महत्वपूर्ण स्रोत है सम्पूर्ण अनाज, दाल, गिरीदार फ़ल, हरी पत्तीदार सब्जियां, डेरी उत्पाद और समुद्र से प्राप्त होने वाले आहार। .

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आहारीय मैग्नीज़

आहारीय मैग्नीज का मानव शरीर के सुरक्षा-तंत्रों से सीधे सम्बद्ध है। यह विधि एंजाइमों को सक्रिय करता है और विटामिन ‘बी’ तथा ‘ई’ के उचित उपयोग में सहायता देता है यह पाचन में मदद करता है। मैग्नीज मधुमेह के लिए भी लाभदायक होता है क्योंकि यह ग्लूकोज सहन शक्ति बढाता है। प्रायः मैग्नीज की कमी मानवों में नहीं पाई जाती। इसकी अधिक मात्रा शरीर की लोहा सोखने की क्षमता कम कर देती है। .

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आहारीय लौह

आहारीय लौह की आवश्यकता लाल रक्त कोशिकाओं का हिमोग्लोबिन बनाने के लिए होती है। फ़ेफ़डों से शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों तक ऑक्सीजन ले जाने के लियें भी यही सहायक होती है। शरीर का कुछ लौह तत्त्व यकृत में भंडार हो जाता है। विटामिन बी के चयापचय के लिए भी लौह आवश्यक होता है। लिंग और शरीर की क्रियात्मक स्थिति के अनुसार दैनिक आहार में केवल २-४ मि.ग्रा.

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आहारीय सोडियम

आहारीय सोडियम शरीर की कोशिकाओं के अन्दर और बाहर जल के सन्तुलन को बनायें रखने में सहायक होता है। इसकी कमी से मांसपेशियों में ऐठन एडेमा, हो सकता है, किन्तु इसकी अधिकता से हानिकारक परिणाम जैसे उच्च रक्तचाप, गुर्दे की बीमारियां, यकृत का सूत्रणरोग और संकुलन संबंधी हृदय रोग हो सकते है। सोडियम मूत्र और विशेषतः पसीने में सोडियम क्लोराइड के रूप में निकलता है। कभी-कभी आहारों में जैव सोडियम आवश्यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्त नही होता। अतः सोडियम क्लोराइड या खाने का नमक भोजन में शामिल करना पडता है। .

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आहारीय जस्ता

आहारीय जस्ता शरीर में कई एन्जाइमों के लिये सह-घटक के रूप में कई कार्य करता है। यह ऊतकों के सामान्य कार्य में सहायता करता है और शरीर में प्रोटीन और कार्बोजों को संभालने के लिए आवश्यक है। जस्ते की कमी मघपान, आहार के परिष्कार, कम प्रोटीन के आहार, जुकाम, गर्भावस्था और रोग के कारण हो सकती है। जस्ते की कमी यकृत से विटामिन ‘ए’ के मोचन को कम कर देती है। इस प्रकार की कमी के परिणाम हो सकते है। आहार में जस्ते की कमी के कारण स्वाद और भूख की कमी, घाव भरने में विलम्ब, गंजापन, वृद्धि में विलम्ब, हृदय-रोग, मानसिक रोग, विलम्बित यौन परिपकवता और प्रजनन – संबंधी दुष्क्रिया हो सकते हैं। मध्य-पूर्व के कुछ देशों में बौनापन का कारण आहार में जस्ते की कमी को ही माना जाता है। जस्ता अपेक्षाकृत अविषाक्त है। आंतों में शरीर के लिये अनावश्यक जस्ते की अतिरिक्त मात्रा को समाप्त करने के लिये कार्यकुशल यंत्र-रेचन है। आयु के साथ जस्ते की कमी संभावना बढती है। .

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आहारीय खनिज

आहारीय खनिज वे खनिज होते हैं, जो आहार के संग शरीर को मिलते हैं एवं पोषण करने में सहाय्क होते हैं। शरीर के लिए पांच महत्त्वपूर्ण तत्त्व कैल्शियम, मैग्नेशियम, फ़ास्फ़ोरस, पोटाशियम और सोडियम अत्यावश्वक होते हैं। इनके अलावा अन्य महत्वपूर्ण किंतु सूक्ष्म मात्रिक तत्व हैं, क्रोमियम, तांबा, आयोडिन, लोहा, मैगनीज और जस्ता। इसके अतिरिक्त सेलेनियम भी अच्छे स्वास्थ्य बनाये रखने में एक उपयोगी है। अन्य सूक्ष्म मात्रिक तत्त्वों में सल्फ़र, निकल, कोबाल्ट, फ़्यूरीन, आंक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन भी हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। ये सब मिलकर आहारीय खनिज कहलाते हैं। ये स्वास्थ्य के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितने विटामिन इत्यादि। लौह रक्त के लिए और कैल्शियम हडिडयों के लिए सम्पूरक के रूप में गर्भावस्था में महत्वपूर्ण है। आयोडिन की कमी गलगण्ड और मन्दबुद्धि, तथा मैग्नेशियम की कमी कैन्सर का कारण बन सकती है। मैगनीज और क्रोमियम का भी हृदय-रोग से संबध है। सामान्य रक्त-शर्करा के स्तरों को बनाए रखने के लिए क्रोमियम की आवश्यकता है। पाचन-तंत्र में जस्ते की कमी से गंजापन, भूख न लगना और यौन-दुष्क्रिया के परिणाम हो सकते है। एक ७० किलों भार वाले मनुष्य के लिए खनिजांश और उसके दैनिक औसत अन्नग्रहण की आवश्यकताओं का अनुमान निम्न प्रकार से है-.

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आहारीय आयोडीन

आहारीय आयोडीन मानव शरीर के अत्यावश्यक भौतिक तत्त्व है। ये अवटु ग्रंथि के सम्यक, कार्यविधि के लिए आवश्यक है जो शक्ति का निर्माण करती है, हानिप्रद कीटाणुओं को मारती है और इसके हार्मोन थांयरांक्सीजन की कमी पूरी करती है। आयोडीन मन को शांति प्रदान करती है, तनाव कम करती है, मस्तिष्क को सतर्क रखती है और बाल, नाखून, दांत और त्वचा को उत्तम स्थिति में रखने में मदद करता है। आयोडिन की कमी से गर्दन के नीचे अवटु ग्रंथि की सूजन (गलगंड) हो सकती है और हार्मोन का उत्पादन बन्द हो सकता है जिससे शरीर के सभीसंस्थान अव्यवस्थित हो सकते हैं। इसकी कमी से मन्द मानसिक प्रतिक्रियायें, धमनियों में सख्ती एवं मोटापा हो सकता है। मानव शरीर में केवल १०-१२ मिलीग्राम आयोडिन होती है किन्तु इसके बिना जीवित रहना सम्भव नही है। आयोडिन कोलेस्ट्रॉल की रासायनिक संशलेषण में सहायता करती है और धमनियों में कोलेस्ट्रॉल चर्बी को भी बढ़ाती है। शरीर में आयोडिन की अधिकता होने से नाक में नमी अधिक हो जाती है। जल में ली गई क्लोरीन शरीर से आयोडिन अधिकता को निकालने का कारण होती है। अधिक मात्रा में आयोडीन वाले आहार है मूली, शतावर (एस्पेरेगस रेसिमोसस), गाजर, टमाटर, पालक, आलू, मटर, खुंभी, सलाद, प्याज, केला, स्ट्राबेरी, समुद्र से प्राप्त होने वाले आहार, अंडे की जर्दी, दूध, पनीर और कॉड-लिवर तेल। आयोडिन की कमी से उत्पन्न विकारों पर नियंत्रण के लिये १९८६ में न्यूसेफ़ और आस्ट्रेलिया की सरकार के समर्थन से तीसरी दुनिया के देशों को सहायता देने के लिये एक अन्तराष्ट्रीय परिषद स्थापित की गई थी। भारत ने १९९२ से पहले व्यापक आयोडिन युक्त नमक की नीति अपनाई थी। श्रेणी:पोषण श्रेणी:आयोडीन श्रेणी:आहार श्रेणी:अवटु ग्रंथि श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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आहारीय कैल्शियम

कैल्शियम एक भौतिक तत्त्व है। यह जीवित प्राणियों के लिए अत्यावश्यक होता है। भोजन में इसकी समुचित मात्र होनी चाहिए। खाने योग्य कैल्शियम दूध सहित कई खाद्य पदार्थो में मिलती है। खान-पान के साथ-साथ कैल्शियम के कई औद्योगिक इस्तेमाल भी हैं जहां इसका शुद्ध रूप और इसके कई यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। आवर्त सारिणी में कैल्शियम का अणु क्रमांक 20 है और इसे अंग्रेजी शब्दों ‘सीए’ से इंगित किया गया है। 1808 में सर हम्फ्री डैवी ने इसे खोजा था। उन्होंने इसे कैल्शियम क्लोराइड से अलग किया था। कैल्शियम का नाम लातिन भाषा के शब्द ‘काल्क्स’ पर रखा गया है जिसका मतलब है चूना पत्थर जिसमें बड़ी मात्र में कैल्शियम पाया जाता है। पौधों में भी कैल्शियम पाया जाता है। हडिडयों और दांतों के बनाने और रख-रखाव के लिए, मांसपेशियों के सामान्य संकुचन के लिए हृदय की गति को नियमित करने के लिए और रक्त की क्लॉटिंग करने के लिए यह आवश्यक होता है। कैल्शियम जीवन-शक्ति और सहनशीलता बढाता है, कोलेस्ट्रांल स्तरों का नियमन करता है, स्नायुओं के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है अरुअ रजोधर्म विषयक दर्दों के लिए ठीक है। एन्जाइम की गतिविधि के लिए कैल्शियम की आवश्यकता है। हृदय-संवहनी के स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम मैग्नेशियम के साथ काम करता है। रक्त के जमाव के द्वारा यह घावों को शीघ्र भरता है। कुछ कैसर के विरुद्ध भी यह सहायक होती है। गर्भवती महिलाओं, 60 से अधिक उम्र के पुरुषों, 45 से अधिक उम्र की स्त्रियों, धूम्रपान करने वालों और अधिक मदिरापान वालों को कैल्शियम का खतरा रहता है। बच्चों में सूखा रोग कैल्शियम की कमी का लक्षण है। विविटामिन 'डी' ‘डी’ की विशेष रूप से आवश्यकता कैल्शियम के समावेशन के लिए होती है। विटामिन ‘सी’ भी कैल्शियम के समावेशन में सुधार लाता है। सम्पूरक के रूप में कैल्शियम कार्बोनेट भोजन के साथ अधिक अच्छे ढंग से समावेशित होता है। .

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क्रोमियम

क्रोमियम एक रासायनिक तत्व है जो रासायनिक नज़रिये से संक्रमण धातु समूह का सदस्य है। यह एक चमकीला, सलेटी-भूरे रंग का, सख़्त लेकिन आसानी से टूट जाने वाला धातु है। इसे पालिश करने पर यह अत्याधिक चमकीला बन जाता है और यह आसानी से नहीं धुंधलाता। इसका पिघलाव तापमान १९०७ °सेंटीग्रेड है जो कि काफ़ी ऊँचा है। अगर इसे इस्पात में मिलाया जाये तो इस्पात पर ज़ंग और धब्बे नहीं लगते, जिस कारण से इसे 'स्टेनलेस स्टील' (ज़ंगरोधी इस्पात) बनाने में काम लाया जाता है। मानव शरीर को बहुत ही हल्की मात्रा में क्रोमियम आहार में आवश्यक होता है लेकिन अधिक मात्रा में यह विष की तरह काम करता है। .

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क्लोरीन

क्लोरीन (यूनानी: χλωρóς (ख्लोरोस), 'फीका हरा') एक रासायनिक तत्व है, जिसकी परमाणु संख्या १७ तथा संकेत Cl है। ऋणात्मक आयन क्लोराइड के रूप में यह साधारण नमक में उपस्थित होती है और सागर के जल में घुले लवण में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।। हिन्दुस्तान लाइव। ३१ मई २०१० सामान्य तापमान और दाब पर क्लोरीन (Cl2 या "डाईक्लोरीन") गैस के रूप में पायी जाती है। इसका प्रयोग तरणतालों को कीटाणुरहित बनाने में किया जाता है। यह एक हैलोजन है और आवर्त सारणी में समूह १७ (पूर्व में समूह ७, ७ए या ७बी) में रखी गयी है। यह एक पीले और हरे रंग की हवा से हल्की प्राकृतिक गैस जो एक निश्चित दाब और तापमान पर द्रव में बदल जाती है। यह पृथ्वी के साथ ही समुद्र में भी पाई जाती है। क्लोरीन पौधों और मनुष्यों के लिए आवश्यक है। इसका प्रयोग कागज और कपड़े बनाने में किया जाता है। इसमें यह ब्लीचिंग एजेंट (धुलाई करने वाले/ रंग उड़ाने वाले द्रव्य) के रूप में काम में लाई जाती है। वायु की उपस्थिति में यह जल के साथ क्रिया कर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का निर्माण करती है। मूलत: गैस होने के कारण यह खाद्य श्रृंखला का भाग नहीं है। यह गैस स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। तरणताल में इसका प्रयोग कीटाणुनाशक की तरह किया जाता है। साधारण धुलाई में इसे ब्लीचिंग एजेंट रूप में प्रयोग करते हैं। ब्लीच और कीटाणुनाशक बनाने के कारखाने में काम करने वाले लोगों में इससे प्रभावित होने की आशंका अधिक रहती है। यदि कोई लंबे समय तक इसके संपर्क में रहता है तो उसके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसकी तेज गंध आंखों, त्वचा और श्वसन तंत्र के लिए हानिकारक होती है। इससे गले में घाव, खांसी और आंखों व त्वचा में जलन हो सकती है, इससे सांस लेने में समस्या होती है। .

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कोबाल्ट

कोबाल्ट एक रासायनिक तत्व है और संक्रमण धातु के समूह का सदस्य है। अपने शुद्ध रूप में यह धातु सख़्त, चमकीली और सलेटी-चाँदी रंग की है, लेकिन यह पृथ्वी पर केवल अन्य रासायनिक तत्वों के साथ बने यौगिकों के रूप में ही मिलती है। कुछ मात्रा में यह निकल की तरह पृथ्वी पर उल्काओं में गिरती है और वहीं शुद्ध रूप में देखी जा सकती है। .

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अमीनो अम्ल

फिनाइल एलानिन, एक सामान्य अमीनो अम्ल अमीनो अम्ल, वे अणु हैं जिनमें अमाइन तथा कार्बोक्सिल दोनों ही ग्रुप पाएं जाते हैं। इनका साधारण सुत्र H2NCHROOH है। इसमें R एक पार्श्व कड़ी है। जो परिवर्तनशील विभिन्न अणुओं का ग्रूप होता है। कार्बोक्सिल (-COOH) तथा अमाइन (-NH2) ग्रूप कार्बन परमाणु से लगा रहता है। अमीनो अम्ल प्रोभूजिन के गठनकर्ता अणु हैं। बहुत सारे अमीनो अम्ल पेप्टाइड बंधन द्वारा युक्त होकर प्रोभूजिन बनाते हैं। प्रोभूजिन बनाने में 20 अमीनो अम्ल भाग लेते हैं। यह प्रोभूजिन निर्माण के कर्णधार होते हैं। प्रकृति में लगभग बीस अमीनों अम्लों का अस्तित्व है। प्रोभूजिन अणुओं में सैंकड़ों या हजारों अमीनो अम्ल एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। प्रत्येक प्रोभूजिन में प्रायः सभी अमीनो अम्ल एक विशेष अनुक्रम से जुड़े रहते हैं। विभिन्न अमीनो अम्लों का यही अनुक्रम प्रत्येक प्रोभूजिन को उसकी विशेषताएं प्रदान करता है। अमीनो अम्लों का यही विशिष्ट अनुक्रम डी एन ए के न्यूक्लोटाइडस के क्रम से निर्धारित होता है। श्रेणी:जैवरसायनिकी श्रेणी:शब्दावली श्रेणी:सूक्ष्मजैविकी श्रेणी:जैव प्रौद्योगिकी श्रेणी:आण्विक जैविकी श्रेणी:अनुवांशिकी *.

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निवर्तमानआने वाली
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